करे प्याज का उपयोग
गेहूं को सुरक्षित रखने के लिए उस में प्याज भी मिलाया जा सकता है। 1 क्विंटल गेहूं में आधा किलो प्याज मिलाएं। सब से पहले प्याज को नीचे रखें और फिर बीच में। इसके बाद सब से ऊपर रखें। इससे कीड़े नहीं आएंगे।
करे चूने का प्रयोग
घुन को रोकने के लिएआपको चुने का इस्तमाल करना चाहिए।चुना आपको पेंट वाली दुकान से आसानी से मिल जाएगा।आपको चुना सुखा के आपको एक कपड़े में बांध के आपको उसके काफी सारे पैकेट बनाने है और वो सभी पैकेट्स को आपको अपनी टंकी में डाल देना। ये चुना क्या काम करेगा? चुना आपका दो तरीके से काम करेगा एक तो आपके अनाज में जितने भी प्रकार की नमी होगी नमी को ये चूसता है।
नमी को ग्रहण करता है और दूसरा ये किसी प्रकार का घुन लगने नहीं देता है तो तीसरा इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं है। और अगर चुना आपके आटे में किसी तरह से मिल भी जाए, तो वो कोई किसी प्रकार की कोई दिक्कत भी नहीं होगी तो आप कोशिश करें उसको ना पिसवाएं।
करे नीम का प्रयोग
इसके इलावा आप नीम का इस्तेमाल कर सकते है । इसके लिए जो हमारे नीम की टहनियां इस्तमाल कर सकते है लेकिन याद रहे के नीम की टहनियां मरी सूखी नहीं होनी चाहिए, हरी होनी चाहिए फ्रेश होनी चाहिए और नीम के पत्तों का भी प्रयोग कर सकते है।
करे छोटी छोटी टँकी का प्रयोग
गेहूं डालने से पहले आपको अपने टेंक को अच्छे से सुखा लीजिये धूप में दबा के एक सप्ताह के लिए सुखा लिये ताकि उसमें किसी प्रकार की नमी ना आए और बहुत सारे किसान मारे गलती करते टंकी को जमीन के नीचे रख देते है। इसको हमेशा हाइट पर रखें चाहे आप उसका स्टैण्ड बनवा लें और चाहे आप इसके लिए ईंट का भी प्रयोग कर सकते हैं इस से गेहूं निकालना बहुत आसान हो जाता है तो इन चीजों का बार प्रयोग करें ।
एक बड़ा टैंक ना लेकर छोटी छोटी कई टंकिया ले ताकि आपका अनाज दूसरी जगह स्टोर रहे और आपको अगर एक टंकी में घुन लग गया तो दूसरी टंकी को बचा सकेंगे ।
करे माचिस का प्रयोग
घरेलू प्रयोग के लिए लोहे की टंकी आदि में गेहूं को सुरक्षित रखने के लिए यह तरीका भी अपनाया जा सकता है। टंकी में एक कुंटल गेहूं भंडारित करते समय एक माचिस (तीलियों से भरी) तली में, दूसरी मध्य में तथा तीसरी माचिस सबसे ऊपर रखनी चाहिए। एक किलो नीम की पत्तियों को छाया में सुखाकर भंडार करने से पहली टंकी की तली में बिछाना चाहिए।
इन सभी उपायों का प्रयोग कर आप अपने गेंहूं को लंबे समय तक भंडारित कर सकते है। यह जानकारी निश्चित ही आपके लिए उपयोगी होगी।
साभार
डॉ. गजेंद्र चन्द्राकर
(वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक)इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय
रायपुर छत्तीसगढ़
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