कद्दूवर्गीय सब्जियां
प्रमुख कीट
फल मक्खी – यह एक गंभीर कीट है जिसके कारण फसल में 80 प्रतिशत तक का नुकसान देखा गया है। अधिकतम नुकसान जुलाई – अगस्त के दौरान होता है। सगर्भा मादा सफेद, सिगार के आकार के अंडे फूल या नरम फलों में देती है। नवजात कीड़े फलों के गूदे में छेद कर प्रवेश करते हैं व टेढ़ी मेढ़ी गैलरी बना आकार फल को अंदर से खा जाते हैं और उन्हें अपनी कीटमल से दूषित करते हैं और सप्रोफायटिक कवक और बैक्टीरिया के अंदर जाने के लिए रास्ता बना देते हैं। जिसे कारण फल सड़ जाते हैं व खोखले होकर परिपक्व होने से पहले ही गिर जाते हैं।
ककड़ी कीट – लार्वा के शरीर के दोनों तरफ सफेद धारी होती वे ये पीले से गहरे हरे रंग के होते हैं। सूंडी इकट्ठी होकर पत्तियों के क्लोरोफिल भाग को कुतर कर उन्हें जालबद्ध कर देती हैं। जैसे ही फल विकसित होना शुरू होता है, लार्वा सतह में उथले छेद को चबा लेते हैं।
लाल पम्पकिन बीटल –
यह लौकी की गंभीर कीट है। वयस्क भृंग जमीन के ऊपर पौधों की क्षति के लिए मुख्य रूप से पत्ते, फूल और फल पर आक्रमण करने के लिए जिम्मेदार हैं। ये पौधों व फलों में छेद करते है जिससे पूर्ण विकास न होने के कारण पौधा मर जाता है। भारी प्रकोप होने की स्थिति होने पर दुबारा से बुवाई किया जाना आवश्यक है। लार्वा मिट्टी में रहते हैं और जड़ों और पौधे के तने को खाते हैं।
सफेद मक्खी-
निम्फ और वयस्क मुख्य रूप से पौधों के रस को पत्तियों के नीचे से चूसते हैं और मधुरस स्रावित करते हैं जिससे पत्ती के ऊपर काली फफूंद विकसित हो जाती है जिसके कारण पौधों द्वारा प्रकाश संश्लेषण कम हो जाता है। उनके भक्षण द्वारा हुए प्रत्येक्ष नुकसान के अलावा ये वायरल रोगों के जनक के रूप में भी काम करते हैं
पर्ण सुरंगक –
लार्वा पत्तियों में सांप के आकार की सुरंगे बनाते हैं। गंभीर प्रकोप के कारण पत्तियों सूख कर गिर जाती हैं। वयस्क पीले रंग के होते हैं जो सुरंगों में ही प्यूपा बनाते हैं।
प्रमुख रोग
यह एक रोग गंभीर रोग है जो उच्च आर्द्रता और औसत तापमान प्रारंभिक अवस्था में पानी से भीगे कोणीय धब्बो की तरह के रूप में प्रकट होता है। धीरे – धीरे क्लोरेटिक होते हुए, विकसित अवस्था के दौरान निचली सतह पर बैंगनी रंग का हो जाता है।
सर्कोस्पोरा पत्ती धब्बा – यह रोग सभी कद्दू वर्गीय सब्जियों में होता है परंतु यह अधिकतर खीरा, करेला और लौकी में पत्ते पर पाया जाता है। छोटे गोलाकार धब्बे जो बीच में से स्लेटी रंग के होते हैं पत्तियों पर प्रकट होते हैं। गंभीर रूप से संक्रमित पत्ते गिर जाते हैं। फल का आकार कम हो जाता है। बरसात के मौसम के दौरान इसका संक्रमण अधिक होता है।
फ्यूजेरियम म्लानि – इस रोग के लक्षण लौकी और खरबूजे के फूल और फल अवस्था में प्रकट होते हैं। टैप जड़ें झुकी हुई जड़ों में बदल जाती हैं। पूरा पौधा पिला हो कर झुक जाता है व मुरझा जाता है। यह बीज और मिट्टी जनित म्लानि है।
चूर्णिल आसिता – सफेद पाऊडर जैसी विकसित फफूंद पत्तियों, तनों और लताओं पर आसानी से पहचानी जा सकती है। यह रोग लगभग सभी कद्दू वर्गीय सब्जियों में पाया जाता है और जिसके कारण काफी हानि होती है। प्रभावित पत्तियां मुरझा कर सूख जाती हैं। चूर्णिल आसिता फलों की गुणवत्ता को प्रभावित करता है और फल का आकार और संख्या कम होने से उपज में कमी आ जाती है।
एन्थ्राक्नोज – पीले रंग के पानी से भीगे धब्बे फसल पर प्रकट होते है जो की बाद में बीच में से सूखे काले भूरे रंग होकर चौड़े छेद जैसे दिखाई देते हैं। फल पर धब्बे गोलाकार संकुचित और गहरे रंग के किनारों वाले होते हैं जिसमें में बहुत संख्या में नुकीले आकार के फल निकाय होते हैं।
जीवाणुज कॉम्प्लेक्स – यह जीवाणु कद्दू वर्गीय सब्जियों के लिए एक अवरोध है जिसके कारण पत्ती, मोड़क, पीला मोजेक और स्टनटिंग जैसे रोग विकसित होते हैं। ककड़ी, मोजेक, पीला मोजेक के लक्षण कोमल पत्तियों पर गहरे हरे रंग के धब्बे के रूप में प्रकट होते हैं।
ट्राईकोडर्मा के सक्षम स्ट्रेन से 10 ग्राम प्रति किग्रा की दर से बीजोपचार करें।
नीम 300 पीपीएम् का 10 मिली प्रति लिटर की दर से करेले पर हड्डा बीटल, लौकी के लाल पम्किन बीटल के लिए फसल की प्रारंभिक अवस्था में 2 छिड़काव करें।
करेले के ककड़ी मोथ से सुरक्षा के लिए बेसिलस थ्रूजान्सेस के 2 ग्रा प्रति ली की दर से 2 छिड़काव करें।
फल मक्खी के बृहत् क्षेत्र में प्रबंधन के लिए क्यूल्योर 10 प्रति एकड़ की दर से स्थापित करें। लकड़ी के छोटे टूकड़े को इथनोल: क्यूलोर: कीटनाशी 8:2:1: के अनुपात के घोल में 48 घंटे तक डूबोयें।
फल मक्खी के प्युपे व परजीवियों को धूप में लाने के लिए मिट्टी को समतल करें।
फल मक्खी के प्रबंधन के लिए पीले रंग के चिप चिपे ट्रैप को 10 प्रति एकड़ की दर से स्थापित करें।
मृदुल आसिता व नमी में कमी लाने व हवा के आसान आवागमन के लिए ककड़ी को बांस के सहारे या ग्रीन हॉउस में लगाएं।
लौकी और ककड़ी की प्रारंभिक अवस्था में लाल पम्किन बीटल के प्रबंधन के लिए डीडीविपि 76 ईसी का 500 ग्राम प्रति हे. अथवा ट्राईक्लोरफोन 50 ईसी का 1.0 किग्रा प्रति हे. की दर से आवश्यकता अनुसार छिड़काव करें।
करेले और खीरे की लाल मकड़ी कुटकी के प्रबंधन के लिए डाईकोफोल 18.5 एस सी का 1.5 ली प्रति हे. की दर से छिड़काव करें। पत्तियों में छिड़काव की नमी बनाये रखने के लिए स्टीकर (0.1 प्रतिशत) का प्रयोग आवश्यक है। सफेद मक्खी, पर्ण सुरंगक, थ्रिप्स, लाल पम्पकिन बीटल के लिए साईंएन्ट्रानीली प्रोल 10.8 ओडी का 900 मिली प्रति हे. की दर से 500 लीटर पानी के साथ छिड़काव करें।
सूत्रकृमि प्रबंधन के लिए नीम खली का 250 किग्रा प्रति हे. की दर से आवश्यकता अनुसार प्रयोग करें।
चूर्णिल असिता और एंथ्रक्नोज के प्रबंधन के लिए कार्बेन्डाजीम 50 डब्ल्यूपी 300 ग्रा प्रति हे. की दर से आवश्यकता अनुसार छिड़काव करें। लौकी में एन्थ्राक्नोज के प्रबंधन के लिए थायोफिनेट 70 डब्ल्यूपी का 1430 ग्रा प्रति हे. की दर से 750 लीटर पानी के साथ प्रयोग किया जा सकता है।
ककड़ी में मृदुल आसिता के प्रबंधन हेतु अजोक्सीट्रोबीन 23 प्रतिशत का 500 मिली दर से ये साइमोक्सनिल 8 प्रतिशत + मेनकोजेब 64 प्रतिशत का 1.5 किग्रा प्रति हे. की दर से 500 लीटर पानी के साथ आवश्यकता अनुसार छिड़काव करें। कद्दूवर्गीय सब्जियों में एन्थ्राक्नोज और मृदुला असिता के प्रबंधन हेतु जिनाब 75 डब्ल्यूपी का 1.5 – 2.0 किग्रा प्रति हे. की दर से प्रयोग किया जा सकता है और कद्दूवर्गीय सब्जियों में मृदुल आसिता के प्रबंधन हेतु अमेक्तोडसी + डाईमेथोमार्फ़ 20.27 प्रतिशत डब्ल्यू/डब्ल्यू एससी का 420 – 525 मिली प्रति हे. की दर से 500 लीटर पानी के साथ आवश्यकता अनुसार छिड़काव करें।
मिट्टी में बोरोन की कमी दूर करने के लिए 10 किग्रा प्रति हे. की दर से बोरेक्स का प्रयोग करें। बोरेक्स का 100 ग्रा प्रति 100 ली की दर से पर्ण छिड़काव भी किया जा सकता है।
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