धान के खेत मे हो रही हो "काई"तो ऐसे करे सफाई
सामान्य बोलचाल की भाषा में शैवाल को काई कहते हैं। इसमें पाए जाने वाले क्लोरोफिल के कारण इसका रंग हरा होता है, यह पानी अथवा नम जगह में पाया जाता है। यह अपने भोजन का निर्माण स्वयं सूर्य के प्रकाश से करता है।
धान के खेत में इन दिनों ज्यादा देखी जाने वाली समस्या है काई।
डॉ गजेंद्र चन्द्राकर(वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक) इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर छत्तीसगढ़ के अनुुसार इसके निदान के लिए किसानों के पास खेत के पानी निकालने के अलावा कोई रास्ता नहीं रहता और पानी की कमी की वजह से किसान कोई उपाय नहीं कर पाता और फलस्वरूप उत्पादन में कमी आती है।
खेतों में अधिकांश काई की समस्या से लगातार किसान परेशान रहते हैं।
ऐसे नुकसान पहुंचाता है काई
◆किसानों के पानी भरे खेत में कंसे निकलने से पहले ही काई का जाल फैल जाता है। जिससे धान के पौधे तिरछे हो जाते हैं। पौधे में कंसे की संख्या एक या दो ही हो जाती है, जिससे बालियों की संख्या में कमी आती है ओर अंत में उपज में कमी आ जाती है, साथ ही
◆काई फैल जाने से धान में डाले जाने वाले उर्वरक की मात्रा जमीन तक नहीं पहुंचती, जिससे पौधों में पोषक तत्व की कमी तो होती ही है साथ में उर्वरक की भी हानि होती है।
◆काई की वजह से जल प्रदूषण तो होता ही है साथ ही धान की की जड़ को उचित मात्रा में सूर्य का प्रकाश भी नहीं पड़ता, जिससे पानी में आक्सीजन की मात्रा भी कम होती है और उपज कम हो जाती है।
धान के बाद दूसरे फसल लेने पर भी ये काई वापस आ जाता है और दोबारा फसल को भी प्रभावित करता है।
ऐसे करे रोकथाम के उपाय
◆नीला थोथा(कॉपर सल्फेट) की 500 से 600 ग्राम मात्रा को अच्छे से पीस कर किसी सूती कपड़ा की छोटी छोटी पोटली बनाकर खेत में पांच से छह स्थान पर सामान दूरी पर खेत में भरे पानी में रख देवें, जिससे काई की परत फट जाती है। इस प्रकार के उपाय में 300 से 400 रुपये प्रति एकड़ का खर्च आता है। इसके अतिरिक्त किसान नीला थोथा को पीसकर उसमें रेत मिलाकर खेत में उसका छिड़काव कर सकते हैं।
◆Copper oxycloride 1 kg प्रति एकड़ रेत के साथ मिलाकर
◆8 से 10 ग्राम नीला थोथा प्रति पंप का स्प्रे कर सकते है।
◆जमीन यदि एसिडिक है तो काई उपचार करने के बाद पुनः हो जाता है।
◆ग्रीष्म कालीन धान में जैसे ही पानी गर्म होता है बहुत तेजी से पुनः फैल जाता है।
◆जमीन का ph को balance करने के लिए चुना एवं ssp का उपयोग करें।
■ 250 ml per नुअलगी NUALGAE प्रति 10 लीटर पानी में घोलकर 5 किलो यूरिया डालकर खेत में जहां-जहां काई हो वहां पर मग से डालें ध्यान रहे खेत बंधा हुआ होना चाहिए।
मृदा PH बैलेंस करने में सुपर फास्फेट अहम योगदान देता है जबकि DAP मृदा में अम्लीय प्रकृति को बढ़ाता है।
सुपर फॉस्फेट की वजह से होने वाली काई को आप फटा सकते है लेकिन DAP की वजह से मृदा में अम्लीय प्रकृति की वजह से होने वाली बारीक रेशे वाली काई का नियंत्रण मुश्किल होता जा रहा है।
इन आसान तरीकों से किसान भाई अपने खेत में काई से छुटकारा पा सकते हैं, और ज्यादा से ज्यादा उत्पादन ले सकते हैं।
साभारडॉ गजेंद्र चन्द्राकर(वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक)इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालयरायपुर छत्तीसगढ़
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