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जैविक खेती-जानिए क्या है "सींग खाद या बी डी 500"

 
जैविक खेती-जानिए क्या है "सींग खाद या बी डी 500"

प्राचीन भारत के किसानों ने गाय के महत्व को पहचाना था। उन्होंने पाया गोमूत्र से खाद, कीटनाशक एवं औषिधिय उपयोग काफी लाभकारी है तथा भूमि की उत्पादकता बढ़ाने हेतु गोबर खाद ही उत्तम है। जो आधारित कृषि की आत्म स्वालंबन के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है।गाय से प्राप्त होने वाली हर वस्तु मानव जीवन के लिए अमृत के समान है इसलिए हम भारतीयों ने गाय को माँ का दर्जा दिया है।

आज की कड़ी में हम बताएंगे कि कैसे किसान भाई गाय की प्राकृतिक मृत्यु उपरांत सींग से खाद का निर्माण कर सकते है।
गाय की सींग गाय का रक्षा कवच है। गाय को इसके द्वारा सीधे तौर पर प्राकृतिक ऊर्जा मिलती है। गाय की मृत्यु के 45 साल बाद तक भी यह सुरक्षित बनी रहती है। गाय की मृत्यु के बाद उसकी सींग का उपयोग श्रेठ गुणवत्ता की खाद बनाने के लिए प्राचीन समय से होता आ रहा है। सींग खाद भूमि की उर्वरता बढ़ाते हुए मृदा उत्प्रेरक का काम करती है जिससे पैदावार बढ जाती है।



आवश्यक सामग्री
■ प्राकृतिक रूप से देहांत हुई गाय का साफ स्वस्थ सींग
■गाय का गोबर


बनाने की विधि
प्राकृतिक रूप से मृत गाय के साफ और स्वस्थ सिंग में गोबर भरकर नवरात्र से लेकर शरद पूर्णिमा के दौरान मिट्टी में गाड़ देंवे। और अगले चैत्र नवरात्र में इसे निकाले। इसमे भरे गोबर की खाद ही सींग खाद या बी डी 500 कहलाता है।

प्रयोग कैसे करे।
10 ग्राम खाद को 5.00 लीटर पानी मे घोलकर एक एकड़ में छिड़काव करें।


बीडी500 या सींग खाद में प्रमुख रूप से 3 प्रकार के जीवाणु पाए जाते हैं जो इसकी सक्रियता को बढ़ाते हैं। बैक्टीरिया- बेसिलस राडचेन, ग्राम कोकस कलस्टर आदि। एक्टिनोमाइसिटीज- एस्ट्रेपटोमासीज, एक्टिनोप्लेन, माइक्रोमोनेप्लेन आदि।



क्या होगा इस खाद से
खेत मे लाभदायक सूक्ष्म जीवों की संख्या बढ़ जाएगी।जो भूमि को उपजाऊ बनाते है।

यह खाद, रसायनिक उर्वरको के लगातार हो रहे प्रयोग के कारण बंजर होती जमीन के लिए काफी लाभदायक है। इस विधि से प्राचीन काल के सारे कृषक भली भाँति परिचित थे।


साभार
स्वदेशी खेती

तकनीक प्रचारकर्ता
"हम कृषकों तक तकनीक पहुंचाते हैं

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