दीमक का जैविक नियंत्रण: एक कारगर उपाय
डॉ.गजेंन्द्र चन्द्राकर(वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक) इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर (छ. ग.)
अनाज वाली फसलों में दीमक का प्रकोप अधिक होता है। खड़ी फसल में सामान्यतया किसान रसायनों का ही उपयोग करते हैं । यह तरीका महंगा एवं खर्चीला है तथा मृदा को प्रदूषित करता है । जैव नियंत्रण कारकों विशेषकर मित्र फफूंद मेटाराइजियम एनिसोपलाई एवं ब्यूबेरियों बेसियान का संवर्धन, नीम का तेल, अरण्डी की खली का उपयोग दीमक नियंत्रण के लिए सतत् एवं स्थाई कारक हैं ।
दीमक नियंत्रण की जैविक विधि अधिकतर किसान भाइयों की एक बड़ी समस्या होती है दीमक की।
आज की कड़ी में हम जानेंगे कि दीमक नियंत्रण की जैविक विधि क्या है और कैसे किसान भाई अपने घर पर ही इसका निर्माण कर सकते है।
आवश्यक सामग्री
♦️8-10भुट्टे की गिन्डिया(भुट्टे के दाने निकलने के बाद जो बचता है।
♦️मिट्टी का पुराना घड़ा
♦️सूती कपड़ा
बनाने की विधि
♦️ भुट्टे की 8-10भुट्टे की गिन्डियों(भुट्टे के दाने निकलने के बाद जो बचता है) एक पुराने मिट्टी के घड़े में इकठ्ठा कर लेंवे। इस घड़े को खेत में इसप्रकार गाड़े की घड़े का मुंह जमीन से एक इंच ऊपर निकला हो।
♦️घड़े के मुंह पर छिद्रदार सूती का कपड़ा बांध देंवे।
♦️कुछ दिन बाद देखेंगे घड़ा पूरा दीमक से भर जावेगा। अब घड़े को गर्म करके आप दीमक को नष्ट कर सकते है।
♦️ इस प्रकार 100-100 मीटर की दूरी पर घड़े को गड़ाए तथा 3-4 बार गिन्डियों को बदलकर यह क्रिया दोहराने से खेत की पूरी दीमक समाप्त हो जावेगी।
आवश्यक सलाह-
जिन किसान भाइयों के खेत पर दीमक की अधिक समस्या होती है वे बुवाई से 2 लीटर देशी गाय के दूध से बने मठ्ठे में चने के दाने के बराबर 6 हींग के टुकड़े पीसकर घोल लेंवे।इस घोल को अच्छी तरह से पूरे खेत पर छिड़काव करें।और दो घण्टे बाद बुवाई करें।
यह विधि काफी कारगर है जो किसान भाइयों के लिए निश्चित ही लाभप्रद होगी। और जो किसान भाई दीमक नियंत्रण के लिए रसायनिक कीटनाशकों पर खर्च करते है उस राशि की बचत होगी
मेटाराइजियम एनिसापलाई मित्र फफूंद:
प्राकृतिक रूप से भूमि में पाई जाने वाली मेटाराइजियम एक मित्र फफूंद कई प्रकार के कीटों में परजीवी की तरह प्रवेश कर उन्हें नष्ट कर देती है। यह भूमिगत कीटों विशेषकर चीटी यानी दीमक को नियंत्रित करती है।
उपयोग का तरीका:
फसलों में दीमक की रोकथाम हेतु 2.5 से 5 किलो मेटाराइजियम 100 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद या कम्पोस्ट या केंचुआ खाद में मिलाकर 72 घंटे संवर्धन करें जिससे माईसीलियम वृद्धि कर सके। इसे बुवाई से पूर्व या प्रथम निराई-गुड़ाई के बाद या खड़ी फसल में एक हैक्टेयर में बुरकाव कर सिंचाई करें । भूमि में मिलाने पर फफूंद के कोनिडिया कीड़ों की त्वचा पर अंकुरित होकर शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। शरीर में प्रवेश के बाद हानिकारक जहरीला पदार्थ बनाते हैं जिससे धीरे-धीरे कीट की मृत्यु हो जाती है एवं कीट वंश वृद्धि की स्थिति में नहीं रहता है। मित्र फफूंद मेटाराइजियम एक दीर्घ अवधि वक असरदार, लाभकारी, वातावरण एवं भूमि प्रदूषण रहित तथा मनुश्यों एवं पशुओं के लिए सुरक्षित है । इसे ठण्डे हवादार स्थान पर रखें। निर्माण तिथि से 120 दिन के अन्दर उपयोग करें । मित्र फफूंद के उपचार से पूर्व या बाद में रसायनों का उपयोग नहीं करें ।
मेटाराइजियमक की तरह ब्यूवेरिया भी दीमक का नियंत्रण करता है। यह अनाज वाली फसलों व फलदार पौधों में उपयोग किया जाता है ।
उपयोग का तरीका:
2.5 किलो ब्यूवेरिया को 100 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद या कम्पोस्ट या केंचुआ खाद में मिलाकर 72 घंटे नमी की अवस्था में ढ़ंक कर रखें ताकि मासीलियम वृद्धि कर सके। तैयार संवर्धन का खड़ी फसल में भुरकाव कर सिंचाई करें। भूमि में मिलाने या छिड़काव के उपरान्त फफूंद का कोनिडियम शत्रु कीटों के शरीर की त्वचा में चिपककर अंकुरित हो जाता है। फफूंद हाईफा में से रस स्त्रावित करती है जिससे शत्रु कीटों के शरीर की त्वचा यानी हार्ड क्यूटिकल घुल कर त्वचा में प्रवेश कर कीटों की वृद्धि रोक देता है । फफूंद शरीर में ब्यूवेरिया नामक जहरीला स्त्राव बनाता है जो कीट की प्रतिरोधक क्षमता को नष्ट करता है जिससे कीट मर जाता है। फलदार पौधों में 50-100 ग्राम फफूंद संवर्धन प्रति पौधे को उम्र के हिसाब से देवें।
अरण्डी की खली का प्रयोग:
दीमक प्रभावित क्षेत्रों में 500 किलो अरण्डी की खली प्रति हैक्टेयर की दर अन्तिम जुताई के समय भूमि में मिलाएं । अरण्डी की खली खेत में सीधे डालने पर देर से विघटित होती है अतः खेत में डालने से आधा घंटा पूर्व पानी से गीला कर लें तथा पाउडर बनाकर खेत में डालें।
नीम का तेल:
खड़ी फसल में दीमक नियंत्रण के लिए 4 लिटर नीम का तेल प्रति हैक्टेयर की दर से सिंचाई के पानी के साथ देवें या 50-60 किलो बजरी में मिलाकर बुरकाव कर सिंचाई करें ।
दीमक के प्रभावी एवं कारगर नियंत्रण के लिए मित्र फफूंद के उपयोग के अलावा वैज्ञानिक फसल चक्र अपनाएं, गर्मी की गहरी जुताई करें । दीमक की कॉलोनियों को नष्ट करें। फसल बोने से पूर्व बीजोपचार अवश्य करें। फसल में सिंचाई निश्चित अन्तराल पर करते रहें ।
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