Skip to main content

भारत सरकार (CIBRC) द्वारा अनुशंसित जैविक कीट नियंत्रक



पादप आधारित एवं सूक्ष्मजीव आधारित कीटनियंत्रक
Botanicals and Microbial insecticide




किसान भाइयों के लिए आज की कड़ी में जैविक एवं पादप आधारित कीट एवं रोग नियंत्रक के बारे बताएंगे जी कि CIBRC (CENTRAL INSECTICIDES BORD & REGISTRATION COMMITTEE) भारत सरकार की अनुसंशा अनुसार तैयार होते है। जिनका उपयोग किसान भाई अपने फसलों पर दिए गए निर्देशानुसार अनुसार कर अधिक उपज की प्राप्ति कर सकते है।

Azadirachtin 0.15% W/W Min. Neem Seed Kernel Based E.C .
Application/उपयोग:
कपास में सफेद मखी, बालवर्म तथा धान में तनाछेदक, भूरा माहू, पता लपेटक किट के रोकथाम।
Dose /मात्रा:
5ml/liter ,1500 से 2500 ml को 500 लीटर पानी मे मिला कर।स्प्रे करें।
Azadirachtin 0.03% Min. Neem Oil Based E.C. Containing

Application/उपयोग:

कपास में बालवर्म
(HelicoverpaArmigera),एफिड तथा धान के तनाछेदक,पत्ता लपेटक औऱ BPH के नियंत्रण में उपयुक्त।
बैगल का फल व तना भेदक किट की रोकथाम के लिए।
Dose /मात्रा:
1000-1500ml 500 पानी मे।
Azadirachtin 0.03% (300 ppm) Neem Oil Based WSP Containing Bengal
Application/उपयोग/Dose /मात्रा:
चना में फल भेदक किट(Heliothis)
2500-5000 in 500-1000 litter water
लाल चना पोड बोरर(Melangromyze)
22500-5000 in 500-1000 litter water
कपास में एफिड,सफेद मक्खी,बालवर्म
2500-5000 in 500-1000 litter water
भिंडी में फल छेदक,सफेद मक्खी,पत्ता माहू
2500-5000 in 500-1000 litter water
बैगन का तना ओर फल भेदक तथा बीटल
2500-5000 in 500-1000 litter water
Bacillus thuriengiensis var Kurstaki 0.5%

Application/उपयोग:
बैसिलस थूरिनजियेन्सिस विभिन्न प्रकार की फसलों , सब्जियों एवं फलों में लगने वाले लेपिडोप्टेरा कुल के फली बेधक , पत्ती खाने वाले कीटों की रोकथाम के लिए लाभकारी है ।बैसिलस थूरिनजियेन्सिस के प्रयोग के 15 दिन पूर्व या बाद में रासायनिक जीवाणुनाशी का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

Dose /मात्रा:

2ml/लीटर पानी मे।
Bacillus thuriengiensis var Kurstaki 2.5% AS.

Application/उपयोग:
चने का फल छेदक (Helicoverpa armigera)
बैसिलस थूरिनजियेन्सिस विभिन्न प्रकार की फसलों , सब्जियों एवं फलों में लगने वाले लेपिडोप्टेरा कुल के फली बेधक , पत्ती खाने वाले कीटों की रोकथाम के लिए लाभकारी है ।बैसिलस थूरिनजियेन्सिस के प्रयोग के 15 दिन पूर्व या बाद में रासायनिक जीवाणुनाशी का प्रयोग नहीं करना चाहिए

Dose /मात्रा:
2 किग्रा0 प्रति हेक्टेयर की दर से लगभग 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें ।
Beauveria bassiana 1.15% W.P.
Application/उपयोग:

बुवेरिया बेसियाना एक कवकनाशी जैविक कीटनाशक है। जो विभिन्न प्रकार की फसलों, फलों और सब्जियों, गूदे, पत्ती के आवरण, पत्ती खाने वाले कीड़े, चूसने वाले कीटों, दीमक और सफेद गीडार आदि की रोकथाम के लिए फायदेमंद है। । उच्च नमी और कम तापमान पर बेवरिया बेसियाना अधिक प्रभावी है। Bueveria बेसियाना के उपयोग से पहले और बाद में रासायनिक कवकनाशी का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए।

कपास के बालवर्म,धान में।पत्ता लपेटक किट,टमाटर का फ्रूट बोरर,गोभी का डीमांड बैक मोथ ।
Dose /मात्रा:
2.5 kg/ha in 750-850 L/Ha
Beauveria bassiana 5% SC Strain
Application/उपयोग:
बुवेरिया बेसियाना एक कवकनाशी जैविक कीटनाशक है। जो विभिन्न प्रकार की फसलों, फलों और सब्जियों, गूदे, पत्ती के आवरण, पत्ती खाने वाले कीड़े, चूसने वाले कीटों, दीमक और सफेद गीडार आदि की रोकथाम के लिए फायदेमंद है। । उच्च नमी और कम तापमान पर बेवरिया बेसियाना अधिक प्रभावी है। Bueveria बेसियाना के उपयोग से पहले और बाद में रासायनिक कवकनाशी का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए।
टमाटर फल छेदक किट (Helicoverpa armigera) की रोकथाम के लिए।
Dose /मात्रा:
500 in 500 litter water
Metarhizium Anisopliae 1.15% WP (1x108 CFU/gm min) Accession No. MTCC – 5173
Application/उपयोग:
धान के माहू (BPH) (Nilapavata lungens) के नियंत्रण के लिए।



मेटाराइजियम एनिसोप्ली :

मेटाराइजियम एनिसोप्ली फफूंद पर
आधारित जैविक कीटनाशक है । जो विभिन्न प्रकार के फसलों ,
फलों एवं सब्जियों में लगने वाले फलीबेधक , पत्ती लपेटक ,
पत्ती खाने वाले कीट , चूसने वाले कीटों , भूमि में दीमक
एवं सफेद गिडार आदि के रोकथाम के लिए लाभकारी है ।
मेटाराइजियम एनिसोप्ली कम आर्द्रता एवं अधिक
तापक्रम पर अधिक प्रभावी होता है । मेटाराइजियम
एनिसोप्ली के प्रयोग से 15 दिन पहले एवं बाद में
रासायनिक फफूंदनाशक का प्रयोग नहीं करना चाहिए ।
Dose /मात्रा:
2.5 kgs
(Formulated) 500 Liters of water
Metarhizium Anisopliae 1.0% WP (1x108 CFU/gm min)
Application/उपयोग:
बैगन के तना और फल छेदक किट के नियंत्रण के लिए।
मेटाराइजियम एनिसोप्ली : मेटाराइजियम एनिसोप्ली फफूंद पर आधारित जैविक कीटनाशक है । जो विभिन्न प्रकार के फसलों , फलों एवं सब्जियों में लगने वाले फलीबेधक , पत्ती लपेटक , पत्ती खाने वाले कीट , चूसने वाले कीटों , भूमि में दीमक एवं सफेद गिडार आदि के रोकथाम के लिए लाभकारी है । मेटाराइजियम एनिसोप्ली कम आर्द्रता एवं अधिक तापक्रम पर अधिक प्रभावी होता है । मेटाराइजियम एनिसोप्ली के प्रयोग से 15 दिन पहले एवं बाद में रासायनिक फफूंदनाशक का प्रयोग नहीं करना चाहिए ।
Dose /मात्रा:
2.5-5.0kg 500-750 लीटर पानी मे
Pseudomonas fluorescens 1.0% WP
Application/उपयोग/Dose /मात्रा:
जो विभिन्न प्रकार की फसलों , फलों , सब्जियों एवं गन्ना में जड़ सड़न , तना सड़न , डैम्पिंग आफ , उकठा , लाल सड़न , जीवाणु झुलसा , जीवाणु धारी आदि फफूंदीनाशक / जीवाणुनाशक रोगों के नियंत्रण के लिए प्रभावी पाया गया है । स्यूडोमोनास के प्रयोग के 15 दिन पहले एवं बाद में रासायनिक फफूंदनाशक का प्रयोग नहीं करना चाहिए ।

सभी फ़सल में रूट-नॉट नेमाटोड्स के नियंत्रण के लिए स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस वाले बीज का उपचार 1% WP @ 20 ग्राम / किलोग्राम बीज के साथ करें और नर्सरी बेडों का उपचार स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस 1% WP @ 50gm / sq.m के साथ करें और स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस 1% WP @ 5kg / हेक्टेयर गोबर खाद में मिला कर रोपाई से पहले मिट्टी में मिलाएं।
Trichoderma harzianum 1.0% WP
Application/उपयोग/Dose /मात्रा:
ट्राइकोडर्मा विभिन्न प्रकार की फसलों फलों एवं सब्जियों में जड़ सड़न , तना सड़न , डैम्पिंग आफ , उकठा , झुलसा आदि फफूंदजनित रोगों में लाभप्रद पाया गया है । धान , गेहूँ , दलहनी फसलों , गन्ना , कपास , सब्जियों , फलों आदि के फफूंद जनित रोगों में यह प्रभावी रोकथाम करता है । ट्राइकोडर्मा के कवक तंतु हानिकारक फफूंदी के कवक तंतुओं को लपेट कर या सीधे अन्दर घुसकर उसका रस चूस लेते हैं । इसके अतिरिक्त भोजन स्पर्धा के द्वारा कुछ ऐसे विषाक्त पदार्थ का स्राव करते है , जो सुरक्षा दीवार बनाकर हानिकारक फफूंदी से सुरक्षा देते है । ट्राइकोडर्मा के प्रयोग से बीजों का अंकुरण अच्छा होता है तथा फसलें फफूंदजनित रोगों से मुक्त रहती है । नर्सरी में ट्राइकोडर्मा के प्रयोग करने पर जमाव एवं वृद्धि अच्छी होती है । ट्राइकोडर्मा की सेल्फ लाइफ एक वर्ष होती है ।

रूट-नॉट नेमाटोड्स के नियंत्रण के लिए ट्राइकोडर्मा हर्जियानम 1% WP @ 20 ग्राम / किग्रा बीज और नर्सरी बेड ट्राइकोडर्मा हर्ज़ियानम 1 डब्लूपी WP @ 50gm / sq.m के साथ बीजों का उपचार करें और ट्राइकोडर्मा हर्ज़ियानम 1% WP (@) भी लगाएं। 5kg / हेक्टेयर) रोपाई से पहले मिट्टी में मिलाएं।.
Trichoderma viride 1.5% WP
ट्राइकोडर्मा विभिन्न प्रकार की फसलों फलों एवं सब्जियों में जड़ सड़न , तना सड़न , डैम्पिंग आफ , उकठा , झुलसा आदि फफूंदजनित रोगों में लाभप्रद पाया गया है । धान , गेहूँ , दलहनी फसलों , गन्ना , कपास , सब्जियों , फलों आदि के फफूंद जनित रोगों में यह प्रभावी रोकथाम करता है । ट्राइकोडर्मा के कवक तंतु हानिकारक फफूंदी के कवक तंतुओं को लपेट कर या सीधे अन्दर घुसकर उसका रस चूस लेते हैं । इसके अतिरिक्त भोजन स्पर्धा के द्वारा कुछ ऐसे विषाक्त पदार्थ का स्राव करते है , जो सुरक्षा दीवार बनाकर हानिकारक फफूंदी से सुरक्षा देते है । ट्राइकोडर्मा के प्रयोग से बीजों का अंकुरण अच्छा होता है तथा फसलें फफूंदजनित रोगों से मुक्त रहती है । नर्सरी में ट्राइकोडर्मा के प्रयोग करने पर जमाव एवं वृद्धि अच्छी होती है । ट्राइकोडर्मा की सेल्फ लाइफ एक वर्ष होती है ।

रूट-नॉट नेमाटोड्स के नियंत्रण के लिए ट्राइकोडर्मा विरडी 1% WP @ 20 ग्राम / किग्रा बीज और नर्सरी बेड ट्राइकोडर्मा विरडी 1 डब्लूपी WP @ 50gm / sq.m के साथ बीजों का उपचार करें और ट्राइकोडर्मा विरडी 1% WP (@) भी लगाएं। 5kg / हेक्टेयर) रोपाई से पहले मिट्टी में मिलाएं।.
Verticillium Chlamydosporium 1% WP
Application/उपयोग/Dose /मात्रा:
सभी फ़सल में रूट-नॉट नेमाटोड्स के नियंत्रण के लिए वर्टीसीलियम 1% WP @ 20 ग्राम / किग्रा बीज और नर्सरी बेड वर्टीसीलियम 1 डब्लूपी WP @ 50gm / sq.m के साथ बीजों का उपचार करें और वर्टीसीलियम 1% WP (@) भी लगाएं। 5kg / हेक्टेयर) रोपाई से पहले मिट्टी में मिलाएं।
Verticillium Lecanii 1.15%WP
Application/उपयोग:
विभिन्न प्रकार के फसलों में चूसने वाले कीटों , यथा सल्क कीट , माहू , थ्रिप्स , जैसिड , मीलीबग आदि के रोकथाम के लिए लाभकारी है । वर्टीसीलियम लैकानी के प्रयोग से 15 दिन पहले एवं बाद में रासायनिक फफंदनाशक का प्रयोग नहीं करना चाहिए ।
कपास में सफेद मक्खी ने नियंत्रण के लिए।
Dose /मात्रा:
2500 (formulated 500 लीटर पानी में।
Verticillium lecanii 3.0 % AS
Application/उपयोग:
विभिन्न प्रकार के फसलों में चूसने वाले कीटों , यथा सल्क कीट , माहू , थ्रिप्स , जैसिड , मीलीबग आदि के रोकथाम के लिए लाभकारी है । वर्टीसीलियम लैकानी के प्रयोग से 15 दिन पहले एवं बाद में रासायनिक फफंदनाशक का प्रयोग नहीं करना चाहिए ।
Dose /मात्रा:
2 – 2.5 kg 500 लीटर पानी मे।
Verticillium lecanii 5% SC
Application/उपयोग:
गोभी के डीमांड बैक मोथ के रोकथाम के लिए तथा धान में भूरा माह के लिए।
Dose /मात्रा:
500 in 500 litter water
NPV of Helicoverpa armigera 2.0% AS
Application/उपयोग:
कीट की सूंडी के द्वारा वाइरस युक्त पत्ती या फली खाने के 3 दिन बाद सूड़ियों का शरीर पीला पड़ने लगता है तथा एक सप्ताह बाद सूंडियाँ काले रंग की हो जाती है व शरीर के अन्दर द्रव भर जाता है । रोगग्रस्त सूड़ियाँ पौधे की ऊपरी पत्तियों अथवा टहनियों पर उल्टी लटकी हुई पायी जाती है ।

चना सोयाबीन, मिर्च,कपास के फल छेदक किट (Helicoverpa armigera) के नियंत्रण के लिए।
Dose /मात्रा:
1लीटर को 500 लीटर पानी में।
NPV of Spodoptera litura 0.5%
Application/उपयोग:
कीट की सूंडी के द्वारा वाइरस युक्त पत्ती या फली खाने के 3 दिन बाद सूड़ियों का शरीर पीला पड़ने लगता है तथा एक सप्ताह बाद सूंडियाँ काले रंग की हो जाती है व शरीर के अन्दर द्रव भर जाता है । रोगग्रस्त सूड़ियाँ पौधे की ऊपरी पत्तियों अथवा टहनियों पर उल्टी लटकी हुई पायी जाती है ।
तम्बाकू,सोयाबीन में स्टॉपटेरा लुटेरा किट नियंत्रण के लिए।
Dose /मात्रा:
1500 400-600 -litter water
===============***============


Disclaimer: The document has been compiled on the basis of available information for guidance and not for legal purposes.




Designed with by Way2Themes |
Distributed by Kheti ki Pathshala

छत्तीसगढ़ राज्य में उपलब्ध




निजी आदान विक्रेताओं से आग्रह स्थानीय कृषको को उपब्ध करवाये।

संकलनकर्ता
डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर
(वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक)
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय
रायपुर छत्तीसगढ़
तकनीक प्रचारकर्ता
"हम कृषकों तक तकनीक पहुंचाते हैं

Comments

अन्य लेखों को पढ़ने के लिए फोटो पर क्लिक करे।

कृषि सलाह- धान की बाली बदरंग या बदरा होने के कारण व निवारण (पेनिकल माइट)

कृषि सलाह - धान की बाली बदरंग या बदरा होने के कारण व निवारण (पेनिकल माइट) पेनिकल माइट से जुड़ी दैनिक भास्कर की खबर प्रायः देखा जाता है कि सितम्बर -अक्टूबर माह में जब धान की बालियां निकलती है तब धान की बालियां बदरंग हो जाती है। जिसे छत्तीसगढ़ में 'बदरा' हो जाना कहते है इसकी समस्या आती है। यह एक सूक्ष्म अष्टपादी जीव पेनिकल माइट के कारण होता है। आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक बताएंगे कि पेनिकल माइट के लक्षण दिखे तो उनका प्रबंधन कैसे किया जाए। पेनिकल माइट धान की बाली बदरंग एवं बदरा- धान की बाली में बदरा या बदरंग बालियों के लिए पेनिकल माईट प्रमुख रूप से जिम्मेदार है। पेनिकल माईट अत्यंत सूक्ष्म अष्टपादी जीव है जिसे 20 एक्स आर्वधन क्षमता वाले लैंस से देखा जा सकता है। यह जीव पारदर्शी होता है तथा पत्तियों के शीथ के नीचे काफी संख्या में रहकर पौधे की बालियों का रस चूसते रहते हैं जिससे इनमें दाना नहीं भरता। इस जीव से प्रभावित हिस्सों पर फफूंद विकसित होकर गलन जैसा भूरा धब्बा दिखता है। माईट उमस भरे वातावरण में इसकी संख्या बहुत तेजी से बढ़ती है। ग्रीष्मकालीन धान की ख

वैज्ञानिक सलाह-"चूहा नियंत्रण"अगर किसान भाई है चूहे से परेशान तो अपनाए ये उपाय

  वैज्ञानिक सलाह-"चूहा नियंत्रण"अगर किसान भाई है चूहे से परेशान तो अपनाए ये उपाय जैविक नियंत्रण:- सीमेंट और गुड़ के लड्डू बनाये:- आवश्यक सामग्री 1 सीमेंट आवश्यकता नुसार 2 गुड़ आवश्यकतानुसार बनाने की विधि सीमेंट को बिना पानी मिलाए गुड़ में मिलाकर गुंथे एवं कांच के कंचे के आकार का लड्डू बनाये। प्रयोग विधि जहां चूहे के आने की संभावना है वहां लड्डुओं को रखे| चूहा लड्डू खायेगा और पानी पीते ही चूहे के पेट मे सीमेंट जमना शुरू हो जाएगा। और चूहा धीरे धीरे मर जायेगा।यह काफी कारगर उपाय है। सावधानियां 1लड्डू बनाते समय पानी बिल्कुल न डाले। 2 जहां आप लड्डुओं को रखे वहां पानी की व्यवस्था होनी चाहिए। 3.बच्चों के पहुंच से दूर रखें। साभार डॉ. गजेंद्र चन्द्राकर (वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक) इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर छत्तीसगढ़ संकलन कर्ता हरिशंकर सुमेर तकनीक प्रचारकर्ता "हम कृषकों तक तकनीक पहुंचाते हैं"

सावधान-धान में ब्लास्ट के साथ-साथ ये कीट भी लग सकते है कृषक रहे सावधान

सावधान-धान में ब्लास्ट के साथ-साथ ये कीट भी लग सकते है कृषक रहे सावधान छत्तीसगढ़ राज्य धान के कटोरे के रूप में जाना जाता है यहां अधिकांशतः कृषक धान की की खेती करते है आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर ने बताया कि अगस्त माह में धान की फसल में ब्लास्ट रोग का खतरा शुरू हो जाता है। पत्तों पर धब्बे दिखाई दें तो समझ लें कि रोग की शुरुआत हो चुकी है। धीरे-धीरे यह रोग पूरी फसल को अपनी चपेट में ले लेता है। कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि इस रोग का शुरू में ही इलाज हो सकता है, बढ़ने के बाद इसको रोका नहीं जा सकता। उन्होंने कहा कि किसान रोजाना अपनी फसल की जांच करें और धब्बे दिखाई देने पर तुरंत दवाई का छिड़काव करे। लक्षण धान की फसल में झुलसा (ब्लास्ट) का प्रकोप देखा जा रहा है। इस रोग में पौधों से लेकर दाने बनने तक की अवस्था में मुख्य पत्तियों, बाली पर आंख के आकार के धब्बे बनते हैं, बीच में राख के रंग का तथा किनारों पर गहरे भूरे धब्बे लालिमा लिए हुए होते हैं। कई धब्बे मिलकर कत्थई सफेद रंग के बड़े धब्बे बना लेते हैं, जिससे पौधा झुलस जाता है। अपनाए ये उपाय जैविक नियंत्रण इस रोग के प्रकोप वाले क्षेत्रों म

रोग नियंत्रण-धान की बाली निकलने के बाद की अवस्था में होने वाले फाल्स स्मट रोग का प्रबंधन कैसे करें

धान की बाली निकलने के बाद की अवस्था में होने वाले फाल्स स्मट रोग का प्रबंधन कैसे करें धान की खेती असिंचित व सिंचित दोनों परिस्थितियों में की जाती है। धान की विभिन्न उन्नतशील प्रजातियाँ जो कि अधिक उपज देती हैं उनका प्रचलन धीरे-धीरे बढ़ रहा है।परन्तु मुख्य समस्या कीट ब्याधि एवं रोग व्यधि की है, यदि समय रहते इनकी रोकथाम कर ली जाये तो अधिकतम उत्पादन के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। धान की फसल को विभिन्न कीटों जैसे तना छेदक, पत्ती लपेटक, धान का फूदका व गंधीबग द्वारा नुकसान पहुँचाया जाता है तथा बिमारियों में जैसे धान का झोंका, भूरा धब्बा, शीथ ब्लाइट, आभासी कंड व जिंक कि कमी आदि की समस्या प्रमुख है। आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक बताएंगे कि अगर धान की फसल में फाल्स स्मट (कंडुआ रोग) का प्रकोप हो तो इनका प्रबंधन किस प्रकार करना चाहिए। कैसे फैलता है? फाल्स स्मट (कंडुआ रोग) ■धान की फसल में रोगों का प्रकोप पैदावार को पूरी तरह से प्रभावित कर देता है. कंडुआ एक प्रमुख फफूद जनित रोग है, जो कि अस्टीलेजनाइडिया विरेन्स से उत्पन्न होता है। ■इसका प्राथमिक संक्रमण बीज से हो

धान के खेत मे हो रही हो "काई"तो ऐसे करे सफाई

धान के खेत मे हो रही हो "काई"तो ऐसे करे सफाई सामान्य बोलचाल की भाषा में शैवाल को काई कहते हैं। इसमें पाए जाने वाले क्लोरोफिल के कारण इसका रंग हरा होता है, यह पानी अथवा नम जगह में पाया जाता है। यह अपने भोजन का निर्माण स्वयं सूर्य के प्रकाश से करता है। धान के खेत में इन दिनों ज्यादा देखी जाने वाली समस्या है काई। डॉ गजेंद्र चन्द्राकर(वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक) इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर छत्तीसगढ़ के अनुुसार  इसके निदान के लिए किसानों के पास खेत के पानी निकालने के अलावा कोई रास्ता नहीं रहता और पानी की कमी की वजह से किसान कोई उपाय नहीं कर पाता और फलस्वरूप उत्पादन में कमी आती है। खेतों में अधिकांश काई की समस्या से लगातार किसान परेशान रहते हैं। ऐसे नुकसान पहुंचाता है काई ◆किसानों के पानी भरे खेत में कंसे निकलने से पहले ही काई का जाल फैल जाता है। जिससे धान के पौधे तिरछे हो जाते हैं। पौधे में कंसे की संख्या एक या दो ही हो जाती है, जिससे बालियों की संख्या में कमी आती है ओर अंत में उपज में कमी आ जाती है, साथ ही ◆काई फैल जाने से धान में डाले जाने वाले उर्वरक की मात्रा जमीन तक नहीं

सावधान -धान में लगे भूरा माहो तो ये करे उपाय

सावधान-धान में लगे भूरा माहो तो ये करे उपाय हमारे देश में धान की खेती की जाने वाले लगभग सभी भू-भागों में भूरा माहू (होमोप्टेरा डेल्फासिडै) धान का एक प्रमुख नाशककीट है| हाल में पूरे एशिया में इस कीट का प्रकोप गंभीर रूप से बढ़ा है, जिससे धान की फसल में भारी नुकसान हुआ है| ये कीट तापमान एवं नमी की एक विस्तृत सीमा को सहन कर सकते हैं, प्रतिकूल पर्यावरण में तेजी से बढ़ सकते हैं, ज्यादा आक्रमक कीटों की उत्पती होना कीटनाशक प्रतिरोधी कीटों में वृद्धि होना, बड़े पंखों वाले कीटों का आविर्भाव तथा लंबी दूरी तय कर पाने के कारण इनका प्रकोप बढ़ रहा है। भूरा माहू के कम प्रकोप से 10 प्रतिशत तक अनाज उपज में हानि होती है।जबकि भयंकर प्रकोप के कारण 40 प्रतिशत तक उपज में हानि होती है।खड़ी फसल में कभी-कभी अनाज का 100 प्रतिशत नुकसान हो जाता है। प्रति रोधी किस्मों और इस किट से संबंधित आधुनिक कृषिगत क्रियाओं और कीटनाशकों के प्रयोग से इस कीट पर नियंत्रण पाया जा सकता है । आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक बताएंगे कि भूरा माहू का प्रबंधन किस प्रकार किया जाए। लक्षण एवं पहचान:- ■ यह कीट भूर

समसामयिक सलाह:- भारी बारिश के बाद हुई (बैटीरियल लीफ ब्लाइट ) से धान की पत्तियां पीली हो गई । ऐसे करे उपचार नही तो फसल हो जाएगी चौपट

समसामयिक सलाह:- भारी बारिश के बाद हुई (बैटीरियल लीफ ब्लाइट ) से धान की पत्तियां पीली हो गई । ऐसे करे उपचार नही तो फसल हो जाएगी चौपट छत्त्तीसगढ़ राज्य में विगत दिनों में लगातार तेज हवाओं के साथ काफी वर्षा हुई।जिसके कारण धान के खेतों में धान की पत्तियां फट गई और पत्ती के ऊपरी सिरे पीले हो गए। जो कि बैटीरियल लीफ ब्लाइट नामक रोग के लक्षण है। आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर बताएंगे कि ऐसे लक्षण दिखने पर किस प्रकार इस रोग का प्रबंधन करे। जीवाणु जनित झुलसा रोग (बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट): रोग के लक्षण ■ इस रोग के प्रारम्भिक लक्षण पत्तियों पर रोपाई या बुवाई के 20 से 25 दिन बाद दिखाई देते हैं। सबसे पहले पत्ती का किनारे वाला ऊपरी भाग हल्का पीला सा हो जाता है तथा फिर मटमैला हरापन लिये हुए पीला सा होने लगता है। ■ इसका प्रसार पत्ती की मुख्य नस की ओर तथा निचले हिस्से की ओर तेजी से होने लगता है व पूरी पत्ती मटमैले पीले रंग की होकर पत्रक (शीथ) तक सूख जाती है। ■ रोगग्रसित पौधे कमजोर हो जाते हैं और उनमें कंसे कम निकलते हैं। दाने पूरी तरह नहीं भरते व पैदावार कम हो जाती है। रोग का कारण यह रोग जेन्थोमोनास

वैज्ञानिक सलाह- धान की खेती में खरपतवारों का रसायनिक नियंत्रण

धान की खेती में खरपतवार का रसायनिक नियंत्रण धान की फसल में खरपतवारों की रोकथाम की यांत्रिक विधियां तथा हाथ से निराई-गुड़ाईयद्यपि काफी प्रभावी पाई गई है लेकिन विभिन्न कारणों से इनका व्यापक प्रचलन नहीं हो पाया है। इनमें से मुख्य हैं, धान के पौधों एवं मुख्य खरपतवार जैसे जंगली धान एवं संवा के पौधों में पुष्पावस्था के पहले काफी समानता पाई जाती है, इसलिए साधारण किसान निराई-गुड़ाई के समय आसानी से इनको पहचान नहीं पाता है। बढ़ती हुई मजदूरी के कारण ये विधियां आर्थिक दृष्टि से लाभदायक नहीं है। फसल खरपतवार प्रतिस्पर्धा के क्रांतिक समय में मजदूरों की उपलब्धता में कमी। खरीफ का असामान्य मौसम जिसके कारण कभी-कभी खेत में अधिक नमी के कारण यांत्रिक विधि से निराई-गुड़ाई नहीं हो पाता है। अत: उपरोक्त परिस्थितियों में खरपतवारों का खरपतवार नाशियों द्वारा नियंत्रण करने से प्रति हेक्टेयर लागत कम आती है तथा समय की भारी बचत होती है, लेकिन शाकनाशी रसायनों का प्रयोग करते समय उचित मात्रा, उचित ढंग तथा उपयुक्त समय पर प्रयोग का सदैव ध्यान रखना चाहिए अन्यथा लाभ के बजाय हानि की संभावना भी रहती है। डॉ गजेंद्र चन्

समसामयिक सलाह-" गर्मी व बढ़ती उमस" के साथ बढ़ रहा है धान की फसल में भूरा माहो का प्रकोप,जल्द अपनाए प्रबंधन के ये उपाय

  धान फसल को भूरा माहो से बचाने सलाह सामान्यतः कुछ किसानों के खेतों में भूरा माहों खासकर मध्यम से लम्बी अवधि की धान में दिख रहे है। जो कि वर्तमान समय में वातारण में उमस 75-80 प्रतिशत होने के कारण भूरा माहो कीट के लिए अनुकूल हो सकती है। धान फसल को भूरा माहो से बचाने के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ गजेंद्र चंद्राकर ने किसानों को सलाह दी और अपील की है कि वे सलाह पर अमल करें। भूरा माहो लगने के लक्षण ■ गोल काढ़ी होने पर होता है भूरा माहो का प्रकोप ■ खेत में भूरा माहो कीट प्रारम्भ हो रहा है, इसके प्रारम्भिक लक्षण में जहां की धान घनी है, खाद ज्यादा है वहां अधिकतर दिखना शुरू होता है। ■ अचानक पत्तियां गोल घेरे में पीली भगवा व भूरे रंग की दिखने लगती है व सूख जाती है व पौधा लुड़क जाता है, जिसे होपर बर्न कहते हैं, ■ घेरा बहुत तेजी से बढ़ता है व पूरे खेत को ही भूरा माहो कीट अपनी चपेट में ले लेता है। भूरा माहो कीट का प्रकोप धान के पौधे में मीठापन जिसे जिले में गोल काढ़ी आना कहते हैं । ■तब से लेकर धान कटते तक देखा जाता है। यह कीट पौधे के तने से पानी की सतह के ऊपर तने से चिपककर रस चूसता है। क्या है भू

सावधान -धान में (फूल बालियां) आते समय किसान भाई यह गलतियां ना करें।

  धान में फूल बालियां आते समय किसान भाई यह गलतियां ना करें। प्रायः देखा गया है कि किसान भाई अपनी फसल को स्वस्थ व सुरक्षित रखने के लिए कई प्रकार के कीटनाशक व कई प्रकार के फंगीसाइड का उपयोग करते रहते है। उल्लेखनीय यह है कि हर रसायनिक दवा के छिड़काव का एक निर्धारित समय होता है इसे हमेशा किसान भइयों को ध्यान में रखना चाहिए। आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय बताएंगे कि धान के पुष्पन अवस्था अर्थात फूल और बाली आने के समय किन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है, ताकि फसल का अच्छा उत्पादन प्राप्त हो। सुबह के समय किसी भी तरह का स्प्रे धान की फसलों पर नहीं करें कारण क्योंकि सुबह धान में फूल बनते हैं (Fertilization Activity) फूल बनाने की प्रक्रिया धान में 5 से 7 दिनों तक चलता है। स्प्रे करने से क्या नुकसान है। ■Fertilization और फूल बनते समय दाना का मुंह खुला रहता है जिससे स्प्रे के वजह से प्रेशर दानों पर पड़ता है वह दाना काला हो सकता है या बीज परिपक्व नहीं हो पाता इसीलिए फूल आने के 1 सप्ताह तक किसी भी तरह का स्प्रे धान की फसल पर ना करें ■ फसल पर अग