Skip to main content

औषधीय ज्ञान-100 मर्ज की एक दवा है ये.....

गुळवेल (Tinospora cardifolia)
( स्वानंद जोशी नागपूर)



शहरों में लोग अपने घरों में मनी प्लांट की बेल लगते है जो कि हमे पश्चिमी सभ्यता की ओर ले के जाता है यदि हम मनी प्लांट के स्थान पर गिलोय की बेल लगाए तो हमे और हमारे परिवार को ऐसे ऐसे लाभकारी फायदे मिलेंगे जिसको बयान कर पाना मुश्किल है। औषधीय गुणों से भरा हुआ है ये बेल। आइए आज की कड़ी में हम जानते है गिलोय के बारे में,और किन किन बीमारियों के लिए है लाभकारी।

100 मर्ज की एक दवा है गिलोय

गाँवो, शहरों में सहजता से उपलब्ध होने वाली दिव्यतम औषधी वनस्पतियोंमे गिलोय नामक वनस्पति का नाम अग्रगण्य है। इसीको गुडूची, चक्रिका, गुलवेल, मधुपर्णी तथा अमृता जैसे कई नामोसे जाना जाता है। बड़े पेडोंके आधार से बढ़नेवाली इसकी बहुवर्षायु लताएं होती हैं जिसमे से नीम के पेड़पे मिलने वाली गिलोय औषधीय गुणोंमें सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। इसके पत्ते (सिम्बोलिक) हृदय के आकार जैसे होते हैं। गिलोयक़ी लताओंका तना इसकी उम्र के साथ साथ मोटा होता जाता है। गिलोय के तनो की बाहरी छाल पतली होने से आसानीसे छिली जा सकती है जिसके भीतर मोटी छाल होती है। औषधीय गुणधर्मोके लिहाज से इसी अंदरूनी छाल का प्रयोग वैद्यों द्वारा ज्यादातर किया जाता है।


इसी अंदरूनी छाल को पानी मे भिगोकर, मसलकर और कुछ समय बाद छान कर बर्तनमें शेष रहने वाला गाढ़ा पदार्थ जिसे गिलोय का सत्व कहा जाता है, प्राप्त किया जाता है। यह गिलोय सत्व गिलोय के चूर्ण के मुकाबले ज्यादा फायदेमंद होता है जो कमसे कम मात्रा में भी ज्यादा कारगर साबित होता है।


गिलोय की लताओं को गुच्छोंमें छोटे छोटे फल लगते हैं जो पकने पर लाल रंगके हो जाते हैं।
औषधीय प्रयोगोंमें ताजी गिलोय ज्यादा गुणकारी होती है। फिरभी अनुपलब्धि होने पर सूखे गिलोय का चूर्ण इस्तेमालमें लाया जा सकता है। औषधीय गुणधर्मोका विचार किया जाय तो गिलोय कड़वी, कुछ कसैली और प्रकृतिमें गर्म मिज़ाज होती है। इन्ही गुणों की वजह से यह वात, पित्त और कफ इन तीनो दोषोंपे कारगर तो होती है जिनमेसे पित्त दोषपर इसका औषधीय प्रभाव सर्वाधिक दिखाई देता है।


इसके अलावा गिलोय आहार का शरीरमें अधपका भाग पचाने वाली (जिसे आम-पाचन कहा जाता है), भूख बढ़ाने वाली (दीपन), ह्रदय के लिये बलप्रद और शरीर मे रक्त का शुद्धिकरण करने के साथ साथ शुद्ध रक्त बनने में मददगार भी होती है। भूख ना लगना, आहार लेने में रुचि ना होना, शरीर मे भारीपन महसूस होना, उत्साह की कमी जैसे लक्षण दिखाई देने पर गिलोय चूर्ण का प्रयोग सौंठ के चूर्ण और गुड़ के साथ करने से काफी फायदा हो सकता है। गिलोय, सौंठ के इसी मिश्रण का इस्तेमाल संधियोंपे होनेवाली सूजन, अकड़न, गठिया जैसी बिमारियोंके प्रारंभ से ही किया जाना लाभदायी होता है। शास्त्रमें वात दोष जनित बिमारियोंके लिये गिलोय चूर्णका प्रयोग घी के साथ, पित्त जनित लक्षणोंमें मिश्रीके साथ और कफ जनित निदान होने पर शहद के साथ किया जाना चाहिये, ऐसा बताया गया है।
शरीर मे उत्पन्न होने वाली ऊर्जा/शक्ति से अधिक कार्य करने वाले लोगोंमें, असमय या भूक लग जाने के पश्चात देरी से खाना खाने का अभ्यास करने वालो में अक्सर अंदरूनी बुखार की प्रचिती, हड्डियोंमें दर्द बना रहना, हाथ पैरों में भी दर्द का उठते रहना महसूस होना, त्वचा और नाखुनो में रूखापन और तो और नाखूनों में गहरी काली रेखाएं उत्पन्न होती दिखाई देने लगती है। ये लक्षण शरीर मे अंदरूनी गर्मी के अतीव बढ़ने से उत्पन्न होते हैं। ऐसी दशामें गिलोय चूर्ण का प्रयोग आँवला और नागरमोथा के चूर्ण के साथ मिला कर करना उपयुक्त होता है। इसी मिश्रण का प्रयोग साधारण बुखार की दशामें भी उपयोग में लाया जा सकता है।


गिलोय यह एक रसायन औषधी है जिसका प्रयोग इन दिनों करोना महामारी के चलते रोग-प्रतिकारक शक्ति बढ़ाने के लिये जोरो-शोरो से किया जा रहा है। इम्युनिटी बढ़ाने के लिये जरूरी है के पहले आपकी पाचन प्रणाली सही हो, जो भी दवाइयां आप इस प्रयोजन से लें, उन्हें पचापाने की आपके पाचनप्रणाली में काबिलियत हो। ऐसे में समभाग (प्रत्येक 1 ग्राम तक) गिलोय सत के साथ अजवायन और पीपर के चूर्ण का प्रयोग दोनो खानेके बाद करने से पाचन समस्या दूर हो सकती है। इसके पश्चात गिलोय का रस या चूर्ण का प्रयोग प्रतिदिन तीन से चार महीने तक किये जाने से शारीरिक रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ और टिक सकेगी। गिलोय का वर्णन रसायन औषधी के तौर पे किया गया है जिसका मतलब है कि ये द्रव्य शरीर का क्षरण जल्दी होने नही देता। जिससे शरीर लम्बे समय तक तंदुरुस्त और स्वस्थ बना रह सकता है। गिलोयका इस्तेमाल बच्चो से लेकर बुढो तक सभी मे योग्य सलाह से प्रयोग में लिया जाय तो अवश्य ही ये अमृत समान लाभदायी साबित हो सकता है।

(नोट: किसी भी औषधी का प्रयोग सूझ-बूझ के साथ सीमित काल तक और योग्य चिकित्सक के परामर्श से करना योग्य होता है। गूगल या किसी अन्य माध्यम पर उपलब्ध हर प्रयोग हर किसीको फलदायी होता ही है ऐसा जरूरी नहीं होता।)

 साभार
वैद्य स्वानंद अ. जोशी
संजीवन चिकित्सालय,
खामला रोड, नागपुर
07972729248

Comments

अन्य लेखों को पढ़ने के लिए फोटो पर क्लिक करे।

कृषि सलाह- धान की बाली बदरंग या बदरा होने के कारण व निवारण (पेनिकल माइट)

कृषि सलाह - धान की बाली बदरंग या बदरा होने के कारण व निवारण (पेनिकल माइट) पेनिकल माइट से जुड़ी दैनिक भास्कर की खबर प्रायः देखा जाता है कि सितम्बर -अक्टूबर माह में जब धान की बालियां निकलती है तब धान की बालियां बदरंग हो जाती है। जिसे छत्तीसगढ़ में 'बदरा' हो जाना कहते है इसकी समस्या आती है। यह एक सूक्ष्म अष्टपादी जीव पेनिकल माइट के कारण होता है। आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक बताएंगे कि पेनिकल माइट के लक्षण दिखे तो उनका प्रबंधन कैसे किया जाए। पेनिकल माइट धान की बाली बदरंग एवं बदरा- धान की बाली में बदरा या बदरंग बालियों के लिए पेनिकल माईट प्रमुख रूप से जिम्मेदार है। पेनिकल माईट अत्यंत सूक्ष्म अष्टपादी जीव है जिसे 20 एक्स आर्वधन क्षमता वाले लैंस से देखा जा सकता है। यह जीव पारदर्शी होता है तथा पत्तियों के शीथ के नीचे काफी संख्या में रहकर पौधे की बालियों का रस चूसते रहते हैं जिससे इनमें दाना नहीं भरता। इस जीव से प्रभावित हिस्सों पर फफूंद विकसित होकर गलन जैसा भूरा धब्बा दिखता है। माईट उमस भरे वातावरण में इसकी संख्या बहुत तेजी से बढ़ती है। ग्रीष्मकालीन धान की ख

वैज्ञानिक सलाह-"चूहा नियंत्रण"अगर किसान भाई है चूहे से परेशान तो अपनाए ये उपाय

  वैज्ञानिक सलाह-"चूहा नियंत्रण"अगर किसान भाई है चूहे से परेशान तो अपनाए ये उपाय जैविक नियंत्रण:- सीमेंट और गुड़ के लड्डू बनाये:- आवश्यक सामग्री 1 सीमेंट आवश्यकता नुसार 2 गुड़ आवश्यकतानुसार बनाने की विधि सीमेंट को बिना पानी मिलाए गुड़ में मिलाकर गुंथे एवं कांच के कंचे के आकार का लड्डू बनाये। प्रयोग विधि जहां चूहे के आने की संभावना है वहां लड्डुओं को रखे| चूहा लड्डू खायेगा और पानी पीते ही चूहे के पेट मे सीमेंट जमना शुरू हो जाएगा। और चूहा धीरे धीरे मर जायेगा।यह काफी कारगर उपाय है। सावधानियां 1लड्डू बनाते समय पानी बिल्कुल न डाले। 2 जहां आप लड्डुओं को रखे वहां पानी की व्यवस्था होनी चाहिए। 3.बच्चों के पहुंच से दूर रखें। साभार डॉ. गजेंद्र चन्द्राकर (वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक) इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर छत्तीसगढ़ संकलन कर्ता हरिशंकर सुमेर तकनीक प्रचारकर्ता "हम कृषकों तक तकनीक पहुंचाते हैं"

सावधान-धान में ब्लास्ट के साथ-साथ ये कीट भी लग सकते है कृषक रहे सावधान

सावधान-धान में ब्लास्ट के साथ-साथ ये कीट भी लग सकते है कृषक रहे सावधान छत्तीसगढ़ राज्य धान के कटोरे के रूप में जाना जाता है यहां अधिकांशतः कृषक धान की की खेती करते है आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर ने बताया कि अगस्त माह में धान की फसल में ब्लास्ट रोग का खतरा शुरू हो जाता है। पत्तों पर धब्बे दिखाई दें तो समझ लें कि रोग की शुरुआत हो चुकी है। धीरे-धीरे यह रोग पूरी फसल को अपनी चपेट में ले लेता है। कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि इस रोग का शुरू में ही इलाज हो सकता है, बढ़ने के बाद इसको रोका नहीं जा सकता। उन्होंने कहा कि किसान रोजाना अपनी फसल की जांच करें और धब्बे दिखाई देने पर तुरंत दवाई का छिड़काव करे। लक्षण धान की फसल में झुलसा (ब्लास्ट) का प्रकोप देखा जा रहा है। इस रोग में पौधों से लेकर दाने बनने तक की अवस्था में मुख्य पत्तियों, बाली पर आंख के आकार के धब्बे बनते हैं, बीच में राख के रंग का तथा किनारों पर गहरे भूरे धब्बे लालिमा लिए हुए होते हैं। कई धब्बे मिलकर कत्थई सफेद रंग के बड़े धब्बे बना लेते हैं, जिससे पौधा झुलस जाता है। अपनाए ये उपाय जैविक नियंत्रण इस रोग के प्रकोप वाले क्षेत्रों म

रोग नियंत्रण-धान की बाली निकलने के बाद की अवस्था में होने वाले फाल्स स्मट रोग का प्रबंधन कैसे करें

धान की बाली निकलने के बाद की अवस्था में होने वाले फाल्स स्मट रोग का प्रबंधन कैसे करें धान की खेती असिंचित व सिंचित दोनों परिस्थितियों में की जाती है। धान की विभिन्न उन्नतशील प्रजातियाँ जो कि अधिक उपज देती हैं उनका प्रचलन धीरे-धीरे बढ़ रहा है।परन्तु मुख्य समस्या कीट ब्याधि एवं रोग व्यधि की है, यदि समय रहते इनकी रोकथाम कर ली जाये तो अधिकतम उत्पादन के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। धान की फसल को विभिन्न कीटों जैसे तना छेदक, पत्ती लपेटक, धान का फूदका व गंधीबग द्वारा नुकसान पहुँचाया जाता है तथा बिमारियों में जैसे धान का झोंका, भूरा धब्बा, शीथ ब्लाइट, आभासी कंड व जिंक कि कमी आदि की समस्या प्रमुख है। आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक बताएंगे कि अगर धान की फसल में फाल्स स्मट (कंडुआ रोग) का प्रकोप हो तो इनका प्रबंधन किस प्रकार करना चाहिए। कैसे फैलता है? फाल्स स्मट (कंडुआ रोग) ■धान की फसल में रोगों का प्रकोप पैदावार को पूरी तरह से प्रभावित कर देता है. कंडुआ एक प्रमुख फफूद जनित रोग है, जो कि अस्टीलेजनाइडिया विरेन्स से उत्पन्न होता है। ■इसका प्राथमिक संक्रमण बीज से हो

धान के खेत मे हो रही हो "काई"तो ऐसे करे सफाई

धान के खेत मे हो रही हो "काई"तो ऐसे करे सफाई सामान्य बोलचाल की भाषा में शैवाल को काई कहते हैं। इसमें पाए जाने वाले क्लोरोफिल के कारण इसका रंग हरा होता है, यह पानी अथवा नम जगह में पाया जाता है। यह अपने भोजन का निर्माण स्वयं सूर्य के प्रकाश से करता है। धान के खेत में इन दिनों ज्यादा देखी जाने वाली समस्या है काई। डॉ गजेंद्र चन्द्राकर(वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक) इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर छत्तीसगढ़ के अनुुसार  इसके निदान के लिए किसानों के पास खेत के पानी निकालने के अलावा कोई रास्ता नहीं रहता और पानी की कमी की वजह से किसान कोई उपाय नहीं कर पाता और फलस्वरूप उत्पादन में कमी आती है। खेतों में अधिकांश काई की समस्या से लगातार किसान परेशान रहते हैं। ऐसे नुकसान पहुंचाता है काई ◆किसानों के पानी भरे खेत में कंसे निकलने से पहले ही काई का जाल फैल जाता है। जिससे धान के पौधे तिरछे हो जाते हैं। पौधे में कंसे की संख्या एक या दो ही हो जाती है, जिससे बालियों की संख्या में कमी आती है ओर अंत में उपज में कमी आ जाती है, साथ ही ◆काई फैल जाने से धान में डाले जाने वाले उर्वरक की मात्रा जमीन तक नहीं

सावधान -धान में लगे भूरा माहो तो ये करे उपाय

सावधान-धान में लगे भूरा माहो तो ये करे उपाय हमारे देश में धान की खेती की जाने वाले लगभग सभी भू-भागों में भूरा माहू (होमोप्टेरा डेल्फासिडै) धान का एक प्रमुख नाशककीट है| हाल में पूरे एशिया में इस कीट का प्रकोप गंभीर रूप से बढ़ा है, जिससे धान की फसल में भारी नुकसान हुआ है| ये कीट तापमान एवं नमी की एक विस्तृत सीमा को सहन कर सकते हैं, प्रतिकूल पर्यावरण में तेजी से बढ़ सकते हैं, ज्यादा आक्रमक कीटों की उत्पती होना कीटनाशक प्रतिरोधी कीटों में वृद्धि होना, बड़े पंखों वाले कीटों का आविर्भाव तथा लंबी दूरी तय कर पाने के कारण इनका प्रकोप बढ़ रहा है। भूरा माहू के कम प्रकोप से 10 प्रतिशत तक अनाज उपज में हानि होती है।जबकि भयंकर प्रकोप के कारण 40 प्रतिशत तक उपज में हानि होती है।खड़ी फसल में कभी-कभी अनाज का 100 प्रतिशत नुकसान हो जाता है। प्रति रोधी किस्मों और इस किट से संबंधित आधुनिक कृषिगत क्रियाओं और कीटनाशकों के प्रयोग से इस कीट पर नियंत्रण पाया जा सकता है । आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक बताएंगे कि भूरा माहू का प्रबंधन किस प्रकार किया जाए। लक्षण एवं पहचान:- ■ यह कीट भूर

समसामयिक सलाह:- भारी बारिश के बाद हुई (बैटीरियल लीफ ब्लाइट ) से धान की पत्तियां पीली हो गई । ऐसे करे उपचार नही तो फसल हो जाएगी चौपट

समसामयिक सलाह:- भारी बारिश के बाद हुई (बैटीरियल लीफ ब्लाइट ) से धान की पत्तियां पीली हो गई । ऐसे करे उपचार नही तो फसल हो जाएगी चौपट छत्त्तीसगढ़ राज्य में विगत दिनों में लगातार तेज हवाओं के साथ काफी वर्षा हुई।जिसके कारण धान के खेतों में धान की पत्तियां फट गई और पत्ती के ऊपरी सिरे पीले हो गए। जो कि बैटीरियल लीफ ब्लाइट नामक रोग के लक्षण है। आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर बताएंगे कि ऐसे लक्षण दिखने पर किस प्रकार इस रोग का प्रबंधन करे। जीवाणु जनित झुलसा रोग (बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट): रोग के लक्षण ■ इस रोग के प्रारम्भिक लक्षण पत्तियों पर रोपाई या बुवाई के 20 से 25 दिन बाद दिखाई देते हैं। सबसे पहले पत्ती का किनारे वाला ऊपरी भाग हल्का पीला सा हो जाता है तथा फिर मटमैला हरापन लिये हुए पीला सा होने लगता है। ■ इसका प्रसार पत्ती की मुख्य नस की ओर तथा निचले हिस्से की ओर तेजी से होने लगता है व पूरी पत्ती मटमैले पीले रंग की होकर पत्रक (शीथ) तक सूख जाती है। ■ रोगग्रसित पौधे कमजोर हो जाते हैं और उनमें कंसे कम निकलते हैं। दाने पूरी तरह नहीं भरते व पैदावार कम हो जाती है। रोग का कारण यह रोग जेन्थोमोनास

वैज्ञानिक सलाह- धान की खेती में खरपतवारों का रसायनिक नियंत्रण

धान की खेती में खरपतवार का रसायनिक नियंत्रण धान की फसल में खरपतवारों की रोकथाम की यांत्रिक विधियां तथा हाथ से निराई-गुड़ाईयद्यपि काफी प्रभावी पाई गई है लेकिन विभिन्न कारणों से इनका व्यापक प्रचलन नहीं हो पाया है। इनमें से मुख्य हैं, धान के पौधों एवं मुख्य खरपतवार जैसे जंगली धान एवं संवा के पौधों में पुष्पावस्था के पहले काफी समानता पाई जाती है, इसलिए साधारण किसान निराई-गुड़ाई के समय आसानी से इनको पहचान नहीं पाता है। बढ़ती हुई मजदूरी के कारण ये विधियां आर्थिक दृष्टि से लाभदायक नहीं है। फसल खरपतवार प्रतिस्पर्धा के क्रांतिक समय में मजदूरों की उपलब्धता में कमी। खरीफ का असामान्य मौसम जिसके कारण कभी-कभी खेत में अधिक नमी के कारण यांत्रिक विधि से निराई-गुड़ाई नहीं हो पाता है। अत: उपरोक्त परिस्थितियों में खरपतवारों का खरपतवार नाशियों द्वारा नियंत्रण करने से प्रति हेक्टेयर लागत कम आती है तथा समय की भारी बचत होती है, लेकिन शाकनाशी रसायनों का प्रयोग करते समय उचित मात्रा, उचित ढंग तथा उपयुक्त समय पर प्रयोग का सदैव ध्यान रखना चाहिए अन्यथा लाभ के बजाय हानि की संभावना भी रहती है। डॉ गजेंद्र चन्

समसामयिक सलाह-" गर्मी व बढ़ती उमस" के साथ बढ़ रहा है धान की फसल में भूरा माहो का प्रकोप,जल्द अपनाए प्रबंधन के ये उपाय

  धान फसल को भूरा माहो से बचाने सलाह सामान्यतः कुछ किसानों के खेतों में भूरा माहों खासकर मध्यम से लम्बी अवधि की धान में दिख रहे है। जो कि वर्तमान समय में वातारण में उमस 75-80 प्रतिशत होने के कारण भूरा माहो कीट के लिए अनुकूल हो सकती है। धान फसल को भूरा माहो से बचाने के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ गजेंद्र चंद्राकर ने किसानों को सलाह दी और अपील की है कि वे सलाह पर अमल करें। भूरा माहो लगने के लक्षण ■ गोल काढ़ी होने पर होता है भूरा माहो का प्रकोप ■ खेत में भूरा माहो कीट प्रारम्भ हो रहा है, इसके प्रारम्भिक लक्षण में जहां की धान घनी है, खाद ज्यादा है वहां अधिकतर दिखना शुरू होता है। ■ अचानक पत्तियां गोल घेरे में पीली भगवा व भूरे रंग की दिखने लगती है व सूख जाती है व पौधा लुड़क जाता है, जिसे होपर बर्न कहते हैं, ■ घेरा बहुत तेजी से बढ़ता है व पूरे खेत को ही भूरा माहो कीट अपनी चपेट में ले लेता है। भूरा माहो कीट का प्रकोप धान के पौधे में मीठापन जिसे जिले में गोल काढ़ी आना कहते हैं । ■तब से लेकर धान कटते तक देखा जाता है। यह कीट पौधे के तने से पानी की सतह के ऊपर तने से चिपककर रस चूसता है। क्या है भू

सावधान -धान में (फूल बालियां) आते समय किसान भाई यह गलतियां ना करें।

  धान में फूल बालियां आते समय किसान भाई यह गलतियां ना करें। प्रायः देखा गया है कि किसान भाई अपनी फसल को स्वस्थ व सुरक्षित रखने के लिए कई प्रकार के कीटनाशक व कई प्रकार के फंगीसाइड का उपयोग करते रहते है। उल्लेखनीय यह है कि हर रसायनिक दवा के छिड़काव का एक निर्धारित समय होता है इसे हमेशा किसान भइयों को ध्यान में रखना चाहिए। आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय बताएंगे कि धान के पुष्पन अवस्था अर्थात फूल और बाली आने के समय किन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है, ताकि फसल का अच्छा उत्पादन प्राप्त हो। सुबह के समय किसी भी तरह का स्प्रे धान की फसलों पर नहीं करें कारण क्योंकि सुबह धान में फूल बनते हैं (Fertilization Activity) फूल बनाने की प्रक्रिया धान में 5 से 7 दिनों तक चलता है। स्प्रे करने से क्या नुकसान है। ■Fertilization और फूल बनते समय दाना का मुंह खुला रहता है जिससे स्प्रे के वजह से प्रेशर दानों पर पड़ता है वह दाना काला हो सकता है या बीज परिपक्व नहीं हो पाता इसीलिए फूल आने के 1 सप्ताह तक किसी भी तरह का स्प्रे धान की फसल पर ना करें ■ फसल पर अग