वैज्ञानिक सलाह-अगर आपकी फसल में है मिली बग कीट का प्रकोप तो ऐसे करे उपचार
डॉ गजेंन्द्र चंद्राकर, डॉ मनमोहन बिसेन, होमेश साहू, राजकुमारी सिदार रिसर्च स्कॉलर कीट विज्ञान इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर छत्तीसगढ़
परिचय
मिलीबग बारीक सफेद बेलनाकार कीट है। यह पौधों की टहनियों पर चिपक कर पौधे का रस चूस जाता है। इन कीटों की संख्या इतनी अधिक होती है कि दो से छः इंच लंबी डाली पर चारों ओर इस तरह चिपक जाता है कि फफूँद जैसा दिखाई देने लगता है। इस के प्रकोप से पौधा धीरे धीरे सूखने लगता है। उस पर लगे फल भी नष्ट हो जाते हैं।
विगत कुछ वर्षो से हमारे देश मे मिली बग (mealy bug) के रूप मे एक नई चूषक कीट समस्या देखने को मिली है तथा आने वाले समय मे इस कीट की समस्या और बढ़ने की संभावना है।
मिलीबग के पोषक पौधेः-
यह सर्वभक्षी प्रकृति का कीट है जो फल वृक्ष (fruits), सब्जी (vegetables), शोभाकारी पौधे (ornamental plants), शस्यीय फसले एवं खरपतवार आदि सभी पर प्रकोप करता है।
इसकी पोषक फसलो मे मुख्य रूप से
फलदार वृक्षो मे -आम, पपीता, अमरूद, नीबू वर्गीय फल, बेर, सेब, नारियल, काफी, अंगूर, शहतुत, अंजीर, केला,सीताफल
सब्जियो मे मुख्य रूप से -कद्दूवर्गीय, भिण्डी, सेम, टमाटर, बैगन, कसावा,
शस्यीय फसलो मे मुख्य रूप से- मूंगफली, कपास, मक्का, अरहर, गन्ना, सूरजमुखी,
पुष्पीय फसलो मे मुख्य रूप से- गुलदावदी, गुलाब, गुड़हल एवं अन्य शोभाकारी पौधे एवं
खरपतवारो मे मुख्य रूप से- लटजीरा, गाजर घांस, जंगली सरसो, हिरनखुरी, हजारदाना, तुलसी, मकोय, महकुआ, दूधी, केना, पत्थरचट्टा आदि आते है।
नुकसान की प्रवृति एवं निशान :
ये पौधे के सभी आवश्यक पोषक तत्वों को चूसते है ।ये पत्तियों पर मधु जैसे मीठे पदार्थ का उत्सर्जन करते है ।
यह मधु जैसा मीठा पदार्थ काली फंफूद को आकर्षित करता है ।
जिससे पौधा काला रंग का हो जाता है और इस कारण प्रकाश संस्लेशन क्रिया अवरुद्ध होती है ।
पौधे का ऊपरी भाग गुच्छे जैसे दिखता है ।
पौधे का विकास रुक जाता है तथा पौधा सुख जाता है।
डॉ गजेंद्र चन्द्राकर (कृषि वैज्ञानिक) इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविधालय रायपुर के अनुसार इन तरीकों से किया जा सकता है इस कीट का प्रबंधन
प्रबंधन के उपायः-
मिली बग के उचित नियंत्रण के लिये इनके प्रजातियो का पहचान होना जरूरी है। चंूकि इनका शरीर मोम की परत से ढंका रहता है इस कारण कीटनाशियो का प्रयोग कम प्रभावशाली पाया गया है। इसलिये इनका समन्वित नियंत्रण करने की आवश्यकता होती है जो कि निम्न है-
शस्यीय व यांत्रिक नियंत्रण:-
इनके रोकथाम के लिये जुलाई से सितंबर के मध्य पौधो के आसपास गुड़ाई करना चाहिये एवं क्लोरपायरीफास चूर्ण 50 ग्राम प्रति पौधे की दर से मिट्टी मे मिलाना चाहिये जिससे अंडे नष्ट हो जाये।
खरपतवार जो कि इसके पोषक पौधे का काम करते है इन्हे उखाड़कर नष्ट करना चाहिये।
खेतो मे उपस्थित पूर्व फसलो या ग्रसित पौधो के अवशेषो को जलाकर नष्ट कर देना चाहिये।
मुख्य फसलो के आसपास अन्य पोषक पौधो जिनमे इनका प्रकोप होता है नही लगाना चाहिये।
अंडो को नष्ट करने के लिये खेतो मे सिंचाई करना चाहिये।
वृक्षो के प्रकोपित शाखाओ को कांट-छांट कर हिलाये बगैर नष्ट करना चाहिये।
प्रकोपित खेतो से दूसरे खेतो मे औजारो को प्रयोग करने से पहले अच्छी तरह साफ कर लेना चाहिये।
प्रकोप की शुरूवाती अवस्था मे हाथो द्वारा या साबुन/डिटरजेंट युक्त पानी के तेज फुहारो से इसकी रोकथाम की जा सकती है क्योंकि तेज फुहारो से यह नीचे जमीन पर गिरेंगे जिन्हे एकत्रित कर नष्ट किया जा सकता है।
1 लीटर पानी मे 5 ml सर्फ या ezze डिटर्जेंट कपड़ा धोने का का घोल बनाकर कीड़ो के ऊपर तेज फुहारा करें। उसके बाद thiomethoxam 70 WG या Imidacloprid 70 WG 0.2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से छिडकाव करें।
वृक्ष की तनो पर कीट को चढ़ने से रोकने के लिये प्लास्टिक का चिपचिपा पट्टी या कीटनाशी युक्त पट्टी लगाना चाहिये।
फसल कटाई के बाद खेतो मे गहरी जुताई करना चाहिये।
वृक्षो की छालो को समय-समय पर हटाना चाहिये क्योकि इसमे मिली बग छिपे रहते है एवं इस पर सर्फ (डिटरजेंट) एवं कीटनाशी मिलाकर छिड़काव करना चाहिये।
चीटियों के समूहो को भी नष्ट करते रहना चाहिये।
फसल लगाने के लिये स्वस्थ पौध का चुनाव करना चाहिये।
जैविक नियंत्रण:-
इस कीट की रोकथाम के लिये जैविक नियंत्रण एक सस्ता, सुरक्षित एवं प्रभावशाली उपाय है। जैविक नियंत्रण के लिये परजीवियो, परभक्षियो एवं प्राकुतिक शत्रुओ का उपयोग किया जाता है। क्योकि ये लगातार इन पर आक्रमण करते रहते है जिससे मिली बग की संख्या आर्थिक क्षति स्तर के ऊपर कभी नही जाती। परजीवी कीटो मे एनागाइनस कमाली, एनागाइनस स्यूडोकोक्सी, ग्रेनू सोडिया इनिडका प्रमुख रूप से उपयोग मे लाये जाते है। परजीवी कीटो की मादाये मिली बग के शरीर पर अण्डे देती है एवं इनके अण्डे फूटने पर मिलीबग को खाना शुरू कर देती है। परभक्षी एव प्राकृतिक शत्रुओ मे कि्र्रस्टोकोकस मोन्टाजेरी, लेडी बर्ड बीटल, सिरफिड फ्लाई व क्रायसोफा प्रमुख रूप से आते है। इनको लगभग 10 कीट प्रति पौधा या 5000 कीट प्रति हेक्टेयर की दर से छोड़ना चाहिये । मादा परभक्षी अपने अण्डे मिली बग के अण्ड समूहो के बीच मे देती है इन कीटो का ग्रब अवस्था मिली बग के अण्डे एवं क्रालर को खाता है।
मिली बग के नियंत्रण के लिये फफूंद जैवनाशी एजेंट (बायो कंटा्रेल) जैसे वर्टीसिलियम लिकेनी को 5 ग्राम लीटर पानी के दर से घोल बनाकर फसलो पर छिड़काव करना चाहिये।
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