जैविक खेती-पोटाश का जैविक विकल्प बिल्व रसायन
कई किसान भाई जैविक खेती करना तो चाहते है परन्तु पर्याप्त ज्ञान के अभाव में वे जैविक खेती नही कर पाते और बाजार से रसायनिक कीटनाशक व उर्वरक लाकर अपने खेतों पर छिड़काव करते है इसके दूरगामी घातक परिणाम हो सकते है धीरे धीरे जैविक को अपनाना अब हमारी इच्छा नही आवश्यकता बन चुकी है। सब का विकल्प है जैविक में जरूरत है तो सिर्फ थोड़े से ज्ञान की। आईये आज जानते है कि पोटाश का विकल्प "बिल्व रसायन"
पोटाश एक आवश्यक पोषक तत्व
पौधों की वृद्धि एवं विकास के लिये पोटाश आवश्यक है।
पोटाश फसलों को मौसम की प्रतिकूलता जैसे- सूखा, ओला पाला तथा कीड़े-व्याधि आदि से बचाने में मदद करता है।
पोटाश जड़ों की समुचित वृद्धि करके फसलों को उखड़ने से बचाता है।
पोटाश का जैविक विकल्प है बिल्व रसायन
🔷-----बिल्व रसायन-----🔷
बेल के फल में पोटास और मैग्नीशियम प्रचूर मात्रा में होता है ।
बेल जिसे सँस्कृत में बिल्व कहा जाता है ।
शिवजी को इसके पत्ते चढ़ाने की हमारी परंपरा है ।
इस फल को हमे रसायन बनाकर उपयोग में लाना है
🔷इसके लिए आप5 से 6 किलो पके बेल फल के गुदे को 20 लीटर पानी मे डालकर 2 kg गुड़ ड़ालकर डिब्बे में एयरटाइट बन्द कर दे ।
🔷15-15 दिन में डिब्बे को खोलकर मिक्स करते रहना है ।
🔷45 दिन में तैयार हो जाएगा ।
इसे 300 लीटर पानी मे मिलाकर एक एकड़ में जड़ो में ड्रेंचिंग करें ।
🔷फ़सलों में स्प्रे करना है तो इस घोल को 90 दिन डिब्बे में ही भरा रहने दे ।ततपश्चात
2 लीटर प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर पानी मे मिलाकर स्प्रे करे ।
रसायनिक उर्वरक के रूप में पोटाश की आपूर्ति (MOP) म्यूरेट ऑफ पोटाश से की जाती है।जिसमे 60℅पोटाश की मात्रा होती है।
पोटाश स्वतन्त्र रूप से कार्य करने वाला पोषक तत्व है। पौधे में किसी भी यौगिक के संष्लेशण में यह प्रत्यक्ष क्रियाओं में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भाग लेकर फसल उत्पादन तथा उत्पाद की गुणवत्ता को प्रभावित करता है। यही कारण है कि मिट्टी में पोटेषियम की कमी से फसल की उपज, उसकी गुणवत्ता तथा आय में गिरावत आती है।
पोटाश एक आवश्यक पोषक तत्व
1. पौधों की वृद्धि एवं विकास के लिये पोटाश आवश्यक है।
2. पोटाश फसलों को मौसम की प्रतिकूलता जैसे- सूखा, ओला पाला तथा कीड़े-व्याधि आदि से बचाने में मदद करता है।
3. पोटाश जड़ों की समुचित वृद्धि करके फसलों को उखड़ने से बचाता है। पोटाश के प्रयोग से पौधों की कोशिका दीवारें मोटी होती है ओर तने को कोष्ठ की परतों में वृद्धि होती रहती है, जिसके फलस्वरूप फसल के गिरने में रक्षा होती है।
4. जिन फसलों को पोटैशियम की पूरी मात्रा मिलती है उन्हें वांछित उपज देने के लिये अपेक्षाकृत कम पानी की आवश्यकता होती है इस प्रकाश पोटैशियम के प्रयोग से फसल की जल-उपयोग-क्षमता बेहतर होती है।
5. पोटाश फसलों की गुणवत्ता बढ़ाने वाला सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण तत्व हैं।
पौधों में पोटाश की कमी के लक्षण
1. पौधों की वृद्वि एवं विकास में कमी।
2. पत्तियों का रंग गहरा हो जाना।
3. पुरानी पत्तियों का नोकों या किनारे से पीला पड़ना, बाद में ऊतकों का मरना और पत्तियों का सूखना
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