उड़द की जैविक खेती
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खेत का चयन व तैयारी :
समुचित जल निकास वाली बलुई दोमट मिट्टी इस के लिए सब से सही होती है. वैसे दोमट से ले कर हलकी जमीन तक में इस की खेती की जा सकती है. खेत की तैयारी के लिए सब से पहले जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से कर के 2-3 जुताई देशी हल या हैरो से करें।
इसके पश्चात
सजीव कम्पोस्ट खाद 2 क्यूंटल या
घन जीवामृत 1 क्यूंटल
+
नीम खली 1 क्यूंटल
या खनिज कम्पोस्ट 1 क्यूंटल
+
भस्म रसायन 20 kg
+
रॉक फास्फेट 2 क्यूंटल
या प्राकृतिक फास्फोरस घोल 200 लीटर
+
माइकोराइजा 4 kg
सबको अच्छे से मिलाकर समान मात्रा में फेंककर
उस के बाद ठीक से पाटा लगा दें. बोआई के समय खेत में पर्याप्त नमी रहना बहुत जरूरी है.
बीज की दर :
बोआई के लिए उड़द के बीज की सही दर 12-15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है. खेत में अगर किसी वजह से नमी कम हो, तो 2-3 किलोग्राम बीज की मात्रा प्रति हेक्टेयर बढ़ाई जा सकती है.
बोआई का समय :
खरीफ मौसम में उड़द की बोआई का सही समय जुलाई के पहले हफ्ते से ले कर 15-20 अगस्त तक है. हालांकि अगस्त महीने के अंत तक भी इस की बोआई की जा सकती है.
बीज शोधन :
पंचगव्य अणु शक्ति
या
अपघटक अणु शक्ति
का बीजों के ऊपर स्प्रे करें।
इसमे स्वर्ण जल 1 लीटर भी मिला सकते है ।
यह ध्यान रखें कि घोल बीज में सही तरह से चिपक जाएं.
राइजोबियम कल्चर भी आप बाजार से लेकर इस घोल में मिला सकते है।
सबको बीजों में अच्छी तरह से मिला कर सुखा दें फिर 7-8 घंटे बाद बोआई करें ।
बोआई का तरीका
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हल के पीछे कूंड़ में बोआई करनी चाहिए. कूंड़ से कूंड़ की दूरी 1.5 फिट रखनी चाहिए. पौधे से पौधे के बीच की दूरी 4 इंच होनी चाहिए. बोआई के बाद तीसरे हफ्ते में पासपास लगे पौधों को निकाल कर सही दूरी बना लें.
उर्वरक :
पौधों में प्राकृतिक खेती शोध संस्थान द्वारा विकसित हर अमावश्या में
फसल रक्षक योग
(अपघटक जीवाणु घोल
+कीट भक्षक घोल+कड़वा जैव रसायन)
व
हर पूर्णिमा में
फसल वर्धक योग
(पंचगव्य+बिल्व रसायन+जैव रसायन+भस्म रसायन+षडरस)
का स्प्रे करें।
सिंचाई :
उड़द की फसल में सिंचाई की जरूरत नहीं रहती है, लेकिन फिर भी यदि सितंबर महीने के बाद बारिश न हुई हो तो फलियां बनते समय 1 बार हलकी सिंचाई जरूर करें. अधिक बारिश व जल भराव की स्थिति में पानी के निकलने की व्यवस्था करें, वरना फसल को नुकसान हो सकता है.
उड़द की फसल में सिंचाई की जरूरत नहीं रहती है, लेकिन फिर भी यदि सितंबर महीने के बाद बारिश न हुई हो तो फलियां बनते समय 1 बार हलकी सिंचाई जरूर करें. अधिक बारिश व जल भराव की स्थिति में पानी के निकलने की व्यवस्था करें, वरना फसल को नुकसान हो सकता है.
निराईगुड़ाई :
उड़द की अच्छी पैदावार के लिए 2 बार गुड़ाई करनी चाहिए. पहली बोआई के 20-22 दिनों बाद और दूसरी बोआई के 40-45 दिनों बाद. ऐसा करने से खरपतवार खत्म हो जाते हैं, जोकि अच्छी फसल व अच्छी पैदावार के लिए जरूरी है।
उड़द की अच्छी पैदावार के लिए 2 बार गुड़ाई करनी चाहिए. पहली बोआई के 20-22 दिनों बाद और दूसरी बोआई के 40-45 दिनों बाद. ऐसा करने से खरपतवार खत्म हो जाते हैं, जोकि अच्छी फसल व अच्छी पैदावार के लिए जरूरी है।
कीट व रोग नियंत्रण
कमला कीट :
यह उड़द को सब से ज्यादा नुकसान पहुंचाने वाला कीट है. इस की सूंड़ी पर रोएदार काले रंग के बाल होते हैं. ये कीड़े पत्तियों को खा कर ठूंठ बना देते?हैं.
यह उड़द को सब से ज्यादा नुकसान पहुंचाने वाला कीट है. इस की सूंड़ी पर रोएदार काले रंग के बाल होते हैं. ये कीड़े पत्तियों को खा कर ठूंठ बना देते?हैं.
फली छेदक कीट:
इस कीट की सूंडि़यां फलियों में छेद कर के दानों को खाती हैं, जिस से उपज में भारी नुकसान होता है.
इस कीट की सूंडि़यां फलियों में छेद कर के दानों को खाती हैं, जिस से उपज में भारी नुकसान होता है.
कीट भक्षक घोल बनाने में मेटारिजियम एनिसोप्लाई या बिवेरिया बसियाना या N P V वायरस के साथ वर्टिसिलियम लेकनी
मिला कर बनाये उक्त रोग आएगा ही नहीया आने पर स्प्रे किया तो कंट्रोल हो जाएगा।
पीला मोजैक :
इस रोग की वजह से पत्तियों पर हलके पीले से ले कर सुनहरे रंग के चकत्ते से पड़ जाते हैं. अधिक प्रकोप की दशा में पत्तियां सूख कर झड़ने लगती हैं.
पत्तीधब्बा रोग :
पत्तियों पर हलके भूरे रंग के त्रिकोणीय धब्बे बन जाते?हैं, जिन के बीच का रंग हलका व बाहरी रंग गाढ़ा होता है।
सम्पूर्ण उपचार
आप अपने कीट भक्षक प्रयोग का हर अमावस्या स्प्रे करें।
🙏
ताराचंद बेलजी गुरूजी
प्राकृतिक खेती शोध संस्थान
जबलपुर
जबलपुर
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