भिन्डी में पीत शिरा रोग
भिंडी हमारे बाजारों में वर्ष भर मिलने वाली सब्जी है। जो उपोष्ण तथा आर्द्र उपोष्ण क्षेत्रों में उगाई जाती है। अपने उच्च पोषण मान के कारण भिंडी का सेवन सभी आयु वर्ग के लोगों के लिए लाभकारी है।भिंडी के हरे कोमल फलों से सब्जी और सूप बनाया जाता है। भिंडी का जड़ तथा तना गुड़ बनाते समय उसकी गन्दगी साफ करने में काम आता है।
ग्रीष्मकालीन भिंडी या वर्षाकालीन भिंडी में पीत शिरा रोग लग जाता है, किसान उनके निराकरण के लिए बहुत तरह के उपाय करते है।
भिन्डी में दिखने वाले लक्षण
डॉ गजेंद्र चन्द्राकर (वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक) इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर छत्तीसगढ़ ने बतया कि मुख्य और छोटी शिराओं के हरितरोग की विभिन्न स्तरों के साथ-साथ मोज़ेक जैसे एकान्तरिक हरे और पीले धब्बे, छोटे पत्ते, छोटे और छोटे फल, और पौधे के अविकसित विकास के विभिन्न स्तरों द्वारा रोगों की पहचान की जा सकती है। प्रारंभ में, संक्रमित पत्तियों में केवल पीली नसों को देखा जाता है, लेकिन बाद के चरणों में पूरी पत्ती पीली हो जाती है। जब पौधे अंकुरण के 20 दिनों के दौरान संक्रमित होते हैं, तो वे अविकसित रह जाते हैं। यदि शुरुआती मौसम के दौरान नए पत्ते संक्रमित होते हैं, तो वे पूरी तरह से पीले और भूरे रंग के हो जाते हैं और फिर सूख जाते हैं। फूल के बाद संक्रमित पौधे ऊपरी पत्तियों और फूलों के हिस्सों में शिरा-समाशोधन के लक्षण दिखाते हैं। वे अभी भी कुछ फल पैदा करेंगे लेकिन वे पीले और कठोर हो जाएंगे। जो पौधे मौसम के अंत तक सामान्य रूप से स्वस्थ और फल रहे थे, तने के निचले हिस्से पर कुछ छोटे कोंपले निकल आएंगी।
भिंडी मे लगने वाले रोग तथा इनसे बचाव
भिंडी मे कई प्रकार के प्रमुख रोग लग सकते है जैसे पीत शिरा मौजक, चूर्णिल आसिता तथा कुछ नुकसानदायक कीट जैसे प्ररोेह, फल छेदक और जैसिड आदि का भी प्रकोप देखने को मिलता है।लेकिन आज हम बात करेंगे पीत शिरा रोग के बारे में।
पीत शिरा रोग
पीत शिरा रोग भिंडी की फसल को भारी नुकसान पहुचाने वाला प्रमुख रोग है। इस रोग के प्रकोप के कारण पौधों की पत्तियों की शिराएं सबसे पहले पीली पड़ने लगती है। फिर पत्तियाँ पूरी तरह पीली होजाती है और इसके साथ ही फल भी पीले रंग के हो जाते है और पौधे की बढ़वार रुक जाती है। वर्षा ऋतु में इस रोग का संक्रमण अधिक देखा जाता है।
उपचार
किसान भाई अपने भिंडी के खेत का नियमित भृमण करे और अपने खेत मे रोग के लक्षण वाले पौधे दिखाई देते ही उन्हें खेत से उखाड़ कर नष्ट कर दे। ताकि फसल पर रोग के फैलाव को नियंत्रित किया जा सके। यह विषाणु जनित रोग है जो एक सफेद मक्खी (कीट) द्वारा स्वस्थ पौधों में फैलाया जाता है।
इस रोग संवाहक कीट (सफेद मक्खी) के नियंत्रण के लिए किसान भाई आक्सी मिथाइल डेमेटान 1 मिली प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर सकते है। इसके छिड़काव से रोग का प्रसारण कम होता है।
इसके साथ ही सावधानी के तौर पर किसान भाई को पीतशिरा रोग प्रतिरोधी किस्मों जैसे अर्का अभय, अर्का अनामिका, परभणी क्रांति इत्यादि का चुनाव बुवाई करते समय करना चाहिए। फसल के चारों ओर 2-3 कतार मक्का की फसल की बुवाई करने से भी रोग का फैलाव बहुत हद तक नियंत्रित किया जा सकता है।
इसका जैविक नियंत्रण
■5% नीम बीज कर्नेल अर्क, या अदरक, लहसुन, और मिर्च के अर्क का छिड़काव करके जननाशक को रोकें। नागफनी, या दूध झाड़ी (दूध झाड़ी) के टुकड़े बनाओ, पानी में डुबो दें (टुकड़े करने के लिए पर्याप्त पानी लें), इसे 15 दिनों के लिए किण्वन पर छोड़ दें। प्रभावित पौधों पर छलनी और छिड़काव करें।
■नीम और सरसों का तेल, राइजोबैक्टीरिया, क्रोज़ोफेरा तेल और फिर पालम्रोसा तेल लागू करें। 0.5% तेल और 0.5% धोने वाले साबुन का मिश्रण भी मददगार बताया गया है।
■पीला नस मोज़ेक वायरस जो कि *सफेद मक्खी (बेमिशिया टबैकी) द्वारा फैलाया जाता है।
■ ई टी एल स्तर की निगरानी हेतु 35-40 चिपकने वाला जाल (एडहेसिव ट्रैप ) लगाए।
■किसी भी नेओनिकोटिनॉइड रासायनिक समूह के साथ नीम तेल 2 मिली प्रति 1 लीटर तेल का स्प्रे करे,जैसे की।
➡ एपिडोपाइरोफेन 2 मिली प्रति 1लीटर पानी की दर से छिड़काव करे।
➡ स्पिरिटेट्रामेट+इमिडाक्लोप्रिड 1.25 मिली प्रति 1लीटर पानी की दर से छिड़काव करे।
➡स्पाइरोमेसिफेन 1मि ली प्रति 1लीटर पानी की दर से छिड़काव करे।
➡ टालफेनापायराद 1.5 मि ली प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करे।
वीडियो अवश्य देखे।
भिंडी की फसल में YMV येलो वेन मोजैक़ के विरुद्ध SIL G सील जी प्रमाण एवं परिणाम सहित समझाने का प्रयास कर रहे है देश के प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक आदरणीय डॉ संकेत ठाकुर पी एच डी लंदन इन टिश्यू कल्चर ।
जिन किसानों एवं DAESI डीलरों ने अपनाया उनका हार्दिक धन्यवाद।
@ किसान समाधान
साभार
डॉ गजेंद्र चन्द्राकर
(वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक)
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय
रायपुर छत्तीसगढ़
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