Skip to main content

अमेरिकन मूल का ये कीट हाल ही में बना मक्का उत्पादक एशियाई किसानों की चुनौती

 
फाल आर्मी वर्म कीट मक्के की फसल को कर देता है बर्बाद,कीट प्रबंधन हेतु अपनाए ये उपाय।


मक्का के लिए मक्का फाल आर्मी वर्म कीट भयावह शत्रु हैं। इसके काटने व चबाने वाले मुख होते हैं। इल्ली रात्रिचर के साथ ही कई बार केचुली बदलती है। यह इल्लियां मक्का के पौधों के पोंगली के अंदर छिपी होती है। बड़ी इल्लियां पत्तियों को खाकर उनमें छोटे से लेकर बड़े-बड़़े गोल छेद कर नुकसान पहुंचाती है जो किसान भाई मक्का जो किसान भाई मक्का की खेती कर है है वे आज का लेख कृपया ध्यान से पढ़े।

डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर ने फाल आर्मी वर्म कीट के प्रबंधन हेतु निम्नानुसार उपाये बताए है जिससे फसल की अवस्था एवम क्षति स्तर के आधार पर नियंत्रण किया जा सकता है।

Monitiring- इस कीट से प्रभावित क्षेत्र तथा कीट प्रकोप सम्भावित क्षेत्र में प्रति एकड़ पांच फेरोमेन ट्रैप लगावे।

क्षति का आंकलन:
मक्का के बीज अंकुरित हो निम्न कार्य किया जाना चाहिए।

अंकुरण से 3-4 सप्ताह तक:-यदि 5%पौधों पर कीट का प्रकोप हो तो नियंत्रण के उपाय करना चाहिए।
अर्ली स्टेज 5-7 सप्ताह तक:- यदि 10 % पौधों पर कीट का प्रकोप हो तो कीटो का नियंत्रण करना चाहिए।
लेट स्टेज में:- यदि 20 प्रतिशत पौधों पर कीट का प्रकोप हो तो नियंत्रण के उपाय करने चाहिए।
टेसलिंग स्टेज:- कीटनाशक का छिड़काव नही करना चाहिए यदि 10%भुट्टो पर प्रकोप हो तो नियंत्रण के उपाय करने चाहिए।


समन्वित कीट प्रबंधन के उपाय:
पारम्परिक उपाय:
बुवाई से पूर्व एम बी प्लाऊ से गहरी जुताई करना चाहिए इससे कीट के प्यूपा प्रिडिएटर 1.के उपभोग हेतु उपलब्ध होंगे।
2.समय से ही बुवाई करे।
3.मक्के के साथ साथ दलहन फसल लगावे। जैसे- मक्का+ अरहर/उड़द/मूंग
4.फसल के आरंभिक अवस्था मे अर्थात अंकुरण से 30 दिन तक बांस से बने T आकर के खम्बे पक्षियों के बैठने के लिए लगावे। इसकी संख्या 10 नग प्रति एकड़ पर्याप्त होगी।मक्के की फसल के साथ साथ ट्रैप फसल (नेपियर घांस की 3-4 कतार लगावे। जैसे ही F A W के लक्षण दिखाई दे। N S K E(Neem Seed Kemel Extract) का 5 % या एजाडिरेक्टिन 1500 PPM के घोल का उपयोग करना चाहिए।
5.सन्तुलित मात्रा में उर्वरक का प्रयोग करे।
6.मजबूत छिलकों वाली हाइब्रिड किस्म की बुवाई करे।
7.बुवाई के 30 दिन तक रेत एवम चुने का9:1अनुपात के मिश्रम का छिड़काव करना चाहिए।



यांत्रिक विधि:
1.अंडों व इल्लियों को एकत्रित कर नष्ट कर दे।
2.कीट प्रकोप ज्ञात होते ही प्रभावित पौधों की Whorl में सूखी रेत का प्रयोग करना चाहिए
3. नर शलभ को पकड़ने के लिए फेरोमैन ट्रैप 15 नग प्रति हेक्टेयर का उपयोग करना चाहिए जैविक विधि से नियंत्रण मित्र कीटों के संरक्षण एवं बढ़ावा देने व के लिए अंतर्वर्ती फसल लगाकर पौध विविधता को बढ़ावे। दलहनी तथा पुष्प वाले पौधे का उपयोग किया जाना उपयुक्त रहेगा दूसरा Traichograma previous & Telecom is remus का 50,000 प्रति एकड़ की संख्या में उपयोग करना चाहिए।
चमन बहार टेक्निक
डॉ चंद्राकर ने बताया कि गरियाबंद जिला के देवभोग ब्लॉक के किसान Chlorpyrifos 50 + Cypermethrin 5% EC का 100 मिली लीटर को 1 किलो बारीक रेत में मिक्स कर पुरानी पानी की बोतल में भर लेते है। ढक्कन में चार पांच छेद ऐसे करते है जिससे रेत धीरे धीरे गिरे,फिर उसे मजदूरों की सहायता से मक्के के प्रभावित शीर्ष तने में 10 से 20 ग्राम के आसपास रेत को गिराते है,इससे एक तो इल्ली का mandible रेत में काम नही करता दूसरी तरफ कीटनाशक के प्रभाव से मादा कीट अंडे देने हेतु नही बैठ पाती। यह काफी कारगर उपाय है।
चूंकि गांव में पान बनाने के समय चमन बहार को इसी तरीके से छिड़का जाता है इसीलिए इसे  "चमन बहार टेक्निक" कहते है।
जैविक कीटनाशक का प्रयोग
3-4 सप्ताह की अवस्था तक
5% क्षति एक बाली की अवस्था में 10% क्षति में यह विधि उपयोगी है Entomopathogenic fungi एवं बैक्टीरिया का उपयोग करना चाहिए जो कि निम्नानुसार है।

1. Metarhizium anisopliae talc formulation (1x10 cut/g) का 5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर बुवाई के 15 से 25 दिन बाद उपयोग करना चाहिए 10 दिन के अंतराल पर दूसरी बार छिड़काव किया जा सकता है या Metarhizium releyi rice grain 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर बुवाई के 15 से 25 दिन बाद उपयोग करना चाहिए बेसिलस सुरेन जी ने सिस का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने प्रति एकड़ छिड़काव हेतु 400 ग्राम की मात्रा पर्याप्त होती है रासायनिक विधि से NSKEके 5% गोल या एचडी Azadiractin के 1500 पी पीएम का 5 ml प्रति लीटर पानी की दर से उपयोग करना चाहिए।

5 से 7 सप्ताह तक
10 से 20% क्षति स्तर तक कीट के 2 nd व 3rd लार्वा के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित दवाइयों का उपयोग उपयुक्त होगा
1 Ematin Benzoate@0.4gm/liter water
2.Spinosad@0.3 ml/liter water or
3Thiamethoxam 12.6℅lamda Cylothrin 9.5℅@ 0.5 ml/liter water
4.Chlorantraniliprole 18.5 % SC @ 0.4 gl/liter of water
5.Emamectin Benzoate 1.5% + fipronil 3.5%SC  20 ml प्रति पंप या 500 ml प्रति हेक्टेयर
6.Thiamethoxam12.6%SC + Lamdacyhalothrin 9.5% SC
6-8 ml प्रति पंप या 150 से 200 ml प्रति हेक्टेयर


8 सप्ताह से siliking stage तक
इस स्तर पर रसायनों के द्वारा नियंत्रण आर्थिक रूप से लाभकारी नही है। हाथ से लार्वा चुनकर नष्ट किया जाना अनुसंशित है।

साभार
डॉ. गजेंद्र चन्द्राकर
(वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक)
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय
रायपुर छत्तीसगढ़


तकनीक प्रचारकर्ता
"हम कृषकों तक तकनीक पहुंचाते हैं

@किसान समाधान

जानकारी अच्छी लगे तो कृपया अधिक से अधिक किसानों तक पहुंचाने के लिए शेयर जरूर करे।

Comments

Unknown said…
डॉक्टर गजेंद्र चंद्राकर साहब आपको नमस्कार मैं रायगढ़ जिला का रहने वाला हूं मेरा नाम या लाल राम साव है मुझे कृषि में किसी प्रकार की समस्या आने पर आपसे संपर्क करने की जरूरत है अतः आपका व्हाट्सएप नंबर प्रदान करने का कष्ट करेंगेमेरा व्हाट्सएप नं7697806428है।
मैंने पिछले वर्ष ये सारे उपाय करके देखे igkvv के वैज्ञानिक वगैरहा जिसने जैसा बताया वैसे किया नुकसान बहुत हुआ और तो और इल्लियां इतनी बढ़ गई कि एक भी पोधा सही नही था सड़क पर हजारों की संख्या में रेंग रहीथी अंत मे emamectin ने ही रबी में कंट्रोल किया

अन्य लेखों को पढ़ने के लिए फोटो पर क्लिक करे।

कृषि सलाह- धान की बाली बदरंग या बदरा होने के कारण व निवारण (पेनिकल माइट)

कृषि सलाह - धान की बाली बदरंग या बदरा होने के कारण व निवारण (पेनिकल माइट) पेनिकल माइट से जुड़ी दैनिक भास्कर की खबर प्रायः देखा जाता है कि सितम्बर -अक्टूबर माह में जब धान की बालियां निकलती है तब धान की बालियां बदरंग हो जाती है। जिसे छत्तीसगढ़ में 'बदरा' हो जाना कहते है इसकी समस्या आती है। यह एक सूक्ष्म अष्टपादी जीव पेनिकल माइट के कारण होता है। आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक बताएंगे कि पेनिकल माइट के लक्षण दिखे तो उनका प्रबंधन कैसे किया जाए। पेनिकल माइट धान की बाली बदरंग एवं बदरा- धान की बाली में बदरा या बदरंग बालियों के लिए पेनिकल माईट प्रमुख रूप से जिम्मेदार है। पेनिकल माईट अत्यंत सूक्ष्म अष्टपादी जीव है जिसे 20 एक्स आर्वधन क्षमता वाले लैंस से देखा जा सकता है। यह जीव पारदर्शी होता है तथा पत्तियों के शीथ के नीचे काफी संख्या में रहकर पौधे की बालियों का रस चूसते रहते हैं जिससे इनमें दाना नहीं भरता। इस जीव से प्रभावित हिस्सों पर फफूंद विकसित होकर गलन जैसा भूरा धब्बा दिखता है। माईट उमस भरे वातावरण में इसकी संख्या बहुत तेजी से बढ़ती है। ग्रीष्मकालीन धान की ख

वैज्ञानिक सलाह-"चूहा नियंत्रण"अगर किसान भाई है चूहे से परेशान तो अपनाए ये उपाय

  वैज्ञानिक सलाह-"चूहा नियंत्रण"अगर किसान भाई है चूहे से परेशान तो अपनाए ये उपाय जैविक नियंत्रण:- सीमेंट और गुड़ के लड्डू बनाये:- आवश्यक सामग्री 1 सीमेंट आवश्यकता नुसार 2 गुड़ आवश्यकतानुसार बनाने की विधि सीमेंट को बिना पानी मिलाए गुड़ में मिलाकर गुंथे एवं कांच के कंचे के आकार का लड्डू बनाये। प्रयोग विधि जहां चूहे के आने की संभावना है वहां लड्डुओं को रखे| चूहा लड्डू खायेगा और पानी पीते ही चूहे के पेट मे सीमेंट जमना शुरू हो जाएगा। और चूहा धीरे धीरे मर जायेगा।यह काफी कारगर उपाय है। सावधानियां 1लड्डू बनाते समय पानी बिल्कुल न डाले। 2 जहां आप लड्डुओं को रखे वहां पानी की व्यवस्था होनी चाहिए। 3.बच्चों के पहुंच से दूर रखें। साभार डॉ. गजेंद्र चन्द्राकर (वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक) इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर छत्तीसगढ़ संकलन कर्ता हरिशंकर सुमेर तकनीक प्रचारकर्ता "हम कृषकों तक तकनीक पहुंचाते हैं"

सावधान-धान में ब्लास्ट के साथ-साथ ये कीट भी लग सकते है कृषक रहे सावधान

सावधान-धान में ब्लास्ट के साथ-साथ ये कीट भी लग सकते है कृषक रहे सावधान छत्तीसगढ़ राज्य धान के कटोरे के रूप में जाना जाता है यहां अधिकांशतः कृषक धान की की खेती करते है आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर ने बताया कि अगस्त माह में धान की फसल में ब्लास्ट रोग का खतरा शुरू हो जाता है। पत्तों पर धब्बे दिखाई दें तो समझ लें कि रोग की शुरुआत हो चुकी है। धीरे-धीरे यह रोग पूरी फसल को अपनी चपेट में ले लेता है। कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि इस रोग का शुरू में ही इलाज हो सकता है, बढ़ने के बाद इसको रोका नहीं जा सकता। उन्होंने कहा कि किसान रोजाना अपनी फसल की जांच करें और धब्बे दिखाई देने पर तुरंत दवाई का छिड़काव करे। लक्षण धान की फसल में झुलसा (ब्लास्ट) का प्रकोप देखा जा रहा है। इस रोग में पौधों से लेकर दाने बनने तक की अवस्था में मुख्य पत्तियों, बाली पर आंख के आकार के धब्बे बनते हैं, बीच में राख के रंग का तथा किनारों पर गहरे भूरे धब्बे लालिमा लिए हुए होते हैं। कई धब्बे मिलकर कत्थई सफेद रंग के बड़े धब्बे बना लेते हैं, जिससे पौधा झुलस जाता है। अपनाए ये उपाय जैविक नियंत्रण इस रोग के प्रकोप वाले क्षेत्रों म

रोग नियंत्रण-धान की बाली निकलने के बाद की अवस्था में होने वाले फाल्स स्मट रोग का प्रबंधन कैसे करें

धान की बाली निकलने के बाद की अवस्था में होने वाले फाल्स स्मट रोग का प्रबंधन कैसे करें धान की खेती असिंचित व सिंचित दोनों परिस्थितियों में की जाती है। धान की विभिन्न उन्नतशील प्रजातियाँ जो कि अधिक उपज देती हैं उनका प्रचलन धीरे-धीरे बढ़ रहा है।परन्तु मुख्य समस्या कीट ब्याधि एवं रोग व्यधि की है, यदि समय रहते इनकी रोकथाम कर ली जाये तो अधिकतम उत्पादन के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। धान की फसल को विभिन्न कीटों जैसे तना छेदक, पत्ती लपेटक, धान का फूदका व गंधीबग द्वारा नुकसान पहुँचाया जाता है तथा बिमारियों में जैसे धान का झोंका, भूरा धब्बा, शीथ ब्लाइट, आभासी कंड व जिंक कि कमी आदि की समस्या प्रमुख है। आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक बताएंगे कि अगर धान की फसल में फाल्स स्मट (कंडुआ रोग) का प्रकोप हो तो इनका प्रबंधन किस प्रकार करना चाहिए। कैसे फैलता है? फाल्स स्मट (कंडुआ रोग) ■धान की फसल में रोगों का प्रकोप पैदावार को पूरी तरह से प्रभावित कर देता है. कंडुआ एक प्रमुख फफूद जनित रोग है, जो कि अस्टीलेजनाइडिया विरेन्स से उत्पन्न होता है। ■इसका प्राथमिक संक्रमण बीज से हो

धान के खेत मे हो रही हो "काई"तो ऐसे करे सफाई

धान के खेत मे हो रही हो "काई"तो ऐसे करे सफाई सामान्य बोलचाल की भाषा में शैवाल को काई कहते हैं। इसमें पाए जाने वाले क्लोरोफिल के कारण इसका रंग हरा होता है, यह पानी अथवा नम जगह में पाया जाता है। यह अपने भोजन का निर्माण स्वयं सूर्य के प्रकाश से करता है। धान के खेत में इन दिनों ज्यादा देखी जाने वाली समस्या है काई। डॉ गजेंद्र चन्द्राकर(वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक) इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर छत्तीसगढ़ के अनुुसार  इसके निदान के लिए किसानों के पास खेत के पानी निकालने के अलावा कोई रास्ता नहीं रहता और पानी की कमी की वजह से किसान कोई उपाय नहीं कर पाता और फलस्वरूप उत्पादन में कमी आती है। खेतों में अधिकांश काई की समस्या से लगातार किसान परेशान रहते हैं। ऐसे नुकसान पहुंचाता है काई ◆किसानों के पानी भरे खेत में कंसे निकलने से पहले ही काई का जाल फैल जाता है। जिससे धान के पौधे तिरछे हो जाते हैं। पौधे में कंसे की संख्या एक या दो ही हो जाती है, जिससे बालियों की संख्या में कमी आती है ओर अंत में उपज में कमी आ जाती है, साथ ही ◆काई फैल जाने से धान में डाले जाने वाले उर्वरक की मात्रा जमीन तक नहीं

सावधान -धान में लगे भूरा माहो तो ये करे उपाय

सावधान-धान में लगे भूरा माहो तो ये करे उपाय हमारे देश में धान की खेती की जाने वाले लगभग सभी भू-भागों में भूरा माहू (होमोप्टेरा डेल्फासिडै) धान का एक प्रमुख नाशककीट है| हाल में पूरे एशिया में इस कीट का प्रकोप गंभीर रूप से बढ़ा है, जिससे धान की फसल में भारी नुकसान हुआ है| ये कीट तापमान एवं नमी की एक विस्तृत सीमा को सहन कर सकते हैं, प्रतिकूल पर्यावरण में तेजी से बढ़ सकते हैं, ज्यादा आक्रमक कीटों की उत्पती होना कीटनाशक प्रतिरोधी कीटों में वृद्धि होना, बड़े पंखों वाले कीटों का आविर्भाव तथा लंबी दूरी तय कर पाने के कारण इनका प्रकोप बढ़ रहा है। भूरा माहू के कम प्रकोप से 10 प्रतिशत तक अनाज उपज में हानि होती है।जबकि भयंकर प्रकोप के कारण 40 प्रतिशत तक उपज में हानि होती है।खड़ी फसल में कभी-कभी अनाज का 100 प्रतिशत नुकसान हो जाता है। प्रति रोधी किस्मों और इस किट से संबंधित आधुनिक कृषिगत क्रियाओं और कीटनाशकों के प्रयोग से इस कीट पर नियंत्रण पाया जा सकता है । आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक बताएंगे कि भूरा माहू का प्रबंधन किस प्रकार किया जाए। लक्षण एवं पहचान:- ■ यह कीट भूर

समसामयिक सलाह:- भारी बारिश के बाद हुई (बैटीरियल लीफ ब्लाइट ) से धान की पत्तियां पीली हो गई । ऐसे करे उपचार नही तो फसल हो जाएगी चौपट

समसामयिक सलाह:- भारी बारिश के बाद हुई (बैटीरियल लीफ ब्लाइट ) से धान की पत्तियां पीली हो गई । ऐसे करे उपचार नही तो फसल हो जाएगी चौपट छत्त्तीसगढ़ राज्य में विगत दिनों में लगातार तेज हवाओं के साथ काफी वर्षा हुई।जिसके कारण धान के खेतों में धान की पत्तियां फट गई और पत्ती के ऊपरी सिरे पीले हो गए। जो कि बैटीरियल लीफ ब्लाइट नामक रोग के लक्षण है। आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर बताएंगे कि ऐसे लक्षण दिखने पर किस प्रकार इस रोग का प्रबंधन करे। जीवाणु जनित झुलसा रोग (बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट): रोग के लक्षण ■ इस रोग के प्रारम्भिक लक्षण पत्तियों पर रोपाई या बुवाई के 20 से 25 दिन बाद दिखाई देते हैं। सबसे पहले पत्ती का किनारे वाला ऊपरी भाग हल्का पीला सा हो जाता है तथा फिर मटमैला हरापन लिये हुए पीला सा होने लगता है। ■ इसका प्रसार पत्ती की मुख्य नस की ओर तथा निचले हिस्से की ओर तेजी से होने लगता है व पूरी पत्ती मटमैले पीले रंग की होकर पत्रक (शीथ) तक सूख जाती है। ■ रोगग्रसित पौधे कमजोर हो जाते हैं और उनमें कंसे कम निकलते हैं। दाने पूरी तरह नहीं भरते व पैदावार कम हो जाती है। रोग का कारण यह रोग जेन्थोमोनास

वैज्ञानिक सलाह- धान की खेती में खरपतवारों का रसायनिक नियंत्रण

धान की खेती में खरपतवार का रसायनिक नियंत्रण धान की फसल में खरपतवारों की रोकथाम की यांत्रिक विधियां तथा हाथ से निराई-गुड़ाईयद्यपि काफी प्रभावी पाई गई है लेकिन विभिन्न कारणों से इनका व्यापक प्रचलन नहीं हो पाया है। इनमें से मुख्य हैं, धान के पौधों एवं मुख्य खरपतवार जैसे जंगली धान एवं संवा के पौधों में पुष्पावस्था के पहले काफी समानता पाई जाती है, इसलिए साधारण किसान निराई-गुड़ाई के समय आसानी से इनको पहचान नहीं पाता है। बढ़ती हुई मजदूरी के कारण ये विधियां आर्थिक दृष्टि से लाभदायक नहीं है। फसल खरपतवार प्रतिस्पर्धा के क्रांतिक समय में मजदूरों की उपलब्धता में कमी। खरीफ का असामान्य मौसम जिसके कारण कभी-कभी खेत में अधिक नमी के कारण यांत्रिक विधि से निराई-गुड़ाई नहीं हो पाता है। अत: उपरोक्त परिस्थितियों में खरपतवारों का खरपतवार नाशियों द्वारा नियंत्रण करने से प्रति हेक्टेयर लागत कम आती है तथा समय की भारी बचत होती है, लेकिन शाकनाशी रसायनों का प्रयोग करते समय उचित मात्रा, उचित ढंग तथा उपयुक्त समय पर प्रयोग का सदैव ध्यान रखना चाहिए अन्यथा लाभ के बजाय हानि की संभावना भी रहती है। डॉ गजेंद्र चन्

समसामयिक सलाह-" गर्मी व बढ़ती उमस" के साथ बढ़ रहा है धान की फसल में भूरा माहो का प्रकोप,जल्द अपनाए प्रबंधन के ये उपाय

  धान फसल को भूरा माहो से बचाने सलाह सामान्यतः कुछ किसानों के खेतों में भूरा माहों खासकर मध्यम से लम्बी अवधि की धान में दिख रहे है। जो कि वर्तमान समय में वातारण में उमस 75-80 प्रतिशत होने के कारण भूरा माहो कीट के लिए अनुकूल हो सकती है। धान फसल को भूरा माहो से बचाने के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ गजेंद्र चंद्राकर ने किसानों को सलाह दी और अपील की है कि वे सलाह पर अमल करें। भूरा माहो लगने के लक्षण ■ गोल काढ़ी होने पर होता है भूरा माहो का प्रकोप ■ खेत में भूरा माहो कीट प्रारम्भ हो रहा है, इसके प्रारम्भिक लक्षण में जहां की धान घनी है, खाद ज्यादा है वहां अधिकतर दिखना शुरू होता है। ■ अचानक पत्तियां गोल घेरे में पीली भगवा व भूरे रंग की दिखने लगती है व सूख जाती है व पौधा लुड़क जाता है, जिसे होपर बर्न कहते हैं, ■ घेरा बहुत तेजी से बढ़ता है व पूरे खेत को ही भूरा माहो कीट अपनी चपेट में ले लेता है। भूरा माहो कीट का प्रकोप धान के पौधे में मीठापन जिसे जिले में गोल काढ़ी आना कहते हैं । ■तब से लेकर धान कटते तक देखा जाता है। यह कीट पौधे के तने से पानी की सतह के ऊपर तने से चिपककर रस चूसता है। क्या है भू

सावधान -धान में (फूल बालियां) आते समय किसान भाई यह गलतियां ना करें।

  धान में फूल बालियां आते समय किसान भाई यह गलतियां ना करें। प्रायः देखा गया है कि किसान भाई अपनी फसल को स्वस्थ व सुरक्षित रखने के लिए कई प्रकार के कीटनाशक व कई प्रकार के फंगीसाइड का उपयोग करते रहते है। उल्लेखनीय यह है कि हर रसायनिक दवा के छिड़काव का एक निर्धारित समय होता है इसे हमेशा किसान भइयों को ध्यान में रखना चाहिए। आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय बताएंगे कि धान के पुष्पन अवस्था अर्थात फूल और बाली आने के समय किन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है, ताकि फसल का अच्छा उत्पादन प्राप्त हो। सुबह के समय किसी भी तरह का स्प्रे धान की फसलों पर नहीं करें कारण क्योंकि सुबह धान में फूल बनते हैं (Fertilization Activity) फूल बनाने की प्रक्रिया धान में 5 से 7 दिनों तक चलता है। स्प्रे करने से क्या नुकसान है। ■Fertilization और फूल बनते समय दाना का मुंह खुला रहता है जिससे स्प्रे के वजह से प्रेशर दानों पर पड़ता है वह दाना काला हो सकता है या बीज परिपक्व नहीं हो पाता इसीलिए फूल आने के 1 सप्ताह तक किसी भी तरह का स्प्रे धान की फसल पर ना करें ■ फसल पर अग