फाल आर्मी वर्म कीट मक्के की फसल को कर देता है बर्बाद,कीट प्रबंधन हेतु अपनाए ये उपाय।
डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर ने फाल आर्मी वर्म कीट के प्रबंधन हेतु निम्नानुसार उपाये बताए है जिससे फसल की अवस्था एवम क्षति स्तर के आधार पर नियंत्रण किया जा सकता है।
Monitiring- इस कीट से प्रभावित क्षेत्र तथा कीट प्रकोप सम्भावित क्षेत्र में प्रति एकड़ पांच फेरोमेन ट्रैप लगावे।
क्षति का आंकलन:
मक्का के बीज अंकुरित हो निम्न कार्य किया जाना चाहिए।
■अंकुरण से 3-4 सप्ताह तक:-यदि 5%पौधों पर कीट का प्रकोप हो तो नियंत्रण के उपाय करना चाहिए।
■अर्ली स्टेज 5-7 सप्ताह तक:- यदि 10 % पौधों पर कीट का प्रकोप हो तो कीटो का नियंत्रण करना चाहिए।
■लेट स्टेज में:- यदि 20 प्रतिशत पौधों पर कीट का प्रकोप हो तो नियंत्रण के उपाय करने चाहिए।
■टेसलिंग स्टेज:- कीटनाशक का छिड़काव नही करना चाहिए यदि 10%भुट्टो पर प्रकोप हो तो नियंत्रण के उपाय करने चाहिए।
समन्वित कीट प्रबंधन के उपाय:
पारम्परिक उपाय:
बुवाई से पूर्व एम बी प्लाऊ से गहरी जुताई करना चाहिए इससे कीट के प्यूपा प्रिडिएटर 1.के उपभोग हेतु उपलब्ध होंगे।
2.समय से ही बुवाई करे।
3.मक्के के साथ साथ दलहन फसल लगावे। जैसे- मक्का+ अरहर/उड़द/मूंग
4.फसल के आरंभिक अवस्था मे अर्थात अंकुरण से 30 दिन तक बांस से बने T आकर के खम्बे पक्षियों के बैठने के लिए लगावे। इसकी संख्या 10 नग प्रति एकड़ पर्याप्त होगी।मक्के की फसल के साथ साथ ट्रैप फसल (नेपियर घांस की 3-4 कतार लगावे। जैसे ही F A W के लक्षण दिखाई दे। N S K E(Neem Seed Kemel Extract) का 5 % या एजाडिरेक्टिन 1500 PPM के घोल का उपयोग करना चाहिए।
5.सन्तुलित मात्रा में उर्वरक का प्रयोग करे।
6.मजबूत छिलकों वाली हाइब्रिड किस्म की बुवाई करे।
7.बुवाई के 30 दिन तक रेत एवम चुने का9:1अनुपात के मिश्रम का छिड़काव करना चाहिए।
यांत्रिक विधि:
1.अंडों व इल्लियों को एकत्रित कर नष्ट कर दे।
2.कीट प्रकोप ज्ञात होते ही प्रभावित पौधों की Whorl में सूखी रेत का प्रयोग करना चाहिए
3. नर शलभ को पकड़ने के लिए फेरोमैन ट्रैप 15 नग प्रति हेक्टेयर का उपयोग करना चाहिए जैविक विधि से नियंत्रण मित्र कीटों के संरक्षण एवं बढ़ावा देने व के लिए अंतर्वर्ती फसल लगाकर पौध विविधता को बढ़ावे। दलहनी तथा पुष्प वाले पौधे का उपयोग किया जाना उपयुक्त रहेगा दूसरा Traichograma previous & Telecom is remus का 50,000 प्रति एकड़ की संख्या में उपयोग करना चाहिए।
चमन बहार टेक्निक
डॉ चंद्राकर ने बताया कि गरियाबंद जिला के देवभोग ब्लॉक के किसान Chlorpyrifos 50 + Cypermethrin 5% EC का 100 मिली लीटर को 1 किलो बारीक रेत में मिक्स कर पुरानी पानी की बोतल में भर लेते है। ढक्कन में चार पांच छेद ऐसे करते है जिससे रेत धीरे धीरे गिरे,फिर उसे मजदूरों की सहायता से मक्के के प्रभावित शीर्ष तने में 10 से 20 ग्राम के आसपास रेत को गिराते है,इससे एक तो इल्ली का mandible रेत में काम नही करता दूसरी तरफ कीटनाशक के प्रभाव से मादा कीट अंडे देने हेतु नही बैठ पाती। यह काफी कारगर उपाय है।
चूंकि गांव में पान बनाने के समय चमन बहार को इसी तरीके से छिड़का जाता है इसीलिए इसे "चमन बहार टेक्निक" कहते है।
जैविक कीटनाशक का प्रयोग
3-4 सप्ताह की अवस्था तक
5% क्षति एक बाली की अवस्था में 10% क्षति में यह विधि उपयोगी है Entomopathogenic fungi एवं बैक्टीरिया का उपयोग करना चाहिए जो कि निम्नानुसार है।
1. Metarhizium anisopliae talc formulation (1x10 cut/g) का 5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर बुवाई के 15 से 25 दिन बाद उपयोग करना चाहिए 10 दिन के अंतराल पर दूसरी बार छिड़काव किया जा सकता है या Metarhizium releyi rice grain 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर बुवाई के 15 से 25 दिन बाद उपयोग करना चाहिए बेसिलस सुरेन जी ने सिस का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने प्रति एकड़ छिड़काव हेतु 400 ग्राम की मात्रा पर्याप्त होती है रासायनिक विधि से NSKEके 5% गोल या एचडी Azadiractin के 1500 पी पीएम का 5 ml प्रति लीटर पानी की दर से उपयोग करना चाहिए।
5 से 7 सप्ताह तक
10 से 20% क्षति स्तर तक कीट के 2 nd व 3rd लार्वा के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित दवाइयों का उपयोग उपयुक्त होगा
1 Ematin Benzoate@0.4gm/liter water
2.Spinosad@0.3 ml/liter water or
3Thiamethoxam 12.6℅lamda Cylothrin 9.5℅@ 0.5 ml/liter water
4.Chlorantraniliprole 18.5 % SC @ 0.4 gl/liter of water
5.Emamectin Benzoate 1.5% + fipronil 3.5%SC 20 ml प्रति पंप या 500 ml प्रति हेक्टेयर
6.Thiamethoxam12.6%SC + Lamdacyhalothrin 9.5% SC
6-8 ml प्रति पंप या 150 से 200 ml प्रति हेक्टेयर
8 सप्ताह से siliking stage तक
इस स्तर पर रसायनों के द्वारा नियंत्रण आर्थिक रूप से लाभकारी नही है। हाथ से लार्वा चुनकर नष्ट किया जाना अनुसंशित है।
साभार
डॉ. गजेंद्र चन्द्राकर
(वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक)इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय
रायपुर छत्तीसगढ़
@किसान समाधान
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