धान की फसल में खरपतवारों की रोकथाम की यांत्रिक विधियां तथा हाथ से निराई-गुड़ाईयद्यपि काफी प्रभावी पाई गई है लेकिन विभिन्न कारणों से इनका व्यापक प्रचलन नहीं हो पाया है। इनमें से मुख्य हैं, धान के पौधों एवं मुख्य खरपतवार जैसे जंगली धान एवं संवा के पौधों में पुष्पावस्था के पहले काफी समानता पाई जाती है, इसलिए साधारण किसान निराई-गुड़ाई के समय आसानी से इनको पहचान नहीं पाता है। बढ़ती हुई मजदूरी के कारण ये विधियां आर्थिक दृष्टि से लाभदायक नहीं है। फसल खरपतवार प्रतिस्पर्धा के क्रांतिक समय में मजदूरों की उपलब्धता में कमी। खरीफ का असामान्य मौसम जिसके कारण कभी-कभी खेत में अधिक नमी के कारण यांत्रिक विधि से निराई-गुड़ाई नहीं हो पाता है।
अत: उपरोक्त परिस्थितियों में खरपतवारों का खरपतवार नाशियों द्वारा नियंत्रण करने से प्रति हेक्टेयर लागत कम आती है तथा समय की भारी बचत होती है, लेकिन शाकनाशी रसायनों का प्रयोग करते समय उचित मात्रा, उचित ढंग तथा उपयुक्त समय पर प्रयोग का सदैव ध्यान रखना चाहिए अन्यथा लाभ के बजाय हानि की संभावना भी रहती है।
डॉ गजेंद्र चन्द्राकर (वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक) इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर छत्तीसगढ़ के अनुसार मानसून आते ही किसान भाई धान बोनी के कार्य मे जुट जाते है। सबसे विकट समस्या होती है धान की फसल में खरपतवार नियंत्रण का।कब कौन से खरपतवार नाशी का प्रयोग किसान भाइयों को करना है इसकी जानकारी नीचे सारणी में दी जा रही है जो कि छत्तीसगढ़ के किसान भाइयों के लिए निश्चित ही बहुपयोगी होगी।
धान बोनी के समय उपयोग किये जाने वाले खरपतवारनाशी
धान के अंकुरण पश्चात खरपतवार नियंत्रण
आवश्यक देख रेख व सुझाव
स्तोत्र
डॉ. नीतीश तिवारी
कृषि वैज्ञानिक(एग्रोनॉमी)
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर छत्तीसगढ़
Comments
Thanks for knowledge
बहुत बहुत धन्यवाद सर।।