सिट्रोनेला घास
कृषि विशेषज्ञ श्री योगेश सोनकर (संस्थापक अम्बिका फाउण्डेशन) के अनुसार
सिट्रोनेला ग्रास नामक यह पौधा मच्छरों को दूर भगाने का सबसे अच्छा तरीका है। यह मात्र 2 मीटर तक ही बढ़ता है और इस पर लगने वाले फूल लॅवेंडर जैसे रंग के होते हैं। इससे निकलने वाला सिट्रोनेला ऑयल कई प्रकार के हर्बल प्रोडक्ट्स में उपयोग किया जाता है।
यह डेंगू पैदा करने वाले मच्छरों को भी दूर भगाने में सहायक होता है। मच्छरों को दूर भागने के लिए इसके ऑयल की कुछ बूंदे बगीचे में जलने वाली कैंडल्स और लालटेंस में छिड़क कर जला दें। यह हमारी त्वचा के लिए भी काफी असरदार और उपयोगी होता है।
गर्म जलवायु में बेहतर फसल
उपोष्ण जलवायु वाले 70 – 80 प्रतिशत आर्द्रता वाले क्षेत्रों में इसकी खेती सफलतापूर्वक की जाती है। जावा घास की खेती के लिए गर्म जलवायु (10 – 35 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान), तेज धूप तथा 200 से 250 सेमी. वार्षिक वर्षो वाले क्षेत्र अधिक उपयुक्त होते है। छायादार स्थानों में सिट्रनेला की वृद्धि कम होती है, पत्तियाँ कड़ी हो जाती है जिससे तेल की मात्रा तथा जिरानियाल की मात्रा घट जाती है। अधिक सर्दी और हिमपात का इस फसल पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ की जलवायु इसकी खेती के लिए उपयुक्त है।
उन्नत किस्में ही लगाएं
सिट्रोनेला की दो प्रजातियाँ होती है।
(1) जावा सिट्रोनेला (सिवोपोगाॅन विंटेरिएनस जेविट: इसका तेल सगन्ध तेलों में श्रेष्ठ माना गया है और सुगंधित रसायनों का एक प्रमुख स्त्रोत है।
(2) सीलोन किस्म (सिम्बोपोगाॅन नार्डस रैंडल): इसके तेल में जिरेनियाल की मात्रा अपेक्षाकृत कम होती है।
जावा सिट्रोनेला की प्रमुख किस्मो में मंजूशा, मंदाकिनी, बायो -13 तथा जल-पल्लवी किस्मों को केन्द्रीय औषधिय एवं सगंध पौधा संस्थान, लखनऊ द्वारा विकसित की गई है। इनमें से बायो – 13 ऊतक संवर्धन तकनीक से विकसित की गई है।
सिट्रोनेला का औषधीय उपयोग :
इससे प्राप्त तेल का उपयोग साबुन, इत्र, प्रसाधन सामग्री और भोजन स्वादिष्ट बनाने के लिए पूरी दुनिया में किया जाता है। यह पौधा बुखार, गाठियावात, मामूली सक्रंमण, पेट और मासिक धर्म संबंधी समस्याओं के उपचार में उपयोगी है। इसके तेल का उपयोग कीट निरोधक के रूप में भी किया जाता है।अनिद्रा के उपचार में भी इसका प्रयोग किया जाता है | यह पौधा बुखार, गाठियावात, मामूली सक्रंमण, पेट और मासिक धर्म संबंधी समस्याओं के उपचार में उपयोगी है।गर्मधारण के दौरान इसका उपयोग वर्जित है। इसके तेल का उपयोग कीट निरोधक के रूप में भी किया जाता है। अनिद्रा के उपचार में भी इसका प्रयोग किया जाता है।
जावा घास (सिट्रोनेला) का स्वरूप :
यह एक बारहमासी प्रकंदो सहित शाकीय पौधा है। इसका तना सीधा, मजबूत, चिकना और कलगीदार होता है।
जड़ :
सिट्रोनेला के पौधे की जड़े रेशेदार होती है।
पत्तिंया :
पत्तियाँ अरोमिल, अंदर की तरफ लाल रंग की, 40-80 से.मी. लंबी और 1.5 से 2.5 से.मी. चौड़ी होती है। पत्तियाँ अलग – अलग, लंबी और रेखीय होती है।
फूल :
सिट्रोनेला के पौधे में फूल सितम्बर – नवंबर माह में खिलते है।
फल :
सिट्रोनेला में फल अप्रैल से जून माह में आते है।
जलवायु व तापमान :
सिट्रोनेला का यह पौधा उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय परिस्थिति में अच्छी तरह बढ़ता है। सिट्रोनेला इसके अच्छे विकास के लिए प्रचुर मात्रा में धूप और नमी की आवश्यकता होती है।एक उपयुक्त आर्द्र जलवायु इसके विकास के लिए आदर्श मानी जाती है |
भूमि की तैयारी :
बरसात यानि मानसून के शुरूआत में खेत देशी हल अथवा हैरो से 25 से 30 सेंटीमीटर गहरी 2-3 जुताई करें | हर जुताई के बाद पटेला चलाकर खेत को ढेला रहित बना लें | खेत को अच्छी प्रकार भुरभूरा बनाकर खेत में मेड़ ओर लकीरे बना लें |
बरसात यानि मानसून के शुरूआत में खेत देशी हल अथवा हैरो से 25 से 30 सेंटीमीटर गहरी 2-3 जुताई करें | हर जुताई के बाद पटेला चलाकर खेत को ढेला रहित बना लें | खेत को अच्छी प्रकार भुरभूरा बनाकर खेत में मेड़ ओर लकीरे बना लें |
अंतरण व दूरी :
किसान भाई सिट्रोनेला के पौधे की रोपाई 60X90 से.मी. अंतरण पर करें | यानि कतार से कतार की दूरी 60 सेंटीमीटर व पौध से पौध की दूरी 90 सेंटीमीटरगहराई – 10 सेंटीमीटर
भूमि का चयन :
किसान भाईयों सिट्रोनेला की खेती के लिए भारी चिकनी और रेतीली मिट्रटी विकास के लिए अच्छी नहीं मानी जाती है। सिट्रोनेला की खेती के लिए जिस मिट्टी का pH मान 5.8 से.मी. के बीच होता है वह मृदा सर्वोत्तम मानी जाती है।फसल पानी की अधिकता के लिए अति संवेदन शील होती है।इसे विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है परन्तु उत्तम विकास और उपज रेतीली दोमट मिट्टी से प्राप्त होती है।
बुवाई अथवा रोपाई का समय :
जुलाई से सितम्बर
फसल पद्धति विवरण :
सिट्रोनेला के पौधे की रोपाई के लिए प्रत्येक स्लिप में 1 से 3 टिलर होना चाहिए। स्लिप को 50-60 से.मी की दूरी में और 10 से.मी. की गहराई में लागाया जाता है।सिट्रोनेला घास की वाणिज्यिक खेती स्लिप द्दारा की जाती है।
सिंचाई प्रबंधन :
सिट्रोनेला के पौधे को वर्षा न होने की स्थिति में रोपाई के 24 घंटे के भीतर ही सिंचाई की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त मौसम और मिट्टी की स्थिति को देखते हुए वर्षा रहित सूखे प्रदेशो में 8-10 बार सिंचाई की आवश्यकता होती है|
घासपात नियंत्रण प्रबंधन :
रोपण के पहले सभी प्रकार के खरपतवार को उखाड़ फेकना चाहिए। प्रत्येक कटाई के बाद निराई की जानी चाहिए। संपूर्ण फसल आने तक खेत को खरपतवार से मुक्त रखा जाता है। निराई करने के बाद पौधे के जड़ों में मिटटी चढ़ा देना चाहिए | ताकि जड़ें न खुलने पायें |
खाद एवं उर्वरक :
सिट्रोनेला के पौधे के विकास हेतु अधिक उर्वरक की आवश्यकता नहीं होती है। उत्तम विकास और अच्छी उपज के लिए 200 कि.ग्रा. N(नाइट्रोजन) 80 कि.ग्रा. P2O5(फोस्फोरस) और 40-80 कि.ग्रा. K2O(पोटाश) की खुराक प्रति हेक्टेयर की दर से प्रति वर्ष दी जाती हैं। रोपाई के पहले खेत में 10 टन/हेक्टेयर की दर से मिलाया जाता है। बेहतर परिणाम के लिए 3 महीने के अतंराल में N की खुराक 4 बराबर भागों में दी जाती है। P और K की पूरी आधारीय दूरी खुराक एक ही समय में दी जानी चाहिए।
तुडाई, फसल कटाई का समय :
सिट्रोनेला के रोपण के 270-280 दिन के बाद, फसल पहली कटाई के लिए तैयार हो जाती है | कटाई जमीन से 20-45 से.मी. ऊपर से हसिऐं द्दारा की जाती है।समान्यत: पत्तियों की फाँक (ब्लेड्रस) को काटा जाता है । और कोष को छोड़ दिया जाता है। एक वर्ष में लगभग 4 बार कटाई की जा सकती है। कटाई को 3 महीने के अतंराल में किया जा सकता है।
आसवन (Distillation) :
भाप आसवन एक विशेष प्रकार की प्रकिया है । जो तापमान संवदेनशील साम्रगी के लिए उपयोग की जाती है। कुछ कार्बनिक यौगिक उच्च तापमान में विघटित हो जाते है । अत : समान्य आसवन विधि इस के लिए उपयुक्त नहीं होती है। इसलिए उपकरण में पानी को मिलाया जाता है। आसवन पूर्ण होने के बाद वाष्प को संघनित कर लिया जाता है।
सिट्रोनेला को तेल को ऐल्युमीनियम के ड्रम और प्लास्टि क के ड्रम में भंडारित किया जाता है। शीत भंडारण अच्छे होते हैं ।
सुखाना :
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