औषधि ज्ञान:- आइए जाने हरड़ के गुणों के बारे में।
■शैलपुत्री
■हरड़
■हरीतकी
■Terminalia_chebula
शक्ति के नौ रूपों की हम सभी उपासना करते हैं, लेकिन बहुत कम लोगों को यह पता होगा कि शक्ति के नवरूपों यानी दुर्गा के नव नामों से नौ महान औषधियां भी है!!!
हरड़ का पेड़ भारत के अधिकांश प्रान्तों में पाया जाता है।
इसके पत्ते 3 से 8 इंच लंबे और लगभग 2 इंच चौड़े होते है ।
मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश, उड़ीसा, बिहार और दक्षिण भारत में हरड़ बहुत होता है वही असम में सबसे अधिक हरड़ के पेड़ है।
आयुर्वेद में हरड़ को हरीतकी तथा अभया नामों से जाना जाता हैं ।
रोगों को दूर करने के कारण हरड़ को हरीतकी कहा गया है।
हरड़ का एक नाम प्रमथा भी है।
इसका अर्थ है रोगों को मथकर उन्हें जड़-मूल से नष्ट करने वाली।
आयुर्वेद के अनुसार हरड़ में लवण रस को छोड़कर शेष सभी रस होते हैं।
हरड़ के संहिता में सात प्रकार बताये है,पर आजकल बाजार में सिर्फ 3 प्रकार की हरड़ ही उपलब्ध हैं।
1. बाल हरड़-इसे जवाहरड़ भी कहते हैं।
2. पीली हरड़
3. बड़ी हरड़।(इसे काबुली हरड़ भी कहते हैं।)
तीनों प्रकार की हरड़ों के गुण लगभग समान ही हैं। हरड़ का कच्चा और छोटा फल जब पेड़ से गिर जाता है, तब उसे छोटी हरड़ कहा जाता है के लिए प्राय: हरड़ के फल का छिलका ही उपयोग में लाया जाता है। हरड़ में मीठा, खट्टा, कडवा (चरपरा), तीखा और कसैला ये 5 रस होते हैं।
हरड़ के सेवन से वात, पित्त और कफ असंतुलन से पैदा हुए रोग-विकार ठीक होते है।हरड़ आँखों के लिए भी बहुत गुणकारी होती है।सूजन, पेट के रोग, अर्श, सांस के रोग व खांसी में बहुत लाभप्रद होती है।हरड़ के सेवन से उच्च रक्तचाप में बहुत लाभ होता है।हरड़, बहेड़ा और आंवला को कूट-पीसकर बनाए गए चूर्ण को “त्रिफला चूर्ण’ कहते है जिसका काफी औषधीय उपयोग है।
इस वनस्पति माँ का प्रसाद मानकर अपने घर-आंगन में इनका रोपण करें व उचित मार्गदर्शन में सेवन करें ,जो आपको आरोग्य प्रदान करेगी।।
हरड़ से जुड़ी कोई जानकारी हो तो अवश्य साझा करें ।
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