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औषधि ज्ञान:-आइए जाने "काली मूसली" से बारे में।

 
काली मूसली का परिचय
(Introduction of Kali Musli)


आयुर्वेद में मूसली का यौन शक्ति और शारीरिक कमजोरी को दूर करने के लिए कई वर्षो से औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता रहा है। आयुर्वेद के शास्त्रों में मूसली दो प्रकार की बतायी गयी है एक सफेद मूसली और दूसरी काली मूसली। दोनों तरह की मूसली औषधि के रूप में बहुत से रोगों में प्रयोग की जाती है। काली मूसली का प्रयोग मूल रुप से यौन शक्ति बढ़ाने और शरीर की मांसपेशियों की दुर्बलता को दूर करने में किया जाता है साथ ही यह मूत्र या यूरिन सम्बन्धी रोगो के उपचार में भी बहुत ही फायदेमंद साबित होती है। 



काली मूसली क्या है? 
(What is Kali Musli in Hindi?)

काली मूसली एक बहुवर्षायु कोमल क्षुप होती है जिसकी जड़ फाइबर युक्त मांसल (ठोस) होती है। काली मूसली स्वाद में हल्का मीठापन और कड़वापन लिए हुए होती है लेकिन इसकी तासीर गर्म होती है इसलिए आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह से ही इसको लेनी चाहिए। काली मूसली के पत्ते ताड़ (ताल) के पत्तों की तरह होते हैं। पीले रंग के फूलों के कारण इसको स्वर्ण पुष्पी या हिरण्या पुष्पी भी कहते हैं। इसकी जड़ें  बाहर से मोटी एवं काले-भूरे रंग की तथा अन्दर से सफेद रंग की, मांसल व तंतुयुक्त होती है। इस लेख में हम आपको काली मूसली के फायदे (kali musli ke fayde) के बारे में विस्तार से बता रहे हैं।


आयुर्वेद के अनुसार काली मूसली (Black musli) पिच्छिल (चिपचिपाहट युक्त ), वात-पित्त को कम करने वाली और कफ को बढ़ाने वाली होती है। काली मूसली वृष्य ( यौनशक्ति बढ़ाने वाली ), बृंहण (शरीर का बल बढ़ाने वाली ) तथा धातुवर्धक( शरीर के सभी तत्वों को पोषण देने वाली) होती है। इसके अलावा यह जलन, थकान, पाइल्स में भी अच्छा काम करती है। काली मूसली रक्त को दूषित करने वाले तत्वों को नष्ट करने वाली होती है अर्थात ये रक्त को साफ़ करने वाली होती है।


काली मूसली की मूल (जड़) वाजीकारक यानि यौन शक्ति बढ़ाने में मददगार और मूत्र रोग में लाभकारी होती है। साथ ही ये शक्तिवर्द्धक, बुखार, संग्रहणी या दस्त (आँतो की कमजोरी), अर्श (पाइल्स), रक्त संबंधी बीमारियां, शुक्रमेह (Spermatorrhoea) में भी लाभकारी है। मधुमेह या डायबिटीज के कारण होने वाली कमजोरी में इसका अच्छा परिणाम देखने को मिलता है।

त्वचा सम्बन्धी रोग जैसे सफ़ेद दाग, लिवर सम्बन्धी रोग जैसे पीलिया और सांस संबंधी बीमारियां जैसे फेफडो में सूजन इन सभी में भी काली मूसली का प्रयोग कर सकते है। अग्निमांद्य यानि कमजोर पाचन शक्ति और उल्टी होने जैसी इच्छा में काली मूसली को देने से लाभ होता है । कमर दर्द तथा सन्धिशूल या जोड़ों में दर्द से भी वात को कम करने के कारण काली मूसली एक बेहतर औषधि है।

अन्य भाषाओं में काली मूसली के नाम (Name of Kali Musli in Different Languages)
काली मूसली का वानस्पतिक नाम Curculigo orchioides Gaertn. (कुरकिलिगो ऑर्किओइडिस) Syn-Hypoxis orchioides (Gaertn.) Kurz है। इसका कुल Hypoxidaceae (हाईपोक्सीडेसी) है और इसको अंग्रेजी में Black musli (ब्लैक मूसली) कहते हैं। इसके अलावा काली मूसली को भारत के विभिन्न प्रांतों में भिन्न-भिन्न नामों से पुकारा जाता है।

Kali Musli in-

Sanskrit – तालमूली, मूशली;
Hindi – स्याह मूसली, काली मूशली;
Oriya – मूसली (Musali);
Urdu – मूसली (Musali); तालमूली (Talamuli);
Kannada – नेलततीगड्डे (Nelatatigadde), नेलादली (Neladale), नेलताल (Neltaal);
Gujrati – काली मूसली (Kalimusli);
Tamil – निलधनैका (Nidhanaika), नीलप्पनईक्कीलहंगु (Nilappanaikkihangu);
Telugu – नेलतातीगड्डालू (Nelatatigaddalu), नेलताडी (Nelatadi);
Bengali – तालमूली (Talmuli), तालुसा (Talusa);
Nepali – काली मुसली (Kali musali);
Punjabi – स्याह मूसली (Syaha musali);
Marathi – काली मूसली (Kalimusli);
Malayalam – नेलप्पनकीझनन (Nelappanakizhanna)।
Arbi – मूसलीस्याह (Muslisiah);
Persian – मूसली (Musali)।

काली मूसली के फायदे 
अभी तक आपने काली मूसली के बारे में विस्तार से जाना, चलिये अब ये जानते हैं कि काली मूसली किन-किन बीमारियों के लिए और कैसे औषधि के रूप में काम करती है।

यौन शक्ति बढ़ाने में सहायक काली मूसली 
(Kali Musli Beneficial in Sex Drive in Hindi)-
आजकल तनाव और भाग-दौड़ भरी जिंदगी का सबसे ज्यादा असर सेक्स लाइफ पर भी पड़ता है इसलिए कम उम्र में ही आज के युवा शारीरिक कमजोरी की समस्या से जूझने लगते है। इसका असर उनकी यौन शक्ति पर भी पड़ता है। इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए काली मूसली एक बेहतर उपाय है क्योंकि काली मूसली में वाजीकरण का गुण होता है जो कि शरीर की कमजोरी को दूर करके यौन शक्ति को बढ़ाती है।

इसके लिए समान मात्रा में काली मूशली, गुडूची सत्त्, केंवाच बीज, गोक्षुर, सेमल, आँवला तथा शर्करा को घी और दूध के साथ मिलाकर पिएं और दूसरा एक और तरीका भी है कि-

-मूसली कंद 1 भाग, मखाना दो भाग तथा 3 भाग गोक्षुर के चूर्ण का क्षीरपाक कर मिश्री तथा टंकण मिलाकर तीन सप्ताह तक सुबह गुनगुना करके पीने से सेक्स की इच्छा बढ़ती है।

शुक्रदोष या शुक्राणुओं की संख्या और गुणवत्ता में फायदेमंद काली मूसली 
आधुनिक जीवनशैली और गलत खानपान का बुरा असर संतान को पैदा करने की क्षमता पर पड़ रहा है जिसके कारण शुक्राणुओं की संख्या और गुणवत्ता में कमी हुई है और इस समस्या को दूर करने में काली मूसली एक बेहतर उपाय है। काली मूसली का सेवन (kali musli ke fayde) दूध के साथ करने पर जल्दी फायदा पहुँचता है। 2-4 ग्राम काली मूसली जड़ के चूर्ण का दूध के साथ सेवन करने से शुक्रदोषों में लाभ होता है।

शीघ्रपतन रोकने में उपयोगी है काली मूसली 

शीघ्रपतन की समस्या आज की युवा पीढ़ी की आम समस्या है और काली मूसली इसको दूर करने में अच्छा उपाय है। शीघ्रपतन रोकने के लिए निम्न प्रकार से लिया जाए तो काली मूसली बहुत फायदेमंद (kali musli ke fayde) होती है।  

1 ग्राम मूसली चूर्ण में मिश्री मिलाकर खाने से शीघ्रपतन तथा वीर्य विकार आदि दोष मिटते हैं।
2-4 ग्राम काली मूसली के चूर्ण को गाय के घी में मिलाकर खिलाने से वीर्य की पुष्टि होती है।
काली मूसली तथा उटंगन के चूर्ण को मिलाकर 2-4 ग्राम मात्रा में सेवन करने से शरीर तथा वीर्य की पुष्टि होती है।

मूत्रकृच्छ्र या मूत्र संबंधी बीमारी में फायदेमंद काली मूसली
(Kali Musli for Urine Problems )

काली मूसली मूत्र संबंधी बीमारियों में एक कारगर औषधि है। मूत्र संबंधी बीमारी में बहुत तरह की समस्याएं आती हैं, जैसे- मूत्र करते वक्त दर्द या जलन होना, मूत्र कम मात्रा में आना आदि। इस प्रकार की सभी समस्याओ में काली मूसली बहुत ही लाभकारी साबित होती है क्योंकि इसमें मूत्रल यानि डाइयूरेटिक गुण पाया जाता है ।

काली मूसली (Black musli) के 2-4 ग्राम चूर्ण में 5 ग्राम मिश्री मिलाकर तथा 3 बूँद चन्दन तेल डालकर दूध के साथ सुबह शाम पीने से मूत्र संबंधी रोगो में लाभ होता है।

मूत्रघात में काली मूसली के फायदे

मूत्राघात में रुक-रुक कर पेशाब होता है जिसके कारण असहनीय दर्द और पीड़ा को सहना पड़ता है। इससे राहत पाने के लिए 10-15 मिली काली मूसली के काढ़े का सेवन करने से मूत्राघात में लाभ (kali musli ke fayde) होता है।

वृक्कशूल या किडनी के दर्द से दिलाये राहत काली मूसली 

किडनी के दर्द से आराम पाने के लिए काली मूसली का सेवन इस तरह से करना चाहिए। 1-2 ग्राम काली मूसली (Black musli) चूर्ण में 5 मिली तुलसी पत्ते का रस मिलाकर खाने से वृक्कशूल में लाभ होता है।

अतिसार या दस्त में फायदेमंद काली मूसली 

अगर ज्यादा मसालेदार खाना, पैकेज़्ड फूड या बाहर का खाना खा लेते है और आपकी पाचन शक्ति कमजोर है तो आपको पेट सम्बन्धी समस्याएं जैसे अतिसार या दस्त हो सकता है। ऐसे में काली मूसली का उपयोग आप इस समस्या को रोकने के घरेलु उपाय के रूप में कर सकते हैं। 1-2 ग्राम काली मूसली की जड़ के चूर्ण को छाछ के साथ सेवन कराने से अतिसार में लाभ होता है।

उदर शूल या पेट दर्द में काली मूसली के फायदे
(Kali Musli treat Stomach Ache in Hindi)-

अक्सर मसालेदार खाना खाने या असमय खाना खाने से पेट में गैस हो जाने पर पेट दर्द की समस्या होने होना आम बात है। काली मूसली (Black musli) का सेवन पेट दर्द दूर करने में भी फायदेमंद (kali musli ke fayde) है। 1-2 ग्राम काली मूसली चूर्ण में 500 मिग्रा दालचीनी चूर्ण मिलाकर सेवन करने से उदरशूल कम होता है।

खाँसी से दिलाये राहत काली मूसली के फायदे 
(Benefit of Kali Musli to Treat Kali Musli in Hindi)

अगर मौसम के बदलाव के कारण खांसी से परेशान है और कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है तो काली मूसली से इसका इलाज किया जा सकता है (Kali musli ke fayde)। इसके लिए इङ्गुदी फल का छिलका, छोटी कटेरी, बड़ी कटेरी, तालमूली, मनशिला तथा कपास की गुठली के चूर्ण की बत्ती जैसा बनाकर घी में भिगोकर धूम्रपान करने से खाँसी में लाभ होता है।

दमा से आराम दिलाती है काली मूसली 
(Kali Musli for Asthma in Hindi) –

अस्थमा या दमा एक ऐसा रोग है जो अक्सर मौसम के बदलाव के कारण गंभीर अवस्था में चला जाता है, इससे राहत दिलाने में काली मूसली के फायदे औषधि के रुप में बहुत काम आती है। इसके लिए काली मूसली (Black musli) के जड़ की छाल को (500 मिग्रा) पान में रखकर खाने से दमा में लाभ होता है।

कण्डू या खुजली रोग में काली मूसली के फायदे
(Kali Musli Beneficial in Skin Allergy in Hindi)-

आजकल के तरह-तरह के नए-नए कॉस्मेटिक प्रोडक्ट की दुनिया में त्वचा रोग होने का खतरा भी दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। जिसमे त्वचा का रूखापन और खुजली होना एक आम समस्या है। काली मूसली के द्वारा बनाये गए घरेलू उपाय चर्म या त्वचा रोगों से निजात दिलाने में मदद करते हैं। काली मूसली को पीसकर लेप करने से खुजली आदि त्वचा संबंधी बीमारियों में लाभ होता है।

व्यंग या झांईयों को मिटाने में फायदेमंद काली मूसली (Benefit of Kali Musli in Pigmentation in Hindi)-
चेहरे पर उम्र बढ़ने के साथ -साथ चेहरे पर झांईयां आना एक बड़ी समस्या है इस समस्या से आप काली मुसली के प्रयोग से घर पर ही निजात पा सकते है। काली मूसली की जड़ को बकरी के दूध में पीसकर, मधु मिलाकर चेहरे पर लेप करने से झांईयां मिटती हैं तथा मुखकान्ति की वृद्धि होती है।

पिडका या मुँहासों में फायदेमंद काली मूसली (Benefit of Kali Musli to Get Rid from Pimples in Hindi)-

युवा पीड़ी की सबसे बड़ी समस्या है मुहासों का होना इसमें काली मूसली एक अच्छा उपाय है। काली मूसली जड़ का पेस्ट बना लें और उसको मुँहासों पर लगायें। इससे जल्द आराम मिलता है।

क्षत या कटने-छिलने पर काली मूसली के फायदे 
(Kali Musli Beneficial in Injury in Hindi)-

अगर त्वचा पर कहीं कट या छिल गया है तो काली मूसली के प्रंद चूर्ण को उस प्रभावित स्थान पर बुरकने से रक्तस्राव (ब्लीडिंग) रुकता है तथा घाव जल्दी भरता है।

विद्रधि या घाव से दिलाये राहत काली मूसली 
( Benefits of Kali Musli in Abscess in Hindi)–
अगर शरीर पर किसी प्रकार का घाव ठीक से और जल्दी से नहीं भरता है तो काली मूसली के पत्तों को पीसकर लेप करने से घाव जल्दी ठीक हो जाता है।

बाधिर्य या बहरेपन में फायदेमंद काली मूसली (Benefits of Kali Musli in Deafness in Hindi)-

अक्सर उम्र बढ़ने के साथ कान से कम सुनाई पड़ने लगती है। इसके लिए 1 ग्राम मूसली चूर्ण (Black musli Powder) तथा 1 ग्राम बाकुची चूर्ण को मिलाकर सेवन करने से बाधिर्य में लाभ होता है।

कर्णरोग में फायदेमंद है काली मूसली
(Kali Musli Benefits in Ear Diseases in Hindi) –
अगर कान संबंधी बीमारियों से परेशान हैं तो काली मूसली के फायदे का उपचार के रुप में लाभ उठा सकते हैं। इसके लिए मूसली के रस या मूसली के काढ़े से तिल तेल को पकाकर छानकर 1-2 बूंद तेल को कान में डालने से कान संबंधी रोगों मे आराम (kali musli ke fayde) मिलता है।


सूजाक या गोनोरिया में काली मूसली के फायदे
(Kali Musli for Gonorrhoea in Hindi)–
काली मूसली के 2-4 ग्राम चूर्ण को 100 मिली मिश्री मिले हुए दूध में मिलाकर पिलाने से सूजाक में लाभ होता है।

अस्थिभग्न या हड्डियों को टूटने से रोकने में फायदेमंद काली मूसली
(Kali Musli Beneficial in Bone Fracture in Hind)-
अगर किसी कारणवश हड्डियां कमजोर हो गयी है और यदि हड्डी टूट गयी है तो हड्डियों को मजबूती देने और टूटी हुई हड्डी को जल्दी जोड़ने में काली मूसली एक बेहतर उपाय है। काली मूसली के चूर्ण में अतसी तेल मिलाकर टूटे स्थान पर लगाने से लाभ होता है।

काली मूसली का उपयोगी भाग (Useful Parts of Kali Musli)

आयुर्वेद में काली मूसली के जड़ का ही औषधि के रुप में ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है।

काली मूसली का इस्तेमाल कैसे करना चाहिए? 
(How to Use Kali Musli in Hindi?)

बीमारी के लिए काली मूसली के सेवन और इस्तेमाल का तरीका पहले ही बताया गया है। अगर आप किसी ख़ास बीमारी के इलाज के लिए काली मूसली का उपयोग कर रहे हैं तो आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह ज़रूर लें। चिकित्सक के सलाह के अनुसार-

2-4 ग्रामचूर्ण
10-15 मिली काढ़े का सेवन कर सकते हैं।
काली मूसली कहाँ पाई और उगाई जाती है? ( Where is Kali Musli Found and Grown in Hindi?)
समस्त भारत में यह लगभग 2400 मी की ऊँचाई तक पाई जाती है।

साभार
ZBNF

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धान की खेती में खरपतवार का रसायनिक नियंत्रण धान की फसल में खरपतवारों की रोकथाम की यांत्रिक विधियां तथा हाथ से निराई-गुड़ाईयद्यपि काफी प्रभावी पाई गई है लेकिन विभिन्न कारणों से इनका व्यापक प्रचलन नहीं हो पाया है। इनमें से मुख्य हैं, धान के पौधों एवं मुख्य खरपतवार जैसे जंगली धान एवं संवा के पौधों में पुष्पावस्था के पहले काफी समानता पाई जाती है, इसलिए साधारण किसान निराई-गुड़ाई के समय आसानी से इनको पहचान नहीं पाता है। बढ़ती हुई मजदूरी के कारण ये विधियां आर्थिक दृष्टि से लाभदायक नहीं है। फसल खरपतवार प्रतिस्पर्धा के क्रांतिक समय में मजदूरों की उपलब्धता में कमी। खरीफ का असामान्य मौसम जिसके कारण कभी-कभी खेत में अधिक नमी के कारण यांत्रिक विधि से निराई-गुड़ाई नहीं हो पाता है। अत: उपरोक्त परिस्थितियों में खरपतवारों का खरपतवार नाशियों द्वारा नियंत्रण करने से प्रति हेक्टेयर लागत कम आती है तथा समय की भारी बचत होती है, लेकिन शाकनाशी रसायनों का प्रयोग करते समय उचित मात्रा, उचित ढंग तथा उपयुक्त समय पर प्रयोग का सदैव ध्यान रखना चाहिए अन्यथा लाभ के बजाय हानि की संभावना भी रहती है। डॉ गजेंद्र चन्

समसामयिक सलाह-" गर्मी व बढ़ती उमस" के साथ बढ़ रहा है धान की फसल में भूरा माहो का प्रकोप,जल्द अपनाए प्रबंधन के ये उपाय

  धान फसल को भूरा माहो से बचाने सलाह सामान्यतः कुछ किसानों के खेतों में भूरा माहों खासकर मध्यम से लम्बी अवधि की धान में दिख रहे है। जो कि वर्तमान समय में वातारण में उमस 75-80 प्रतिशत होने के कारण भूरा माहो कीट के लिए अनुकूल हो सकती है। धान फसल को भूरा माहो से बचाने के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ गजेंद्र चंद्राकर ने किसानों को सलाह दी और अपील की है कि वे सलाह पर अमल करें। भूरा माहो लगने के लक्षण ■ गोल काढ़ी होने पर होता है भूरा माहो का प्रकोप ■ खेत में भूरा माहो कीट प्रारम्भ हो रहा है, इसके प्रारम्भिक लक्षण में जहां की धान घनी है, खाद ज्यादा है वहां अधिकतर दिखना शुरू होता है। ■ अचानक पत्तियां गोल घेरे में पीली भगवा व भूरे रंग की दिखने लगती है व सूख जाती है व पौधा लुड़क जाता है, जिसे होपर बर्न कहते हैं, ■ घेरा बहुत तेजी से बढ़ता है व पूरे खेत को ही भूरा माहो कीट अपनी चपेट में ले लेता है। भूरा माहो कीट का प्रकोप धान के पौधे में मीठापन जिसे जिले में गोल काढ़ी आना कहते हैं । ■तब से लेकर धान कटते तक देखा जाता है। यह कीट पौधे के तने से पानी की सतह के ऊपर तने से चिपककर रस चूसता है। क्या है भू

सावधान -धान में (फूल बालियां) आते समय किसान भाई यह गलतियां ना करें।

  धान में फूल बालियां आते समय किसान भाई यह गलतियां ना करें। प्रायः देखा गया है कि किसान भाई अपनी फसल को स्वस्थ व सुरक्षित रखने के लिए कई प्रकार के कीटनाशक व कई प्रकार के फंगीसाइड का उपयोग करते रहते है। उल्लेखनीय यह है कि हर रसायनिक दवा के छिड़काव का एक निर्धारित समय होता है इसे हमेशा किसान भइयों को ध्यान में रखना चाहिए। आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय बताएंगे कि धान के पुष्पन अवस्था अर्थात फूल और बाली आने के समय किन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है, ताकि फसल का अच्छा उत्पादन प्राप्त हो। सुबह के समय किसी भी तरह का स्प्रे धान की फसलों पर नहीं करें कारण क्योंकि सुबह धान में फूल बनते हैं (Fertilization Activity) फूल बनाने की प्रक्रिया धान में 5 से 7 दिनों तक चलता है। स्प्रे करने से क्या नुकसान है। ■Fertilization और फूल बनते समय दाना का मुंह खुला रहता है जिससे स्प्रे के वजह से प्रेशर दानों पर पड़ता है वह दाना काला हो सकता है या बीज परिपक्व नहीं हो पाता इसीलिए फूल आने के 1 सप्ताह तक किसी भी तरह का स्प्रे धान की फसल पर ना करें ■ फसल पर अग