मटर की उन्नत खेती
■यह फसल लैग्यूमिनसियाइ फैमिली से संबंध रखती है।
■यह ठंडे इलाकों वाली फसल है।
■इसकी हरी फलियां सब्जी बनाने और सूखी फलियां दालें बनाने के लिए प्रयोग की जाती हैं।
■यह प्रोटीन और अमीनो एसिड का अच्छा स्त्रोत है।
■यह फसल पशुओं के लिए चारे के तौर पर भी प्रयोग की जाती है।
■मटर की खेती हरी फल्ली (सब्जी), साबुत मटर, एवं दाल के लिये की जाती है।
■स्वाद एवं पौष्टिकता की दृष्टि से दलहनी फसलों में से मुख्य फसल है।
■देश भर में इसकी खेती व्यावसायिक रूप से की जाती है।
आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक मटर की अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिये उन्नत तकनीकी के महत्वपूर्ण पहलुओं पर प्रकाश डाल रहे है।
मटर, महत्वपूर्ण तथा अधिक आय देने वाली भारत की ही नहीं बल्कि विश्व की महत्वपूर्ण फसल है। इसकी खेती भारत के मैदानी क्षेत्रों में अक्टूबर-नवम्बर तथा पहाड़ी क्षेत्रों में अप्रेल-मई में की जाती है। वैसे तो मटर ताजी सब्जी के रूप में प्रयोग किया जाता है। परन्तु उसको सुखाकर वर्षभर उपयोग में लिया जाता है।
जलवायु व भूमि
मटर की अच्छी वृद्धि एवं अधिक पैदावार के लिए ठण्डी और नम जलवायु उपयुक्त होती है। इसकी अधिक अम्लीय अथवा अधिक क्षारीय भूमि में अच्छी उपज नहीं मिल पाती है, किन्तु दुमट तथा बलुई दुमट भूमि सर्वोत्तम होती है। उत्तम वृद्धि एवं अधिकतम पैदावार के लिए 10-18° सेन्टीग्रेड तापमान अनुकूल पाया गया है।
बुवाई का समय
■मैदानी क्षेत्रों में अगेती किस्म के लिए 15 सितम्बर से 15 अक्टूबर
■ मध्यम व देर से पकने वाली किस्म के लिए 15 अक्टूबर से 15 नवम्बर
■पहाड़ी क्षेत्रों में 15 मार्च से अप्रैल तक का समय उपयुक्त होता है।
उन्नत किस्में
अकिल, बौनविले, जवाहर मटर-1, जवाहर मटर-2, आजाद पी-1, साल्विया, हरभजन, अर्का अजित, हिसार,हरित-11
बीज की मात्रा
अगेती किस्मों के लिए 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर मध्य व देर से तैयार किस्मों के लिए 80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर।
बीजोपचार
बीज को बुवाई से पूर्व राइजोबियम कल्चर से उपचारित करें (3 ग्राम प्रति किलो बीज) ऐसा करने से उपज में 10-15 प्रतिशत की वृद्धि होती है।
खाद एवं उर्वरक
एक हेक्टर भूमि के लि 250 क्विंटल कम्पोस्ट या सड़ी गोबर की खाद तथा 25 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 50 कि. ग्रा. फॉस्फोरस और 50 कि.ग्रा. पोटाश की मात्रा पर्याप्त होती है। कम्पोस्ट खाद बुवाई को 15-20 दिन पूर्व तथा उपरोक्त उर्वरक में से आधी नाइट्रोजन एवं सम्पूर्ण फॉस्फोरस एवं पोटाश की मात्रा जुताई के समय कतार में दे देनी चाहिए। शेष आधी नाइट्रोजन की मात्रा बुवाई के 30 दिन पश्चात् टाप ड्रेसिंग के रूप में देनी चाहिए।
बुवाई की विधि
बुवाई कतारों में करनी चाहिए। अगेती किस्म की बुवाई कतार में 30 से.मी. तथा मध्यम तथा देर से पकने वाली किस्मों की बुवाई 40 से.मी. की दूरी पर करनी चाहिए। पौधे से पौधे की दूरी 10 से.मी. रखना चाहिए। निराई गुड़ाई एवं सिंचाई अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए खेत को खरपतवार से मुक्त रखना अत्यन्त आवश्यक है। पहली सिंचाई फूल आने के पूर्व या बुवाई के लगभग 30 दिन बाद तथा दूसरी फलियों की बढ़वार के समय अवश्य करें। सिंचाई के बाद गुड़ाई कर देने से अच्छी उपज प्राप्त होती है।
तुड़ाई
जब फलियां पूर्ण विकसित हो जाएं तथा फलियों का रंग गहरा हरा हो जाए, किन्तु कड़ी न हो इस अवस्था में ही तुड़ाई कर लेना चाहिए। 7-10 दिन का अंतर दो तुड़ाई के मध्य रखना चाहिए।
फसल सुरक्षा
सबसे अधिक मटर की फसल को फल बेधक कीट की समस्या होती है इस समस्या से निदान पाने के लिए निम्न उपाय अपनाने की सलाह दी जाती है।
▪पूर्व में लिए गए फसल की कटाई के बाद गहरी जुताई करें।
▪ ट्रैप फसल के रूप में अफ्रीकन मैरीगोल्ड (गेंदा) का उपयोग फल छेदक के प्रबंधन के लिए उपयोगी है।
▪वयस्क पतंगों को आकर्षित करने और मारने के लिए *प्रकाश जाल (लाइट ट्रैप) 1/एकड़ लगाए।
▪फलों छेदक के प्रबंधन के लिए 5 -6/ एकड़ फेरोमोन जाल का उपयोग करे।
▪प्रारंभिक अवस्था में लार्वा को मारने के लिए *नीम के बीज का अर्क 5% स्प्रे करे ।
▪ 9-10 /एकड़ पक्षी पर्चों( बर्ड पर्चेस) को कीटभक्षी पक्षियों को आमंत्रित करने के लिए लगाए जो फल छेदक के प्रबंधन में मदद करता है।
रासायनिक नियंत्रण
▪ साइपरमेथ्रिन 10EC @200 मिली को 250लीटर पानी में प्रति एकड़ की दर से फूल अवस्था में पहला स्प्रे करे व 10-15 दिनों के अंतराल पर स्प्रे करने से फल छेदक का प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है।
▪ क्लोरएन्ट्रानिलिप्रोल 18.5% एस सी @ 65-70 ml/एकड़ की दर से छिड़काव करे।
▪ फ्लूबेंडा माइड 20 इ सी @ 100 ml/एकड़ की दर से छिड़काव करे।
▪ इंडोक्साकार्ब 14.5 % एस सी@ 160 ml/एकड़* की दर से छिड़काव करे
▪ लैमडा सायहॅलोथ्रीन 5% ईसी @ 120 ml/एकड़* की दर से छिड़काव करे
▪ फोसालोन 35% ई सी@ 500ml/एकड़ की दर से छिड़काव करे
▪ क्विनोल्फास 20%@ 600-650 ml/एकड़ की दर से छिड़काव करे।
साभार
डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर
वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर
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