प्याज “ऐमारलीडेसी” परिवार का सदस्य है। इसका वैज्ञानिक नाम एलियस सेपा है। अंग्रेजी में इसे ओनियन कहा जाता है। पूरे संसार में इसकी मांग है।
गुण एवं उपयोग
प्याज की खेती 5 हजार वर्षो और इससे अधिक समय से होती आयी है। चूँकि प्याज में गंधक युक्त यौगिक पाये जाते हैं इसी वजह से प्याज में गंध और तीखापन होता है।
दवा के रूप में इसके उपयोग से खून के प्लेट बनने में अवरोध पैदा होता है जिससे मनुष्य की पतली नसों में खून के प्रवाह में बाधा पैदा नहीं होती है।
1. मसाले के रूप में
2. आयुर्वेदीय औषधि में
3. भोजन स्वादिष्ट बनाने में
4. सलाद बनाने में
5. आँख की ज्योति बढ़ाने में
6. मवेशियों एवं मुर्गियों के भोजन में
7. कीटनाशक के रूप में
8. प्याज में विटामिन-सी, लोहा और चूना अधिक पाया जाता है।
जलवायु
इसकी खेती के लिए समशीतोष्ण और वर्षा रहित जलवायु की सर्वोत्तम होती है। प्याज के लिए शुरू में 200 सें. गर्मी और 4 से 10 घंटे की धूप लेकिन बाद में 100 सें. गर्मी तथा 12 घंटे धूप अच्छी होती है। अन्य देशों में इसकी औसत उपज 15 टन/हें. है। वर्ष 1980 से अभी तक इसकी उपज में 65.55% की वृद्धि हुई है।
भूमि का चयन
प्याज की बागवानी हेतु भूमि का चयन भी आवश्यक है क्योंकि कंद का विकास भूमि की संरचना पर भी निर्भर करती है।
जीवांशयुक्त हल्की दोमट मिट्टी सबसे अच्छी है। अधिक अम्लीय मिट्टी सर्वथा अनुपयुक्त है। जमीन की जुताई अच्छी के साथ-साथ खाद एवं उर्वरक जुताई के समय डालकर अच्छी तरह मिला दिया जाय। मिलाने के बाद पाटा देना चाहिए। इससे खेत की नमी सुरक्षित रहती है तथा खाद को मिट्टी में मिलाने में आसानी होती है। भूमि की तैयारी के साथ पौधशाला की भी तैयारी उतनी ही आवश्यक है। पौधशाला की तैयारी में ख़ास ध्यान देकर उसे खरपतवार से मुक्त कर मिट्टी को भुरभुरी बनाये। पौधशाला में जल जमाव नहीं हो इसका विशेष ध्यान दें। पौधशाला को छोटी क्यारियों में बाँट दें। पौधशाला अपनी आवश्यकता अनुसार बनावें।
पौधशाला में बीज गिराने के बाद उसे पुआल आदि से ढँक देते हैं। बिचड़े को 4-5 सेंमी. के होने के बाद, डायथेन एम-45 का छिड़काव किया जाय ताकि सड़ने गलने से बच सकें।
बीज की मात्रा
बीज की गुणवत्ता के आधार पर ही इसकी मात्रा निर्भर करती है।
(क) बीज स्वस्थ हों,
(ख) बीज की अंकुरण क्षमता प्रमाणित हो,
(ग) बीज हमेशा नामांकित जगहों से प्राप्त करें।
एक हेक्टेयर प्याज लगाने के लिए 10-12 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
प्याज की बुआई तीन प्रकार से की जाती है:
■ सीधे बीज डालकर:
इसे बलुआही मिट्टी में उपयोग करते हैं। इस विधि में मिट्टी को अच्छे ढंग से तैयार कर बीज खेत में छोड़ देते हैं। इस विधि में बीज की मात्रा 7-8 किलो प्रति हें. लगाते हैं।
■ गांठों से प्याज लगाना:
छोटे प्याज के गांठों को अप्रैल-मई में लगायी जाती है। प्याज की 12-14 क्विंटल प्रति हें. गाँठ लगते हैं।
■बीज से पौध तैयार कर खेत में लगाना:
यह प्रचलित विधि है जिसके द्वारा प्याज की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है।
बुआई का समय: पौधशाला में बोआई: अक्टूबर-नवम्बर।
खेत में रोपाई: दिसम्बर-जनवरी।
इतनी दूरी पर लगाये।
प्याज के पूसा रेड प्रभेद हेतु पंक्ति से पंक्ति की दूरी 15 सें.मी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 सें.मी. रखने की अनुशंसा की गयी है।
क्यारियां तैयार करने की विधि
इस आकार की 50 क्यारियां एक हेक्टेयर में रोपण के लिए पर्याप्त होती हैं। बीज बोने से पहले क्यारी की गुड़ाई करनी चाहिए। प्रति वर्ग मीटर क्षेत्र में चार-पांच ग्राम कैप्टन या थायरम मिलना चाहिए। प्रत्येक क्यारी में 15-20 किग्रा अच्छी तरह सड़ा हुआ गोबर का खाद और 10-15 ग्राम दानेदार फ्यूराडान मिला देना चाहिए। क्यारी को समतल करने के बाद 8-10 सेमी की दूरी पर 1.2 सेमी गहरी नालियाँ बनाकर क्यारी तैयार कर लेना चाहिए। इसलिए मिलता है अच्छा उत्पादन प्याज की नर्सरी बेड बनाकर लाइन से लगाते हैं क्योंकि उसमें बीज की मात्रा कम लगती हैं और प्याज का उत्पादन ज्यादा और बड़ा होता है। बेड के दोनों तरफ नाली बनाते हैं, जिससे जो बीज बेड पर लगी होती है, उसको दोनों तरफ से पानी मिलता रहता है। क्यारी तैयार होने के बाद बीज को फफूंदनाशक दवा जैसे– कैप्टान या थायरम (2.0-2.5 ग्राम प्रति किग्रा बीज) से अवश्य उपचारित कर लेना चाहिए ताकि प्रारम्भ में लगने वाली बीमारियों के प्रकोप से पौधे बच सकें। इस प्रकार उपचारित बीज को तैयार क्यारियों में बो देना चाहिए।
खाद एवं उर्वरक की मात्रा:
कम्पोस्ट 10 टन, 150 किलो नेत्रजन, 60 किलो फास्फोरस एवं 30 किलो पोटाश प्रति हें. देने की अनुशंसा की गयी है।
नेत्रजन का प्रयोग तीन बार करें और वह भी सिंचाई के बाद। स्फूर एवं पोटाश की पूरी मात्रा खेत तैयारी के समय ही दी जाय।
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