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सावधान -धान में लगे भूरा माहो तो ये करे उपाय

सावधान-धान में लगे भूरा माहो तो ये करे उपाय



हमारे देश में धान की खेती की जाने वाले लगभग सभी भू-भागों में भूरा माहू (होमोप्टेरा डेल्फासिडै) धान का एक प्रमुख नाशककीट है| हाल में पूरे एशिया में इस कीट का प्रकोप गंभीर रूप से बढ़ा है, जिससे धान की फसल में भारी नुकसान हुआ है| ये कीट तापमान एवं नमी की एक विस्तृत सीमा को सहन कर सकते हैं, प्रतिकूल पर्यावरण में तेजी से बढ़ सकते हैं, ज्यादा आक्रमक कीटों की उत्पती होना कीटनाशक प्रतिरोधी कीटों में वृद्धि होना, बड़े पंखों वाले कीटों का आविर्भाव तथा लंबी दूरी तय कर पाने के कारण इनका प्रकोप बढ़ रहा है।


भूरा माहू के कम प्रकोप से 10 प्रतिशत तक अनाज उपज में हानि होती है।जबकि भयंकर प्रकोप के कारण 40 प्रतिशत तक उपज में हानि होती है।खड़ी फसल में कभी-कभी अनाज का 100 प्रतिशत नुकसान हो जाता है। प्रति रोधी किस्मों और इस किट से संबंधित आधुनिक कृषिगत क्रियाओं और कीटनाशकों के प्रयोग से इस कीट पर नियंत्रण पाया जा सकता है ।
आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक बताएंगे कि भूरा माहू का प्रबंधन किस प्रकार किया जाए।
लक्षण एवं पहचान:-

■ यह कीट भूरा रंग का, आकार में छोटा है, यह फुदकता है और कूदता है| चूंकि ये कीट पौधों के मूल में पानी के सतह से थोड़ा सा ऊपर पत्तों के घने छतरी के नीचे रहते हैं, किसानों को इन कीटों के बारे में शीघ्र पता नहीं लग पाता है तथा इनका नियंत्रण उपाय अधिक जटिल हो जाता है, जिसके फलस्वरूप प्रबंधन प्रणाली जटिल हो जाती है।

कैसे फैलता है भूरा माहो का संक्रमण


1.ये कीटें पौधों के मूल में पानी के सतह से थोड़ा सा उपर रहती हैं|

2. भूरा पौध माहू धान पौधों से तरल पदार्थ एवं पौषक तत्व लगातार चूसते हैं जिसके कारण आरंभ में पौधे पीले हो जाते हैं|

3. पौधों पर पीलापन एवं भूरापन होता है तथा वे धीरे-धीरे सुख जाते हैं| फसल नुकसान के इस लक्षण को हापर बर्न के नाम से जाना जाता है|

4. पौध के मूल में संक्रमित स्थानों पर हॉनीड्यू तथा फफूंद दिखाई देते हैं|

5. इस कीट से एक रोग भी फैलता है, जिसे ग्रासी स्टंट रोग कहा जाता हैं, जिससे पत्ते पीले हो जाते हैं और पौधों की वृद्धि कम होती है|

भूरा माहो बढ़ने का कारण

■गभोट अवस्था में या उसके बाद यूरिया या नत्रजन का अनुसनशित मात्रा से ज्यादा उपयोग करना।

■गुणवत्ता हीन (substandard) कीटनाशको का इस्तेमाल।
■सिंथेटिक पायरेथराइड कीटनाशकों का इस्तेमाल ।
■ अधिक आद्रता एवं कम तापमान वाले वातावरण निर्मित होना।

■हॉर्मोलिगोसिस एक ऐसी घटना है जिसमे कीटनाशी रसायनों का सबलिथल डोस (कीट मारने में असक्षम मात्रा) कीट के अंडजनन क्षमता, सिर्फ मादा कीट पैदा करने की क्षमता और अपरिपक्व अवस्था (निम्फल इनस्टार) की अवधि को बढ़ा देते है। मतलब रसिस्टेंट के अलावा रिसरजेन्स और सेकंडरी पेस्ट आउटब्रेक को बढ़ाता है। जैसे ट्राईजोफोस, फेनवलरेट, सायपरमेथ्रिन, डेल्टामेथ्रिन, लेम्बडासहलोथ्रीन्स, बाईफेन्थरीन्स आदि।

नियंत्रण के उपाय
■यूरिया खाद का सन्तुलित एवं अनुसनशित मात्रा का उपयोग एवं पोटाश की अतिरिक्त मात्रा का उपयोग करना चाहिये।



■डिब्बे में लाल निशान वाले कीटनाशक एवं सिंथेटिक पयरेथ्रोइड कीटनाशको का उपयोग न करे । इसका कम dose (sub lethal dose) होने पर भूरा माहो की अंडा देने की क्षमता बढ़ जाती है। इसलिये भी अनियंत्रित हो जाता है।

■धान के खेत मे पानी का स्तर कम नही होना चाहिये जो खेत सूखा या कम पानी रहता है उसमें भूरा माहो बहुत नुकसान करता है।

■रसायन की सही मात्रा के साथ साथ स्प्रे करने का तरीका और पानी की मात्रा को सही रखे, क्योकि मात्रा सही होने पर भी स्प्रे के तरीके और पानी की मात्रा सही नही होने से कीटनाशियों का असर कम होता है और हॉर्मोलिगोसिस को बढ़ावा मिलता है।

■अलग अलग समूह के कीटनाशकों का प्रयोग उचित मात्रा में करे।

■भुरा माहो प्रभावित क्षेत्रों में डर्टी फील्ड टेक्निक का उपयोग करे मतलब पूरे खेत या फार्म या एक बड़े भाग के कुछ भाग में कीटनाशकों का स्प्रे न करे ताकि खेत मे कीटनाशको के विरुद्ध कीट में रसिस्टेंट पैदा न हो मतलब कमजोर कीट का विकाश हो साथ ही वहां किसान के मित्र कीटो की संख्या को बढ़ावा मिले,

■भूरा माहों प्रभावित क्षेत्रों में इकोलॉजिकल इंजीनियरिंग का पालन करे मतलब एक ही किस्म के धान न लगावे, खेत के वातावरण को शस्यक्रियाओ के माध्यम से, विभिन्न किश्मो के माध्यम से, खेत या मेड में कुछ भाग में सावां खरपतवार को रहने देकर किसानों के मित्र कीटो जैसे मिरिड बग, स्यूडोगोनाटोपस स्पाइडर आदि के संख्या को बढ़ाया जाय, मित्र कीटो के बढ़वार के लिए उचित पर्यावरण /माहौल पैदा किया जाय।

वर्टिसिलियम लेकानी फंगस जैविक कीटनाशक का छिड़काव करे।

Verticillium lecanii 3.0 % AS 2 – 2.5 kg 500 लीटर पानी मे।

Metarhizium Anisopliae 1.0% WP (1x108 CFU/gm min) 2500 (formulated 500 लीटर पानी में।

Metarhizium Anisopliae 1.15% WP (1x108 CFU/gm min) Accession No. MTCC – 51732.5 kgs
(Formulated) 500 Liters of water

मेटाराइजियम एनिसोप्ली कम आर्द्रता एवं अधिक तापक्रम पर अधिक प्रभावी होता है । मेटाराइजियम एनिसोप्ली के प्रयोग से 15 दिन पहले एवं बाद में रासायनिक फफूंदनाशक का प्रयोग नहीं करना चाहिए ।

Azadirachtin 0.15% W/W Min. Neem Seed Kernel Based E.C 5ml/liter
1500 से 2500 ml को 500 लीटर पानी मे मिला कर।स्प्रे करें।

■Azadirachtin 0.03% Min. Neem Oil Based E.C. Containing 1000-1500ml 500 पानी मे।

Emamectin Benzoate 1.5% + fipronil 3.5%SC knock out नॉक आउट 20 ml प्रति पंप या 500 ml प्रति हेक्टेयर।

■Thiamethoxam12.6%SC + Lamdacyhalothrin 9.5% SC

Lock down लॉक डाउन 6-8 ml प्रति पंप या 150 से 200 ml प्रति हेक्टेयर।

■साथ मे 30 ml सील जी SIL G प्रति टैंक।






भूरा माहो के लिये जब धान की बाली निकलने की प्रारम्भिक अवस्था हो उस समय 2 से 3 माहो प्रति कन्सा दिखने पर थियोमेथोक्साम 75 % w/w SG 60 ग्राम को आधा लीटर पानी मे घोल बनाकर उसके पश्चात 500 मिलीलीटर SIL G सील जी* मिक्स करें फिर 20 किलो रेत के साथ प्रति एकड़ की दर से उपयोग करना चाहिये । खेत से पानी निकालकर समान रूप से छिड़काव करें ।




साभार
डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर
डॉ वाय. पी.एस. निराला
वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर
संकलन कर्ता

हरिशंकर सुमेर

कृषक हित मे प्रचारक








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