जैविक खेती-फसलों के लिए टीके का काम करता है जैव उर्वरक
सभी प्रकार के पौधों की अच्छी वृद्धि के लिए मुख्यतः 17 तत्वों की आवश्यकता होती है। जिनमें नत्रजन, फास्फोरस एवं पोटाश अति आवश्यक तथा प्रमुख पोषण तत्व है। यह पौधे में तीन प्रकार से उपलब्ध होती है।
- रासायनिक खाद द्वारा
- गोबर की खाद/ कम्पोस्ट द्वारा
- छिडकाव का उपयुक्त समय मघ्य अगस्त से मघ्य सित्मबर हैा
- नाइट्रोजन स्थिरीकरण एवं फास्फोरस घुलनशील जीवाणुओं द्वारा
भूमि मात्र एक भौतिक माध्यम नहीं है बल्कि यह एक जीवित क्रियाशील तन्त्र है। इसमें सूक्ष्मजीवी वैक्टिरिया, फफूंदी, शैवाल, प्रोटोजोआ आदि पाये जाते हैं इनमें से कुछ सूक्ष्मजीव वायुमण्डल में स्वतंत्र रूप से पायी जाने वाली 78 प्रतिशत नत्रजन जिन्हें पौधे सीधे उपयोग करने में अक्षम होते हैं, को अमोनिया एवं नाइट्रेट तथा फास्फोरस को उपलब्ध अवस्था में बदल देते हैं। जैव उर्वरक इन्हीं सूक्ष्म जीवों का पीट, लिग्नाइट या कोयले के चूर्ण में मिश्रण है जो पौधों को नत्रजन एवं फास्फोरस आदि की उपलब्धता बढ़ाता है। जैव उर्वरक पौधों के लिए वृद्धि कारक पदार्थ भी देते हैं तथा पर्यावरण को स्वच्छ रखने में सहायक हैं। भूमि, जल एवं वायु को प्रदूषित किये बिना कृषि उत्पादन स्तर में स्थायित्व लाते हैं इन्हें जैव कल्चर, जीवाणु खाद, टीका अथवा इनाकुलेन्ट भी कहते हैं।
जानिए कितने प्रकार के होते है जैव उर्वरक
- राइजोबियम कल्चर
- एजोटोबैक्टर कल्चर
- एजोस्पाइरिलम कल्चर
- नीलहरित शैवाल
- फास्फेटिक कल्चर
- अजोला फर्न
- माइकोराइजा
1. क्या है राइजोबियम कल्चर:
यह एक सहजीवी जीवाणु है जो पौधो की जडों में वायुमंडलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करके उसे पौधों के लिए उपलब्ध कराती है! यह खाद दलहनी फसलों में प्रयोग की जा सकती है तथा यह फसल विशिष्ट होती है, अर्थातअलग-अलग फसल के लिये अलग-अलग प्रकार का राइजोबियम जीवाणु खाद का प्रयोग होता है। राइजोबियम जीवाणु खाद से बीज उपचार करने पर ये जीवाणु खाद से बीज पर चिपक जाते हैं। बीज अंकुरण पर ये जीवाणु जड़ के मूलरोम द्वारा पौधों की जड़ों में प्रवेश कर जड़ों पर ग्रन्थियों का निर्माण करते हैं।
फसल विशिष्ट पर प्रयोग की जाने वाली राइजोबियम कल्चर:
दलहनी फसलें:मूँग, उर्द, अरहर, चना, मटर, मसूर; मटर; लोबिया; राजमा; मेथी इत्यादि।
तिलहनी फसलें: मूँगफली, सोयाबीन। अन्य फसलें: बरसीम, ग्वार आदि।
ऐसे करे प्रयोग
200 ग्राम राइजोबियम से 10-12 किग्रा० बीज उपचारित कर सकते हैं। एक पैकेट को खोले तथा 200 ग्राम राइजोबियम कल्चर लगभग 300-400 मि० लीटर पानी में डालकर अच्छी प्रकार घोल बना लें। बीजों को एक साफ सतह पर एत्रित कर जीवाणु खाद के घोल को बीजों पर धीरे-धीरे डालें, और बीजों को हाथ उलटते पलटते जाय जब तक कि सभी बीजों पर जीवाणु खाद की समान परत न बन जाये। इस क्रिया में ध्यान रखें कि बीजों पर लेप करते समय बीज के छिलके का नुकसान न होने पाये। उपचारित बीजों को साफ कागज या बोरी पर फैलाकर छाया में 10-15 मिनट सुखाये और उसके बाद तुरन्त बोयें।
2. क्या है एजोटोबैक्टर कल्चर:
यह जीवाणु खाद में पौधों के जड़ क्षेत्र में स्वतन्त्र रूप से रहने वाले जीवाणुओं का एक नम चूर्ण रूप उत्पाद है, जो वायुमण्डल की नाइट्रोजन का स्थिरीकरण कर पौधों को उपलब्ध कराते हैं। यह जीवाणु खाद दलहनी फसलों को छोड क़र सभी फसलों पर उपयोग में लायी जा सकती है। इसका प्रयोग सब्जियों जैसे- टमाटर; बैंगन; मिर्च; आलू; गोभीवर्गीय सब्जियों मे किया जाता है!
3. क्या है एजोस्पाइरिलम कल्चर:
यह जीवाणु खाद भी मृदा में पौधों के जड़ क्षेत्र में स्वतन्त्र रूप से रहने वाले जीवाणुओं का एक नम चूर्ण रूप उत्पाद है, जो वायुमण्डल की नाइट्रोजन का स्थिरीकरण कर पौधों को उपलब्ध कराते हैं। यह जीवाणु खाद धान, गन्ने;मिर्च; प्याज आदि फसल हेतु विशेष उपयोगी है।
4.क्या है नील हरित शैवाल खाद:
एक कोशिकीय सूक्ष्म नील हरित शैवाल नम मिट्टी तथा स्थिर पानी में स्वतन्त्र रूप से रहते हैं। धान के खेत का वातावरण नील हरित शैवाल के लिये सर्वथा उपयुक्त होता है। इसकी वृद्धि के लिये आवश्यक ताप, प्रकाश, नमी और पोषक तत्वों की मात्रा धान के खेत में विद्य़मान रहती है।
ऐसे करे प्रयोग
धान की रोपाई के 3-4 दिन बाद स्थिर पानी में 12.5 कि.ग्रा. प्रति हे. की दर से सूखे जैव उर्वरक का प्रयोग करें। इसे प्रयोग करने के पश्चात 4-5 दिन तक खेत में लगातार पानी भरा रहने दें। इसका प्रयोग कम से कम तीन वर्ष तक लगातार खेत में करें। इसके बाद इसे पुनः डालने की आवश्यकता नहीं होती। यदि धान में किसी खरपतवारनाशी का प्रयोग किया है तो इसका प्रयोग खरपतवारनाशी के प्रयोग के 3-4 दिन बाद ही करें।
5. क्या है फास्फेटिक कल्चर:
फास्फेटिक जीवाणु खाद भी स्वतन्त्रजीवी जीवाणुओं का एक नम चूर्ण रूप में उत्पाद है। नत्रजन के बाद दूसरा महत्वपूर्ण पोषक तत्व फास्फोरस है, जिसे पौधे सर्वाधिक उपयोग में लाते हैं। फास्फेटिक उर्वरकों का लगभग एक-तिहाई भाग पौधे अपने उपयोग मे ला पाते है। शेष घुलनशील अवस्था में ही जमीन में ही पड़ा रह जाता है, जिसे पौधे स्वयं घुलनशील फास्फोरस को जीवाणुओं द्वारा घुलनशील अवस्था में बदल दिया जाता है तथा इसका प्रयोग सभी फसलों में किया जा सकता है।
ऐसे करे फास्फेटिक कल्चर का प्रयोग :
फास्फेटिक कल्चर या पी.एस.बी. कल्चर का प्रयोग रोपा लगाने के पूर्व धान पौध की जड़ों या बीज को बोने के पहले उपचारित किया जाता है। बीज उपचार हेतु 5-10 ग्राम कल्चर/किलोग्राम बीज दर से उपचारित करें। रोपा पद्धति में धान की जड़ों को धोने के बाद 300-400 ग्राम कल्चर के घोल में डुबाकर निथार लें, बाद में रोपाई करें। पी.एस.बी. कल्चर का भूमि में सीधे उपयोग की अपेक्षा बीजोपचार या जड़ों का उपचार अधिक लाभकारी होता है।
6. एजोला फर्न
यह ठण्डे मौसम में स्थिर पानी के ऊपर तैरते हुए पाया जाता है जो दूर से देखने में हरे या लाल रंग की चटाईनुमा लगता है। इसकी पत्तियां बहुत छोटी तथा मोटी होती हैं। इन पत्तियों के नीचे छिद्रों में सहजीवी साइनो-वैक्टीरिया (एनावीना एजोली) पाया जाता है, जो नत्रजन स्थिरीकरण में सहायक है। यह जलमग्न धान के खेतों में बुवाई के एक सप्ताह बाद 10 कु०प्रति हे० की दर से उगाया जा सकता है जो दो किलोग्राम नत्रजन प्रति दिन की दर से स्थिर कर सकता है।
ऐसे करे प्रयोग
इसका प्रयोग कम्पोस्ट बनाने में अथवा 10 टन प्रति हे० की दर से हरी खाद के रूप में भूमि में मिलाकर किया जा सकता है। इसके प्रयोग से धान में खरपतवार कम पनपते हैं तथा नत्रजन के प्रयोग में 40-80 किलोग्राम तक बचत की जा सकती है।
7. माइकोराइजा
इसमें फफूंदी का पौधें की जड़ों से सहजीवन होता है, जिसमें फफूंदी अपनी जड़ों से पोषक तत्वों को अवशोषित करती है और पौधों को इन तत्वों को तुरन्त उपलब्ध कराती है कवक इसके बदले भोजन पौधे लेता है। यह दो प्रकार का होता है
- एक्टोमाइकोराइजा
- इन्डोमाइकोराइजा
माइकोराइजा से लाभ
- इसके प्रयोग से फास्फोरस, पोटाश, कैल्शियम एवं सूक्ष्म तत्वों की उपलब्धता बढ़ती है।
- इसके प्रयोग से वृद्धि वर्धक साइटोकाइनिन हार्मोन्स भी पौधों को उपलब्ध होता है।
- इसके प्रयोग से पौधों हेतु जल की उपलब्धता बढ़ता है।
जैव उर्वरकों के उपयोग से ये है लाभ:
- इसके प्रयोग सं फसलों की पैदावार में वृद्धि होती है।
- रासायनिक उवर्रक एवं विदशी मुद्रा की बचत होती है।
- ये हानिकारक या विषैले नही होते !
- मृदा को लगभग 25-30 कि.ग्रा./हे. नाइट्रोजन एवं 15-20 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर फास्फोरस उपलब्ध कराना तथा मृदा की भौतिक एवं रासायनिक दशाओं में सुधार लाना।
- इनके प्रयोग से उपज में वृद्धि के अतिरिक्त गन्ने में शर्करा की, तिलहनी फसलों में तेल की तथा मक्का एवं आलू में स्टार्च की मात्रा में बढ़ोतरी होती है।
- विभिन्न फसलों में बीज उत्पादन कार्यक्रम द्वारा 15-20 प्रतिशत उपज में वृद्धि करना।
- किसानों को आर्थिक लाभ होता है।
- इनसे बीज उपचार करने से अंकुरण शीघ्र होता है तथा कल्लों की संख्या में वृद्धि होती है।
- ये सावधानियाँ बरते:
- जैव उर्वरक को हमेशा धूप या गर्मी से बचा कर रखना चाहिये। कल्चर पैकेट उपयोग के समय ही खोलना चाहिये। कल्चर द्वारा उपचारित बीज, पौध, मिट्टी या कम्पोस्ट का मिश्रण छाया में ही रखना चाहिये। कल्चर प्रयोग करते समय उस पर उत्पादन तिथि, उपयोग की अन्तिम तिथि, फसल का नाम आदि अवश्य लिखा देख लेना चाहिये। निश्चित फसल के लिये अनुमोदित कल्चर का उपयोग करना चाहिये।
- किसान भाइयों को पी एस बी कल्चर, राइजोबियम कल्चर, एजोटोबैक्टर कल्चर कृषि विभाग के माध्यम से अनुदान पर प्रतिवर्ष रबी एवं खरीफ में उपलब्ध करवाया जाता है। निश्चित ही यह जानकरी किसान भाइयों के लिए बहुपयोगी होगी जिससे जैविक खेती को बढ़ावा मिलेगा।
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