रोग नियंत्रण:- केले के एंथ्रेक्नोज रोग का पहचान व प्रबंधन
केले को गरीबों का फल कहा जाता है. केले की बढ़ती मांग की वजह से इस की खेती का महत्त्व भी बढ़ता जा रहा है. केले की खेती में यह देखा गया है, कि किसान अकसर जानकारी न होने की वजह से थोड़ीथोड़ी कमियों के कारण केले की खेती का पूरा फायदा नहीं ले पा रहे हैं।
आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक बताएंगे कि केले में लगने वाले एंथ्रेक्नोज रोग का पहचान व प्रबंधन कैसे करे।
लक्षण एवं नुकसान:
यह बीमारी कोलेट्रॉट्राइटकम मूसे नामक फफुंफ के कारण फैलती है |यह बीमारी केले के पौधे में बढ़वार के समय लगती है| इस बीमारी के लक्षण पौधों की पत्तियों, फूलो एवं फल के छिलके पर छोटे काले गोल धब्बा के रूप मे दिखाई देते हैं। इस बीमारी का प्रकोप जून से सितंबर तक अधिक होता है क्योंकि इस समय तापक्रम ज्यादा रहता है।
प्रबंधन ऐसे करे :
1. प्रोक्लोराक्स 0.15 प्रतिशत या कार्बेंडाझिम 2 ग्राम प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर छिड़काव करें।
2. केले को 3/4 परिपक्वता पर काटना चाहिये।
3. इस रोग से फलो के गुच्छे एवं डंठल काले हो जाते हैं और बाद में सड़ने लगते है इसकी रोकथाम के लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइड तीन ग्राम प्रति लीटर में घोल का छिड़काव करें।
साभार
डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर
वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर
तकनीक प्रचारक
हम कृषकों तक तकनीक पहुंचाते हैं
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