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समसमायिक सलाह:- मार्च के महीने में होने वाले कृषि कार्य

 
समसमायिक सलाह:- मार्च के महीने में होने वाले कृषि कार्य



मार्च माह जिसे आप फाल्गुन-चैत्र भी कहते हैं, महाशिव रात्री तथा होली के त्यौहार लेकर आता है तथा मौसम में रंग भर देता है । लेख में नाप-तोल प्रति एकड़ के हिसाब से हैं ।

मार्च माह के प्रमुख कृषि कार्य इस प्रकार से हैं -

■चने और अलसी की फसल काटकर खेत को अगली फसल के लिए तैयार करते हैं।

■चारे के लिए ज्वार व लोबिया की मिश्रित बोनी करते हैं।

■गन्ने में पानी दिया जाता हैं। मक्का, बरबटी, लहसून फसल कटाई करके जानवरों को खिलाते हैं।

■अरहर, सरसों, चने और दूसरे दलहनी फसलों की कटाई की जाती है।

■खेत की जुताई करते हैं। इससे कीड़े मकोड़ों से पौधों की रक्षा होती है।

■कटी हुई फसलों को सुखाया जाता है। उसके बाद उड़ावनी करने के बाद ऐसी जगह मे रखा जाता है जहाँ नमी नहीं है।

■पहले गन्ने के खेत की सफाई होती है। और सिंचाई करते हैं। उर्वरक की जो मात्रा निर्धारित है, वह देकर सिंचाई करते हैं।

■जो गेहूँ असिंचित है, उसमें 2-3 प्रतिशत यूरिया का घोल छिड़कते हैं।

■प्याज और लहसुन की गुड़ाई की जाती है और उसके बाद मिट्टी चढ़ाते हैं।

■आलू की खुदाई करते हैं। जो सब्जियाँ तैयार हैं उनकी सामयिक तुड़ाई करते हैं।

■ग्रीष्मकाल के सब्जियों की बुवाई करते हैं - जैसे कद्दु, लौकी, भिण्डी, मूली आदि सब्जियाँ।

■पपीता के पेड़ों की सिंचाई की जाती है। केले की भी।

सिंचाई संबंधी ध्यान योग्य बातें

■फब्बारा सिंचाई ( ३०-७० प्रतिशत पानी बचत)

■सिंचाई की विधि बलई मिट्टी, ऊची-कानीची जमीन तथा कम पानी वाले क्षेत्रों में बहुत लाभदायक है। गेहूं, कपास, मूंगफली, तंबाकू, सब्जियां व फूलों की खेती में उपयुक्त हैं । पानी वर्षा की तरह गिरता है , पैदावार भी ज्यादा होती है व रोग कम लगते हैं।

टपक सिंचाई अथवा ड्रिप इरीगेशन ( ३०-७५ प्रतिशत पानी बचत)

सिंचाई की यह विधि ठोमट मिट्टी, उथली मिट्टी, ऊची-कानीची जमीन तथा पहाडी क्षेत्रों में काफी लाभदायक है । अंगूर, नींबू, गन्ना , पपीता, केला, अनार, अमरूद , अन्य फल व सब्जियों के लिए उपयुक्त है । पानी बूंद-बूंद करके गिरता है व पौधे की जड़ों तक पहुचता है । इससे रिसाव व वाष्पण ना के बराबर होता है । पानी के साथ खादें भी दी जा सकती हैं । इस विधि से ६०-८० प्रतिशत श्रम की बचत तथा पैदावार में काफी बढ़ोतरी होती है ।

कूड सिंचाई (१५-३० प्रतिशत पानी बचत)

सिंचाई की इस प्रणली से भी अच्छी पैदावार मिल जाती है। मक्का व कपास में हर दूसरी कूड में पानी लगाकर ३० प्रतिशत पानी की बचत की जा सकती है । इससे उर्वरकों की दक्षता भी बढ़ती हैं ।

शरदकालीन मक्का

शरदकालीन मक्का में झंडे आने पर बकाया नत्रजन (२ बोरे यूरिया ) पौधे के तनों के पास डालें तथा मिट्टी चढ़ा दें ताकि फसल का गिरने से बचाव हो सके । इस अवस्था में 1 हल्की सिंचाई भी करें । बाद में २० दिन के अन्तर पर सिचाई करते रहें ।

गेहूं

गेहूं की फसल फूल निकलने से लेकर दाने बनने की अवस्था में है । इस समय सिंचाई अवश्य करें नहीं तो पैदावार में भारी गिरावट आ सकती है । हल्की सिंचाई २० दिन के अन्तर पर करें । इससे गर्म हवाओं का दाने बनने पर बुरा असर कम होगा तथा तेज हवाओं से फसल गिरेगी भी नहीं । बीजाई के समय यदि बीजोपचार नहीं किया हैं तो मार्च माह में निम्नलिखित बीमारियां नजर आ सकती हैं - खुली क्यारी में गेहूं की बालियां काले पाउडर में बदल जाती हैं । करनाल बंट में पौधे के दाने काले रंग का पाउडर बन जाते हैं जिनमें मछली जैसी गंध आती हैं । रोगी पोधों को सावधानीपूर्वक निकाल कर दूर जगह में जला दें । दोनों बीमारियों की रोगरोधी किस्में लगाएं तथा वैविस्टोन २ ग्राम और २ ग्राम थीरम प्रति कि.ग्रा. बीज के हिसाब से बीजोपचार करें । काला सिट्टा बीमारी में दानों का सिरा गहरा भूरा या काला हो जाता है । इसकी रोगथाम फूल आने से लेकर फसल पकने तक ८०० ग्राम जीनेव (डाझ्थेन जेड ७८) या मैनकोजेव (डाझ्थेन एम. ४७ ) को २५० लीटर पानी में घोलकर १०-१५१ दिन के अन्तर पर छिडकाव करें । ममनी व टुण्डु सूत्र कृमि रोग हैं इनमें पौधों के तनों का आधार फूल जाता हैं । रोगग्रस्त बालियां छोटी तथा मोटी हो जाती हैं । स्वस्थ्य दानों की जगह काले रंग की ममनियां बन जाती है जिनमें हजारों की संख्या में सुत्र कृमि होते हैं । पत्तों व वालियों पर पीले रंग का चिपचिपा लेसदार पदार्थ दिखई देता हैं । वालियां प्राय: मुडी हुई तथा बांझ होती है । रोकथाम सिर्फ बीजाई से पहले ही हो सकती हैं । बोने से पहले ममनी-रहित साफ बीज को पानी में अच्छी तरह धोकर बीजें । 

बसंतकालीन गन्ना

बसंतकालीन गन्ना मार्च अंत तक बोया जा सकता हैं । गन्ने में शुरू में बढ़ोत्तरी धीमी होती है इसका लाभ उठाते हुए २ लाईनों के बीच 1 लाईन अल्प अवधि वाली वैशाखी मूंग, उर्द , लोबिया, मिंडी इत्यादि की मिश्रित फसल लगा सकते हैं । जिनके लिए अतिरिक्त खाद डालनी पडेगी । इससे अतिरिक्त फसल तो मिलती ही है तथा गन्ने में खरपतवार नियंत्रण भी रहता हैं। इन फसलों का उगाने की विधि पहले बता चुके हैं । गन्ने में दीमक, कनसुआ व जडवेधक से बचाव के लिए २.७ लीटर क्लोरपाइरिफास २० ईसी  का ८०० लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करें । गळ्याने की शरदकालीन व मोठी फसल में १/३ नत्रजन की दूसरी किश्त (१ बोरा यूरिया) मार्च अन्त तक डाल सकते हैं । यूरिया डालने से पहले खरपतवार निकाल त्नें तथा हल्की सिंचाई १० दिन के अन्तर पर करते रहें ।

जौ व आलसी

जौ व आलसी मार्च माह में पक जाती है तथा पकते ही काट लें नहीं तो फसल झड़ जाती हैं तथा गिर भी जाती हैं । अधिक पैदावार के लिए दानों को बिखरने से रोकें ।

ग्रीष्मकालीन मूंग

को मार्च में लगाया जा सकता है परन्तु सिंचाई की व्यवस्था होनी चाहिए । इसके लिए पूसा वैसाखी किस्म सर्वोत्तम है । जोकि ६७ दिनों में तथा बरसात आने से पहले पक जाती है और २.७ - ३ किंवटल पैदावार देती हैं । बाकी किस्मों में पी एस ७, पंत मूग 1, मालवीय जागृति, आशा भी लगा सकते हैं । मार्च के बाद बोने से फसल जल्दी बरसात आने की स्थिति में खराब हो सकती हैं । जायद मूग जितनी जल्दी लगे पैदावार उतनी ही जल्दी मिलती हैं । १० कि.ग्रा. स्वस्थध्य बीज को ४० ग्राम थोरम से उपचारित करने के बाद 1 पैकिट (२०० ग्राम) राइजोवियम जैव खाद से उपचारित करें । खेत तैयार करते समय १/३ बोरा यूरिया तथा २ बोरे सिंगल सुपर फास्फेट डालें । लाईनों में १० ईंच दूरी रखकर बीज बोयें फिर हल्का पलेवा लगा दें । २०-२२ दिन बाद पहली सिंचाई करें फिर १०-१७ दिन बाद हल्की सिंचाई जरूरत के हिसाब से करें । जब ७७ प्रतिशत फालियां पीली पडने लगें तो फसल कटने के लिए तैयार मानी जाती हैं । इसे दरांती से ध्यानपूर्वक काट कर ढेर लगा दें तथा पूरा सूखने पर गहाई करें । फसल कटने में देरी से दाने विखर जाते हैं तथा कम पैदावार हाथ लगती हैं ।

अरहर

सिंचित अवस्था में अरहर की टी-२१, यूपीएएस १२० किस्में मार्च में लगाई जा सकती हैं । इसके लिए अच्छे जल निकाल वाली दोमट से हल्की दोमट मिट्टी में दोहरी जुताई करके खरपतवार निकाल लें तथा १/३ बोरा यूरिया व २ बोरे सिंगल सुपर फासफेट डालकर सुहागा लगा दें । अरहर का ७-६ कि.ग्रा.स्वस्थ्य बीज लेकर राइजोवियम जैव खाद से उपचारित करके १६ ईंच दूर लाईनों में बोयें । अरहर की २ लाईनों के बीच यदि बैसाखी मूग लगाना है तो दूरी २० ईंच कर लें । बीजाई के २७ और ४७ दिन बाद खरपतवारों की रोकथाम हेतु निराई-गुडाई करें । आवश्यतानुसार हल्की सिंचाई कर सकते हैं ।

चना, मसूर व दाना मटर

चना, मसूर व दाना मटर की फसलों में ७७ प्रतिशत फलियां व पत्ते पीले हो जाएं तथा पौधे सूखने लगे तो इन फसलों को दरांती से सावधानीपूर्वक काटें तथा ढेर में रखें । पूरा सूखने पर गहाई करें इससे दाने बिखरते नहीं व पैदावार अधिक हाथ लगती हैं ।


आलू
आलू पहाडी क्षेत्रों में आलू लगाने के लिए झुलसा रोग-रोधक कुफरी ज्योति किस्म उपयुक्त है । अच्छे जल निकाल वाली दोमट मिट्टी में बीजाई के समय 1 लीटर क्लोरपाइरीफास २७ ईसी को १० कि.ग्रा. रेत में मिलाकर डालने से दीमक से सुरक्षा रहती हैं । आलू के १०-१२ किवंटल मध्यम आकार के २-३ आंख वाले टुकडों को ०.२७ प्रतिशत एमीसान ६ के घोल में ६ घंटों तक डुबोएं । बीजाई के समय काफी नमी होनी चाहिए । खेत तैयार करते समय १० टन कम्पोस्ट, 1 बोरा यूरिया, २ बोरे डी ए पी तथा 1 बोरा पोटशियम सल्फेट १० इंच दूर कूडों में डालकर मिट्टी से ढक दें फिर उपर बीज आलू के टुकडे ८ इंच की दूरी रखकर मिट्टी से ढक दें । खरपतवार नियंत्रण के लिए बीजाई के ४८ घंटों के अन्दर ७०० ग्राम आइसोप्रोटोन ७७ घुलनशील पाउडर ३०० लीटर पानी में घोलकर छिडकें । बारानी क्षेत्रों में नमी बनाएं रखने के लिए खेत पर खूखी घास बिछा दें ।

चारा वाली फसलें

रबी फसलों के कटने से खाली खेतों में निम्नलिखित चारा वाली फसलें लगा सकते हैं ।

उवार - की उजे एस २०, एच सी १३६, एच एसी १७१, एच सी २६०, एच सी ३०८ किस्में १५१० - २०० किंवटल हरा चारा देती हैं । इनके १७ कि.ग्रा. बीज को १० ईंच दूर लाईनों में लगाएं ।

बाजरा - की कोई भी किस्म के ३-४ कि.ग्रा. बीज को १२ ईंच दूर लाईनों में बोयें इससे ७०-७७ दिन बाद १६० किंवटल हरा चारा प्राप्त हो जाता हैं । दोनों फसलों में बीजाई के समय 1 बोरा यूरिया डालें तथा 1 महिने बाद आधा बोरा यूरिया और डाल दें । रेतीली मिट्टी में 1 बोरा सिंगल सुपर फासफेट भी बीजाई पर डालें ।

लोबिया - की एफ ओ एस 1, न. १०, एच एफ सी ४२-१, सी एस ८८ किस्में १००-१७० किवटल हरा चारा २ महिनों में देती हैं । इनका १६-२० कि.ग्रा. बीज को राइजोवियम जैव खाद से उपचारित करने के बाद १२ ईंच दूर लाईनों बोयें । बीजाई पर आधा बोरा यूरिया तथा ३ बोरे सिंगल सुपर फासफेट डालें ।
संकर हाथी घास - की नेपियर बाजरा संकर -२१ किस्म सारा साल हरा चारा देती हैं । इसें जड़ों या तनों के टुकुडों दवारा उगाया जाता हैं । २० ईच लम्बे २-३ गाठों वाले ११००० टुकुडे प्रति एकड़ लगते हैं। आधा टुकडा जमीन में तथा आधा हवा में रखकर ३० ईंच लाईनों में तथा २४ ईंच पौधे में दूरी रखें । रोपाई से पहले खेते में २० गाडी सडे-गले गोबर की खाद दें । हर कटाई के बाद 1 बोरा यूरिया डालें । गर्मियों में १०-१७ दिन के अन्तर पर सिंचाई करते रहें ।

फल
बागों में अधिकतर पेड लगाने, काट-छांट व खाद-पानी देने का कार्य पूरा हो चुका है यदि नहीं तो शीघ्र कर लीजिए । मार्च में बागों में पानी जरूर दें । बेर के बीज भी मार्च में नर्सरी में बोये जा सकते हैं । आम के बागों में मिलिबग, तना छेदक व आम का तेला (हापर) के नियंत्रण के लिए मिथाइल पैराथियान प्रयोग करें । आम में ब्लैक टिप रोग ईट के भट्ठों की जहरीली गैस के कारण होता हैं । इससे फल बेढयो तथा पहले पक जाते हैं जिनका एक सिरा काला होता हैं । रोगथाम के लिए वोडों मिश्रण (4:4:50) या ०.३ प्रतिशत कोपर आक्सीक्लोराइड -७० का स्प्रे करें । आम तथा लीचियों के बागों में सिंचाई समय-समय पर करते रहें इससे फल पैदावार अच्छी होगी । तरबूज व खरबूज भी मार्च में लगा सकते हैं ।

सब्जियां

मार्च के पहले हफ्ते तक घिया, कछू करेला, तोरी, मिडी लगा सकते हैं । पिछले माह लगी फसलों में आधा बोरा यूरिया डालें तथा हर हपते एक अच्छी सिंचाई करते रहें इससे समय पर फूल तथा काफी मात्रा में फल आएगें । यदि पाधों पर पाउडरी मिल्डयु (पत्तों पर सफेद पाउडर) नजर आए तो २०० ग्राम वैविस्टिन को २०० लीटर पानी में घोलकर स्प्रे करें । डाउनी मिल्डयु ( पत्तों की निचली सतह पर बैंगनी - भूरे रंग के धब्बे ) के लिए ४०० ग्राम डाइथेन एम ४७ को २०० लीटर पानी में घोलकर छिडकें । स्प्रे १७ दिन बाद फिर दोहराएं । इस मौसम में कीड़े कम ही लगते हैं फिर भी कोई नजर आयें तो २०० ग्राम एण्डोसल्फान ३७ ईसी १०० लीटर पानी में घोलकर फसल पर स्प्रे करें । उपरोक्त स्प्रे खरबूज व तरबूज फलों की बेलों पर भी किया जा सकता हैं । बैगन व टमाटर - की नर्सरी जो फरवरी में लगाई थी अब रोपाई के लिए तैयार हैं । बाकी क्रियायें पिछले लेखों में दी हैं । रोपाई के तुरंत बाद सिंचाई करें । पुरानी फसल में हपते में एक बार सिंचाई अवश्य करें ।

अदरक

मार्च माह में अदरक के ७ कि.ग्रा. स्वस्थ कंदों को १८ ईंच लाईनों में तथा १२ इंच पौधों में दूरी रखकर लगाएं । खेत तैयारी पर १० टन कम्पोस्ट, 1 बोरा यूरिया, 1 बोरा डी ए पी तथा 1 बोरा पोटाशियम सल्फेट डालें । २ महिने बाद 1 बोरा यूरिया गुडाई के समय दें ।

मशरूम

उगाने के लिए हल्के भीगे साफ गेहूं के भूसे या धान के पुआल में खुम्भ के बीज डालने से ३-४ सप्ताह बाद खुम्भ तोडने लायक हो जाते हैं । मशरूम उगाना बहुत आसान है तथा काफी आमदनी देती हैं।

फूल

बंसत ऋतु आने पर चारों तरफ फूलों की बहार छाई हुई हैं। फूलों के राजा गुलाब तो पूरी मस्ती पर हैं । गलेडियोलस भी निखार पर है । फूलों की सुंदरता का आंनद लें तथा पैसा भी कमाएं गर्मी वालें फूलों की बीजाई भी इस माह पूरी कर लें । इनमें प्रमुख हैं - बालसम, फ्रैंच गैंदा, पेटूनिया, पोरचुलाका, साल्विया, सुरजमुखी, जिनियां, वरवीना इत्यादि । बीजाई के बार नियमित रूप से नर्सरी की सिंचाई करते रहे तथा निराई-गोडाई करके खरपतवार निकाल दें । फूलदार पेड व झाड़िया तथा हैज लगाना पूरा कर लें । मई-जून में लगने वाले घास के लान की जमीन तैयारी भी मार्च से शुरू कर दें ।

स्रोत: जेवियर सेवा संस्थान, राँची

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धान की खेती में खरपतवार का रसायनिक नियंत्रण धान की फसल में खरपतवारों की रोकथाम की यांत्रिक विधियां तथा हाथ से निराई-गुड़ाईयद्यपि काफी प्रभावी पाई गई है लेकिन विभिन्न कारणों से इनका व्यापक प्रचलन नहीं हो पाया है। इनमें से मुख्य हैं, धान के पौधों एवं मुख्य खरपतवार जैसे जंगली धान एवं संवा के पौधों में पुष्पावस्था के पहले काफी समानता पाई जाती है, इसलिए साधारण किसान निराई-गुड़ाई के समय आसानी से इनको पहचान नहीं पाता है। बढ़ती हुई मजदूरी के कारण ये विधियां आर्थिक दृष्टि से लाभदायक नहीं है। फसल खरपतवार प्रतिस्पर्धा के क्रांतिक समय में मजदूरों की उपलब्धता में कमी। खरीफ का असामान्य मौसम जिसके कारण कभी-कभी खेत में अधिक नमी के कारण यांत्रिक विधि से निराई-गुड़ाई नहीं हो पाता है। अत: उपरोक्त परिस्थितियों में खरपतवारों का खरपतवार नाशियों द्वारा नियंत्रण करने से प्रति हेक्टेयर लागत कम आती है तथा समय की भारी बचत होती है, लेकिन शाकनाशी रसायनों का प्रयोग करते समय उचित मात्रा, उचित ढंग तथा उपयुक्त समय पर प्रयोग का सदैव ध्यान रखना चाहिए अन्यथा लाभ के बजाय हानि की संभावना भी रहती है। डॉ गजेंद्र चन्

समसामयिक सलाह-" गर्मी व बढ़ती उमस" के साथ बढ़ रहा है धान की फसल में भूरा माहो का प्रकोप,जल्द अपनाए प्रबंधन के ये उपाय

  धान फसल को भूरा माहो से बचाने सलाह सामान्यतः कुछ किसानों के खेतों में भूरा माहों खासकर मध्यम से लम्बी अवधि की धान में दिख रहे है। जो कि वर्तमान समय में वातारण में उमस 75-80 प्रतिशत होने के कारण भूरा माहो कीट के लिए अनुकूल हो सकती है। धान फसल को भूरा माहो से बचाने के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ गजेंद्र चंद्राकर ने किसानों को सलाह दी और अपील की है कि वे सलाह पर अमल करें। भूरा माहो लगने के लक्षण ■ गोल काढ़ी होने पर होता है भूरा माहो का प्रकोप ■ खेत में भूरा माहो कीट प्रारम्भ हो रहा है, इसके प्रारम्भिक लक्षण में जहां की धान घनी है, खाद ज्यादा है वहां अधिकतर दिखना शुरू होता है। ■ अचानक पत्तियां गोल घेरे में पीली भगवा व भूरे रंग की दिखने लगती है व सूख जाती है व पौधा लुड़क जाता है, जिसे होपर बर्न कहते हैं, ■ घेरा बहुत तेजी से बढ़ता है व पूरे खेत को ही भूरा माहो कीट अपनी चपेट में ले लेता है। भूरा माहो कीट का प्रकोप धान के पौधे में मीठापन जिसे जिले में गोल काढ़ी आना कहते हैं । ■तब से लेकर धान कटते तक देखा जाता है। यह कीट पौधे के तने से पानी की सतह के ऊपर तने से चिपककर रस चूसता है। क्या है भू

सावधान -धान में (फूल बालियां) आते समय किसान भाई यह गलतियां ना करें।

  धान में फूल बालियां आते समय किसान भाई यह गलतियां ना करें। प्रायः देखा गया है कि किसान भाई अपनी फसल को स्वस्थ व सुरक्षित रखने के लिए कई प्रकार के कीटनाशक व कई प्रकार के फंगीसाइड का उपयोग करते रहते है। उल्लेखनीय यह है कि हर रसायनिक दवा के छिड़काव का एक निर्धारित समय होता है इसे हमेशा किसान भइयों को ध्यान में रखना चाहिए। आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय बताएंगे कि धान के पुष्पन अवस्था अर्थात फूल और बाली आने के समय किन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है, ताकि फसल का अच्छा उत्पादन प्राप्त हो। सुबह के समय किसी भी तरह का स्प्रे धान की फसलों पर नहीं करें कारण क्योंकि सुबह धान में फूल बनते हैं (Fertilization Activity) फूल बनाने की प्रक्रिया धान में 5 से 7 दिनों तक चलता है। स्प्रे करने से क्या नुकसान है। ■Fertilization और फूल बनते समय दाना का मुंह खुला रहता है जिससे स्प्रे के वजह से प्रेशर दानों पर पड़ता है वह दाना काला हो सकता है या बीज परिपक्व नहीं हो पाता इसीलिए फूल आने के 1 सप्ताह तक किसी भी तरह का स्प्रे धान की फसल पर ना करें ■ फसल पर अग