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जैविक खेती:- ट्राइकोडर्मा फसलों के लिए है वरदान, किसान भाई ऐसे करें उपयोग

ट्राइकोडर्मा फसलों के लिए है वरदान, किसान भाई ऐसे करें उपयोग


ट्राईकोडर्मा क्या है? आइए जानते हैं विस्तार से इसके बारे में. यह एक घुलनशील जैविक फफुंदीनाशक और कवकनाशी है जो ट्राइकोडर्मा विरडी या ट्राइकोडर्मा हरजिएनम पर आधारित है. ट्राइकोडर्मा फसलों में जड़ तथा तना गलन/सडन उकठा (फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोर्म्, स्केल रोसिया डायलेकटेमिया) जो फफूंद जनित है, में फसलों पर लाभप्रद पाया गया है. धान,गेंहू, दलहनी फसलें, गन्ना, कपास, सब्जियों फलों एवं फल व्रक्षो पर रोगों से यह प्रभावकारी रोकथाम करता है. यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण एवं कृषि की दृष्टि से उपयोगी है. यह एक जैव-कवकनाशी है और विभिन्न प्रकार की कवकजनित बीमारियों को रोकने में मदद करता है. इससे रासायनिक कवकनाशी के ऊपर निर्भरता कम हो जाती है. इसका प्रयोग प्रमुख रूप से रोगकारक जीवों की रोकथाम के लिये किया जाता है. 

इसका प्रयोग प्राकृतिक रूप से सुरक्षित माना जाता है क्योंकि इसके उपयोग का प्रकृति में कोई दुष्प्रभाव देखने को नहीं मिलता है. यह प्रकृति में रोग कारकों पर सीधा आक्रमण कर उसे अपना भोजन बना लेता है या उन्हें अपने विशेष एन्ज़ाइम जैसे काइटिनेज, β-1,3, ग्लूकानेज द्वारा तोड़ देता है. इस प्रकार रोगकारक जीवों की संख्या तथा उनसे होने वाले दुष्प्रभाव को कम करके पौधों की रक्षा करता है।



कृषि किसान भाईयों का मुख्य़ आधार है. किसान भाई अपना जीवनयापन के लिए खेती करते है. इस दौरान कभी-कभी उनकी फसल को कुछ रोग बर्बाद कर देते है. जिससे उन्हें भारी नुकसान होता है. ऐसे में किसान भाई ट्राइकोडर्मा का उपयोग कर सकते है. यह एक घुलनशील जैविक फफूंदी नाशक दवा होती है. जिसको गेहूं, धान, गन्ना, दलहनी, औषधीय और सब्जियों की फसल में उपयोग किया जाता है. इससे फसल में लगने वाले फफूंद जनित तना गलन, उकठा आदि रोगों से निजात मिलती है. ये दवा फलदार वृक्षों के लिए भी लाभदायक साबित है.
आपको बता दें कि मिट्टी में कई तरह के रोग पाए जाते है. जैसे आर्द्र गलन, जड़ गलन, उकठा, सफेद तनागलन, फल सड़न, तना झुलसा, जीवाणुवीय उकठा और मूल ग्रंथि मुख्य हैं. ट्राइकोडर्मा रोग उत्पन्न करने वाले कारकों रोकता है. बताया जाता है कि ट्राइकोडर्मा, फ्यूजेरियम, पिथियम, फाइटोफ्थोरा, राइजोक्टोनिया, स्क्लैरोशियम, स्कलैरोटिनिया आदि मृदा जनित रोगों को मारता है, साथ ही पौधों की रोगों से सुरक्षा करता है।

ट्राइकोडर्मा का उपयोग
किसान भाई अपनी फसलों को रोगों से बचाने के लिए कई तरह के रासायनिक दवाओं का उपयोग करते है. जिससे फसल की लागत बढ़ जाती है, लेकिन फसलों में इसका प्रभाव भी किसी न किसी रूप में रहता है. आधुनिक तकनीकी की बात करें, तो किसानों के लिए ट्राईकोडर्मा का उपचार बहुत  फायदेमंद है. इसकी कीमत और लागत भी रासायनिक दवाईयों से काफी कम है.

इसके लिए लगभग 5 से 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा को लगभग 25 मिली लीटर पानी में घोल लें. इस घोल को एक किलोग्राम बीज को शोधित करने के लिए उपयोग करें. इसके अलावा धान की नर्सरी और अन्य कन्द वाली फसलों में लगभग 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा का घोल एक लीटर पानी में बना लें. अब इस घोल में नर्सरी पौध को आधे घंटे तक भीगा दें. इसके बाद रोपाई कर दें. तो वहीं 1 किलो ग्राम ट्राइकोडर्मा सौ लीटर पानी में घोल लें. इसका छिड़काव प्रति एकड़ खेत करें. अगर भूमि शोधन करना है, तो लगभग 1 किलो ग्राम ट्राइकोडर्मा, 100 किलो ग्राम गोबर की खाद में मिला दें. इसको लगभग एक सप्ताह तक छाया में रख दें. अब प्रति एकड़ के हिसाब से खेतों में मिला दें. किसान भाई इसको अपना कर फसल का उत्पादन अच्छा कर सकते है.



सावधानियां
■अगर आपने मिट्टी में ट्राईकोडर्मा का उपयोग किया है, तो लगभग 4 से 5 दिन बाद तक रासायनिक फफूदीनाशक का उपयोग नहीं करना चाहिए.

■सूखी मिट्टी में ट्राईकोडर्मा का उपयोग नहीं करना चाहिए.

■ट्राईकोडर्मा के विकास और अस्तित्व के लिए नमी बहुत आवश्यक है.

■ट्राईकोडर्मा उपचारित बीज को ज्यादा धूप में नहीं रखना चाहिए.

■ट्राईकोडर्मा द्वारा उपचारित गोबर की खाद को अधिक समय तक नहीं रखना चाहिए.

■इसका उपयोग क्षारीय भूमि में कम लाभदायक होता है.


संकलनकर्ता
हरिशंकर सुमेर

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