जानिए कैसे वैज्ञानिक विधि से होता है मधुमक्खी का पालन और कैसे बन सकता है कृषको के आय का अतिरिक्त स्त्रोत
जानिए कैसे वैज्ञानिक विधि से होता है मधुमक्खी का पालन और कैसे बन सकता है कृषको के आय का अतिरिक्त स्त्रोत
वैज्ञानिक तरीके से विधिवत मधुमक्खी पालन का काम अठारहवीं सदी के अंत में ही शुरू हुआ। इसके पूर्व जंगलों से पारंपरिक ढंग से ही शहद एकत्र किया जाता था। पूरी दुनिया में तरीका लगभग एक जैसा ही था जिसमें धुआं करके, मधुमक्खियां भगा कर लोग मौन छत्तों को उसके स्थान से तोड़ कर फिर उसे निचोड़ कर शहद निकालते थे। जंगलों में हमारे देश में अभी भी ऐसे ही शहद निकाली जाती है।
वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ. रंजीत सिंह राजपूत बताते है कि मधुमक्खी पालन का आधुनिक वैज्ञानिक तरीका पष्चिम की देन है। यह निम्न चरणों में विकसित हुआ :
सन् 1789 में स्विटजरलैंड के फ्रांसिस ह्यूबर नामक व्यक्ति ने पहले-पहल लकड़ी की पेटी (मौनगृह) में मधुमक्खी पालने का प्रयास किया। इसके अंदर उसने लकड़ी के फ्रेम बनाए जो किताब के पन्नों की तरह एक-दूसरे से जुड़े थे।
सन् 1851 में अमेरिका निवासी पादरी लैंगस्ट्राथ ने पता लगाया कि मधुमक्खियां अपने छत्तों के बीच 8 मिलिमीटर की जगह छोड़ती हैं। इसी आधार पर उन्होंने एक दूसरे से मुक्त फ्रेम बनाए जिस पर मधुमक्खियां छत्ते बना सकें।
सन् 1857 में मेहरिंग ने मोमी छत्ताधार बनाया। यह मधुमक्खी मोम की बनी सीट होती है जिस पर छत्ते की कोठरियों की नाप के उभार बने होते हैं जिस पर मधुमक्खियां छत्ते बनाती हैं।
सन् 1865 में ऑस्ट्रिया के मेजर डी. हुरस्का ने मधु-निष्कासन यंत्र बनाया। अब इस मशीन में शहद से भरे फ्रेम डाल कर उनकी शहद निकाली जाने लगी। इससे फ्रेम में लगे छत्ते एकदम सुरक्षित रहते हैं जिन्हें पुनः मौन पेटी में रख दिया जाता है।
सन् 1882 में कौलिन ने रानी अवरोधक जाली का निर्माण किया जिससे बगछूट और घरछूट की समस्या का समाधान हो गया। क्योंकि इसके पूर्व मधुमक्खियां, रानी मधुमक्खी सहित भागने में सफल हो जाती थीं। लेकिन अब रानी का भागना संभव नहीं था।
कृषि विज्ञान केंद्र जिला कोरिया छत्तीसगढ़ के कृषि वैज्ञानिक विजय अनंत के मुताबिक
मधुमक्खी पालन से किसानो को कृषि पशुपालन के अतिरिक्त धन प्राप्त होगा वही दूसरी ओर फसल उत्पादन मे भी बढ़ोत्तरी होगी | आज कल कृषकों की जोत भी दिन प्रतिदिन सिकुड़ती जा रही है ऐसे विषम परिस्थितियों मे छोटे एवं मध्यम किसान अपने सीमित संसाधनों मे ही आर्थिक स्तर सुधारने तथा वार्षिक आय बढ़ाने के लिए मधुमक्खी पालन भी एक महत्वपूर्ण विकल्प है | गांव मे रहने वाले कोई भी व्यक्ति अपने समान्य काम के साथ साथ आसानी से मधुमक्खी पालन कर सकते हैं | मधुमक्खी प्राकृतिक रूप से पेड़, झाड़ीयों एवं चट्टानों मे, लकड़ी के खोखले भाग, खाली टीन के डब्बों, सुनसान मकानों एवं अन्य सुरक्षित अंधेरे स्थानों में रहना पसंद करते हैं |
मधुमक्खी पालन से किसानो को कृषि पशुपालन के अतिरिक्त धन प्राप्त होगा वही दूसरी ओर फसल उत्पादन मे भी बढ़ोत्तरी होगी | आज कल कृषकों की जोत भी दिन प्रतिदिन सिकुड़ती जा रही है ऐसे विषम परिस्थितियों मे छोटे एवं मध्यम किसान अपने सीमित संसाधनों मे ही आर्थिक स्तर सुधारने तथा वार्षिक आय बढ़ाने के लिए मधुमक्खी पालन भी एक महत्वपूर्ण विकल्प है | गांव मे रहने वाले कोई भी व्यक्ति अपने समान्य काम के साथ साथ आसानी से मधुमक्खी पालन कर सकते हैं | मधुमक्खी प्राकृतिक रूप से पेड़, झाड़ीयों एवं चट्टानों मे, लकड़ी के खोखले भाग, खाली टीन के डब्बों, सुनसान मकानों एवं अन्य सुरक्षित अंधेरे स्थानों में रहना पसंद करते हैं |
मधुमक्खी पालन के विकास में कुछ महत्वपूर्ण कारक है किस क्षेत्र में कितने मधुमक्खी बॉक्स रखे जाये और उनके द्वारा कितना मधु संचित किया जाये आदि प्रश्न निर्भर करता है | पौधों, फसलों मे मकरंद की मात्रा अधिक होने पर भी उसका संचय जलवायु, मौसम तथा मृदा आदि कारक द्वारा निर्भर होता है |
मधुमक्खी के उत्पाद एवं उनका उपयोग :-
1.शहद का उपयोग औषधि के रूप में होता है |
2. मोम का उपयोग बिजली उद्योग, गोला बारूद, खेल का समान, औषधि निर्माण, पालिश उद्योग, सौंदर्य प्रसाधन, पेंसिल निर्माण आदि
3. परागकण इसका उपयोग मनुष्य भोजन मे कर्ता है
4. रायल जैली का उपयोग स्वास्थ्य वर्धक मे होता है |
5. गोंद का उपयोग औषधि निर्माण में होता है
6. जहर (विष ) का उपयोग लकवा, डिप्रेशन, कैंसर आदि बीमारी मे होता है
भारत मुख्यतः 4 प्रकार के मधुमक्खी पालन करते हैं
1 भारतीय मधुमक्खी - एक बक्से से एक वर्ष में लगभग 10-15 किलो तक शहद निकाल सकते हैं इसको कम पालते है
2 बड़ी मक्खी ( एपिस डारसेटा ) इसके एक छत्ते से 30-50 केजी शहद ले सकते हैं लेकिन ये गुस्सैल होती है इसे आसानी से नहीं पाल सकते
3 छोटी मक्खी ( एपिस फलोरिया) इसका पालन नहीं करते क्युकी ये बहुत छोटी और एक छत्ते से 200-250 ग्राम शहद मिलती है
4. यूरोपियन मधुमक्खी ( एपिस मेलीफेरा ) ये पूरे विश्व में ज्यादा पाले जाने वाली मधुमक्खी है इसके एक बॉक्स से प्रति वर्ष 20-40 किलो तक शहद प्राप्त कर सकते हैं |
मधुमक्खी का प्राकृतिक स्त्रोत
फलदार वृक्ष मे - अमरूद, जामुन, बेर, नींबु, महुआ, कटहल, आम, आदि
खाधान्न फसले - सरसों, अलसी, सूरजमुखी, कुसुम, अरहर, मटर, चना मसूर उडद मूंग बरसीम आदि सब्जी फसल मे - लौकी कुम्हडा तोराई करेला मिर्च भिंडी टमाटर धनिया सेम तरबूज आदि फूल वाली फसल मे गेंदा जीनीया डहेलिया दवा देने वाले पौधे - सफेद मुसली अश्वागंधा बहेडा हर्रा बेल जंगली पौधे - शीशम बबूल नीम अर्जुन साल पलास सागौन तेंदु चार सेमल मधुमक्खी को भोजन के अभाव में कृत्रिम रूप से चीनी का चासनी पानी एवं शक्कर की बराबर मात्रा (1:1) गर्मी के दिनों पानी की 2 भाग से चासनी बनाकर देने से मक्खी कहीं दूसरे जगह भाग कर नहीं जाती मधुमक्खी पालन किसी भी मौसम में शुरू ना करे जिस समय अधिकतर पौधों मे फूल अवस्था आते हो उसी समय कार्य को शुरू करे और सीखने/अनुभव के लिए2-4 बॉक्स से ही शुरू करे इसके बारे में जानकारी के लिए किताब पत्रिका, बुलेटिन, यूट्यूब आदि का प्रयोग किया जा सकता है| मधु मक्खी पालन मे विशेष सावधानी चींटी, कीड़ा, छिपकलियां, भालू, जानवर मौसम की तेज बारिश, धूप, तेज हवा, आदि को ध्यान रखे |
साभार
कृषि विज्ञान केंद्र
जिला कोरिया छत्तीसगढ़
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