लता करंज
लता करंज को हमारे मालवांचल में घटार/गटारन कहते है... बचपन मे स्कूली दिनों में इसके बीजो को शीलपट्टी पर घिसकर दूसरे के पैर या जंघा पर चिपकाते थे,जब अधिकतर नेकर ही पहनते थे...यह घिसने पर बहुत गर्म हो जाती थी,जब चिपकाते तो उसकी दर्द भरी आवाज सबको आंनदित कर देती थी...बचपन के साथ यह पेड़ भी हमारे गांव से गायब हो चुका हैं....जैवविविधता की दृष्टि से पिछले वर्ष इसके कुछ पौधे लगाए हैं जो अब चेत गए है..।
पिछली जंगल दर्शन यात्रा में यह पेड़ हमको झाबुआ अंचल में देखने को मिला,वैसे लता करन्ज पूरे भारतवर्ष में पाए जाते हैं,पर अब इसकी उपलब्धता कम होने लगी हैं....यह एक झाड़ीदार लता होती हैं जो अन्य पेडों की सहायता लेकर 25 से 30 फीट तक लंबे फेल जाते हैं..लता करन्ज पर बारिश के महीनों में फूल आते हैं जो गुच्छों में लगते हैं तथा फूलों रंग पीला होता है एवं इस पेड़ के फल फलियों के रूप में करंज की फलियों के समान होते हैं किन्तु आकर में करंज के फलों (फलियों) से बड़े होते हैं.... फलियों की बाहरी सतह पर तीव्र काँटे होते हैं.... फलियों के सूख जाने पर इन फलियों से 1से 2 बीज निकलते हैं जो स्लेटी, भूरे रंग के चिकने और चमकीले होते हैं... इस पेड़ के पूरे तने पर मुड़े हुए बहुत अधिक संख्या में कांटे होते हैं....।
लता करन्ज (Caesalpinia Crista) को कट करंज, लता करंज, लात करंज,लता करंज, कंटकी, करंज, कोंटेकी, करंजा, कुवेरक्षी, विटप करंज आदि अनेक क्षेत्रीय नामों से जाना जाता हैं....।
#औषधीय_गुण
इस पौधे की पत्तियां,फूल, फल, जड़, छाल सहित पौधे के सभी अंग औषधीय गुणों से युक्त हैं... इस पौधे के विभिन्न भागों का उपयोग विभिन्न प्रकार की बीमारियों जैसे - अंडकोषवृद्धी, अंडकोष में पानी भर जाना, या शरीर के किसी भी भाग में पानी भर जाना, आधे सिर का दर्द, गंजापन, मिर्गी, आँखो के रोग, दांतों के रोग, खांसी, मंदाग्नि(पाचन शक्ति का कमजोर होना) यकृत (लीवर) रोग, पेट के कीड़े, गुल्म रोग, वात शूल, बवासीर, मधुमेह, वमन (उल्टी), वीर्य विकार, सुजाक रोग, वातज शूल, पथरी, भगन्दर, चर्म रोग, कुष्ठ रोग, घाव, चेचक रोग, पायरिया, रतिजन्य रोग, आदि रोगों के इलाज के लिए इसका उपयोग वर्षो से होता रहा हैं...।
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नंदकिशोर प्रजापति कानवन9893777768
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