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जैविक खेती:-21 घरेलू नुस्खे जिसे किसान भाई आसानी से घर पर बनाकर जहरमुक्त खेती कर सकते है।

 
जैविक खेती:-21 घरेलू नुस्खे जिसे किसान भाई आसानी से घर पर बनाकर जहरमुक्त खेती कर सकते है।

अधिकांश मानवीय बीमारियों का कारण जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ कृषि में उपयोग हो रहे रसायन भी हैं। इनमें मुख्य रूपसे मानव द्वारा उपयोग की जाने वाली विषाक्त सब्जियां,अनाज एवं फल हैं जिनकी सुरक्षा हेतु अंधाधुंध रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है। इन कीटनाशकों के प्रयोग से अत्यधिक प्रयोग से इनके प्रति कीटों में प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है और कुछ प्रजातियों में तो प्रतिरोधक क्षमता विकसित भी हो चुकी है।

इसके अलावा रासायनिक कीटनाशक अत्यधिक महगे होने के कारण किसानों को इन पर अत्यधिक खर्च करना पड़ता है। कीटनाशकों के अत्यधिक प्रयोग से फसलों, सब्जियों व फलों की गुणवत्ता पर भी विपरीत असर पड़ता है। इन वस्तुस्थिति के फलस्वरूप वैज्ञानिकों का ध्यान प्राकतिक एवं जैविक कीटनाशकों एवं रोगनाशकों की ओर गया है जो न केवल सस्ते हैं बल्कि जिनके उपयोग से तैयार होने वाली फसल के किसी प्रकार के रासायनिक दुष्प्रभाव भी नहीं रहते हैं।
आज की कड़ी में हम  विभिन्न रोगों व कीटों के नियंत्रण हेतु कुछ उपयोगी व सरल तरीकों के बारे में जानेंगे जो कि किसानों के लिये निश्चित ही बहुपयोगी होगी।

1.नीम की पत्तियां

■एक एकड़  जमीन में छिड़काव के लिए 10-12 किलो पत्तियों का प्रयोग करें| 
■इसका प्रयोग कवक जनित रोगों, सुंडी, माहू,
 इत्यादि हेतु अत्यंत लाभकारी होता है| 
■10 लीटर घोल बनाने के लिए 1 किलो पत्तियों को रात भर पानी में भिंगो दें| 
■अगले दिन सुबह पत्तियों को अच्छी तरह कूट कर या पीस कर पानी में मिलकर पतले कपड़े से छान लें|
■शाम को छिड़काव से पहले इस रस में 10 ग्राम देसी साबुन घोल लें|

2.नीम की गिरी

■नीम की गिरी का 20 लीटर घोल तैयार करने के लिए 1 किलो नीम के बीजों के छिलके उतारकर गिरी को अच्छी प्रकार से कूटें| 
■ध्यान रहे कि इसका तेल न निकले|
■ कुटी हुई गिरी को एक पतले कपड़े में बांधकर रातभर 20 लीटर पानी में भिंगो दें|
■अगले दिन इस पोटली को मसल-मसलकर निचोड़ दें व इस पानी को छान लें|
■ इस पानी में 20 ग्राम देसी साबुन या 50ग्राम रीठे का घोल मिला दें|
■ यह घोल दूध के समान सफेद होना चाहिए| इस घोल को कीट व फुफंद नाशक के रूप में प्रयोग किया जाता है|

3.नीम का तेल

■नीम के तेल का 1 लीटर घोल बनाने के लिए 15 से 30 मि०ली० तेल को 1 लीटर पानी में अच्छी तरह घोलकर इसमें 1 ग्राम देसी साबुन या रीठे का घोल मिलाएं| 
■एक एकड़ की फसल में 1 से 3 ली० तेल की आवश्यकता होती है|
■ इस घोल का प्रयोग बनाने के तुरंत बाद करें वरना तेल अलग होकर सतह पर फैलने लगता है जिससे यह घोल प्रभावी नहीं होता | 
■नीम के तेल की छिड़काव से गन्ने की फसल में तना बंधक व सीरस बंधक बीमारियों को नियंत्रित किया जा सकता है| 
■इसके अतिरिक्त नीम के तेल कवक जनित रोगों में भी प्रभावी है|

4.नीम की खली कवक (फुफन्दी)

■कवक (फुफन्दी) व मिट्टी जनित रोगों के लिए एक एकड़ खेत में 40 किलो नीम की खली को पानी व गौमूत्र में मिलाकर खेत की जुताई करने पहले डालें ताकि यह अच्छी तरह मिट्टी में मिल जाए|

5.नीम की खली का घोल

■एक एकड़ की खड़ी फसल में 50 लीटर नीम की खली का घोल का छिड़काव करें|
■ 150 लीटर घोल बनाने के लिए किलोग्राम नीम की खली को 50 लीटर पानी में एक पतले कपड़े में पोटली बनाकर रातभर के लिए भिगो दें| 
■अगले दिन इसे मसलकर व छानकर 50 यह बहुत ही प्रभावकारी कीट व रोग नियंत्रक है|

6.डैकण (बकायन)

■पहाड़ों में नीम की जगह डैकण को प्रयोग में ला सकते हैं|
■ एक एकड़ के लिए डैकण की 5 से 6 किलोग्राम पत्तियों की आवश्यकता होती है|
■ छिड़काव पत्तियों की दोनों सतहों पर करें|  ■नीम या डैकण पर आधारित कीटनाशकों का प्रयोग हमेशा सूर्यास्त के बाद करना चाहिए क्योंकि सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणों के कारण इसके तत्व नष्ट होने का खतरा होता है|
■ साथ ही शत्रु कीट भी शाम को ही निकलते हैं जिससे इनको नष्ट किया जा सकता है|
■ डैकण के तेल, पत्तियों, गिरी व खल के प्रयोग व छिड़काव की विधि भी नीम की तरह है|

7.करंज (पोंगम)

■करंज फलीदार पेड़ है जो मैदानी इलाकों में पाया जाता है| 
■इसके बीजों से तेल मिलता है जो कि रौशनी के लिए जलाने के काम भी आता है|
■ इसकी खल को खाद व पत्तियों को हरी खाद के रूप में प्रयोग किया जाता है| 
■इसका घोल बनाने के लिए पत्तियां, गिरी, खल व तेल का प्रयोग करते हैं| 
■यह खाने में विशाक्त व उपयोगी कीट प्रतिरोधक व फुफंदी नाशक है|
■ करंज के तेल, पत्तियों, गिरी व खल का घोल बनाने के लिए मात्रा व छिड़काव की विधि भी नीम तरह ही है|

8.गोमूत्र

■गोमूत्र कीटनाशक के साथ-साथ पोटाश व नाइट्रोजन का प्रमुख स्रोत भी है| 
■इसका ज्यादातर प्रयोग फल, सब्जी तथा बेलवाली फसलों को कीड़ों व बीमारियों से बचाने के लिए किया जाता है| 
■गोमूत्र को 5 से 10 गुना पानी के साथ मिलाकर छिड़कने से माहू, सैनिक कीट व शत्रु कीट मर जाते हैं|

9.लहसुन

■मिर्च, प्याज आदि की पौध में लगने वाले कीड़ों की रोकथाम के लिए लहसुन का प्रयोग किया जाता है| 
■इसके लिए 1 किलो लहसुन तथा 100 ग्राम देसी साबुन को कूटकर 5 ली० पानी के साथ मिला देतें हैं व फिर पानी को छानकर इसका छिड़काव करते है|

10. सरसों  की खली

■यह बहुत ही प्रभावकारी फुफन्दी नियंत्रक है हेतु एक एकड़ में 40 किलो सरसों की खली को बुवाई से पहले खेतों में डालें|

11.खट्टा मठठा

■यह बहुत ही प्रभावकारी फुफन्द नियंत्रक है| एक सप्ताह पुराने 2 लीटर खट्टे मट्ठे का 30 लीटर ■पानी में घोल कर इसका खड़ी फसल पर छिड़काव करना चाहिए| 
■एक एकड़ खेत में 6 लीटर खट्टा मट्ठा पर्याप्त होता है|

12.तम्बाकू व नमक

■सब्जियों की फसल में किसी भी कीट व रोग की रोकथाम के लिए 100 ग्राम तबाकू व 100 ग्राम नमक को 5 ली० पानी में मिलाकर छिड़कें| 

■इसको और प्रभावी बनाने के लिए 20 ग्राम साबुन का घोल तथा 20 ग्राम बुझा चूना मिलाएँ|

13.शरीफा तथा पपीता

■शरीफा व पपीता प्रभाव कीट व रोगनाशक हैं| यह सुंडी को बढ़ने नहीं देते| 
■इसके एक किलोग्राम बीज या तीन किलोग्राम पत्तियों व फलों के चूर्ण को 20 ली० पानी में मिलाएँ व छानकर छिड़क दें|

14.मिट्टी का तेल

■रागी (कोदा) व झंगोरा (सांवा) की फसल पर जमीन में लगने वाले कीड़ों के लिए मिट्टी के तेल में भूसा मिलाकर बारिश से पहले या तुरंत बाद जमीन में इसका छिड़काव  करें| 
■इससे सभी कीड़े मर जाते हैं| 
■धान की फसल में सिंचाई के स्रोत पर 2 ली० प्रति एकड़ की दर से मिट्टी का तेल डालने से भी कीड़े मर जाते हैं|

15.बीमार पौधे व बाली

■बीमार पौधे की रोगी बाली को सावधानी से तुरंत निकाल दें साथ ही रोगी पौधे को उखाड़कर जला दें|
■ इससे फसल में फुफन्दी, वाइरस व बैक्टीरिया जनित रोगों को पूरे खेत में फैलने से रोका जा सकता है|

16.जैविक घोल

■परम्परागत जैविक घोल के लिए डैकण व अखरोट की दो-दो किलो सुखी पत्तियाँ, चिरैता के एक एक किलो, टेमरू व कड़वी की आधा-आधा किली पत्तियों को 50 ग्राम देसी साबुन के साथ कूटकर पाउडर बनाएँ|
■ जैविक घोल तैयार करें| इसमें जब खूब झाग आने लगे तो घोल प्रयोग के लिए तैयार हो जाता है| 
■ बुवाई के समय से पहले व हल से पूर्व इस घोल को छिड़कने से मिट्टी जनित रोग व कीट नियंत्रण में मदद मिलती है|
■ छिड़काव के तुरंत बाद खेत में हल लगाएँ| एक एकड़ खेत के लिए 200 ली० घोल पर्याप्त है|

17. पंचगव्य

■पंचगव्य बनाने के लिए 100 ग्राम गाय का घी, 1 ली० गौमूत्र, 1 ली० दूध, तथा 1 किलो ग्राम गोबर व 100 ग्राम शीरा या शहद को मिलाकर मौसम के अनुसार चार दिन से एक सप्ताह तक रखें|
■ इसे बीच-बीच में हिलाते रहें| 
■उसके बाद इसे छानकर 1:10 के अनुपात में पानी के साथ मिलकर छिड़कें|
■ पंचगव्य से सामान्य कीट व बीमारियों पर नियत्रण के साथ-साथ फसल को आवश्यक पोषक तत्व भी उपलब्ध होते हैं|

18.गाय के गोबर का घोल

■गाय के गोबर का सार बनाने के लिए 1 किलो गोबर को 10 ली० पानी के साथ मिलाकर टाट के कपड़े से छानें|
■ यह पत्तियों पर लगने वाले माहू, सैनिक कीट आदि हेतु प्रभावी है|

19 दीमक की रोकथाम

■गन्ने में दीमक रोकथाम के लिए गोबर की खाद में आडू या नीम के पत्ते मिलाकर खेत में उनके लड्डू बनाकर रखें|
■ बुबाई के समय एक एकड़ खेत में 40 किलो नीम की खली डालें| 
■नागफनी की पत्तियाँ 10 किलो, लहसुन 2 किलो, नीम के पत्ते 2 किलो को अलग-अलग पीसकर 20 लीटर पानी में उबाल लें| 
■ठंडा होने पर उसमें 2 लीटर मिट्टी का तेल मिलाकर 2 एकड़ जमीन में डालें| इसे खेत में सिंचाई के समय डाल सकते हैं|

20.चूहों का नियंत्रण

■कच्चे अखरोट के छिलके निकालकर उन्हें बारीक पीसकर चटनी बना लें| 
■इस चटनी के साथ आटे की छोटी-छोटी गोलियों को फसल के बीच-बीच व चूहे के बिलों में रखें| ■चूहे यह गोलियाँ खाने से मर जाते हैं| 
■इसके अतिरिक्त देसी पपीते के छिलके या घोड़े या खच्चर की लीद को चूहों के बिलों के पास व खेतों में डालने से चूहे भाग जाते हैं या मर जाते हैं|

21.जैविक बाड़

कीटों व रोगों पर नियंत्रण हेतु खेतों में औषधीय पौधों की बाढ़ भी कारगर साबित होती है| धान के खेत में मेंढ़ में बीच-बीच में मडुवा या गेंदा लगाने से कीड़े दूर भागते हैं तथा रोग भी कम लगते हैं| खेतों की मेढ़ों पर गेंदें के फूल व तुलसी के पौधों अथवा डैकण के पेड़, तेमरू, निर्गुण्डी (सिरोली, सिवांली), नीम, चिरैता व कड़वी की झाड़ियों की बाड़ लगाएँ| खेतों में लगे पेड़ों को काटकर व जलाकर नष्ट न करें यह कीटनाशी  के रूप में व जानवरों से हमारी फसल की रक्षा करते हैं|

संकलित
कृषि का ऋषि विज्ञान

तकनीक प्रचारक


हम कृषको तक तकनीक पहुंचाते है।


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