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Showing posts from June, 2020

जैविक खेती:-जानिये क्या है "अग्निहोत्र विज्ञान" और कृषि में क्या है इसकी उपयोगिता।

जैविक खेती:-जानिए कैसे होती है "उड़द की जैविक खेती"

उड़द की जैविक खेती ************************ खेत का चयन व तैयारी : समुचित जल निकास वाली बलुई दोमट मिट्टी इस के लिए सब से सही होती है. वैसे दोमट से ले कर हलकी जमीन तक में इस की खेती की जा सकती है. खेत की तैयारी के लिए सब से पहले जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से कर के 2-3 जुताई देशी हल या हैरो से करें। इसके पश्चात सजीव कम्पोस्ट खाद 2 क्यूंटल या घन जीवामृत 1 क्यूंटल + नीम खली 1 क्यूंटल या खनिज कम्पोस्ट 1 क्यूंटल + भस्म रसायन 20 kg + रॉक फास्फेट 2 क्यूंटल या प्राकृतिक फास्फोरस घोल 200 लीटर + माइकोराइजा 4 kg सबको अच्छे से मिलाकर समान मात्रा में फेंककर उस के बाद ठीक से पाटा लगा दें. बोआई के समय खेत में पर्याप्त नमी रहना बहुत जरूरी है. बीज की दर : बोआई के लिए उड़द के बीज की सही दर 12-15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है. खेत में अगर किसी वजह से नमी कम हो, तो 2-3 किलोग्राम बीज की मात्रा प्रति हेक्टेयर बढ़ाई जा सकती है. बोआई का समय : खरीफ मौसम में उड़द की बोआई का सही समय जुलाई के पहले हफ्ते से ले कर 15-20 अगस्त तक है. हालांकि अगस्त महीन...
SOIL HEALTH CARD - मृदा स्वास्थ्य कार्ड मृदा स्वास्थ्य कार्ड (एसएचसी) कृषि और किसानों के कल्याण मंत्रालय के तहत कृषि और सहकारिता विभाग द्वारा प्रचारित भारत सरकार की एक योजना है। ▪ यह सभी राज्य और संघ शासित प्रदेशों के कृषि विभाग के माध्यम से लागू किया जा रहा है। ▪ एक एसएचसी प्रत्येक किसान मिट्टी पोषक तत्व को उसके होल्डिंग की स्थिति देने के लिए है और उसे उर्वरकों के खुराक पर सलाह दी जाती है और आवश्यक मिट्टी के संशोधन पर भी सलाह दी जाती है जिसे लंबे समय तक मिट्टी के स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए आवेदन करना चाहिए।  मृदा स्वास्थ्य कार्ड क्या है? ▪ यूआरएल एसएचसी एक मुद्रित रिपोर्ट है कि एक किसान को उसके प्रत्येक होल्डिंग के लिए सौंप दिया जाएगा। ▪ इसमें 12 मापदंडों के संबंध में अपनी मिट्टी की स्थिति होगी  N, P, K (मैक्रो पोषक तत्व); S (माध्यमिक पोषक तत्व); Zn,Fe,Cu,Mn,Bo (सूक्ष्म पोषक तत्व); तथा PH,EC,OC (भौतिक पैरामीटर)। ▪ इस पर आधारित, एसएचसी कृषि के लिए आवश्यक उर्वरक सिफारिशों और मिट्टी संशोधन को भी इंगित करेगा।  एक किसान एक एसएचसी का...

जैविक खेती:-जानिए क्या है "गाजर घास स्वरस"

गाजर घास स्वरस आवश्यकता ही अविष्कार की जननी है । प्राकृतिक रुप से फसलो मे आवश्यक पोषक तत्वो की पूर्ति किस तरह से की जा सकती है , इसके लिए कई किसान भाईयो ने अपने अपने प्रयोगो से सफलता प्राप्त की है। अब आवश्यकता है हमे उन प्रयोगो और विधियो का अमल मे लाने की। लगभग १९७० से आई जटिल एवं विश्वव्यापी समस्या स्वरुप गाजर घास जो कि धीरे धीरे अपने अनगिनत हल्के बीजो के कारण विकराल रुप ले चुकी है।  इस चिंता के विषय को प्राकृतिक किसा‌नो ने इसे विशेष रुप से तैयार कर नाइट्रोजन आपूर्ति का बहुत ही सरल तरीका बना लिया है। और इसे नाम दिया गया " गाजर घांस स्वरस" इन फसलों में है कारगर प्राकृतिक रुप से उत्पादित की जा रही फसले देशी पीली मक्का, सफेद मक्का , ज्वार, मूँगफली, मू्ँग अरहर, कपास, लोबिया, उड़द, सोयाबीन और सफेद तिल मे नाइट्रोजन पूर्ति के लिए गाजरघास स्वरस कारगर है। एक एकड़ के लिए ऐसे तैयार करे आवश्यक सामग्री 1- ४ किग्रा. गाजर घास पीसी हुई ताजी (नर्म पत्तो वाली ) 2- ६ लीटर गौमूत्र 3- १५ ग्राम फिटकरी पाउडर उपरोक्त सामग्री को लेकर...

कृषि सलाह- जानिए क्या है भिंडी का "येलो वाइन मोजेक रोग " एवं कैसे इसका नियंत्रण किया जा सकता है।

 भिन्डी में पीत शिरा रोग भिंडी हमारे बाजारों में वर्ष भर मिलने वाली सब्जी है। जो उपोष्ण तथा आर्द्र उपोष्ण क्षेत्रों में उगाई जाती है। अपने उच्च पोषण मान के कारण भिंडी का सेवन सभी आयु वर्ग के लोगों के लिए लाभकारी है।भिंडी के हरे कोमल फलों से सब्जी और सूप बनाया जाता है। भिंडी का जड़ तथा तना गुड़ बनाते समय उसकी गन्दगी साफ करने में काम आता है। ग्रीष्मकालीन भिंडी या वर्षाकालीन भिंडी में पीत शिरा रोग लग जाता है, किसान उनके निराकरण के लिए बहुत तरह के उपाय करते है। भिन्डी में दिखने वाले लक्षण डॉ गजेंद्र चन्द्राकर (वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक) इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर छत्तीसगढ़ ने बतया कि मुख्य और छोटी शिराओं के हरितरोग की विभिन्न स्तरों के साथ-साथ मोज़ेक जैसे एकान्तरिक हरे और पीले धब्बे, छोटे पत्ते, छोटे और छोटे फल, और पौधे के अविकसित विकास के विभिन्न स्तरों द्वारा रोगों की पहचान की जा सकती है। प्रारंभ में, संक्रमित पत्तियों में केवल पीली नसों को देखा जाता है, लेकिन बाद के चरणों में पूरी पत्ती पीली हो जाती है। जब पौधे अंकुरण के 20 दिनों के दौरान संक्रमित होते हैं, तो वे अविकसित ...

मेटसुल्फ़रोंन मेथायल 10% + क्लोरोइम्युरान एयथाईल 10% WP धान में खरपतवार नियंत्रित करने के लिए एक उत्तम शांकनाशी है।

छोटे पहलवान की बड़ी पहचान मात्र 8 ग्राम प्रति एकड़ इरेज ऑफ में धान के खरपतवारों का नियंत्रण मेटसुल्फ़रोंन मेथायल 10% + क्लोरोइम्युरान एयथाईल 10% WP धान में खरपतवार नियंत्रित करने के लिए एक उत्तम शांकनाशी है। मेटसुल्फ़रोंन मेथायल 10+क्लोरोइम्युरान एयथाईल 10% WP धान कि फसल के लिए एक ब्रॉड स्पेक्ट्रम , प्री एवं पोस्ट इमर्जेंट शाकनाशी है, जो कि धान कि फसल में आने वाले चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारो को नियंत्रित करता है.  मेटसुल्फ़रोंन मेथायल 10% + क्रोरोमुरोन एयथाईल 10% WP धान में खरपतवार नियंत्रित करने के लिए एक उत्तम शांकनाशी है. खरपतवार नियंत्रण के मेटसुल्फ़रोंन मेथायल 10% + क्लोरोइम्युरान एयथाईल 10% WP की बहुत कम मात्रा 8gm/एकड* उपयोग होती है.  मेटसुल्फ़रोंन मेथायल 10% + क्लोरोइम्युरान एयथाईल 10% WP का प्रयोग धान की सीधी बुवाई या बोता विधि दोनो प्रकार में प्री एवं पोस्ट इमर्जेंट खरपतवारो को नियंत्रित करता है.  मेटसुल्फ़रोंन मेथायल 10% + क्लोरोइम्युरान एयथाईल 10% WP के फोलीयर स्प्रे के लिए उच्च मात्रा वाले स्प्रे उपकरण जैसे - नेकपैक स्प्रयेर , राकिंग स्प्रय...

जैविक खेती:-आइए जाने वैज्ञानिकों से जैविक विधि से कीट नियंत्रण के बारे में।

जैविक खेती:-आइए जाने वैज्ञानिकों से कि जैविक विधि से कीट नियंत्रण के बारे में। साभार

नई परियोजना-एक एकड़ के बायोटेक हब से किसानों को प्रति वर्ष होगी 2 लाख की आय

बस्तर संभाग के सात जिलों में ‘‘बायोटेक किसान हब’’ की स्थापना के लिए चार करोड़ रूपये की परियोजना मंजूर एक एकड़ के बायोटेक हब से किसानों को प्रति वर्ष होगी 2 लाख की आय कृषि विज्ञान केन्द्रों के माध्यम से संचालित की जाएगी परियोजना रायपुर, 28 जून, 2020। भारत सरकार के कृषि एवं जैव प्रौद्योगिकी विभाग, नई दिल्ली द्वारा छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल बस्तर संभाग के सात जिलों बस्तर, बीजापुर, सुकमा, दंतेवाड़ा, कोण्डागांव, नारायणपुर एवं कांकेर में ‘‘बायोटेक किसान हब’’ की स्थापना की जाएगी। बायोटेक किसान हब की स्थापना हेतु आगामी दो वर्षों के लिए चार करोड़ दस लाख रूपये लागत की परियोजना स्वीकृत की गई है। इस परियोजना के तहत प्रत्येक जिले के 5 गांवों से 10-10 प्रगतिशील किसानों का चयनित किया जायेगा। इस प्रकार इस परियोजना से कुल 350 किसान लाभान्वित होंगे। बायोटेक किसान हब परियोजना के तहत चयनित किसानों की एक एकड़ भूमि पर प्रति वर्ष 2 लाख रूपये तक की आय अर्जित करने का मॉडल विकसित किया जाएगा। यह परियोजना इन जिलों में संचालित कृषि विज्ञान केन्द्रों के माध्यम से क्रियान्वित की जाएगी। ‘‘बायोट...

तकनीकी सलाह:- बिना किसी दवा के,सिर्फ इस तकनीक को सीखकर किसान भाई पैदा कर सकते है एक की बेल से 800 लौकी

लौकी में 3G कटिंग किसान भाइयों के लिए आज का समय स्मार्ट खेती करने का है. इसलिए आज हम आपको ऐसा तरीका बताएंगे जिससे आप लौकी के एक ही पौधे से अधिक मुनाफ़ा कमा सकेंगे. वैसे आम तौर पर लौकी की एक बेल से औसत 50 से 150 लौकियां निकलती हैं लेकिन अगर तरीका सही और तकनीक का ज्ञान हो तो यही बेल आपको 800 लौकियों का फ़ायदा दे सकती है. कहने का मतलब इतना ही है कि कम लागत में अधिक मुनाफ़ा कमाया जा सकता है। लौकी का फूल है महत्वपूर्ण प्रकृति ने धरती पर रहने वाले हर सजीव को नर और मादा में बांटा है. प्रकृति के इस नियम से फल-सब्जियां भी अछूती नहीं हैं. फलों और सब्जियों को भी नर और मादा में बांटा जा सकता है. ध्यान रहे कि लौकी के बेल में जो फूल होते हैं वो नर होते हैं इसलिए आपको बस कुछ ऐसा करना है कि लौकी में मादा फूल आने लग जाएं। तकनीक का नाम है 3 ‘जी’ कटिंग...... यु ट्यूब वीडियो चित्र के माध्यम से विनोद जी से सीखे "थ्री जी" कटिंग कैसे करना है। जी हां किसान भाइयों आज हम आपको इसी तकनीकि से परिचित करने जा रहें हैं जिसके प्रयोग से लौकी की बेल में मादा फूल लाए जाते हैं और ...

पौधों की पत्तियों मे लक्षण देखकर जाने कि किस पोषक तत्व की है कमी

पोषक तत्वों की कमी से पोधो में दिखने वाले लक्षण पेड़ पौधे भी इंसानों की तरह विकास करने के लिए पोषक तत्व का उपयोग करते हैं ,पौधों को अपनी वृद्धि, प्रजनन, तथा विभिन्न जैविक क्रियाओं के लिए कुछ पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है । इन पोषक तत्वों के उपलब्ध न होने पर पौधों की वृद्धि रूक जाती है यदि ये पोषक तत्व एक निश्चित समय तक न मिलें तो पौधों की मृत्यु हो जाती है । हालाकी पौधे भूमि से जल तथा खनिज-लवण शोषित करके वायु से कार्बन डाई-आक्साइड प्राप्त करके सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में अपने लिए भोजन का निर्माण करते हैं।   डॉ गजेंद्र चन्द्राकर (वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक) इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर छत्तीसगढ़ ने बतया कि  पौधों को 17 तत्वों की आवश्यकता होती है जिनके बिना पौधे की वृद्धि-विकास तथा प्रजनन आदि क्रियाएं सम्भव नहीं हैं। इनमें से मुख्य तत्व कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन , नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश है। इनमें से प्रथम तीन तत्व पौधे वायुमंडल से ग्रहण कर लेते हैं। पोषक तत्वों को पौधों की आवश्यकतानुसार निम्न प्रकार वर्गीकृत किया गया है:- मुख्य पोषक तत्व- ना...

बिस्पायरिबेक सोडियम- धान के फसल में बहुत उपयोगी है ये रसायनिक खरपतवार नाशी

बिस्पायरिबेक   सोडियम- धान के फसल में बहुत उपयोगी है ये रसायनिक खरपतवार नाशी डॉ गजेंद्र चन्द्राकर (वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक) इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर छत्तीसगढ़ के अनुसार   बिस्पायरिबेक  सोडियम एक पोस्ट इमर्जेंट खरपतवार नाशक है जो कि धान में चौड़ी पत्ती वाले सभी प्रकार के खरपतवारो के लिए उपयोगी पाया गया है. धान बोने कि सभी प्रकार की विधियों में जैसे - बोता , रोपाई में इसका उपयोग किया जा सकता है। विशेषताएँ:- बिस्पायरिबेक  सोडियम धान में सभी प्रकार कि प्रमुख घास , सेजेस एवं चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारो को नियंत्रित करता है. बिस्पायरिबेक  सोडियम खरपतवारो की 2-5 पत्ती अवस्था में लाभकारी पाया गया है बिस्पायरिबेक  सोडियम का प्रयोग धान कि फसल में सुरक्षित पाया गया है बिस्पायरिबेक  सोडियम खरपतवारो में जल्दी से अवशोषित हो जाता है एवं स्प्रे के 6 घंटे के बाद भी बारिश होने पर इसका प्रभाव रहता है बिस्पायरिबेक  सोडियम कि 80-100ml मात्रा प्रति एकड प्रभावी रहती है बिस्पायरिबेक  सोडियम वातावरण को कोई नुक़सान नहीं पहुँचता है बिस्पायरिबेक  सोडियम कि क़ीमत अन्य कि अपेक्षा बहुत...