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बीजोपचार:-बोने से पहले बीजों को पहनाएँ सुरक्षा कवच

बीजोपचार:-बोने से पहले बीजों को पहनाएँ सुरक्षा कवच


किसी भी फसल के उत्पादन के लिए बीज एक महँगा आदान (इनपुट) है। फसल उत्पादन की कुल लागत का लगभग 20 से 40 प्र.श. तक अकेले बीज पर खर्च हो जाता है। अपनी फसल के लिए स्वयं बीज तैयार करने वाले किसान भी अगली फसल के बीज की तैयारी पहले की फसल कटने केपहले से ही करने लगते हैं। 

बीज के लिए सबसे अच्छे खेत की फसल (जिसमें पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्व दिए गए हों, कीड़े और रोगों से पूरी सुरक्षा की गई हो) को पहले से ही सुरक्षित कर लिया जाता है। इस खेत की फसल की अलग से कटाई-गहाई कर उसके दानों कोछन्ना लगाकर, बारीक दाने अलग कर रखा जाता है। कीड़ों, रोगों, चूहों आदि से इन्हें बचाने के लिए लोहे या मिट्टी की कोठियों में नमी रहित स्थान पर रखा जाता है।

बीज उत्पादक संस्थाओं से खरीदा गया बीज तो बहुत महँगा होता है। छोटे किसान आवश्यकतानुसार मात्रा मुश्किल से खरीद पाते हैं। इस महँगे या कठिनाई से प्राप्त बीज को खेत में बोने के पहले उसकी सुरक्षा की व्यवस्था करना भी फसल उत्पादन का एक महत्वपूर्ण कार्य है। खेतमें बोए जाने पर बीज को अंकुरित होने और उसके बाद पौधे की अवस्था में आने तक जमीन में मौजूद अनेक प्रकार के रोगाणुओं का सामना करना होता है। 

मिट्टी में बोए जाने पर सबसे पहले बीज आसपास के मिट्टी के कणों से नमी लेकर फूलता है। नमी सोखने के साथही इसका आकार बढ़कर इसमें कई तरह के एंजाइम बनते हैं। ये एंजाइम बीज में जैव रासायनिक क्रियाएँ प्रारंभ करने में सहायक होते हैं। जैव रासायनिक क्रियाओं से बीज और उसकी ऊपरी सुरक्षात्मक परत नरम हो जाती है। इस नरम परत पर भूमि में मौजूद रोगाणुओं के प्रकोप की संभावना रहती है। ऐसे में यदि तापमान और नमी भी इन रोगाणुओं की बढ़वार के अनुकूल हो तो इनका प्रकोप होकर बीजों पर फफूँद, गलन, सूखा आदि रोग लग जाते हैं। 

कई बार यह देखा गया है कि इन रोगों के कारण प्रारंभिक अवस्था में शिशु पौधों की कतारें की कतारें सूख जाती हैं। इससे प्रति इकाई पौध संख्या कम हो जाती है। इसका असर अंततः उपज पर पड़ता है। ऐसे में अगर सूखे पौधों की जगह भरने के लिए फिर से बीज डाले जाते हैं तो वे भी फफूँदजनित रोग लगकर नष्ट हो जाते हैं।

इसी कारण बीजों को बोने के पहले उन्हें फफूँद रोगों से बचाव के लिए रासायनिक फफूँदनाशकों की परत का रक्षा कवच पहनाना आवश्यक है। अनेक प्रकार के रासायनिक फफूँदनाशक बाजार में उपलब्ध हैं। इनमें से प्रचलित रसायनों की संक्षिप्त जानकारी यहाँ दी जा रही है।

⭕थीरम : इसका उपयोग अन्न फसलों जैसे गेहूँ, जुवार, बाजरा, मक्का, धान के बीज उपचार के लिए किया जाता है। तुवर, मूँग, उड़द, चना, चौला, मसूर, तिल, मूँगफली, अलसी आदि धान्य फसलों, सब्जियों, फलों, पुष्प फसलों के बीजों के उपचार के लिए ढाई ग्राम प्रति एक किलोग्राम बीज की दर से इसका इस्तेमाल किया जाता है। 

इसका उपयोग ऐग्रोसान, सेरेसान आदि पारायुक्त फफूँदनाशकों के समान असरदार लेकिन मनुष्य, पशु-पक्षियों, जलचरों आदि के लिए कम हानिकारक होने के कारण अधिक सुरक्षित है। इसी वजह से यह सर्वाधिक प्रचलित फफूँदनाशक है।

⭕वेपम : इसका प्रचलित नाम भी वेपम ही है। इसमें फफूँदनाशक के साथ ही सूत्रकृमि (निमेटोड) नाशक गुण भी हैं। इसका उपयोग पपीते के पौधों में अंकुरण के समय लगने वाले रोग के विरुद्ध विशेष रूप से किया जाता है। निमेटोड की रोकथाम के लिए इससे भूमि उपचार भीकिया जाता है। इसका सक्रिय तत्व सोडियम मिथाइल डाइथियोकार्बामेट है।

⭕पेंटाक्लोरोनाइट्रोबेंजीन : यह बाजार में ब्रासीकॉल किन्टोजोन, टेराक्लोर आदि नामों से मिलता है। इसका उपयोग स्क्लेरोशियम, राइजोक्टोनिया जनित आदि मृदोढ़ रोगों के नियंत्रण के लिए किया जाता है। इससे बीज या रोपों की जड़ों को उपचारित किया जाता है। 

⭕केपटान : यह बाजार में इसी नाम से या केपटान डब्ल्यू-50 या केपटान-75 डब्ल्यू आदि नामों से मिलता है। इसका उपयोग बीज व मिट्टी के उपचार के लिए किया जाता है। इसमें 83 प्रतिशत सक्रिय तत्व होता है।

⭕विटावेक्स : इसका रासायनिक नाम डीएमओसी यानी डाइहाइड्रोमिथाइल ऑक्सेथिन कार्बोक्सेनिलाइड है। इसका उपयोग बीज के अंदर पाए जाने वाले रोग जैसे गेहूँ के मुक्त कंडुवा रोग (लूज स्मट) से बचाव के लिए बीज उपचार हेतु किया जाता है। इसकी ढाई ग्राम मात्रा सामान्यतः एक किलोग्राम बीज के साथ मिलाने के लिए पर्याप्त होती है।

⭕प्लान्टवेक्स : इसका रासायनिक नाम डाइहाइड्रो मिथाइल आक्सेथिन डाइऑक्साइड है। इसका उपयोग गेरुआ (रस्ट) और कंडुवा (स्मट) रोगों की रोकथाम के लिए किया जाता है।

⭕बिनोमिल : इसे बाजार में बेनलेट नाम से बेचा जा रहा है। यह विटावेक्स और प्लान्टवेक्स की अपेक्षा रोगों की रोकथाम एवं नियंत्रण के लिए अधिक प्रभावी है। इसका उपयोग स्मट, भभूतिया, राइजोक्टोनिया, फ्यूजेरियम आदि के नियंत्रण के लिए बीज उपचार या मृदा उपचार के लिए किया जा सकता है।

⭕कार्बेन्डेजिम : यह बाबिस्टीन या डोरोसोल के नाम से बाजार में उपलब्ध है। यह एक अंतर्ग्राही फफूँदनाशक है। यह पौधों द्वारा ग्रहण किया जाकर रोगों से आंतरिक सुरक्षा प्रदान करता है। इसका उपयोग बीज उपचार के अलावा पौधों पर छिड़काव के रूप में भी किया जाता है।

⭕थियोबेनडेजोल : यह भी एक अंतर्ग्राही फफूँदनाशक है जो पौधों द्वारा ग्रहण किया जाकर उन्हें रोगों के प्रति प्रतिरोधकता या अधिक सहनशीलता प्रदान करता है। इसका उपयोग बीज उपचार, पौधों पर छिड़काव और मृदा उपचार तीनों तरह से किया जाता है। यह मिट्टी में मौजूदरोगाणुओं द्वारा उत्पन्न रोगों के लिए अधिक प्रभावकारी है।

जैविक विधि से बीजोपचार
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घर पर ही #बीजामृत बनाये और बीजोपचार करे ऊपर दिए गए दवाओं पर अनावश्यक पैसे खर्च करने की जरूरत नही पड़ेगी।

बीजामृत बनाने की विधि

1 देसी गाय  का   ताजा गोबर 1 किलोग्राम

2 देसी गौ मुत्र 1 litter 

3 चूना  50  ग्राम।

4 खेत के मेड़ की मिट्टी-200 ग्राम

इन सभी चीजों  को  घोल कर 5 लीटर पानी मे घोलकर  मिट्टी के मटके में 2 दिनों तक  रखें। दिन मैं दो बार लकड़ी से हिलाएँ। इसके बाद  बीज की बुवाई के दिन इसको बीज  के  ऊपर  डालकर अच्छी तरह भिगोकर निकाल दें। इसके बाद  बीज  को छायादार जगह पर  सुखा  लें। बीज अमृत  से  उपचारित  हुए  बीज जल्दी और  ज्यादा  मात्र  में उगते  हैं। उनमे अंकुरण की क्षमता अच्छी होती है।बीज जनित रोग कम होती हैं। पौधे अच्छी तरह से फलते फूलते हैं। 

केले और  गन्ने की बुवाई में भिगोने के तुरंत बाद लगना चाहिए। और अगर धान ,टमाटर ,बेंगन या  किसी भी प्रकार  की पौध लगनी हो  तो उसकी जड़ें बीज अमृत में  डुबोये। उसके बाद पौध  खेत  मैं लगाएं। निश्चित ही इसका लाभ किसान भाइयों को देखने को मिलेगा।

कृषक कनेक्शन
छत्तीसगढ़ कृषि स्नातक शासकीय कृषि अधिकारी संघ

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