चिलबिल : एक ऐसा फल जिसके बारे में बेहद कम लोगों को जानकारी हैं।
#आवाज_एक_पहल
संभव है कि आपने इस फल का नाम पहले कभी नहीं सुना होगा। संभव है कि अगर कहीं आपको यह देखने को मिले तो आपको यकीन भी नहीं हो कि ऐसे भी होते हैं फल। फलों की जो कि जो हमारे मन में स्मृति बन गई है उससे बिल्कुल अलग है चिलबिल!
अद्भुत, अजीब पर आकर्षक!
अभी भी चिलबिल के हजारों पेड़ देखने को मिल जायेंगे,,पर दुर्भाग्य देखो की आज युवा पीढ़ी इसका सही नाम तक नही जानती....।
चिरोल चिलबिल एक औषधीय वृक्ष है,इसे,चिरबिल्व,चिरोल,बन्दर की रोटी तो कुछ क्षेत्रों में इसे बंदर पापड़ी या बंदर बाटी का पेड़ भी कहा जाता है..... इस वृक्ष के फल भी पत्तियों के समान दिखाई पड़ते हैं,जो बंदरो को काफी प्रिय है.......यह फल ऐसा है लगता है कि दो पत्तियों के बीच एक बीज को फँसा दिया गया हो....।
चिरबिल्व को गुजरात, मध्यप्रदेश और राजस्थान में इसे चरेल ,चिरोल कहा जाता है..... इस के अलावा इसे कान्जो, वाओला, कांजू, बन चिल्ला, चिलबिल, सिलबिल, चिरबिल्व (संस्कृत) आदि नामों से जाना जाता है...।
इस में जनवरी फरवरी माह में पुष्प खिलते हैं।
यह बहुत से औषधीय गुणों से संपन्न वृक्ष है और संपूर्ण भारत में पाया जाता है.......इस पेड़ की छाल का उपयोग गठिया की चिकित्सा के लिए प्रभावी स्थान पर लेप कर के किया जाता है.....इस की छाल का अन्दरूनी उपयोग आंतों के छालों की चिकित्सा के लिए किया जाता है......सूखी छाल गर्भवती महिलाओं के लिए ऑक्सीटॉकिक के रूप में गर्भाशय के संकुचन को प्रभावित करने के लिए किया जाता है जिस से प्रसव आसानी से हो सके.......पत्तियों को लहसुन के साथ पीस कर दाद, एक्जीमा आदि त्वचा रोगों में रोग स्थल पर लेप के लिए प्रयोग किया जाता है........पत्तियों को लहसुन और काली मिर्च के पीस कर गोलियाँ बनाई जाती हैं और एक गोली प्रतिदिन पीलिया के रोगी को चिकित्सा के लिए दी जाती है..... लसिका ग्रन्थियों की सूजन में इस की छाल का लेप प्रयोग में लिया जाता है.......... छाल के लेप का उपयोग सामान्य बुखार में रोगी के माथे पर किया जाता है.... सफेद दाग के रोग में इसकी छाल का लेप दागों पर किया जाता है...।
©लवकुश
आवाज एक पहल
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