औषधि:-जाने विधारा के बारे में।
#आपने अपने आसपास के उद्यानों और घरों में #विधारा की सुंदर लताओं को देखा होगा। यह लता सिर्फ सजावटी पादप ही नही अपितु औषधीय गुणों से भी सम्पन्न है।
विधारा का वानस्पतिक यानी लैटिन नाम आर्जीरिआ नरवोसा है। यह कान्वाल्वुलेसी (Convolvulaceae) कुल का पौधा है। अंग्रेजी भाषा में इसका नाम ऐलीफैण्ट क्रीपर (Elephant creeper) और वूली मार्निंग ग्लोरी (Wolly morning glory) है। इसके अलावा इसे विभिन्न भाषाओं में समन्दर-का-पाटा, समुद्रशोष, घावपत्ता, विधारावृद्धदारुक, आवेगी, छागात्री, वृष्यगन्धिका, ऋक्षगन्धा,अजांत्री, दीर्घवल्लरी मोन्डा,चन्द्रपाडा, समुद्रवल्लि आदि नामों से भी जाना जाता है।
#विधारा का इस्तेमाल ज्यादा दर लोग जैसे - जोड़ों का दर्द, गठिया, बवासीर, सूजन, डायबिटीज, खाँसी, पेट के कीड़े, सिफलिश, एनीमिया, मिरगी, मैनिया, दर्द और दस्त में किया जाता है। और हम आपको बता दे विधारा की जड़े इस्तेमाल करने से बहुत राहत और आराम मिलता है | पेशाब के रोगों तथा त्वचा संबंधी रोगों और बुखार दूर करने में उपयोगी होती है। विधारा की जड़े का एथेनॉलिक सार सूजन दूर करने के साथ-साथ घाव को भरता है। इसकी जड़ के चूर्ण का मेथेनॉल सार दर्द और सूजन को समाप्त करता है। इसके फूलों का ऐथेनॉल सार उपयुक्त मात्रा में लिए जाने पर घावों को भरता है और जल्दी आराम देता है |
#विधारा_के_फायदे -विधारा स्वाद में कड़वा, तीखा, कसैला तथा गर्म प्रकृति का वनस्पति है। यह जल्द पचता है और भोजन को भी पचाता है। विधारा के प्रयोग से कफ तथा वात शान्त होता है। यह औषधि पुरुषों में शुक्राणुओं को बढ़ाती है और वीर्य को गाढ़ा करती है। इसके सेवन से हड्डियां मजबूत होती हैं, सातों धातु पुष्ट होते हैं और मनुष्य बलवान तथा तेजस्वी होकर लम्बी आयु तक जवान बना रहता है।
#सिर_दर्द -
सिर में दर्द हो तो विधारा के जड़ को चावल के पानी के साथ पीसकर माथे में यानी ललाट पर लगाने से सिर दर्द ठीक हो जाता है।
#पेट_का_फोड़ा -
कई बार पेट में फोड़ा हो जाता है जिसमें बहुत सारे छेद होते हैं। इन्हें दबाने से इनमें से पीव भी निकलता है। ऐसे फोड़े पर विधारा की जड़ को पीसकर लगाने से फोड़ा ठीक हो हो जाता है।
#पेट_दर्द -
पेट में दर्द मुख्यतः अपच, कब्ज और गैस के कारण ही होता है। विधारा भोजन को भी पचाता है, कब्ज को भी दूर करता है। विधारा वात यानी गैस को भी नष्ट करता है। पेट दर्द को ठीक करना हो तो विधारा के पत्तों के 5-10 मिली रस में शहद मिलाकर सेवन करें। निश्चित लाभ होगा
#बवासीर -
विधारा, भल्लातक तथा सोंठ, तीनों द्रव्यों को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। इस 2-4 ग्राम चूर्ण का सेवन गुड़ के साथ करने से बवासीर रोग में लाभ होता है।
#मधुमेह - मधुमेह यानी डायबीटिज आज एक महामारी की तरह फैल चुकी है। विधारा डायबीटिज में तो लाभ पहुँचाता ही है, साथ ही यह धातुओं को पुष्ट करके इसे होने से भी रोकता है। विधारा का सेवन करने से मधुमेह होने की संभावना घट जाएगी और शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ेगी। इसके लिए एक से दो ग्राम विधारा चूर्ण में शहद मिलाकर सेवन करना चाहिए। इससे पूयमेह यानी गोनोरिया में भी लाभ होता है।
#मूत्र_रोग - मूत्रकृच्छ्र रोग में पेशाब में जलन और दर्द होता है। पेशाब की मात्रा भी कम होती है। विधारा पेशाब को बढ़ाता है और जलन तथा दर्द में आराम दिलाता है। दो भाग विधारा की जड़ के चूर्ण में एक भाग गाय का दूध मिलाकर सेवन करें।
#गर्भधारण - यदि गर्भधारण करने में सफलता नहीं मिल रही हो तो विधारा का सेवन करें। विधारा तथा प्लक्ष की जड़ के काढ़े को एक वर्ष तक प्रतिदिन सुबह सेवन करें। इससे स्त्री के गर्भवती होने की सम्भावना बढ़ जाती है।काढ़े को मासिक धर्म के दिनों में न पिएं।
#उपदंश_या_सिफलिस -विधारा के सत् (जूस) का प्रयोग करने से उपंदश यानी सिफलिस रोग ठीक होता है।
#सफेद_प्रदर - विधारा चूर्ण को ठंडे या सामान्य जल के साथ सेवन करने से सफेद प्रदर में लाभ होता है।
#अण्डकोष_की_सूजन -विधारा के पत्ते में एरण्ड तेल को लगाकर थोड़ा सा गरम करके अण्डकोष पर बाँध दें। इससे अण्डकोष की सूजन ठीक होती है।
#पक्षाघात - पक्षाघात यानी लकवा का एक प्रकार है। अर्धांग पक्षाघात में शरीर का बाँया या दाँया भाग लकवे का शिकार हो जाता है। विधारा की जड़ एवं कई अन्य घटक द्रव्यों के द्वारा बनाए अजमोदादि चूर्ण का सेवन करने से अर्धांग पक्षाघात में लाभ होता है।
#जोड़ोंका_दर्द -
विधारा मूल में बराबर भाग शतावर मूल मिलाकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को 15-30 मिली मात्रा में पीने से गठिया में लाभ होता है।
विधारा की जड़ का काढ़ा बना लें। इसे 15-30 मिली मात्रा में पीने से अथवा 1-2 ग्राम विधारा की जड़ के चूर्ण का सेवन करने से जोड़ों के दर्द, आमवात यानी रयूमैटिस अर्थराइटिस तथा सभी प्रकार की सूजन में लाभ होता है।
विधारा के पत्तों की सब्जी बनाकर खाने से वात के कारण होने वाले जोड़ों के दर्द आदि विकार ठीक होते हैं।
#हाथीपाँव (फाइलेरिया) -
गौमूत्र अथवा सौवीर कांजी के अनुपान से विधारा चूर्ण का सेवन करें। इससे एक वर्ष पुराने एवं कठिनाई से ठीक होने वाले हाथीपांव या फाइलेरिया रोग में भी लाभ होता है।
2-4 ग्राम विधारा की जड़ के चूर्ण को कांजी के साथ सेवन करने से हाथीपाँव रोग में लाभ होता है।
त्रिकटु (पिप्पली, मरिच, सोंठ), त्रिफला (आँवला, हरीतकी, बहेड़ा), चव्य, दारुहल्दी, वरुण, गोक्षुर, अलम्बुषा तथा गुडूची के बराबर-बराबर भाग लें। इसका चूर्ण बना लें। सबके बराबर विधारा चूर्ण मिलाकर 10-12 ग्राम की मात्रा में काञ्जी के साथ सेवन करें। पच जाने पर इच्छानुसार भोजन करने से हाथीपाँव, मोटापा, जोड़ों के दर्द, पेट फूलना, कुष्ठ रोग, भूख न लगना आदि वात तथा कफ प्रधान रोग ठीक होते हैं।
#चर्म_रोग - 2 भाग मिश्री, एक भाग विधारा मूल आधा भाग हल्दी तथा चौथाई भाग काली मिर्च के बारीक चूर्ण लें। इसे 5-6 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन जल के साथ सेवन करें। इसके बाद हाथों पर लगाएं। इससे खून की खराबी के कारण होने वाले खाज में छह दिनों में ही काफी लाभ होने लगता है।
विधारा के पत्तों के रस को लगाने से एक्जिमा रोग में लाभ होता है।
#मोटापा - विधारा के पत्तों के रस में करंज के बीज का तेल मिलाकर प्रयोग करने से मोटापे में लाभ होता है।
#शारीरिक_मानसिक_ताकत - सात दिनों तक मधु तथा घी मिला कर विधारा की जड़ के चूर्ण का सेवन करें। इसके बाद दूधयुक्त भोजन करने से शरीर की पुष्टि होती है।
विधारा चूर्ण में बराबर भाग शतावरी चूर्ण मिलाकर सेवन करने से स्मरणशक्ति तेज होती है।
विधारा की जड़ में पकाए घी को दूध के साथ सेवन करने से शारीरिक और मानसिक ताकत बढ़ती है।
#आँखों_के_रोग - विधारा आँखों के लिए भी काफी लाभकारी है। 5 मिली विधारा रस में बराबर भाग मधु मिलाकर आँखों में काजल की तरह लगाने से कुकूणक रोग यानी आँखों में लाली, खुजली, चौंधियाना आदि में लाभ होता है।
#विधारा_के_उपयोगी_भाग -पत्ते, जड़ ।
#सेवन_की_मात्रा - रस – 5-10 मिली, काढ़ा – 15-30 मिली,चूर्ण – 2-4 ग्राम ।अधिक लाभ के लिए #चिकित्सक के परामर्शानुसार विधारा का प्रयोग करें।
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