गेहूं की फसल का रोग और कीटों से बचाव
भारत देश में गेहूं का उत्पादन में महत्वपूर्ण स्थान है लगभग देश के सभी राज्यों में किसान गेहूं की खेती करते हैं| गेहूं में बीमारियों सुत्रकृमियों तथा हानिकारक कीटों के कारण 5–10 प्रतिशत उपज की हानि होती है और दानों तथा बीजों की गुणवत्ता भी खराब होती है| गेहूं की नई प्रजातियों को जारी करने से पहले रतुआ रोग तथा पर्ण झुलसा रोगों की प्रतिरोधिता के लिए कई साल तक जांचा जाता है तथा अन्य बीमारियों तथा कीटों के लिए कम से कम दो साल तक परीक्षण किया जाता है| इनमें से केवल उच्च प्रतिरोधिता वाली प्रजातियों की ही संस्तुति की जाती हैं| लेकिन एक ही प्रजाति में सभी प्रकार के रोगों, सूत्रकृमियों तथा हानिकारक कीटों के लिए प्रतिरोधिता होना एक कठिन कार्य हैं| समय के साथ–साथ रोगजनकों का भी विकास होता रहता है और प्रकृति में इनकी नवीनतम प्रजातियाँ विकसित होती रहती है|
गेहूं की फसल के रोग
काला अथवा तना किट्ट- गेहूं की फसल का यह रोग प्रभावित पौधों के तने, संधिस्तंभ, पर्णछंद, पत्तियों और डंठलों के ऊपर लाल भूरे रंग के छोटे-छोटे धब्बे (यूरीडीनोस्पोट) बनते हैं, जो धीरे-धीरे बड़े होकर आपस में मिलकर बड़े-बड़े धब्बे बनाते हैं एवं इनका रंग गहरा भूरा तथा बाद में काला हो जाता है| रोग से प्रभावित पौधों की ऊँचाई घट जाती है, बालियों में दाने कम, सिकुड़े हुए एवं भार में हल्के उत्पन्न होते हैं|
रोकथाम- गेहूं की फसल के इस रोग की रोकथाम के लिए 1.70 किलोग्राम जिनेब को 1.025 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिए|
भूरा रतुआ अथवा पत्ती किट्ट- प्रारम्भ में गेहूं की फसल के इस रोग के लक्षण पत्तियों की उपरी सतह पर अनियमित रूप से बिखरे हुए छोटे गोलाकार और हल्के नारंगी रंग के धब्बों के रूप में प्रकट होते हैं| बाद में धब्बे पत्तियों की दोनों सतहों पर बन जाते हैं| रोग ग्रसित पौधे छोटे रह जाते हैं, बालियों में दाने कम और सिकुड़े हुए बनते हैं|
रोकथाम- गेहूं की फसल के इस रोग की रोकथाम हेतु डाइथेन एम- 45 का 3 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करने से रोग नियंत्रित हो जाता है|
पीला रतुआ या धारीदार किट्ट- रोग के लक्षण पत्तियों पर पिन के सिर जैसे छोटे-छोटे, अण्डाकार, चमकीले पीले रंग के धब्बे के रूप में दिखाई देते हैं, जो पत्ती की शिराओं के बीच में पंक्तियों में होने से पीले रंग की धारी बनाते हैं| बाद में पत्ती की बाह्य त्वचा के नीचे काले रंग के टीलियम रेखाओं के रूप में बनते हैं, जो चपटी काली पपड़ी द्वारा ढके रहते हैं| रोग ग्रसित पौधों की पत्तियां सूख जाती हैं|
रोकथाम- गेहूं की फसल के इस रोग के नियंत्रण के लिए 2.6 प्रति किलोग्राम के हिसाब से बीज उपचारित करना चाहिए तथा साथ ही साथ ओक्सीकार्बोक्सिन का 3.2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए|
हिल अथवा पहाड़ी बंट- रोग से प्रभावित पौधे छोटे रह जाते हैं, समय से पूर्व ही पक जाते हैं| रोगी पौधे की बालियाँ संकीर्ण और लम्बी निकलती हैं, जो नीला-हरा रंग लिए होती हैं| बाली में दानों के स्थान पर काले रंग का चूर्ण भर जाता है और रोगी बालियों को दबाने पर सड़ी मछली जैसी दुर्गन्ध आती है|
रोकथाम- गेहूं की फसल के इस रोग के नियंत्रण के लिए बीज को बुआई से पहले एग्रोसन जी एन से 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित कर लेना चाहिए|
करनाल बंट- करनाल बंट को गेहूं का कैंसर भी कहा जाता है| रोग के लक्षण बाली में दाने बनने के बाद ही दिखायी पड़ते हैं| संक्रमित बाली के कुछ दाने आंशिक रूप से काले चूर्ण में बदल जाते हैं|
रोकथाम- गेहूं की फसल के इस रोग के नियन्त्रण हेतु 0.2 प्रतिशत बाविस्टीन का छिड़काव बाली निकलते समय करने से रोग का प्रसार रूक जाता है|
बायो पेस्टीसाइड, ट्राइकोडर्मा 2.5 किग्रा0 प्रति हेक्टेयर 60-75 किग्रा0 सड़ी हुई गोबर की खाद मिलाकर हल्के पानी का छिटा देकर 8-10 दिन तक छाया में रखने के उपरान्त बुवाई से पूर्व आखिरी जुताई पर भूमि में मिलाकर भूमिशोधन करना चाहिए.
इस रोग के नियंत्रण हेतु थिरम 75 प्रतिशत डी.एस./डब्लू.एस0 की 2.5 ग्राम अथवा कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लू.पी. की 2.5 ग्राम अथवा कार्बोक्सिन 75 प्रतिशत डब्लू.पी. की 2.0 ग्राम अथवा टेबुकोनाजोल 2.0 प्रतिशत डी.एस. की 1.0 ग्राम प्रति किग्रा. बीज की दर से बीजशोधन कर बुवाई करना चाहिए.
खड़ी फसल में नियंत्रण हेतु प्रोपिकोनाजोल 25 प्रतिशत ई.सी. की 500 मिली प्रति हेक्टेयर लगभग 750 ली. पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए .
पर्णीय झुलसा या अंगमारी- रोग के लक्षणों में सर्वप्रथम निचली पत्तियों पर छोटे-छोटे, अण्डाकार, भूरे रंग के और अनियमित रूप से बिखरे हुए धब्बे आपस में मिलकर पत्ती का अधिकांश भाग ढक देते हैं|
रोकथाम- गेहूं की फसल के इस रोग के नियन्त्रण हेतु थिरम एवं डाइथेन जैड-78 का 0.25 प्रतिशत छिड़काव करने से इस रोग पर नियंत्रण पाया जा सकता है|
चूर्णिल आसिता- प्रभावित पौधे की पत्तियों पर भूरे सफेद रंग के चूर्ण के ढेर दिखायी देते हैं| रोग की उग्र अवस्था में पर्णछंद, तना और तुषनिपत्र आदि भी भूरे-सफेद चूर्ण से ढक जाते हैं| रोग ग्रसित पौधों द्वारा दाने छोटे और सिकुड़े हुए उत्पन्न होते हैं|
रोकथाम- इस रोग के नियंत्रण के लिए सल्फर का बुरकाव 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर करना चाहिए|
- रोग के संक्रमन से डेन बनने की अवस्था तक 0.1 प्रतिशत प्रोपिकोनेजोल (टिल्ट 25 ईसी) का पत्तियों पर छिड़काव करें |
- छायादार खेत में गेहूं की बुआई न करें |
- उत्तर पर्वतीय क्षेत्रों में एचएस 542, वीएल 829, वीएल 907, वीएल 907, एचएस 507, एचएस 490, इत्यादी किस्मों का प्रयोग करें |
गेगला या सेहूँ रोग- रोगी पौधों की पत्तियां ऐंठकर झुरौंदार और विकृत हो जाती हैं एवं तना लम्बा हो जाता है| रोग से प्रभावित कुछ पत्तियों पर छोटी, गोलाकार उभरी हुई पिटिकायें बनती हैं और रोगी पौधे से निकली बालियां छोटी, मोटी और अधिक दिनों तक हरी बनी रहती हैं| इन बालियों में दाने पिटिकाओं में बदल जाते हैं, जो पहले चमकीली और गहरे रंग की एवं बाद में भूरे-काले रंग की हो जाती है|
रोकथाम- कार्बोफ्युरान (3 प्रतिशत) 65 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज के साथ डालने पर सूत्रकृमि का प्रकोप कम हो जाता है|
पत्ती धब्बा रोग- इस रोग की प्रारम्भिक अवस्था में पीले व भूरापन लिये हुए अण्डाकार धब्बे नीचे की पत्तियों पर दिखाई देते है बाद में धब्बो का किनारा कत्थई रंग का तथा बीच में हल्के भूरे रंग का हो जाता है.
रोकथाम- रोग के नियंत्रण हेतु थायोफिनेट मिथाइल 70 प्रतिशत डब्लू.पी. 700 ग्राम अथवा जीरम 80 प्रतिशत डब्लू.पी. की 2.0 किग्रा. अथवा मैंकोजेब 75 प्रतिशत डब्लू.पी. की 2.0 किग्रा. अथवा जिनेब 75 प्रतिशत डब्लू.पी. की 2.0 किग्रा. प्रति हेक्टेयर लगभग 750 ली. पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए.
गेहूं के प्रमुख कीट
तेला कीट- यह कीट गेहूं, जौ, जई की फसलों को प्रभावित करता है| यह कीट हरे रंग का जू की तरह होता है| जोकि ठण्ड एवं बादलों वाले दिनों में बहुत अधिक संख्या में कोमल पत्तों या बालियों पर प्रकट होते हैं, और गेहूं के दाने पकने के समय अपनी चर्म संख्या में पहुंच जाते हैं| इस कीट के शिशु और प्रौढ़ दोनों पौधों के पत्तों से रस चूसते रहते हैं, विशेषकर बालियों को प्रभावित करते हैं| बादलों एवं ठण्ड वाले मौसम में तेला कीट अधिक नुकसान पहुंचाता है| जो फसल अधिक खाद, अच्छी तरह से सिंचित और मुलायम हो वहाँ लम्बे समय तक इस कीट का प्रकोप बना रहता है|
रोकथाम- अधिक प्रकोप होने पर फसल में बालियाँ बनने की अवस्था में ही या 5 तेला कीट प्रति बाली दिखाई देने पर 1.5 मिलीलीटर डाइमेथोएट 30 ई सी या 1.5 मिलीलीटर मोनोकोटोफॉस 36 एस एल प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें| क्योंकि तेला कीट सबसे पहले फसल के किनारे वाली पंक्तियों में प्रकट होते हैं, इसलिए प्रभावित पंक्तियों में ही छिड़काव करें ताकि कीट का शेष फसल में फैलाव रोका जा सके|
सेना कीट- नवजात सुण्डियाँ पौधों के साथ बारीक धागे की सहायता से लटकी रहती हैं और इसी धागे की मदद से एक पौधे से दूसरे पौधे तक जाती हैं| शुरू में ये सुण्डियाँ कोमल पत्तियों पर पलती हैं और बड़ी सुण्डियाँ पुरानी पत्तियों को खाकर उन्हें पूरी तरह से नष्ट कर देती हैं| फसल में सुण्डियाँ उनकी वीठ से पहचानी जा सकती है| कभी-कभी सुण्डियाँ बालियों एवं दानों को भी खा जाती हैं|
रोकथाम- सुण्डियों को इकट्ठा करके नष्ट कर दें, कीटनाशक जैसे डाइक्लोटवॉस 76 ई सी 2 मिलीलीटर या कार्बारिल 50 डब्ल्यु पी 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव कर सकते हैं|
टिड्डे- इस कीट के प्रौढ़ और शिशु अंकुरित फसल को खाकर बहुत नुकसान पहुंचाते हैं| मैदानी व निचले पर्वतीय क्षेत्रों में कई बार गेहूं की फसल में इससे काफी नुकसान देखा गया है| यह गेहूं के प्रमुख कीटों में से एक है|
रोकथाम- कीट प्रकोप होने पर फसल में मिथाईल पैराथियॉन 2 प्रतिशत डी पी 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से भुरकाव करें| इसके अतिरिक्त 1 मिलीलीटर मिथाईल पैटाथियॉन 50 ई सी प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव भी कर सकते हैं| खेतों की मेढ़ों पर उग रही घास पर भी इन कीटनाशकों का प्रयोग करें|
दीमक- दीमक सफेद मटमैले रंग का बहुभक्षी कीट है जो कालोनी बनाकर रहते हैं. बलुई दोमट मृदा, सूखे की स्थिति में दीमक के प्रकोप की सम्भावना ज्यादा रहती है. ये कीट जम रहे बीजों को व पौधों की जड़ों को खाकर नुकसान पहुंचाते हैं. ये पौधों को रात में जमीन की सतह से भी काटकर हानि पहुंचाती है. प्रभावित पौधे अनियमित आकार में कुतरे हुए दिखाई देते हैं.
रोकथाम- खेत में कच्चे गोबर का प्रयोग नहीं करना चाहिए. फसलों के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए. नीम की खली 10 कुन्तल प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई से पूर्व खेत में मिलाने से दीमक के प्रकोप में कमी आती है. भूमि शोधन हेतु विवेरिया बैसियाना 2.5 किग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से 50-60 किग्रा. अध सडे गोबर में मिलाकर 8-10 दिन रखने के उपरान्त प्रभावित खेत में प्रयोग करना चाहिए.
खड़ी फसल में प्रकोप होने पर सिंचाई के पानी के साथ क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ई.सी. 2.5 ली. प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें .
माहॅू- यह पंखहीन अथवा पंखयुक्त हरे रंग के चुभाने एवं चूसने वाले मुखांग वाले छोटे कीट होते है. कीट के शिशु तथा प्रौढ़ पत्तियों तथा बालियों से रस चूसते हैं तथा मधुश्राव भी करते हैं जिससे काले कवक का प्रकोप हो जाता है तथा प्रकाश संश्लेषण क्रिया बाधित होती है.
रोकथाम
-गर्मी में खेत में गहरी जुताई करनी चाहिए.
-बीजों की समय से बुवाई करें.
-खेत की निगरानी करते रहना चाहिए.
-5 गंधपाश (फेरोमैन ट्रैप) प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए.
गेहूं का बग- इन कीटों का प्रकोप आमतौर पर उत्तर पश्चिमी राज्यों में देखा गया है| जब फसल में दानें बनाना शुरू होते हैं, तब ये कीट नुकसान पहुंचाते हैं| जिसके कारण दाने खोखले रह जाते हैं| यह भी गेहूं के प्रमुख नुकसान पहुँचने वाले कीटों में से एक है|
रोकथाम- कीट प्रकोप अधिक होने पर 1 मिलीलीटर मिथाईल पैन्टाथियॉन 50 ई सी या 1 मिलीलीटर क्वीनलफॉस 25 ई सी प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें|
फली छेदक- इस कीट की सुण्डियाँ पौधों की पत्तियों और बन रहे दानों को हानि पहुँचाती हैं| यह भी गेहूं के प्रमुख नुकसान पहुँचने वाले कीटों में से एक है|
रोकथाम- सुण्डियों का प्रकोप दिखाई देने पर फसल पर 1 मिलीलीटर मिथाईल पैराथियान 50 ई सी या 1 मिलीलीटर क्वीनलफॉस 25 ई सी प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें|
मकड़ी, मोयला- ये भी गेहूं का प्रमुख कीट है, मकड़ी का प्रकोप मध्य दिसम्बर से शुरू होता है|
रोकथाम- पहली बार लाल मकड़ी दिखाई देने पर मिथाइल डिमेटॉन 25 ई सी या डायमिथोएट 30 ई सी एक लीटर या मेलाथियॉन 50 ई सी एक से डेढ लीटर या क्यूनालफॉस 25 ई सी 0.8 से 1.0 लीटर का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें| आवश्यकतानुसार 15 दिन बाद किसी एक कीटनाशी के छिड़काव को दोहरायें|
फ्ली बीटल, फड़का और क्रिकेट्स- गेहूं के प्रमुख इन कीटों पर नियन्त्रण इस प्रकार कर सकते है|
रोकथाम- कीट ग्रस्त खेत में मिथाइल पैराथियॉन 2 प्रतिशत या कार्बारिल 5 प्रतिशत चूर्ण 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से सुबह या शाम के समय भुरकाव करें या क्यूनॉलफॉस 25 ई सी एक लीटर का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें|
तना छेदक- यह भी गेहूं के प्रमुख कीटों में शामिल कीट है, यह गेहूं के तने को खाकर नुकसान पहुचता है|
रोकथाम- फसल की फुटान शुरू होते ही क्यूनालफॉस 25 ई सी एक लीटर का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करने से तना छेदक की रोकथाम की जा सकती है|
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