Skip to main content

गेहूं की फसल का रोग और कीटों से बचाव **

  गेहूं की फसल का रोग और कीटों से बचाव 

भारत देश में गेहूं का उत्पादन में महत्वपूर्ण स्थान है लगभग देश के सभी राज्यों में किसान गेहूं की खेती करते हैं|  गेहूं में बीमारियों सुत्रकृमियों तथा हानिकारक कीटों के कारण 5–10 प्रतिशत उपज की हानि होती है और दानों तथा बीजों की गुणवत्ता भी खराब होती है| गेहूं की नई प्रजातियों को जारी करने से पहले रतुआ रोग तथा पर्ण झुलसा रोगों की प्रतिरोधिता के लिए कई साल तक जांचा जाता है तथा अन्य बीमारियों तथा कीटों के लिए कम से कम दो साल तक परीक्षण किया जाता है| इनमें से केवल उच्च प्रतिरोधिता वाली प्रजातियों की ही संस्तुति की जाती हैं| लेकिन एक ही प्रजाति में सभी प्रकार के रोगों, सूत्रकृमियों तथा हानिकारक कीटों के लिए प्रतिरोधिता होना एक कठिन कार्य हैं| समय के साथ–साथ रोगजनकों का भी विकास होता रहता है और प्रकृति में इनकी नवीनतम प्रजातियाँ विकसित होती रहती है|

गेहूं की फसल के रोग
काला अथवा तना किट्ट- गेहूं की फसल का यह रोग प्रभावित पौधों के तने, संधिस्तंभ, पर्णछंद, पत्तियों और डंठलों के ऊपर लाल भूरे रंग के छोटे-छोटे धब्बे (यूरीडीनोस्पोट) बनते हैं, जो धीरे-धीरे बड़े होकर आपस में मिलकर बड़े-बड़े धब्बे बनाते हैं एवं इनका रंग गहरा भूरा तथा बाद में काला हो जाता है| रोग से प्रभावित पौधों की ऊँचाई घट जाती है, बालियों में दाने कम, सिकुड़े हुए एवं भार में हल्के उत्पन्न होते हैं|

रोकथाम- गेहूं की फसल के इस रोग की रोकथाम के लिए 1.70 किलोग्राम जिनेब को 1.025 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिए|


भूरा रतुआ अथवा पत्ती किट्ट- प्रारम्भ में गेहूं की फसल के इस रोग के लक्षण पत्तियों की उपरी सतह पर अनियमित रूप से बिखरे हुए छोटे गोलाकार और हल्के नारंगी रंग के धब्बों के रूप में प्रकट होते हैं| बाद में धब्बे पत्तियों की दोनों सतहों पर बन जाते हैं| रोग ग्रसित पौधे छोटे रह जाते हैं, बालियों में दाने कम और सिकुड़े हुए बनते हैं|

रोकथाम- गेहूं की फसल के इस रोग की रोकथाम हेतु डाइथेन एम- 45 का 3 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करने से रोग नियंत्रित हो जाता है|

पीला रतुआ या धारीदार किट्ट- रोग के लक्षण पत्तियों पर पिन के सिर जैसे छोटे-छोटे, अण्डाकार, चमकीले पीले रंग के धब्बे के रूप में दिखाई देते हैं, जो पत्ती की शिराओं के बीच में पंक्तियों में होने से पीले रंग की धारी बनाते हैं| बाद में पत्ती की बाह्य त्वचा के नीचे काले रंग के टीलियम रेखाओं के रूप में बनते हैं, जो चपटी काली पपड़ी द्वारा ढके रहते हैं| रोग ग्रसित पौधों की पत्तियां सूख जाती हैं|

रोकथाम- गेहूं की फसल के इस रोग के नियंत्रण के लिए 2.6 प्रति किलोग्राम के हिसाब से बीज उपचारित करना चाहिए तथा साथ ही साथ ओक्सीकार्बोक्सिन का 3.2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए|
 
हिल अथवा पहाड़ी बंट- रोग से प्रभावित पौधे छोटे रह जाते हैं, समय से पूर्व ही पक जाते हैं| रोगी पौधे की बालियाँ संकीर्ण और लम्बी निकलती हैं, जो नीला-हरा रंग लिए होती हैं| बाली में दानों के स्थान पर काले रंग का चूर्ण भर जाता है और रोगी बालियों को दबाने पर सड़ी मछली जैसी दुर्गन्ध आती है|

रोकथाम- गेहूं की फसल के इस रोग के नियंत्रण के लिए बीज को बुआई से पहले एग्रोसन जी एन से 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित कर लेना चाहिए|

करनाल बंट- करनाल बंट को गेहूं का कैंसर भी कहा जाता है| रोग के लक्षण बाली में दाने बनने के बाद ही दिखायी पड़ते हैं| संक्रमित बाली के कुछ दाने आंशिक रूप से काले चूर्ण में बदल जाते हैं|

रोकथाम- गेहूं की फसल के इस रोग के नियन्त्रण हेतु 0.2 प्रतिशत बाविस्टीन का छिड़काव बाली निकलते समय करने से रोग का प्रसार रूक जाता है|
बायो पेस्टीसाइड, ट्राइकोडर्मा 2.5 किग्रा0 प्रति हेक्टेयर 60-75 किग्रा0 सड़ी हुई गोबर की खाद मिलाकर हल्के पानी का छिटा देकर 8-10 दिन तक छाया में रखने के उपरान्त बुवाई से पूर्व आखिरी जुताई पर भूमि में मिलाकर भूमिशोधन करना चाहिए.
इस रोग के नियंत्रण हेतु थिरम 75 प्रतिशत डी.एस./डब्लू.एस0 की 2.5 ग्राम अथवा कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लू.पी. की 2.5 ग्राम अथवा कार्बोक्सिन 75 प्रतिशत डब्लू.पी. की 2.0 ग्राम अथवा टेबुकोनाजोल 2.0 प्रतिशत डी.एस. की 1.0 ग्राम प्रति किग्रा. बीज की दर से बीजशोधन कर बुवाई करना चाहिए.
खड़ी फसल में नियंत्रण हेतु प्रोपिकोनाजोल 25 प्रतिशत ई.सी. की 500 मिली प्रति हेक्टेयर लगभग 750 ली. पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए .

पर्णीय झुलसा या अंगमारी- रोग के लक्षणों में सर्वप्रथम निचली पत्तियों पर छोटे-छोटे, अण्डाकार, भूरे रंग के और अनियमित रूप से बिखरे हुए धब्बे आपस में मिलकर पत्ती का अधिकांश भाग ढक देते हैं|

रोकथाम- गेहूं की फसल के इस रोग के नियन्त्रण हेतु थिरम एवं डाइथेन जैड-78 का 0.25 प्रतिशत छिड़काव करने से इस रोग पर नियंत्रण पाया जा सकता है|

चूर्णिल आसिता- प्रभावित पौधे की पत्तियों पर भूरे सफेद रंग के चूर्ण के ढेर दिखायी देते हैं| रोग की उग्र अवस्था में पर्णछंद, तना और तुषनिपत्र आदि भी भूरे-सफेद चूर्ण से ढक जाते हैं| रोग ग्रसित पौधों द्वारा दाने छोटे और सिकुड़े हुए उत्पन्न होते हैं|

रोकथाम- इस रोग के नियंत्रण के लिए सल्फर का बुरकाव 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर करना चाहिए|
- रोग के संक्रमन से डेन बनने की अवस्था तक 0.1 प्रतिशत प्रोपिकोनेजोल (टिल्ट 25 ईसी) का पत्तियों पर छिड़काव करें | 
- छायादार खेत में गेहूं की बुआई न करें | 
- उत्तर पर्वतीय क्षेत्रों में एचएस 542, वीएल 829, वीएल 907, वीएल 907, एचएस 507, एचएस 490, इत्यादी किस्मों का प्रयोग करें |


गेगला या सेहूँ रोग- रोगी पौधों की पत्तियां ऐंठकर झुरौंदार और विकृत हो जाती हैं एवं तना लम्बा हो जाता है| रोग से प्रभावित कुछ पत्तियों पर छोटी, गोलाकार उभरी हुई पिटिकायें बनती हैं और रोगी पौधे से निकली बालियां छोटी, मोटी और अधिक दिनों तक हरी बनी रहती हैं| इन बालियों में दाने पिटिकाओं में बदल जाते हैं, जो पहले चमकीली और गहरे रंग की एवं बाद में भूरे-काले रंग की हो जाती है|

रोकथाम- कार्बोफ्युरान (3 प्रतिशत) 65 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज के साथ डालने पर सूत्रकृमि का प्रकोप कम हो जाता है|

पत्ती धब्बा रोग- इस रोग की प्रारम्भिक अवस्था में पीले व भूरापन लिये हुए अण्डाकार धब्बे नीचे की पत्तियों पर दिखाई देते है बाद में धब्बो का किनारा कत्थई रंग का तथा बीच में हल्के भूरे रंग का हो जाता है.

रोकथाम- रोग के नियंत्रण हेतु थायोफिनेट मिथाइल 70 प्रतिशत डब्लू.पी. 700 ग्राम अथवा जीरम 80 प्रतिशत डब्लू.पी. की 2.0 किग्रा. अथवा मैंकोजेब 75 प्रतिशत डब्लू.पी. की 2.0 किग्रा. अथवा जिनेब 75 प्रतिशत डब्लू.पी. की 2.0 किग्रा. प्रति हेक्टेयर लगभग 750 ली. पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए.


गेहूं के प्रमुख कीट
तेला कीट- यह कीट गेहूं, जौ, जई की फसलों को प्रभावित करता है| यह कीट हरे रंग का जू की तरह होता है| जोकि ठण्ड एवं बादलों वाले दिनों में बहुत अधिक संख्या में कोमल पत्तों या बालियों पर प्रकट होते हैं, और गेहूं के दाने पकने के समय अपनी चर्म संख्या में पहुंच जाते हैं| इस कीट के शिशु और प्रौढ़ दोनों पौधों के पत्तों से रस चूसते रहते हैं, विशेषकर बालियों को प्रभावित करते हैं| बादलों एवं ठण्ड वाले मौसम में तेला कीट अधिक नुकसान पहुंचाता है| जो फसल अधिक खाद, अच्छी तरह से सिंचित और मुलायम हो वहाँ लम्बे समय तक इस कीट का प्रकोप बना रहता है|

रोकथाम- अधिक प्रकोप होने पर फसल में बालियाँ बनने की अवस्था में ही या 5 तेला कीट प्रति बाली दिखाई देने पर 1.5 मिलीलीटर डाइमेथोएट 30 ई सी या 1.5 मिलीलीटर मोनोकोटोफॉस 36 एस एल प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें| क्योंकि तेला कीट सबसे पहले फसल के किनारे वाली पंक्तियों में प्रकट होते हैं, इसलिए प्रभावित पंक्तियों में ही छिड़काव करें ताकि कीट का शेष फसल में फैलाव रोका जा सके|

सेना कीट- नवजात सुण्डियाँ पौधों के साथ बारीक धागे की सहायता से लटकी रहती हैं और इसी धागे की मदद से एक पौधे से दूसरे पौधे तक जाती हैं| शुरू में ये सुण्डियाँ कोमल पत्तियों पर पलती हैं और बड़ी सुण्डियाँ पुरानी पत्तियों को खाकर उन्हें पूरी तरह से नष्ट कर देती हैं| फसल में सुण्डियाँ उनकी वीठ से पहचानी जा सकती है| कभी-कभी सुण्डियाँ बालियों एवं दानों को भी खा जाती हैं|

रोकथाम- सुण्डियों को इकट्ठा करके नष्ट कर दें, कीटनाशक जैसे डाइक्लोटवॉस 76 ई सी 2 मिलीलीटर या कार्बारिल 50 डब्ल्यु पी 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव कर सकते हैं|

टिड्डे- इस कीट के प्रौढ़ और शिशु अंकुरित फसल को खाकर बहुत नुकसान पहुंचाते हैं| मैदानी व निचले पर्वतीय क्षेत्रों में कई बार गेहूं की फसल में इससे काफी नुकसान देखा गया है| यह गेहूं के प्रमुख कीटों में से एक है|

रोकथाम- कीट प्रकोप होने पर फसल में मिथाईल पैराथियॉन 2 प्रतिशत डी पी 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से भुरकाव करें| इसके अतिरिक्त 1 मिलीलीटर मिथाईल पैटाथियॉन 50 ई सी प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव भी कर सकते हैं| खेतों की मेढ़ों पर उग रही घास पर भी इन कीटनाशकों का प्रयोग करें|

दीमक- दीमक सफेद मटमैले रंग का बहुभक्षी कीट है जो कालोनी बनाकर रहते हैं. बलुई दोमट मृदा, सूखे की स्थिति में दीमक के प्रकोप की सम्भावना ज्यादा रहती है. ये कीट जम रहे बीजों को व पौधों की जड़ों को खाकर नुकसान पहुंचाते हैं. ये पौधों को रात में जमीन की सतह से भी काटकर हानि पहुंचाती है. प्रभावित पौधे अनियमित आकार में कुतरे हुए दिखाई देते हैं.

रोकथाम- खेत में कच्चे गोबर का प्रयोग नहीं करना चाहिए. फसलों के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए. नीम की खली 10 कुन्तल प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई से पूर्व खेत में मिलाने से दीमक के प्रकोप में कमी आती है. भूमि शोधन हेतु विवेरिया बैसियाना 2.5 किग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से 50-60 किग्रा. अध सडे गोबर में मिलाकर 8-10 दिन रखने के उपरान्त प्रभावित खेत में प्रयोग करना चाहिए.

खड़ी फसल में प्रकोप होने पर सिंचाई के पानी के साथ क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ई.सी. 2.5 ली. प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें .

माहॅू- यह पंखहीन अथवा पंखयुक्त हरे रंग के चुभाने एवं चूसने वाले मुखांग वाले छोटे कीट होते है. कीट के शिशु तथा प्रौढ़ पत्तियों तथा बालियों से रस चूसते हैं तथा मधुश्राव भी करते हैं जिससे काले कवक का प्रकोप हो जाता है तथा प्रकाश संश्लेषण क्रिया बाधित होती है.

रोकथाम
-गर्मी में खेत में गहरी जुताई करनी चाहिए.
-बीजों की समय से बुवाई करें.
-खेत की निगरानी करते रहना चाहिए.
-5 गंधपाश (फेरोमैन ट्रैप) प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए.
 
गेहूं का बग- इन कीटों का प्रकोप आमतौर पर उत्तर पश्चिमी राज्यों में देखा गया है| जब फसल में दानें बनाना शुरू होते हैं, तब ये कीट नुकसान पहुंचाते हैं| जिसके कारण दाने खोखले रह जाते हैं| यह भी गेहूं के प्रमुख नुकसान पहुँचने वाले कीटों में से एक है|

रोकथाम- कीट प्रकोप अधिक होने पर 1 मिलीलीटर मिथाईल पैन्टाथियॉन 50 ई सी या 1 मिलीलीटर क्वीनलफॉस 25 ई सी प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें|

फली छेदक- इस कीट की सुण्डियाँ पौधों की पत्तियों और बन रहे दानों को हानि पहुँचाती हैं| यह भी गेहूं के प्रमुख नुकसान पहुँचने वाले कीटों में से एक है|

रोकथाम- सुण्डियों का प्रकोप दिखाई देने पर फसल पर 1 मिलीलीटर मिथाईल पैराथियान 50 ई सी या 1 मिलीलीटर क्वीनलफॉस 25 ई सी प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें|

मकड़ी, मोयला- ये भी गेहूं का प्रमुख कीट है, मकड़ी का प्रकोप मध्य दिसम्बर से शुरू होता है|

रोकथाम- पहली बार लाल मकड़ी दिखाई देने पर मिथाइल डिमेटॉन 25 ई सी या डायमिथोएट 30 ई सी एक लीटर या मेलाथियॉन 50 ई सी एक से डेढ लीटर या क्यूनालफॉस 25 ई सी 0.8 से 1.0 लीटर का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें| आवश्यकतानुसार 15 दिन बाद किसी एक कीटनाशी के छिड़काव को दोहरायें|

फ्ली बीटल, फड़का और क्रिकेट्स- गेहूं के प्रमुख इन कीटों पर नियन्त्रण इस प्रकार कर सकते है|

रोकथाम- कीट ग्रस्त खेत में मिथाइल पैराथियॉन 2 प्रतिशत या कार्बारिल 5 प्रतिशत चूर्ण 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से सुबह या शाम के समय भुरकाव करें या क्यूनॉलफॉस 25 ई सी एक लीटर का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें|

तना छेदक- यह भी गेहूं के प्रमुख कीटों में शामिल कीट है, यह गेहूं के तने को खाकर नुकसान पहुचता है|

रोकथाम- फसल की फुटान शुरू होते ही क्यूनालफॉस 25 ई सी एक लीटर का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करने से तना छेदक की रोकथाम की जा सकती है|


Comments

अन्य लेखों को पढ़ने के लिए फोटो पर क्लिक करे।

कृषि सलाह- धान की बाली बदरंग या बदरा होने के कारण व निवारण (पेनिकल माइट)

कृषि सलाह - धान की बाली बदरंग या बदरा होने के कारण व निवारण (पेनिकल माइट) पेनिकल माइट से जुड़ी दैनिक भास्कर की खबर प्रायः देखा जाता है कि सितम्बर -अक्टूबर माह में जब धान की बालियां निकलती है तब धान की बालियां बदरंग हो जाती है। जिसे छत्तीसगढ़ में 'बदरा' हो जाना कहते है इसकी समस्या आती है। यह एक सूक्ष्म अष्टपादी जीव पेनिकल माइट के कारण होता है। आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक बताएंगे कि पेनिकल माइट के लक्षण दिखे तो उनका प्रबंधन कैसे किया जाए। पेनिकल माइट धान की बाली बदरंग एवं बदरा- धान की बाली में बदरा या बदरंग बालियों के लिए पेनिकल माईट प्रमुख रूप से जिम्मेदार है। पेनिकल माईट अत्यंत सूक्ष्म अष्टपादी जीव है जिसे 20 एक्स आर्वधन क्षमता वाले लैंस से देखा जा सकता है। यह जीव पारदर्शी होता है तथा पत्तियों के शीथ के नीचे काफी संख्या में रहकर पौधे की बालियों का रस चूसते रहते हैं जिससे इनमें दाना नहीं भरता। इस जीव से प्रभावित हिस्सों पर फफूंद विकसित होकर गलन जैसा भूरा धब्बा दिखता है। माईट उमस भरे वातावरण में इसकी संख्या बहुत तेजी से बढ़ती है। ग्रीष्मकालीन धान की ख

वैज्ञानिक सलाह-"चूहा नियंत्रण"अगर किसान भाई है चूहे से परेशान तो अपनाए ये उपाय

  वैज्ञानिक सलाह-"चूहा नियंत्रण"अगर किसान भाई है चूहे से परेशान तो अपनाए ये उपाय जैविक नियंत्रण:- सीमेंट और गुड़ के लड्डू बनाये:- आवश्यक सामग्री 1 सीमेंट आवश्यकता नुसार 2 गुड़ आवश्यकतानुसार बनाने की विधि सीमेंट को बिना पानी मिलाए गुड़ में मिलाकर गुंथे एवं कांच के कंचे के आकार का लड्डू बनाये। प्रयोग विधि जहां चूहे के आने की संभावना है वहां लड्डुओं को रखे| चूहा लड्डू खायेगा और पानी पीते ही चूहे के पेट मे सीमेंट जमना शुरू हो जाएगा। और चूहा धीरे धीरे मर जायेगा।यह काफी कारगर उपाय है। सावधानियां 1लड्डू बनाते समय पानी बिल्कुल न डाले। 2 जहां आप लड्डुओं को रखे वहां पानी की व्यवस्था होनी चाहिए। 3.बच्चों के पहुंच से दूर रखें। साभार डॉ. गजेंद्र चन्द्राकर (वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक) इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर छत्तीसगढ़ संकलन कर्ता हरिशंकर सुमेर तकनीक प्रचारकर्ता "हम कृषकों तक तकनीक पहुंचाते हैं"

सावधान-धान में ब्लास्ट के साथ-साथ ये कीट भी लग सकते है कृषक रहे सावधान

सावधान-धान में ब्लास्ट के साथ-साथ ये कीट भी लग सकते है कृषक रहे सावधान छत्तीसगढ़ राज्य धान के कटोरे के रूप में जाना जाता है यहां अधिकांशतः कृषक धान की की खेती करते है आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर ने बताया कि अगस्त माह में धान की फसल में ब्लास्ट रोग का खतरा शुरू हो जाता है। पत्तों पर धब्बे दिखाई दें तो समझ लें कि रोग की शुरुआत हो चुकी है। धीरे-धीरे यह रोग पूरी फसल को अपनी चपेट में ले लेता है। कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि इस रोग का शुरू में ही इलाज हो सकता है, बढ़ने के बाद इसको रोका नहीं जा सकता। उन्होंने कहा कि किसान रोजाना अपनी फसल की जांच करें और धब्बे दिखाई देने पर तुरंत दवाई का छिड़काव करे। लक्षण धान की फसल में झुलसा (ब्लास्ट) का प्रकोप देखा जा रहा है। इस रोग में पौधों से लेकर दाने बनने तक की अवस्था में मुख्य पत्तियों, बाली पर आंख के आकार के धब्बे बनते हैं, बीच में राख के रंग का तथा किनारों पर गहरे भूरे धब्बे लालिमा लिए हुए होते हैं। कई धब्बे मिलकर कत्थई सफेद रंग के बड़े धब्बे बना लेते हैं, जिससे पौधा झुलस जाता है। अपनाए ये उपाय जैविक नियंत्रण इस रोग के प्रकोप वाले क्षेत्रों म

रोग नियंत्रण-धान की बाली निकलने के बाद की अवस्था में होने वाले फाल्स स्मट रोग का प्रबंधन कैसे करें

धान की बाली निकलने के बाद की अवस्था में होने वाले फाल्स स्मट रोग का प्रबंधन कैसे करें धान की खेती असिंचित व सिंचित दोनों परिस्थितियों में की जाती है। धान की विभिन्न उन्नतशील प्रजातियाँ जो कि अधिक उपज देती हैं उनका प्रचलन धीरे-धीरे बढ़ रहा है।परन्तु मुख्य समस्या कीट ब्याधि एवं रोग व्यधि की है, यदि समय रहते इनकी रोकथाम कर ली जाये तो अधिकतम उत्पादन के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। धान की फसल को विभिन्न कीटों जैसे तना छेदक, पत्ती लपेटक, धान का फूदका व गंधीबग द्वारा नुकसान पहुँचाया जाता है तथा बिमारियों में जैसे धान का झोंका, भूरा धब्बा, शीथ ब्लाइट, आभासी कंड व जिंक कि कमी आदि की समस्या प्रमुख है। आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक बताएंगे कि अगर धान की फसल में फाल्स स्मट (कंडुआ रोग) का प्रकोप हो तो इनका प्रबंधन किस प्रकार करना चाहिए। कैसे फैलता है? फाल्स स्मट (कंडुआ रोग) ■धान की फसल में रोगों का प्रकोप पैदावार को पूरी तरह से प्रभावित कर देता है. कंडुआ एक प्रमुख फफूद जनित रोग है, जो कि अस्टीलेजनाइडिया विरेन्स से उत्पन्न होता है। ■इसका प्राथमिक संक्रमण बीज से हो

धान के खेत मे हो रही हो "काई"तो ऐसे करे सफाई

धान के खेत मे हो रही हो "काई"तो ऐसे करे सफाई सामान्य बोलचाल की भाषा में शैवाल को काई कहते हैं। इसमें पाए जाने वाले क्लोरोफिल के कारण इसका रंग हरा होता है, यह पानी अथवा नम जगह में पाया जाता है। यह अपने भोजन का निर्माण स्वयं सूर्य के प्रकाश से करता है। धान के खेत में इन दिनों ज्यादा देखी जाने वाली समस्या है काई। डॉ गजेंद्र चन्द्राकर(वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक) इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर छत्तीसगढ़ के अनुुसार  इसके निदान के लिए किसानों के पास खेत के पानी निकालने के अलावा कोई रास्ता नहीं रहता और पानी की कमी की वजह से किसान कोई उपाय नहीं कर पाता और फलस्वरूप उत्पादन में कमी आती है। खेतों में अधिकांश काई की समस्या से लगातार किसान परेशान रहते हैं। ऐसे नुकसान पहुंचाता है काई ◆किसानों के पानी भरे खेत में कंसे निकलने से पहले ही काई का जाल फैल जाता है। जिससे धान के पौधे तिरछे हो जाते हैं। पौधे में कंसे की संख्या एक या दो ही हो जाती है, जिससे बालियों की संख्या में कमी आती है ओर अंत में उपज में कमी आ जाती है, साथ ही ◆काई फैल जाने से धान में डाले जाने वाले उर्वरक की मात्रा जमीन तक नहीं

सावधान -धान में लगे भूरा माहो तो ये करे उपाय

सावधान-धान में लगे भूरा माहो तो ये करे उपाय हमारे देश में धान की खेती की जाने वाले लगभग सभी भू-भागों में भूरा माहू (होमोप्टेरा डेल्फासिडै) धान का एक प्रमुख नाशककीट है| हाल में पूरे एशिया में इस कीट का प्रकोप गंभीर रूप से बढ़ा है, जिससे धान की फसल में भारी नुकसान हुआ है| ये कीट तापमान एवं नमी की एक विस्तृत सीमा को सहन कर सकते हैं, प्रतिकूल पर्यावरण में तेजी से बढ़ सकते हैं, ज्यादा आक्रमक कीटों की उत्पती होना कीटनाशक प्रतिरोधी कीटों में वृद्धि होना, बड़े पंखों वाले कीटों का आविर्भाव तथा लंबी दूरी तय कर पाने के कारण इनका प्रकोप बढ़ रहा है। भूरा माहू के कम प्रकोप से 10 प्रतिशत तक अनाज उपज में हानि होती है।जबकि भयंकर प्रकोप के कारण 40 प्रतिशत तक उपज में हानि होती है।खड़ी फसल में कभी-कभी अनाज का 100 प्रतिशत नुकसान हो जाता है। प्रति रोधी किस्मों और इस किट से संबंधित आधुनिक कृषिगत क्रियाओं और कीटनाशकों के प्रयोग से इस कीट पर नियंत्रण पाया जा सकता है । आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक बताएंगे कि भूरा माहू का प्रबंधन किस प्रकार किया जाए। लक्षण एवं पहचान:- ■ यह कीट भूर

समसामयिक सलाह:- भारी बारिश के बाद हुई (बैटीरियल लीफ ब्लाइट ) से धान की पत्तियां पीली हो गई । ऐसे करे उपचार नही तो फसल हो जाएगी चौपट

समसामयिक सलाह:- भारी बारिश के बाद हुई (बैटीरियल लीफ ब्लाइट ) से धान की पत्तियां पीली हो गई । ऐसे करे उपचार नही तो फसल हो जाएगी चौपट छत्त्तीसगढ़ राज्य में विगत दिनों में लगातार तेज हवाओं के साथ काफी वर्षा हुई।जिसके कारण धान के खेतों में धान की पत्तियां फट गई और पत्ती के ऊपरी सिरे पीले हो गए। जो कि बैटीरियल लीफ ब्लाइट नामक रोग के लक्षण है। आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर बताएंगे कि ऐसे लक्षण दिखने पर किस प्रकार इस रोग का प्रबंधन करे। जीवाणु जनित झुलसा रोग (बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट): रोग के लक्षण ■ इस रोग के प्रारम्भिक लक्षण पत्तियों पर रोपाई या बुवाई के 20 से 25 दिन बाद दिखाई देते हैं। सबसे पहले पत्ती का किनारे वाला ऊपरी भाग हल्का पीला सा हो जाता है तथा फिर मटमैला हरापन लिये हुए पीला सा होने लगता है। ■ इसका प्रसार पत्ती की मुख्य नस की ओर तथा निचले हिस्से की ओर तेजी से होने लगता है व पूरी पत्ती मटमैले पीले रंग की होकर पत्रक (शीथ) तक सूख जाती है। ■ रोगग्रसित पौधे कमजोर हो जाते हैं और उनमें कंसे कम निकलते हैं। दाने पूरी तरह नहीं भरते व पैदावार कम हो जाती है। रोग का कारण यह रोग जेन्थोमोनास

वैज्ञानिक सलाह- धान की खेती में खरपतवारों का रसायनिक नियंत्रण

धान की खेती में खरपतवार का रसायनिक नियंत्रण धान की फसल में खरपतवारों की रोकथाम की यांत्रिक विधियां तथा हाथ से निराई-गुड़ाईयद्यपि काफी प्रभावी पाई गई है लेकिन विभिन्न कारणों से इनका व्यापक प्रचलन नहीं हो पाया है। इनमें से मुख्य हैं, धान के पौधों एवं मुख्य खरपतवार जैसे जंगली धान एवं संवा के पौधों में पुष्पावस्था के पहले काफी समानता पाई जाती है, इसलिए साधारण किसान निराई-गुड़ाई के समय आसानी से इनको पहचान नहीं पाता है। बढ़ती हुई मजदूरी के कारण ये विधियां आर्थिक दृष्टि से लाभदायक नहीं है। फसल खरपतवार प्रतिस्पर्धा के क्रांतिक समय में मजदूरों की उपलब्धता में कमी। खरीफ का असामान्य मौसम जिसके कारण कभी-कभी खेत में अधिक नमी के कारण यांत्रिक विधि से निराई-गुड़ाई नहीं हो पाता है। अत: उपरोक्त परिस्थितियों में खरपतवारों का खरपतवार नाशियों द्वारा नियंत्रण करने से प्रति हेक्टेयर लागत कम आती है तथा समय की भारी बचत होती है, लेकिन शाकनाशी रसायनों का प्रयोग करते समय उचित मात्रा, उचित ढंग तथा उपयुक्त समय पर प्रयोग का सदैव ध्यान रखना चाहिए अन्यथा लाभ के बजाय हानि की संभावना भी रहती है। डॉ गजेंद्र चन्

समसामयिक सलाह-" गर्मी व बढ़ती उमस" के साथ बढ़ रहा है धान की फसल में भूरा माहो का प्रकोप,जल्द अपनाए प्रबंधन के ये उपाय

  धान फसल को भूरा माहो से बचाने सलाह सामान्यतः कुछ किसानों के खेतों में भूरा माहों खासकर मध्यम से लम्बी अवधि की धान में दिख रहे है। जो कि वर्तमान समय में वातारण में उमस 75-80 प्रतिशत होने के कारण भूरा माहो कीट के लिए अनुकूल हो सकती है। धान फसल को भूरा माहो से बचाने के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ गजेंद्र चंद्राकर ने किसानों को सलाह दी और अपील की है कि वे सलाह पर अमल करें। भूरा माहो लगने के लक्षण ■ गोल काढ़ी होने पर होता है भूरा माहो का प्रकोप ■ खेत में भूरा माहो कीट प्रारम्भ हो रहा है, इसके प्रारम्भिक लक्षण में जहां की धान घनी है, खाद ज्यादा है वहां अधिकतर दिखना शुरू होता है। ■ अचानक पत्तियां गोल घेरे में पीली भगवा व भूरे रंग की दिखने लगती है व सूख जाती है व पौधा लुड़क जाता है, जिसे होपर बर्न कहते हैं, ■ घेरा बहुत तेजी से बढ़ता है व पूरे खेत को ही भूरा माहो कीट अपनी चपेट में ले लेता है। भूरा माहो कीट का प्रकोप धान के पौधे में मीठापन जिसे जिले में गोल काढ़ी आना कहते हैं । ■तब से लेकर धान कटते तक देखा जाता है। यह कीट पौधे के तने से पानी की सतह के ऊपर तने से चिपककर रस चूसता है। क्या है भू

सावधान -धान में (फूल बालियां) आते समय किसान भाई यह गलतियां ना करें।

  धान में फूल बालियां आते समय किसान भाई यह गलतियां ना करें। प्रायः देखा गया है कि किसान भाई अपनी फसल को स्वस्थ व सुरक्षित रखने के लिए कई प्रकार के कीटनाशक व कई प्रकार के फंगीसाइड का उपयोग करते रहते है। उल्लेखनीय यह है कि हर रसायनिक दवा के छिड़काव का एक निर्धारित समय होता है इसे हमेशा किसान भइयों को ध्यान में रखना चाहिए। आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय बताएंगे कि धान के पुष्पन अवस्था अर्थात फूल और बाली आने के समय किन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है, ताकि फसल का अच्छा उत्पादन प्राप्त हो। सुबह के समय किसी भी तरह का स्प्रे धान की फसलों पर नहीं करें कारण क्योंकि सुबह धान में फूल बनते हैं (Fertilization Activity) फूल बनाने की प्रक्रिया धान में 5 से 7 दिनों तक चलता है। स्प्रे करने से क्या नुकसान है। ■Fertilization और फूल बनते समय दाना का मुंह खुला रहता है जिससे स्प्रे के वजह से प्रेशर दानों पर पड़ता है वह दाना काला हो सकता है या बीज परिपक्व नहीं हो पाता इसीलिए फूल आने के 1 सप्ताह तक किसी भी तरह का स्प्रे धान की फसल पर ना करें ■ फसल पर अग