Skip to main content

सूत्रकृमि:- लाखो टन फसल को चौपट कर जाती है सूत्रकृमि

 

सूत्रकृमि:- लाखो टन फसल को चौपट कर जाती है " सूत्रकृमि"

डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर(वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक)

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर



भारत में निरंतर बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण बढ़ती हुई मांग के अनुरूप पूर्ति ना कर पाना भारत जैसे कृषि प्रधान देश के लिए चिंता का विषय है। हल्दी की फसल के उत्पादन में गिरावट के प्रमुख कारणों में से एक कारण यह भी है कि कृषकों को हानी पहुँचाने वाले सूत्रकृमी की समस्याओं का उचित समाधान करने की जानकारी नहीं है। अत: प्रस्तुत लेख में धान और गेहूं के उत्पादन में बाधा पहुँचाने वाले जड़ – गांठ रोग के कारक, मेलेड़ोगाइन ग्रेमिनिकोला एवं उनका प्रबंधन हेतु उचित नियंत्रण विधियों का उल्लेख किया गया है।

धान और गेहूं में जड़ –गांठ सूत्रकृमी, मेलेड़ोगाइन ग्रेमिनिकोला की व्यापक समस्या है। यह समस्या, पूर्व, उत्तर प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और बिहार कुछ हिस्सों में इतनी गंभीर है जिससे फसल की पैदावार पर असर पड़ता है।

यह सूत्रकृमी गतिहीन अंत: परजीवी है। विश्व में इस सूत्रकृमी की 90 से अधिक प्रजातियाँ ही भारत में प्रचलित हैं। मेलेड़ोगाइन ग्रेमिनिकोला भारत सहित दुनिया भर में धान की फसल को अत्यधिक हानि पहुँचाने वाला प्रमुख हानिकारक सूत्रकृमी है। यह सूत्रकृमी धान पौधशाला में धान की रोपण सामग्री को गंभीर नुकसान पहुँचाता है। ये सूत्रकृमी धान की फसलों के साथ गेहूं की फसल को भी हानि पहुंचाने में सक्षम होते हैं, इनके लिए 20 से 35 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान अनुकूल होता है। इसलिए, इनकी जनसंख्या चावल- गेहूं फसल प्रणाली में तेजी से बढ़ती है।


लक्षण



पौधशाला और खेत में धान की फसल का पीला पड़ना, पौधों की असमान वृद्धि एवं पत्तियों का आकार कम होना। सूत्रकृमी ग्रसित फसल जल्दी सूख जाती है। एम. ग्रेमिनिकोला अक्सर जड़ ऊतकों के कार्यों में बाधा पहुंचाता है। उनके द्वारा संक्रमित पौधों की जड़ें मिट्टी से उचित पोषण एवं पानी नहीं ले पाती हैं। जिसके कारण पौधे  के ऊपरी भागों में लक्षण उत्पन्न  होते हैं। जिसके कारण पौधे के ऊपरी भागों में लक्षण उत्पन्न होते हैं जैसे, पोषण की कमी, शुष्कता, लवण की अधिकता, व अन्य तनाव की परिस्थितियां उत्पन्न होती हैं। पौधों की वृद्धि रूक जाती है, पत्तियां पीली पड़ जाती है तथा शाखाएं कम निकलती है। एम.  ग्रेमिनिकोला संक्रमित जड़ों में गांठे बन जाती हैं। प्राय: इन गांठों को अलग नहीं किया जा सकता। मिट्टी में रहकर यह नई जड़ों को भेद कर उनके अंदर घुस जाते हैं तथा पानी और खाना ले जाने वाली कोशिकाओं पर आक्रमण करते हैं। तत्पश्चात यह सूत्रकृमी गोलाकार होकर जड़ों में गांठे पैदा करते हैं। इन गांठों के कारण पौधे मृदा में पोषक तत्व तथा पानी की उपलब्धता होते हुए भी पर्याप्त मात्रा में उसे ग्रहण नहीं कर पाते

वितरण

एम. ग्रेमिनिकोला ग्रसित धान में जड़ – गांठ रोग भारत के अधिकांश राज्यों जैसे, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, बिहार, छत्तीसगढ़ पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा उत्तर – पूर्वी राज्यों सहित दुनिया के सभी धान की खेती करने वाले क्षेत्रों में प्रचलित है। जहाँ चावल एक वर्ष में एक से अधिक फसल के रूप में उगाया जाता है वहां इस सूत्रकृमी की समस्या विशेष रूप से गंभीर हैं। जम्मू, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश सहित उत्तर भारत में धान पौधशाला में संक्रमित पौधों को खेतों में रोपण के बाद अंकित किया गया।


फैलाव

गेहूं और धान को हानि पहुँचाने वाले एम. ग्रेमिनिकोला निम्न तरीकों से एक स्थान से दुसरे अन्य स्थानों पर जाकर फसल को संक्रमित करते हैं।


संक्रमित पौधों की जड़ों द्वारा जड़ – गांठ सूत्रकृमी एम. ग्रेमिनिकोला का फैलाव होता है।


सिंचाई और बारिश के पानी द्वारा संक्रमित खेत से दूसरे खेतों में इस सूत्रकृमी का फैलाव होता है।


मृदा, मवेशियों, मानवों कृषि मशीनरी, हवा और पानी आदि के द्वारा जड़ – गांठ सूत्रकृमी एम. ग्रेमिनिकोला का फैलाव होता है।


यह सूत्रकृमी संक्रमित बीज द्वारा नहीं फैलता है।


जीवनशैली एवं जीवन चक्र

एम. ग्रेमिनिकोला को एम्फिमिक्सस और अर्धसूत्री विभाजनिक अनिषक जनन द्वारा प्रजनन  करने में सक्षम हैं। लगभग 200 से 500 आंशिक रूप से भ्रूणित अंडे जैलेटीनस  डिंब मैट्रिक्स में जमा रहते हैं। भ्रूण जनन के 4 – 6 दिनों के बाद एक पहला जूवनाइल (जे1) तथा 2 – 3 दिनों में दुसरे जूवनाइल (जे2) में परिवर्तित होता है संक्रामक जूवनाइल (जे2) अनुकूल पर्यावरणीय परिस्थतियों, 20 – 20 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान तथा उपयुक्त नमी में अंडे से बाहर निकलते हैं। अंडे से बाहर निकलने के दर धीमी होती है यानी कई हफ्तों तक चलती है।

अन्हैचट जूवनाइल (जे2) अंडे के अंदर कई हफ्तों तक शुष्क अवस्था तथा भोजन के अभाव में रह सकता है। जूवनाइल (जे2) पौधे की जड़ों में प्रवेश करके सियांशुम और गांठे बनता है। जे2 में फुलाव संक्रमित एवं निमोचन के 3 – 4 दिनों बाद आता है और यह जे3 तत्पश्चात जे4, वयस्क मादा तथा नर में परिवर्तित हो जाता है। जे3 और जे4, वयस्क मादा तथा नर में परिवर्तित हो जाता है। जे3 और जे4 में स्टाईलिट न होने के कर्ण यह अवस्था संक्रमणकारी  नहीं होती। एम. ग्रेमिनिकोला धान और गेहूं की फसल में अपना अंडे से अंडे का जीवन चक्र 27 – 30  डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान पर लगभग 25 – 28  दिनों में पूरा कर लेते हैं। सर्दियों के दौरान कम तापमान पर गेहूं की फसल में इनका लंबा जीवन चक्र 65 दिनों तक रहता है। वयस्क नर 13 – 16 दिनों तक देखा जा सकता है और इसके बाद यह 3 – 4 दिन के बाद नये अंडे देती है।

दिल्ली की परिस्थितियों के अंतर्गत एक विशिष्ट धान – गेहूं फसल पद्धति में इस सूत्रकृमी की धान नर्सरी में एक पीढ़ी,छोटी अवधि के मोटे धान में दो पीढ़ी, बासमती धान में तीन पीढ़ियों और नवंबर में बोये गये गेहूं में दो पीढ़ी और दिसंबर में बोये गये गेहूं में एक पीढ़ी जीवन चक्र पूरा करती है। इस प्रकार एक वर्ष में इस सूत्रकृमी की 4 – 6 पीढियां जीवन चक्र पूरा कर सकती है।


जनसंख्या

जे2 की मिट्टी में जनसंख्या वृद्धि दर तापमान, नमी, वायु संचारण और और पोषक पौधे पर आधारित होती है। मिट्टी में जनसंख्या मई – अगस्त और दिसंबर – फरवरी माह के दौरान बहुत कम, सितंबर के अंत तक मध्य अक्टूबर (चावल की फसल के दो हफ्ते पहले ) और मध्य मार्च – अप्रैल (गेहूं की फसल की कटाई से 2 – 3 सप्ताह पहले) के बीच अधिक होती है। बुवाई का समय, फसल की अवधि, मिट्टी की नमी और तापमान का असर जनसंख्या वृद्धि पर पड़ता है।


पोषण फसलें

जड़ –गांठ सूत्रकृमी एम. ग्रेमिनिकोला गेहूं, जौ, जई, चावल, घासपात और कई अन्य ग्रेनमसियस फसल से अपना भोजन प्राप्त करती है और इन फसलों पर सूत्रकृमियों  का अच्छा बहुगुणनहोता है।


सामान्य ग्रेनमसियम घासपात फसलें जैसे, सायपरस रौंडूस और फल्रिस माइनर गेहूं के साथ एअथा एचिनोचलो सपिसीस  चावल के साथ सूत्रकृमियों के लिए वरदान फसलें है।


गैर – ग्रामीनसस  फसलें जैसे, सूरजमुखी, लोबिया, बरसीम, आलू और घासपात चेनोपोडियम सपीसीस एम. ग्रेमिनिकोला की जनसंख्या बढ़ोतरी के लिए उपयुक्त है।


सरसों, तोरियो, कुसूम, तिल, मसूर, अरहर तथा चना आदि फसलें जड़ – गांठ सूत्रकृमी एम. ग्रेमिनिकोला के लिए अच्छी पोषण फसलें नहीं है।


फसल हानि

फसल की हानि सूत्रकृमी जनसंख्या घनत्व और अन्य फसल विकास की स्थिति पर निर्भर करती है। किसी भी देश या पूरे राज्य में हानि की गणना करने के लिए विश्वसनीय आंकड़े उपलब्ध नहीं है। हालाँकि, एक परिक्षण के अनुसार गेहूं की फसल में सूत्रकृमिनाशक उपचार के बाद 17 प्रतिशत हानि, सीधे सीड धान में 71 प्रतिशत उपचारित पौधशाला – बेड से लिए गये प्रत्यारोपित धान में 29 प्रतिशत अनुपाचारित पौधशाला – बेड से लिए गये प्रत्यारोपित धान में 38 प्रतिशत हानि अंकित की गयी है।


समाधान

सूत्रकृमियों की समस्या का निम्नलिखित नियंत्रण विधियों द्वारा समाधान किया जा सकता है। इन नियंत्रण विधियों को रोगों की प्रारंभिक अवस्था में अपनाने से पौधों को सूत्रकृमियों  द्वारा अत्यधिक हानि से बचाया जा सकता है।


फसल चक्र

धान और गेहूं की दोनों फसलों की एक साले में खेती न करना। जड़ – गांठ सूत्रकृमी एम. ग्रेमिनिकोला की जनसंख्या घनत्व को कम करने में प्रभावी होता है।


गेहूं के साथ पर चना या सरसों की खेती करना। जड़ – गांठ सूत्रकृमी जनसंख्या घनत्व कम करने में सहायक होता है।


आमतौर पर किसान खरीफ में अन्य फसलों के स्थान पर धान की फसल को बदलने के लिए तैयार नहीं होते हैं।


खरीफ में तिल की खेती करके जड़ – गांठ सूत्रकृमी जनसंख्या को कम कर सकते हैं।


ग्रीष्मकालीन जुताई

ग्रीष्म काल में गेहूं की फसल की कटाई के बाद खेत की 15 दिनों के अंतराल पर दो बार गहराई से जुताई करने से सूत्रकृमी जनसंख्या में 70 प्रतिशत से अधिक की कमी तथा आगामी धान की फसल को हानि पहुँचाने वाले सूत्रकर्मियों के प्रबंधन में भी प्रभावी होती है।


फसल अवशेष

फसल अवशेषों के उपयोग से मृदा की कार्बनिक स्थिति में सुधार आता है। इनके उपयोग से सूत्रकृमियों की जनसंख्या में कमी तथा सूक्ष्मजीवों की जनसंख्या में वृद्धि होती है। मृदा में गेहूं और धान की पुआल मिलाने से सूत्रकृमियों की जनसंख्या में कमी तथा गेहूं और धान की फसल की पैदावार में बढ़ोतरी होती है। गेहूं और चावल के बीच मूंग की फसल की बु आई करने तथा फली की तुड़ाई के बाद गहराई से जुताई करने से चावल की फसल में सूत्रकृमी जनसंख्या में काफी कमी आती है। सेसबानिया अकुलेटा या सेसबनिया  रोस्टराता  की बुआई करने तथा तुड़ाई के बाद गहराई से जुताई करने से गेहूं की फसल में जड़ – गांठ सूत्रकृमी जनसंख्या में कमी आती है।


जल प्रबंधन

धान की फसल में निरंतर बाढ़, अनिरंतर बाढ़ और बाढ़ का न आना जड़ – गांठ सूत्रकृमी जनसंख्या में कमी जबकि अनिरंतर बाढ़ और बिना बाढ़ में जड़ – गांठ सूत्रकृमी जनसंख्या में वृद्धि होती है। रोपण 45 दिनों के बाढ़ के कारण सूत्रकृमी जनसंख्या में कमी अंकित की गई है।


मृदा सौरीकरण

मृदा सौरीकरण के तहत गर्मी में पतली पॉलिथीन शीट (25 – 60 µm) की 3 – 4 सप्ताह  ढकने से 15 सेंमी ऊपरी परत में सूत्रकृमी जनसंख्या को कम करने से अत्यधिक प्रभावी  पाया गया। जब मृदा का तापमान 40 – 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचता है तब खेतों में 10 सेंमी तत्पश्चात 15 सेंमी ऊपरी परत में सूत्रकृमी जनसंख्या कम हो जाती है परंतु सूत्रकृमी गहराई में मौजूद रहते हैं। मृदा सौरीकरण बहुत महंगा होता है। अत: नर्सरी – बेड के लिए  यह  नियंत्रण विधि उपयोगी है।


सूत्रकृमिनाशक

सूत्रकृमिनाशक  जैसे, कार्बोफ्यूरान @1 किलो ए. आई/है. या  फोरेट @1 किलो ए. आई/है. से खेतों को रोपण के 2 बार उपचारित करने से सूत्रकृमी के प्रति प्रभावी पाया गया (प्रतिबंधित क्षेत्रों के अतिरिक्त)


रोपण के क्रमशः 2 दिन तथा 40 दिनों के बाद कार्बोफ्यूरान @0.5 किलो ए. आई/है. या फोरेट/0.5 किलो ए. आई/है से उपचारित करने से सूत्रकृमी जनसंख्या में कमी अंकित की गई है (प्रतिबंधित क्षेत्रों के अतिरिक्त)।


नीम उत्पादों जैसे, अचूक/ 5 प्रतिशत w/w, निंबेसीडाइन, नीममार्क, नीम सीड करनाल आदि के साथ धान के बीज को उपचारित करने से सूत्रकृमी जनसंख्या में कमी आती है और फसल के लिए सूत्रकृमी मोक्त रोपण सामग्री मिलती है।


एकीकृत सूत्रकृमी प्रबंधन


इन नियंत्रण विधियों का उपयोग करके काफी स्तर तक सूत्रकृमी जनसंख्या पर नियंत्रण कर कर सकते हैं, परंतु इनमें से कोई भी नियंत्रण विधि जो सूत्रकृमी प्रबंधन में शतप्रतिशत प्रभावी, सुरक्षित और किफायती हो। फसल चक्र, मृदा सौरीकरण तथा कम मात्रा में सूत्रकृमिनाशक के संयूक्त संयोजन को तैयार करके उपयोग करने से न केवल सूत्रकृमियों  को नियंत्रण कर सकते हैं बल्कि मिट्टी से उत्पन्न अन्य रोगजनकों और घासपात को प्रति भी प्रभावी होते हैं।


पौधशाला प्रबंधन


पौधशाला के लिए ऐसे स्थान का चयन करते हैं, जहाँ पिछले दो वर्षों में धान नहीं उगाया गया हो।


मई माह में तीन सप्ताह तक रंगहीन, पतली पॉलिथिन शीट (25 – 60 µm) से चिन्हित क्षेत्र के नर्सरी बेड की झपनी करके मृदाकरण।


कार्बोफ्यूरान या फोरेट/0.2 ग्राम ए. आई बुवाई के समय मिट्टी की ऊपरी 5 सेंमी परत के साथ मिश्रित करते हैं (प्रतिबंधित क्षेत्रों के अतिरिक्त)


खेत प्रबंधन


मई – जून में खेत की 15 दिनों के अंतराल पर दो बार गहराई से जुताई करना।


उपचारित पौधशाला की सूत्रकृमी मुक्त स्वस्थ रोपण सामग्री का उपयोग करना।


गेहूं की देर से बोयी जाने वाले प्रजातियों को नवंबर से लेकर मध्य दिसंबर तक देर  से बुवाई करना सूत्रकृमियों के प्रबंधन में प्रभावी होता है।


अगर सूत्रकृमियों का आपतन अधिक है तब रबी के मौसम में गेहूं के साथ पर सरसों की खेती उपयुक्त होती है।

Comments

अन्य लेखों को पढ़ने के लिए फोटो पर क्लिक करे।

कृषि सलाह- धान की बाली बदरंग या बदरा होने के कारण व निवारण (पेनिकल माइट)

कृषि सलाह - धान की बाली बदरंग या बदरा होने के कारण व निवारण (पेनिकल माइट) पेनिकल माइट से जुड़ी दैनिक भास्कर की खबर प्रायः देखा जाता है कि सितम्बर -अक्टूबर माह में जब धान की बालियां निकलती है तब धान की बालियां बदरंग हो जाती है। जिसे छत्तीसगढ़ में 'बदरा' हो जाना कहते है इसकी समस्या आती है। यह एक सूक्ष्म अष्टपादी जीव पेनिकल माइट के कारण होता है। आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक बताएंगे कि पेनिकल माइट के लक्षण दिखे तो उनका प्रबंधन कैसे किया जाए। पेनिकल माइट धान की बाली बदरंग एवं बदरा- धान की बाली में बदरा या बदरंग बालियों के लिए पेनिकल माईट प्रमुख रूप से जिम्मेदार है। पेनिकल माईट अत्यंत सूक्ष्म अष्टपादी जीव है जिसे 20 एक्स आर्वधन क्षमता वाले लैंस से देखा जा सकता है। यह जीव पारदर्शी होता है तथा पत्तियों के शीथ के नीचे काफी संख्या में रहकर पौधे की बालियों का रस चूसते रहते हैं जिससे इनमें दाना नहीं भरता। इस जीव से प्रभावित हिस्सों पर फफूंद विकसित होकर गलन जैसा भूरा धब्बा दिखता है। माईट उमस भरे वातावरण में इसकी संख्या बहुत तेजी से बढ़ती है। ग्रीष्मकालीन धान की ख

वैज्ञानिक सलाह-"चूहा नियंत्रण"अगर किसान भाई है चूहे से परेशान तो अपनाए ये उपाय

  वैज्ञानिक सलाह-"चूहा नियंत्रण"अगर किसान भाई है चूहे से परेशान तो अपनाए ये उपाय जैविक नियंत्रण:- सीमेंट और गुड़ के लड्डू बनाये:- आवश्यक सामग्री 1 सीमेंट आवश्यकता नुसार 2 गुड़ आवश्यकतानुसार बनाने की विधि सीमेंट को बिना पानी मिलाए गुड़ में मिलाकर गुंथे एवं कांच के कंचे के आकार का लड्डू बनाये। प्रयोग विधि जहां चूहे के आने की संभावना है वहां लड्डुओं को रखे| चूहा लड्डू खायेगा और पानी पीते ही चूहे के पेट मे सीमेंट जमना शुरू हो जाएगा। और चूहा धीरे धीरे मर जायेगा।यह काफी कारगर उपाय है। सावधानियां 1लड्डू बनाते समय पानी बिल्कुल न डाले। 2 जहां आप लड्डुओं को रखे वहां पानी की व्यवस्था होनी चाहिए। 3.बच्चों के पहुंच से दूर रखें। साभार डॉ. गजेंद्र चन्द्राकर (वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक) इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर छत्तीसगढ़ संकलन कर्ता हरिशंकर सुमेर तकनीक प्रचारकर्ता "हम कृषकों तक तकनीक पहुंचाते हैं"

सावधान-धान में ब्लास्ट के साथ-साथ ये कीट भी लग सकते है कृषक रहे सावधान

सावधान-धान में ब्लास्ट के साथ-साथ ये कीट भी लग सकते है कृषक रहे सावधान छत्तीसगढ़ राज्य धान के कटोरे के रूप में जाना जाता है यहां अधिकांशतः कृषक धान की की खेती करते है आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर ने बताया कि अगस्त माह में धान की फसल में ब्लास्ट रोग का खतरा शुरू हो जाता है। पत्तों पर धब्बे दिखाई दें तो समझ लें कि रोग की शुरुआत हो चुकी है। धीरे-धीरे यह रोग पूरी फसल को अपनी चपेट में ले लेता है। कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि इस रोग का शुरू में ही इलाज हो सकता है, बढ़ने के बाद इसको रोका नहीं जा सकता। उन्होंने कहा कि किसान रोजाना अपनी फसल की जांच करें और धब्बे दिखाई देने पर तुरंत दवाई का छिड़काव करे। लक्षण धान की फसल में झुलसा (ब्लास्ट) का प्रकोप देखा जा रहा है। इस रोग में पौधों से लेकर दाने बनने तक की अवस्था में मुख्य पत्तियों, बाली पर आंख के आकार के धब्बे बनते हैं, बीच में राख के रंग का तथा किनारों पर गहरे भूरे धब्बे लालिमा लिए हुए होते हैं। कई धब्बे मिलकर कत्थई सफेद रंग के बड़े धब्बे बना लेते हैं, जिससे पौधा झुलस जाता है। अपनाए ये उपाय जैविक नियंत्रण इस रोग के प्रकोप वाले क्षेत्रों म

रोग नियंत्रण-धान की बाली निकलने के बाद की अवस्था में होने वाले फाल्स स्मट रोग का प्रबंधन कैसे करें

धान की बाली निकलने के बाद की अवस्था में होने वाले फाल्स स्मट रोग का प्रबंधन कैसे करें धान की खेती असिंचित व सिंचित दोनों परिस्थितियों में की जाती है। धान की विभिन्न उन्नतशील प्रजातियाँ जो कि अधिक उपज देती हैं उनका प्रचलन धीरे-धीरे बढ़ रहा है।परन्तु मुख्य समस्या कीट ब्याधि एवं रोग व्यधि की है, यदि समय रहते इनकी रोकथाम कर ली जाये तो अधिकतम उत्पादन के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। धान की फसल को विभिन्न कीटों जैसे तना छेदक, पत्ती लपेटक, धान का फूदका व गंधीबग द्वारा नुकसान पहुँचाया जाता है तथा बिमारियों में जैसे धान का झोंका, भूरा धब्बा, शीथ ब्लाइट, आभासी कंड व जिंक कि कमी आदि की समस्या प्रमुख है। आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक बताएंगे कि अगर धान की फसल में फाल्स स्मट (कंडुआ रोग) का प्रकोप हो तो इनका प्रबंधन किस प्रकार करना चाहिए। कैसे फैलता है? फाल्स स्मट (कंडुआ रोग) ■धान की फसल में रोगों का प्रकोप पैदावार को पूरी तरह से प्रभावित कर देता है. कंडुआ एक प्रमुख फफूद जनित रोग है, जो कि अस्टीलेजनाइडिया विरेन्स से उत्पन्न होता है। ■इसका प्राथमिक संक्रमण बीज से हो

धान के खेत मे हो रही हो "काई"तो ऐसे करे सफाई

धान के खेत मे हो रही हो "काई"तो ऐसे करे सफाई सामान्य बोलचाल की भाषा में शैवाल को काई कहते हैं। इसमें पाए जाने वाले क्लोरोफिल के कारण इसका रंग हरा होता है, यह पानी अथवा नम जगह में पाया जाता है। यह अपने भोजन का निर्माण स्वयं सूर्य के प्रकाश से करता है। धान के खेत में इन दिनों ज्यादा देखी जाने वाली समस्या है काई। डॉ गजेंद्र चन्द्राकर(वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक) इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर छत्तीसगढ़ के अनुुसार  इसके निदान के लिए किसानों के पास खेत के पानी निकालने के अलावा कोई रास्ता नहीं रहता और पानी की कमी की वजह से किसान कोई उपाय नहीं कर पाता और फलस्वरूप उत्पादन में कमी आती है। खेतों में अधिकांश काई की समस्या से लगातार किसान परेशान रहते हैं। ऐसे नुकसान पहुंचाता है काई ◆किसानों के पानी भरे खेत में कंसे निकलने से पहले ही काई का जाल फैल जाता है। जिससे धान के पौधे तिरछे हो जाते हैं। पौधे में कंसे की संख्या एक या दो ही हो जाती है, जिससे बालियों की संख्या में कमी आती है ओर अंत में उपज में कमी आ जाती है, साथ ही ◆काई फैल जाने से धान में डाले जाने वाले उर्वरक की मात्रा जमीन तक नहीं

सावधान -धान में लगे भूरा माहो तो ये करे उपाय

सावधान-धान में लगे भूरा माहो तो ये करे उपाय हमारे देश में धान की खेती की जाने वाले लगभग सभी भू-भागों में भूरा माहू (होमोप्टेरा डेल्फासिडै) धान का एक प्रमुख नाशककीट है| हाल में पूरे एशिया में इस कीट का प्रकोप गंभीर रूप से बढ़ा है, जिससे धान की फसल में भारी नुकसान हुआ है| ये कीट तापमान एवं नमी की एक विस्तृत सीमा को सहन कर सकते हैं, प्रतिकूल पर्यावरण में तेजी से बढ़ सकते हैं, ज्यादा आक्रमक कीटों की उत्पती होना कीटनाशक प्रतिरोधी कीटों में वृद्धि होना, बड़े पंखों वाले कीटों का आविर्भाव तथा लंबी दूरी तय कर पाने के कारण इनका प्रकोप बढ़ रहा है। भूरा माहू के कम प्रकोप से 10 प्रतिशत तक अनाज उपज में हानि होती है।जबकि भयंकर प्रकोप के कारण 40 प्रतिशत तक उपज में हानि होती है।खड़ी फसल में कभी-कभी अनाज का 100 प्रतिशत नुकसान हो जाता है। प्रति रोधी किस्मों और इस किट से संबंधित आधुनिक कृषिगत क्रियाओं और कीटनाशकों के प्रयोग से इस कीट पर नियंत्रण पाया जा सकता है । आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक बताएंगे कि भूरा माहू का प्रबंधन किस प्रकार किया जाए। लक्षण एवं पहचान:- ■ यह कीट भूर

समसामयिक सलाह:- भारी बारिश के बाद हुई (बैटीरियल लीफ ब्लाइट ) से धान की पत्तियां पीली हो गई । ऐसे करे उपचार नही तो फसल हो जाएगी चौपट

समसामयिक सलाह:- भारी बारिश के बाद हुई (बैटीरियल लीफ ब्लाइट ) से धान की पत्तियां पीली हो गई । ऐसे करे उपचार नही तो फसल हो जाएगी चौपट छत्त्तीसगढ़ राज्य में विगत दिनों में लगातार तेज हवाओं के साथ काफी वर्षा हुई।जिसके कारण धान के खेतों में धान की पत्तियां फट गई और पत्ती के ऊपरी सिरे पीले हो गए। जो कि बैटीरियल लीफ ब्लाइट नामक रोग के लक्षण है। आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर बताएंगे कि ऐसे लक्षण दिखने पर किस प्रकार इस रोग का प्रबंधन करे। जीवाणु जनित झुलसा रोग (बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट): रोग के लक्षण ■ इस रोग के प्रारम्भिक लक्षण पत्तियों पर रोपाई या बुवाई के 20 से 25 दिन बाद दिखाई देते हैं। सबसे पहले पत्ती का किनारे वाला ऊपरी भाग हल्का पीला सा हो जाता है तथा फिर मटमैला हरापन लिये हुए पीला सा होने लगता है। ■ इसका प्रसार पत्ती की मुख्य नस की ओर तथा निचले हिस्से की ओर तेजी से होने लगता है व पूरी पत्ती मटमैले पीले रंग की होकर पत्रक (शीथ) तक सूख जाती है। ■ रोगग्रसित पौधे कमजोर हो जाते हैं और उनमें कंसे कम निकलते हैं। दाने पूरी तरह नहीं भरते व पैदावार कम हो जाती है। रोग का कारण यह रोग जेन्थोमोनास

वैज्ञानिक सलाह- धान की खेती में खरपतवारों का रसायनिक नियंत्रण

धान की खेती में खरपतवार का रसायनिक नियंत्रण धान की फसल में खरपतवारों की रोकथाम की यांत्रिक विधियां तथा हाथ से निराई-गुड़ाईयद्यपि काफी प्रभावी पाई गई है लेकिन विभिन्न कारणों से इनका व्यापक प्रचलन नहीं हो पाया है। इनमें से मुख्य हैं, धान के पौधों एवं मुख्य खरपतवार जैसे जंगली धान एवं संवा के पौधों में पुष्पावस्था के पहले काफी समानता पाई जाती है, इसलिए साधारण किसान निराई-गुड़ाई के समय आसानी से इनको पहचान नहीं पाता है। बढ़ती हुई मजदूरी के कारण ये विधियां आर्थिक दृष्टि से लाभदायक नहीं है। फसल खरपतवार प्रतिस्पर्धा के क्रांतिक समय में मजदूरों की उपलब्धता में कमी। खरीफ का असामान्य मौसम जिसके कारण कभी-कभी खेत में अधिक नमी के कारण यांत्रिक विधि से निराई-गुड़ाई नहीं हो पाता है। अत: उपरोक्त परिस्थितियों में खरपतवारों का खरपतवार नाशियों द्वारा नियंत्रण करने से प्रति हेक्टेयर लागत कम आती है तथा समय की भारी बचत होती है, लेकिन शाकनाशी रसायनों का प्रयोग करते समय उचित मात्रा, उचित ढंग तथा उपयुक्त समय पर प्रयोग का सदैव ध्यान रखना चाहिए अन्यथा लाभ के बजाय हानि की संभावना भी रहती है। डॉ गजेंद्र चन्

समसामयिक सलाह-" गर्मी व बढ़ती उमस" के साथ बढ़ रहा है धान की फसल में भूरा माहो का प्रकोप,जल्द अपनाए प्रबंधन के ये उपाय

  धान फसल को भूरा माहो से बचाने सलाह सामान्यतः कुछ किसानों के खेतों में भूरा माहों खासकर मध्यम से लम्बी अवधि की धान में दिख रहे है। जो कि वर्तमान समय में वातारण में उमस 75-80 प्रतिशत होने के कारण भूरा माहो कीट के लिए अनुकूल हो सकती है। धान फसल को भूरा माहो से बचाने के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ गजेंद्र चंद्राकर ने किसानों को सलाह दी और अपील की है कि वे सलाह पर अमल करें। भूरा माहो लगने के लक्षण ■ गोल काढ़ी होने पर होता है भूरा माहो का प्रकोप ■ खेत में भूरा माहो कीट प्रारम्भ हो रहा है, इसके प्रारम्भिक लक्षण में जहां की धान घनी है, खाद ज्यादा है वहां अधिकतर दिखना शुरू होता है। ■ अचानक पत्तियां गोल घेरे में पीली भगवा व भूरे रंग की दिखने लगती है व सूख जाती है व पौधा लुड़क जाता है, जिसे होपर बर्न कहते हैं, ■ घेरा बहुत तेजी से बढ़ता है व पूरे खेत को ही भूरा माहो कीट अपनी चपेट में ले लेता है। भूरा माहो कीट का प्रकोप धान के पौधे में मीठापन जिसे जिले में गोल काढ़ी आना कहते हैं । ■तब से लेकर धान कटते तक देखा जाता है। यह कीट पौधे के तने से पानी की सतह के ऊपर तने से चिपककर रस चूसता है। क्या है भू

सावधान -धान में (फूल बालियां) आते समय किसान भाई यह गलतियां ना करें।

  धान में फूल बालियां आते समय किसान भाई यह गलतियां ना करें। प्रायः देखा गया है कि किसान भाई अपनी फसल को स्वस्थ व सुरक्षित रखने के लिए कई प्रकार के कीटनाशक व कई प्रकार के फंगीसाइड का उपयोग करते रहते है। उल्लेखनीय यह है कि हर रसायनिक दवा के छिड़काव का एक निर्धारित समय होता है इसे हमेशा किसान भइयों को ध्यान में रखना चाहिए। आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय बताएंगे कि धान के पुष्पन अवस्था अर्थात फूल और बाली आने के समय किन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है, ताकि फसल का अच्छा उत्पादन प्राप्त हो। सुबह के समय किसी भी तरह का स्प्रे धान की फसलों पर नहीं करें कारण क्योंकि सुबह धान में फूल बनते हैं (Fertilization Activity) फूल बनाने की प्रक्रिया धान में 5 से 7 दिनों तक चलता है। स्प्रे करने से क्या नुकसान है। ■Fertilization और फूल बनते समय दाना का मुंह खुला रहता है जिससे स्प्रे के वजह से प्रेशर दानों पर पड़ता है वह दाना काला हो सकता है या बीज परिपक्व नहीं हो पाता इसीलिए फूल आने के 1 सप्ताह तक किसी भी तरह का स्प्रे धान की फसल पर ना करें ■ फसल पर अग