समस्या:- धान की जड़ों में आ रही है "गठान" आखिर क्या करे किसान???
धान की जड़ों में गठान की समस्या।
पिछले कुछ सालों से यह समस्या धान की फसल में काफी बढ़ चुकी है। कई किसान भाई इसकी समस्या का निवारण एवं कारण जानना चाहते है।
आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर इस समस्या का कारण व निवारण बताएंगे।
कारण
यह रोग जड़ गांठ सूत्रकृमि (निमोटोड) से होता है, जो कि बहुत ही छोटे होते हैं। इन्हें सूक्ष्मदर्शी के माध्यम से ही देखा जा सकता है। ये कीटाणु मिट्टी में रहते हैं और पौधों की जड़ में घुस जाते हैं, जिससे गांठें बनने लगती हैं।
लक्षण
पौधशाला और खेत में धान की फसल का पीला पड़ना, पौधों की असमान वृद्धि एवं पत्तियों का आकार कम होना। सूत्रकृमी ग्रसित फसल जल्दी सूख जाती है। एम. ग्रेमिनिकोला अक्सर जड़ ऊतकों के कार्यों में बाधा पहुंचाता है। उनके द्वारा संक्रमित पौधों की जड़ें मिट्टी से उचित पोषण एवं पानी नहीं ले पाती हैं। जिसके कारण पौधे के ऊपरी भागों में लक्षण उत्पन्न होते हैं। जिसके कारण पौधे के ऊपरी भागों में लक्षण उत्पन्न होते हैं जैसे, पोषण की कमी, शुष्कता, लवण की अधिकता, व अन्य तनाव की परिस्थितियां उत्पन्न होती हैं। पौधों की वृद्धि रूक जाती है, पत्तियां पीली पड़ जाती है तथा शाखाएं कम निकलती है। एम. ग्रेमिनिकोला संक्रमित जड़ों में गांठे बन जाती हैं। प्राय: इन गांठों को अलग नहीं किया जा सकता। मिट्टी में रहकर यह नई जड़ों को भेद कर उनके अंदर घुस जाते हैं तथा पानी और खाना ले जाने वाली कोशिकाओं पर आक्रमण करते हैं। तत्पश्चात यह सूत्रकृमी गोलाकार होकर जड़ों में गांठे पैदा करते हैं। इन गांठों के कारण पौधे मृदा में पोषक तत्व तथा पानी की उपलब्धता होते हुए भी पर्याप्त मात्रा में उसे ग्रहण नहीं कर पाते।
निवारण
सूत्रकृमियों की समस्या का निम्नलिखित नियंत्रण विधियों द्वारा समाधान किया जा सकता है। इन नियंत्रण विधियों को रोगों की प्रारंभिक अवस्था में अपनाने से पौधों को सूत्रकृमियों द्वारा अत्यधिक हानि से बचाया जा सकता है।
■फसल चक्र अपनाए
■ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करे।
ग्रीष्म काल में फसल की कटाई के बाद खेत की 15 दिनों के अंतराल पर दो बार गहराई से जुताई करने से सूत्रकृमी जनसंख्या में 70 प्रतिशत से अधिक की कमी तथा आगामी धान की फसल को हानि पहुँचाने वाले सूत्रकर्मियों के प्रबंधन में भी प्रभावी होती है।
जैविक नियंत्रण
जड़ों के नेमाटोड को करे हमेशा के लिए अलविदा
निमेटोड को नियंत्रित करने के लिए बाजार में कई दवाएं उपलब्ध हैं। लेकिन सरल प्रयोग से निमेटोड को खत्म कर सकते हैं।
■ इसके लिए 200 लीटर पानी के टैंक में
⭕ 5 लीटर ट्राइकोडर्मा
⭕ 5 लीटर छाछ
⭕ 5 किलो काला गुड़
⭕ 5 लीटर गोमूत्र
■इस प्रमाण में ले लो। उपरोक्त मिश्रण को एक या दो दिन के लिए भिगो दें।
■हर दिन टैंक में एक लकड़ी की छड़ी रखें और मिश्रण को दक्षिणावर्त घुमाएँ। अगले दिन, टैंक से बगीचे में 180 लीटर ड्रिप पानी छोड़ें और टैंक में 20 लीटर वैसे ही रखें।
■ शेष 20 लीटर पानी में पानी और गुड़ के साथ-साथ गोमूत्र और छाछ भी मिलाएं। ट्राइकोडर्मा को उलटने की जरूरत नहीं है। ड्रिप द्वारा 180 लीटर छोड़ें और 20 लीटर छोड़ दें और आखिरी समय में 200 लीटर घोल छोड़ दें।
■ इस प्रयोग को करने से निमेटोड 100% नियंत्रित हो जाएगा। खेत में ट्राइकोडर्मा को छोड़ना और उस पर गुड़ का पानी छिड़कना भी ट्राइकोडर्मा फंगस को अच्छी वृद्धि देता है जो निमेटोड पर फ़ीड करता है और इस तरह के उर्वरक को खेत में देने से निमेटोड के बेहतर नियंत्रण में मदद मिलती है।
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■निमेटोड से बचाव को लिए धान लगाने से पहले ही प्रबंधन शुरू हो जाता है। इसके लिए खेत में ढैंचा उगाकर उसे मिट्टी में अच्छी तरह से मिला देने से निमेटोड की संख्या में कमी आ जाती है। इसके साथ ही नीम की खली या सरसों की खली 225 किलो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से प्रयोग करने से अच्छा उत्पादन भी मिलता है और निमेटोड की संख्या में भी कमी आ जाती है।
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■फसल में लक्षण दिखने पर पैसिलोमिस लीलसिनस (paecilomyces lilacinus) कवक निमेटोड के प्रकोप के अनुसार एक-दो लीट प्रति एकड़ के हिसाब से सड़ी हुई गोबर की खाद में मिलाकर शाम को खेत में बिखेर दें, इससे भी निमेटोड को नियंत्रित किया जा सकता है।
रसायनिक नियंत्रण
(पाइरिडीनेथाइलेबेनजैमाइड) 500 ग्राम / ली है। यह रूट नॉट नेमाटोड्स, लेसियन नेमाटोड और सर्पिल नेमाटोड को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करता है। इसकी सिफारिश 250 मिली / एकड़ है।
साभार
डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर
वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर
(छत्तीसगढ़)
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