Skip to main content

जैविक खेती:-कृषि विभाग की सक्रियता से खरसिया में बन रही श्रेष्ठ जैविक खाद

 
 जैविक खेती :- कृषि विभाग की सक्रियता से खरसिया में बन रही श्रेष्ठ जैविक खाद

अन्य जिलों के गौठान समूह ले रहे प्रशिक्षण


कृषि कार्य में रासायनिक खादों के उपयोग को कम करने एवं महिला स्वावलंबन को बढ़ावा देने हेतु गौठानों में केंचुआ खाद का उत्पादन किया जा रहा है। वहीं रायगढ़ जिले के खरसिया ब्लॉक की ग्राम पंचायत लोढ़ाझर के गौठान में जिले भर में सर्वाधिक एवं सर्वश्रेष्ठ जैविक खाद उत्पादन किया जा रहा है। उल्लेखनीय यह भी होगा कि अन्य जिलों से भी लोग ग्राम लोढ़ाझर पहुंचकर उत्पादन के गूढ़ बिंदुओं का प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं।


बुधवार को नजदीकी जिले जांजगीर-चाम्पा से प्रत्येक गौठन के समूह से दो-दो सक्रिय सदस्य ग्राम लोढ़ाझर पहुंचे। इस दल का नेतृत्व डभरा ब्लॉक के सीईओ राधेश्याम नायक, वरिष्ठ कृषि अधिकारी देवांगन तथा गौठानों के प्रभारी व सरपंच द्वारा किया गया। वहीं कार्यक्रम का संयोजन नोडल अधिकारी डोमेश चौधरी द्वारा किया गया।


खरसिया ब्लॉक के वरिष्ठ कृषि अधिकारी जन्मेजय पटेल के द्वारा गौठान में केंचुआ उत्पादन का प्रशिक्षण देते हुए बारीकियां समझाई गईं। वहीं वर्मी-वाश एवं वेस्ट डी कंपोजर की महत्ता बताई गई। कार्यक्रम में आत्मा प्रोजेक्ट के असिस्टेंट टेक्नोलॉजी मैनेजर देवानंद प्रधान, त्रिभुवन पटेल सहित महिला स्व सहायता समूह के सदस्यों सहित बड़ी संख्या में महिलाओं की उपस्थिति रही।

आइए जानते है केंचुआ खाद (जैविक खाद) बनाने की विधि एवं उसके लाभ



वर्मी कम्पोस्ट बनाने की तकनीक :






वर्मी कम्पोस्ट बनाने के लिये समतल एवं छायादार जगह का चयन करना चाहिए। इनकी लंबाई व चौड़ाई अपनी आवश्यकतानुसार छोटी या बड़ी हो सकती है। वैसे आदर्श आकार 12 फीट लंबाई, 5 फीट चौड़ाई, 3 फीट ऊँचाई होना चाहिए।

■ प्रत्येक वर्मी टांका की निचली सतह पर 5 सेमी. मोटी बालू या रेतीली मिट्टी बिछायें। उसके ऊपर 10 सेमी. गेहूँ या चावल का भूसा बिछायें।

■ इसके ऊपर 30 सेमी. तक गोबर (10-15 दिन पुराना) फैला दें।

■ तत्पश्चात् 4.5 इंच तक जिस वस्तु विशेष (जैसे पादप व्यर्थ पदार्थ आदि) जिसे आप वर्मी कम्पोस्ट में परिवर्तित करना चाहते हैं, उसे छोटे-छोटे भागों में काट कर गोबर के ऊपर बराबर से बिछा दें।



■ वर्मी टांका को एक वर्ग मी. में 1000 केंचुये डालकर रद्दी के बोरे से ढक देना चाहिए।

■ वर्मी टांका में सूर्य की धूप से बचाने के लिए शेड लगायें ताकि सीधे सूर्य के प्रकाश के ध्रुव पर न पड़े।



■फिर वर्मी टांका को बोरी या टाट से ढंके और ऊपर फव्वारे से अच्छी तरह पानी दें। नमी लगभग 40-60 प्रतिशत होनी चाहिए। इसके लिए शीतकाल में दिन में एक बार, ग्रीष्म काल में दिन में 2-3 बार तथा वर्षा काल में 2-3 दिन में एक बार अवश्य पानी दें।



■ 2-3 माह बाद केंचुए की खाद तैयार हो जाती है और यह प्रयोग में लाई गयी चाय की पत्ती के रंग में बदल जाती है। वर्मी कम्पोस्ट को इकट्ठा करने से 3-4 दिन पहले पानी छिड़काव बंद कर दें और उसकी सतह को सूखने दें।

■ सूखने के बाद उसे इकट्ठा कर छान (2.5 मि.मी. जाली अपनाकर) लें। केंचुओं को इकट्ठा करके वापस नई क्यारी में डाल दें।



■कम्पोस्ट का संग्रह पॉलीथिन या प्लास्टिक की बोरी में भरकर छाया वाले स्थान पर ही करें।

सावधानी:

■क्यारियाँ छायादार तथा ऊँचे स्थान पर बनायें जहाँ पानी खड़ा न हो सके।

■ क्यारी में ताजा गोबर नहीं डालना चाहिए क्यों कि यह गर्म होता है इससे केंचुए मर जाते हैं।

■ केंचुओं को मेंढक, सांप, चिड़िया, कौआ, छिपकली एवं लाल चींटियों आदि शत्रुओं से बचाना चाहिए।

■गोबर अधसड़ा व पर्याप्त नमी युक्त होना चाहिए।

वर्मी कम्पोस्ट के लाभ व उपयोग:

■ केंचुओं के पेट में जो जीवाणु होते हैं उसमें गोंदनुमा पदार्थ निकलता है जो कुछ धूल कणों को सख्त बनाता है यह धूल कण भारी जमीन को नरम बनाते हैं, जिससे भूमि हवादार और पानी के विस्तार के लिए उपयोगी बनती है।

■ अन्य रासायनिक व जैविक खादों की तुलना में वर्मी कम्पोस्ट अत्यंत सरल, कम समय में तैयार, पर्यावरण सुरक्षित, पेड़-पौधों को स्वस्थ रखने, पैदावार को बढ़ाने व भूमि को उपजाऊ बनाने में उपयोगी है।

■ इसमें विभिन्न प्रकार के जीवाणु, सूक्ष्म तत्व तथा बैक्टीरिया प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं जो पेड़-पौधों के लिए आवश्यक है और पर्यावरण को भी संतुलित रखते हैं।

■ केंचुये के विकास में पेरोट्रयिक इल्ली होती है जो जमीन में धूल कणों से चिपक कर जमीन से वाष्पीकरण रोकती है। मृदा, जल व सूक्ष्म जीवों को उचित वातावरण प्रदान करता है व संरक्षण देता है।

■ केंचुआ गंदगी फैलाने वाले हानिकारक जीवाणुओं को खा जाता है और उसे लाभदायक ह्यूमस में बदल देता है।

■ इसके निरंतर प्रयोग से धीरे-धीरे रासायनिक खादों से छुटकारा मिल जाता है तथा भूमि की उर्वरा शक्ति फिर से लौट आती है।
■ इसके प्रयोग से पेड़-पौधे स्वस्थ रहते हैं व अधिक पैदावार देते हैं तथा उनमें कीट व रोग से लड़ने की प्रतिरोधक शक्ति धीरे-धीरे आने लगती है।

■ केंचुआ मुक्त जमीन में भूमि का क्षरण रोकता है।

■ अब वर्मी कम्पोस्ट एक प्रकार का सरल, सस्ता व लाभदायी व्यवसाय बनता जा रहा है जिससे हमारे गांवमें नौजवानों को रोजगार का मौका मिलता है।

■ केंचुआ किसान का मित्र होता है।

■ केचुआ के शरीर का 85 प्रतिशत भाग पानी का बना होता है इसलिए सूखे की स्थिति में अपने शरीर के पानी का हास भी हो जाये तो केंचुआ जिन्दा रह सकता है। मरने के बाद भी उसके शरीर से जमीन को सीधे नाइट्रोजन मिलती है।

छत्तीसगढ़ी भाषा मे सीखे वर्मी कम्पोस्ट बनाने की तकनीक



साभार
कृषि दर्शिका
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय
रायपुर छत्तीसगढ़

वीडियो साभार
डॉ संतोष आडिल
पशु चिकित्सा अधिकारी
छत्तीसगढ़ राज्य पशुधन विकास विभाग


तकनीक प्रचारक
हम कृषकों तक तकनीक पहुंचाते हैं



Comments

अन्य लेखों को पढ़ने के लिए फोटो पर क्लिक करे।

कृषि सलाह- धान की बाली बदरंग या बदरा होने के कारण व निवारण (पेनिकल माइट)

कृषि सलाह - धान की बाली बदरंग या बदरा होने के कारण व निवारण (पेनिकल माइट) पेनिकल माइट से जुड़ी दैनिक भास्कर की खबर प्रायः देखा जाता है कि सितम्बर -अक्टूबर माह में जब धान की बालियां निकलती है तब धान की बालियां बदरंग हो जाती है। जिसे छत्तीसगढ़ में 'बदरा' हो जाना कहते है इसकी समस्या आती है। यह एक सूक्ष्म अष्टपादी जीव पेनिकल माइट के कारण होता है। आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक बताएंगे कि पेनिकल माइट के लक्षण दिखे तो उनका प्रबंधन कैसे किया जाए। पेनिकल माइट धान की बाली बदरंग एवं बदरा- धान की बाली में बदरा या बदरंग बालियों के लिए पेनिकल माईट प्रमुख रूप से जिम्मेदार है। पेनिकल माईट अत्यंत सूक्ष्म अष्टपादी जीव है जिसे 20 एक्स आर्वधन क्षमता वाले लैंस से देखा जा सकता है। यह जीव पारदर्शी होता है तथा पत्तियों के शीथ के नीचे काफी संख्या में रहकर पौधे की बालियों का रस चूसते रहते हैं जिससे इनमें दाना नहीं भरता। इस जीव से प्रभावित हिस्सों पर फफूंद विकसित होकर गलन जैसा भूरा धब्बा दिखता है। माईट उमस भरे वातावरण में इसकी संख्या बहुत तेजी से बढ़ती है। ग्रीष्मकालीन धान की ख

वैज्ञानिक सलाह-"चूहा नियंत्रण"अगर किसान भाई है चूहे से परेशान तो अपनाए ये उपाय

  वैज्ञानिक सलाह-"चूहा नियंत्रण"अगर किसान भाई है चूहे से परेशान तो अपनाए ये उपाय जैविक नियंत्रण:- सीमेंट और गुड़ के लड्डू बनाये:- आवश्यक सामग्री 1 सीमेंट आवश्यकता नुसार 2 गुड़ आवश्यकतानुसार बनाने की विधि सीमेंट को बिना पानी मिलाए गुड़ में मिलाकर गुंथे एवं कांच के कंचे के आकार का लड्डू बनाये। प्रयोग विधि जहां चूहे के आने की संभावना है वहां लड्डुओं को रखे| चूहा लड्डू खायेगा और पानी पीते ही चूहे के पेट मे सीमेंट जमना शुरू हो जाएगा। और चूहा धीरे धीरे मर जायेगा।यह काफी कारगर उपाय है। सावधानियां 1लड्डू बनाते समय पानी बिल्कुल न डाले। 2 जहां आप लड्डुओं को रखे वहां पानी की व्यवस्था होनी चाहिए। 3.बच्चों के पहुंच से दूर रखें। साभार डॉ. गजेंद्र चन्द्राकर (वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक) इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर छत्तीसगढ़ संकलन कर्ता हरिशंकर सुमेर तकनीक प्रचारकर्ता "हम कृषकों तक तकनीक पहुंचाते हैं"

सावधान-धान में ब्लास्ट के साथ-साथ ये कीट भी लग सकते है कृषक रहे सावधान

सावधान-धान में ब्लास्ट के साथ-साथ ये कीट भी लग सकते है कृषक रहे सावधान छत्तीसगढ़ राज्य धान के कटोरे के रूप में जाना जाता है यहां अधिकांशतः कृषक धान की की खेती करते है आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर ने बताया कि अगस्त माह में धान की फसल में ब्लास्ट रोग का खतरा शुरू हो जाता है। पत्तों पर धब्बे दिखाई दें तो समझ लें कि रोग की शुरुआत हो चुकी है। धीरे-धीरे यह रोग पूरी फसल को अपनी चपेट में ले लेता है। कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि इस रोग का शुरू में ही इलाज हो सकता है, बढ़ने के बाद इसको रोका नहीं जा सकता। उन्होंने कहा कि किसान रोजाना अपनी फसल की जांच करें और धब्बे दिखाई देने पर तुरंत दवाई का छिड़काव करे। लक्षण धान की फसल में झुलसा (ब्लास्ट) का प्रकोप देखा जा रहा है। इस रोग में पौधों से लेकर दाने बनने तक की अवस्था में मुख्य पत्तियों, बाली पर आंख के आकार के धब्बे बनते हैं, बीच में राख के रंग का तथा किनारों पर गहरे भूरे धब्बे लालिमा लिए हुए होते हैं। कई धब्बे मिलकर कत्थई सफेद रंग के बड़े धब्बे बना लेते हैं, जिससे पौधा झुलस जाता है। अपनाए ये उपाय जैविक नियंत्रण इस रोग के प्रकोप वाले क्षेत्रों म

रोग नियंत्रण-धान की बाली निकलने के बाद की अवस्था में होने वाले फाल्स स्मट रोग का प्रबंधन कैसे करें

धान की बाली निकलने के बाद की अवस्था में होने वाले फाल्स स्मट रोग का प्रबंधन कैसे करें धान की खेती असिंचित व सिंचित दोनों परिस्थितियों में की जाती है। धान की विभिन्न उन्नतशील प्रजातियाँ जो कि अधिक उपज देती हैं उनका प्रचलन धीरे-धीरे बढ़ रहा है।परन्तु मुख्य समस्या कीट ब्याधि एवं रोग व्यधि की है, यदि समय रहते इनकी रोकथाम कर ली जाये तो अधिकतम उत्पादन के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। धान की फसल को विभिन्न कीटों जैसे तना छेदक, पत्ती लपेटक, धान का फूदका व गंधीबग द्वारा नुकसान पहुँचाया जाता है तथा बिमारियों में जैसे धान का झोंका, भूरा धब्बा, शीथ ब्लाइट, आभासी कंड व जिंक कि कमी आदि की समस्या प्रमुख है। आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक बताएंगे कि अगर धान की फसल में फाल्स स्मट (कंडुआ रोग) का प्रकोप हो तो इनका प्रबंधन किस प्रकार करना चाहिए। कैसे फैलता है? फाल्स स्मट (कंडुआ रोग) ■धान की फसल में रोगों का प्रकोप पैदावार को पूरी तरह से प्रभावित कर देता है. कंडुआ एक प्रमुख फफूद जनित रोग है, जो कि अस्टीलेजनाइडिया विरेन्स से उत्पन्न होता है। ■इसका प्राथमिक संक्रमण बीज से हो

धान के खेत मे हो रही हो "काई"तो ऐसे करे सफाई

धान के खेत मे हो रही हो "काई"तो ऐसे करे सफाई सामान्य बोलचाल की भाषा में शैवाल को काई कहते हैं। इसमें पाए जाने वाले क्लोरोफिल के कारण इसका रंग हरा होता है, यह पानी अथवा नम जगह में पाया जाता है। यह अपने भोजन का निर्माण स्वयं सूर्य के प्रकाश से करता है। धान के खेत में इन दिनों ज्यादा देखी जाने वाली समस्या है काई। डॉ गजेंद्र चन्द्राकर(वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक) इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर छत्तीसगढ़ के अनुुसार  इसके निदान के लिए किसानों के पास खेत के पानी निकालने के अलावा कोई रास्ता नहीं रहता और पानी की कमी की वजह से किसान कोई उपाय नहीं कर पाता और फलस्वरूप उत्पादन में कमी आती है। खेतों में अधिकांश काई की समस्या से लगातार किसान परेशान रहते हैं। ऐसे नुकसान पहुंचाता है काई ◆किसानों के पानी भरे खेत में कंसे निकलने से पहले ही काई का जाल फैल जाता है। जिससे धान के पौधे तिरछे हो जाते हैं। पौधे में कंसे की संख्या एक या दो ही हो जाती है, जिससे बालियों की संख्या में कमी आती है ओर अंत में उपज में कमी आ जाती है, साथ ही ◆काई फैल जाने से धान में डाले जाने वाले उर्वरक की मात्रा जमीन तक नहीं

सावधान -धान में लगे भूरा माहो तो ये करे उपाय

सावधान-धान में लगे भूरा माहो तो ये करे उपाय हमारे देश में धान की खेती की जाने वाले लगभग सभी भू-भागों में भूरा माहू (होमोप्टेरा डेल्फासिडै) धान का एक प्रमुख नाशककीट है| हाल में पूरे एशिया में इस कीट का प्रकोप गंभीर रूप से बढ़ा है, जिससे धान की फसल में भारी नुकसान हुआ है| ये कीट तापमान एवं नमी की एक विस्तृत सीमा को सहन कर सकते हैं, प्रतिकूल पर्यावरण में तेजी से बढ़ सकते हैं, ज्यादा आक्रमक कीटों की उत्पती होना कीटनाशक प्रतिरोधी कीटों में वृद्धि होना, बड़े पंखों वाले कीटों का आविर्भाव तथा लंबी दूरी तय कर पाने के कारण इनका प्रकोप बढ़ रहा है। भूरा माहू के कम प्रकोप से 10 प्रतिशत तक अनाज उपज में हानि होती है।जबकि भयंकर प्रकोप के कारण 40 प्रतिशत तक उपज में हानि होती है।खड़ी फसल में कभी-कभी अनाज का 100 प्रतिशत नुकसान हो जाता है। प्रति रोधी किस्मों और इस किट से संबंधित आधुनिक कृषिगत क्रियाओं और कीटनाशकों के प्रयोग से इस कीट पर नियंत्रण पाया जा सकता है । आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक बताएंगे कि भूरा माहू का प्रबंधन किस प्रकार किया जाए। लक्षण एवं पहचान:- ■ यह कीट भूर

समसामयिक सलाह:- भारी बारिश के बाद हुई (बैटीरियल लीफ ब्लाइट ) से धान की पत्तियां पीली हो गई । ऐसे करे उपचार नही तो फसल हो जाएगी चौपट

समसामयिक सलाह:- भारी बारिश के बाद हुई (बैटीरियल लीफ ब्लाइट ) से धान की पत्तियां पीली हो गई । ऐसे करे उपचार नही तो फसल हो जाएगी चौपट छत्त्तीसगढ़ राज्य में विगत दिनों में लगातार तेज हवाओं के साथ काफी वर्षा हुई।जिसके कारण धान के खेतों में धान की पत्तियां फट गई और पत्ती के ऊपरी सिरे पीले हो गए। जो कि बैटीरियल लीफ ब्लाइट नामक रोग के लक्षण है। आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर बताएंगे कि ऐसे लक्षण दिखने पर किस प्रकार इस रोग का प्रबंधन करे। जीवाणु जनित झुलसा रोग (बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट): रोग के लक्षण ■ इस रोग के प्रारम्भिक लक्षण पत्तियों पर रोपाई या बुवाई के 20 से 25 दिन बाद दिखाई देते हैं। सबसे पहले पत्ती का किनारे वाला ऊपरी भाग हल्का पीला सा हो जाता है तथा फिर मटमैला हरापन लिये हुए पीला सा होने लगता है। ■ इसका प्रसार पत्ती की मुख्य नस की ओर तथा निचले हिस्से की ओर तेजी से होने लगता है व पूरी पत्ती मटमैले पीले रंग की होकर पत्रक (शीथ) तक सूख जाती है। ■ रोगग्रसित पौधे कमजोर हो जाते हैं और उनमें कंसे कम निकलते हैं। दाने पूरी तरह नहीं भरते व पैदावार कम हो जाती है। रोग का कारण यह रोग जेन्थोमोनास

वैज्ञानिक सलाह- धान की खेती में खरपतवारों का रसायनिक नियंत्रण

धान की खेती में खरपतवार का रसायनिक नियंत्रण धान की फसल में खरपतवारों की रोकथाम की यांत्रिक विधियां तथा हाथ से निराई-गुड़ाईयद्यपि काफी प्रभावी पाई गई है लेकिन विभिन्न कारणों से इनका व्यापक प्रचलन नहीं हो पाया है। इनमें से मुख्य हैं, धान के पौधों एवं मुख्य खरपतवार जैसे जंगली धान एवं संवा के पौधों में पुष्पावस्था के पहले काफी समानता पाई जाती है, इसलिए साधारण किसान निराई-गुड़ाई के समय आसानी से इनको पहचान नहीं पाता है। बढ़ती हुई मजदूरी के कारण ये विधियां आर्थिक दृष्टि से लाभदायक नहीं है। फसल खरपतवार प्रतिस्पर्धा के क्रांतिक समय में मजदूरों की उपलब्धता में कमी। खरीफ का असामान्य मौसम जिसके कारण कभी-कभी खेत में अधिक नमी के कारण यांत्रिक विधि से निराई-गुड़ाई नहीं हो पाता है। अत: उपरोक्त परिस्थितियों में खरपतवारों का खरपतवार नाशियों द्वारा नियंत्रण करने से प्रति हेक्टेयर लागत कम आती है तथा समय की भारी बचत होती है, लेकिन शाकनाशी रसायनों का प्रयोग करते समय उचित मात्रा, उचित ढंग तथा उपयुक्त समय पर प्रयोग का सदैव ध्यान रखना चाहिए अन्यथा लाभ के बजाय हानि की संभावना भी रहती है। डॉ गजेंद्र चन्

समसामयिक सलाह-" गर्मी व बढ़ती उमस" के साथ बढ़ रहा है धान की फसल में भूरा माहो का प्रकोप,जल्द अपनाए प्रबंधन के ये उपाय

  धान फसल को भूरा माहो से बचाने सलाह सामान्यतः कुछ किसानों के खेतों में भूरा माहों खासकर मध्यम से लम्बी अवधि की धान में दिख रहे है। जो कि वर्तमान समय में वातारण में उमस 75-80 प्रतिशत होने के कारण भूरा माहो कीट के लिए अनुकूल हो सकती है। धान फसल को भूरा माहो से बचाने के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ गजेंद्र चंद्राकर ने किसानों को सलाह दी और अपील की है कि वे सलाह पर अमल करें। भूरा माहो लगने के लक्षण ■ गोल काढ़ी होने पर होता है भूरा माहो का प्रकोप ■ खेत में भूरा माहो कीट प्रारम्भ हो रहा है, इसके प्रारम्भिक लक्षण में जहां की धान घनी है, खाद ज्यादा है वहां अधिकतर दिखना शुरू होता है। ■ अचानक पत्तियां गोल घेरे में पीली भगवा व भूरे रंग की दिखने लगती है व सूख जाती है व पौधा लुड़क जाता है, जिसे होपर बर्न कहते हैं, ■ घेरा बहुत तेजी से बढ़ता है व पूरे खेत को ही भूरा माहो कीट अपनी चपेट में ले लेता है। भूरा माहो कीट का प्रकोप धान के पौधे में मीठापन जिसे जिले में गोल काढ़ी आना कहते हैं । ■तब से लेकर धान कटते तक देखा जाता है। यह कीट पौधे के तने से पानी की सतह के ऊपर तने से चिपककर रस चूसता है। क्या है भू

सावधान -धान में (फूल बालियां) आते समय किसान भाई यह गलतियां ना करें।

  धान में फूल बालियां आते समय किसान भाई यह गलतियां ना करें। प्रायः देखा गया है कि किसान भाई अपनी फसल को स्वस्थ व सुरक्षित रखने के लिए कई प्रकार के कीटनाशक व कई प्रकार के फंगीसाइड का उपयोग करते रहते है। उल्लेखनीय यह है कि हर रसायनिक दवा के छिड़काव का एक निर्धारित समय होता है इसे हमेशा किसान भइयों को ध्यान में रखना चाहिए। आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय बताएंगे कि धान के पुष्पन अवस्था अर्थात फूल और बाली आने के समय किन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है, ताकि फसल का अच्छा उत्पादन प्राप्त हो। सुबह के समय किसी भी तरह का स्प्रे धान की फसलों पर नहीं करें कारण क्योंकि सुबह धान में फूल बनते हैं (Fertilization Activity) फूल बनाने की प्रक्रिया धान में 5 से 7 दिनों तक चलता है। स्प्रे करने से क्या नुकसान है। ■Fertilization और फूल बनते समय दाना का मुंह खुला रहता है जिससे स्प्रे के वजह से प्रेशर दानों पर पड़ता है वह दाना काला हो सकता है या बीज परिपक्व नहीं हो पाता इसीलिए फूल आने के 1 सप्ताह तक किसी भी तरह का स्प्रे धान की फसल पर ना करें ■ फसल पर अग