#पत्थरफूल
#दगड़फूल
#Parmotrema_perlatum
#ZBNF
---------------------------------------------
गरम मसाले के डिब्बे में अक्सर आपने इसको देखा होगा..!!!जिसे पत्थरफुल, दगड़फूल और भी अनेको नाम से जानते है...पत्थरफूल एक प्रकार फूल हैं या कुछ और यह तो आपको पोस्ट पढ़कर ही पता चलेगा...!!!
भारतीय व्यंजनों में सूखे मसाले के रूप में पत्थरफुल का उपयोग हजारो वर्षो से होता आया हैं,इसमें एक अद्वितीय मिट्टी की सुगंध और स्वाद है...जिस वजह से ये विभिन्न भारतीय मसालो के मिश्रणों में शामिल है ...।
यह वनस्पति पहाड़ी जमीन के पत्थरों पर पैदा होती हैं..ऐसा लगता हैं मानो यह पत्थर से ही अपना आहार लेती हो..पत्थरफुल हिमालय ओर नीलगिरी के पहाड़ो पर पाया जाताहैं...यह पत्थरो के अलावा पेड़ो के तने व दीवारों पर भी हो जाता हैं....इसकी हरी काय संचित होकर जब सूखकर उतरती हैं तब इसके ऊपर का पृष्ठ काला व नीचे का सफेद होता हैं,जो अधिक सफेद होती हैं वह अच्छी समझी जाती हैं,,इसके अनेक जातियाँ पाई जाती हैं.. इसका स्वाद फीका तिक्त-कसाय होता हैं...।
पत्थरफुल को #छरीला, दगडफुल, कल्पासी, शैलज, भूरीछरीला,छडीलो, स्टोन फ्लावर आदि नामों से जाना जाता हैं,ओर भी क्षेत्रीय नाम हो सकते है..इसका वानस्पतिक नाम Parmotrema perlatum हैं...।।
औषधीय प्रयोग में नया व सुगन्धयुक्त पत्थरफुल उपयोग में लेना चाहिए....।
पेशाब रुकने पर पत्थरफुल 10 ग्राम को मिश्री के साथ फांक लेने से लाभ मिलता हैं,साथ ही गर्म पानी के साथ बांधने से भी लाभ होता हैं.... वही शिरशूल में इसको पीसकर सिर पर लेप लगाने से लाभ मिलता हैं....।
पत्थरफुल का उपयोग रक्त विकारों को दूर करता हैं...।।
Shambhu Noutiyalजी के अनुसार अच्छी बर्फवारी के कारण बांज के वृक्ष पर लगने वाली झूला घास, जिसे लाइकेन भी कहते हैं काफी मात्रा में दिखाई देने लगी है। लाइकेन वायु प्रदूषण के संकेतक (Indicator) होते हैं। जहाँ वायु प्रदूषण अधिक होता है, वहाँ पर लाइकन नहीं उगते हैं। सल्फर डाइऑक्साइड की सूक्ष्म मात्राओं की इनकी वृद्धि पर फर्क पड़ता है। अत: ये वायु प्रदुषण के अच्छे सूचक होते हैं। प्रदूषित क्षेत्रों में ये विलुप्त हो जाते हैं। इनका उपयोग पर्यावरणीय परिस्थितियों और वायु की गुणवत्ता का अध्ययन करने के लिए भी किया जाता है। लाइकेन वास्तव में कवक (Fungi) तथा शैवाल (Algae) दोनो से मिलकर बनती है। इसमें कवक तथा शैवालों का सम्बन्ध परस्पर सहजीवी (symbiotic) जैसा होता है। कवक जल, खनिज-लवण, विटामिन्स आदि शैवाल को देता है और शैवाल प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) की क्रिया द्वारा कार्बोहाइड्रेट का निर्माण कर कवक को देता है। कवक तथा शैवाल के बीच इस तरह के सहजीवी सम्बन्ध को हेलोटिज्म(Helotism) कहते हैं। लाइकेन शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग ग्रीक दार्शनिक थियोफ्रेस्टस ने किया। लाइकेन का अध्ययन लाइकेनोलॉजी (Lichenology) कहलाता है। उत्तराखंड की पहाड़ियों से प्रतिवर्ष लगभग 750 मीट्रिक टन लाइकेन एकत्र किया जाता है, जिसे उत्तराखंड वन विकास निगम के तीन हर्बल मंडियों में खुली नीलामी के माध्यम से बेचा जाता है। लाइकेन वैज्ञानिक रूप से परमेवीएसी परिवार से संबंधित है जिसके अन्तर्गत लगभग 80 जेनस तथा 20,000 प्रजातियॉ पाई जाती है। उत्तराखण्ड में लाइकेन की 500 प्रजाति पाई जाती है, जिनमें से 158 प्रजातियॉ कुमॉऊ की पहाडियों में पाई जाती है। उत्तराखण्ड में झूला (लाइकेन) को अनेकों नामों से जाना जाता है। जैसे- मुक्कू, शैवाल, छरीया, झूला। पारमिलोडड लाइकेन उत्तराखण्ड की पहाडियों से व्यावसायिक तौर पर एकत्रित किया जाता है। लाइकेन मुख्यतः पेडों की छाल तथा चट्टानों पर उगता है। कई पेडों की प्रजातियॉ जामुन, बांज, साल तथा चीड के विभिन्न प्रकार के लाइकेन की वृद्धि में सहायक होते है। क्वरकस सेमिकारपिफोलिया (बांज) पर लाइकन की 25 प्रजातियॉ, क्वरकस ल्यूकोट्राइकोफोरा पर 20 प्रजातियॉ एवं क्वरकस फ्लोरिबंडा में लाइकेन की 12 प्रजातियॉ पाई गयी है। पारमिलोइड लाइकेन जैसे कि इवरनिसेट्रम, पारमोट्रिना, सिट्रारिओपसिस, बलवोथ्रिक्स, हाइपोट्रिकियाना और राइमिलिया, फ्रूटिकोज जाति, रामालीना और यूसेन के साथ हिमालय के सम शीतोष्ण क्षेत्रों से इकट्ठा किया जाता है। इसका प्रयोग इत्र, डाई तथा मसालों में बहुतायत किया जाता है तथा इसको गरम मसाला, मीट मसला, एवं सांभर मसला में मुख्य अव्यव के रूप में प्रयुक्त किया जाता है साथ ही साथ इनका उपयोग एक प्रदूषण संकेतक के रूप में भी जाना जाता है। इसके अतिरिक्त औषधीय रूप से लाइकेन को आयुर्वेदिक तथा यूनानी औषधी निर्माण में मुख्य रूप से प्रयुक्त किया जाता है जिसमे Charila तथा Ushna नामक दवाइयॉ भारतीय बाजार में प्रसिद्ध है। इसके अलावा इसका प्रयोग भारतीय संस्कृति में हवन सामाग्री में भी उपयोग किया जाता है। लाइकेन में वैज्ञानिक रूप से बहुत सारे प्राथमिक व द्वितीयक मैटाबोलाइटस पाये जाते है। मुख्यतः इसमें Usnic Acid की मौजूदगी से इसका वैज्ञानिक एवं औद्योगिक महत्व और भी बढ जाता है। विभिन्न शोध अध्ययनों के अनुसार Usnic Acid होने की वजह से इसमें जीवाणु नाशक, ट्यूमर नाशक तथा ज्वलन निवारण के गुण पाये जाते है। 2005-06 से पूर्व लाइकेन और अन्य औषधीय पौधों के व्यापार को विनिमित नहीं किया गया था। उत्तराखण्ड के वन विभाग ने वन उत्पाद के विपणन में उत्तराखण्ड वन विकास निगम को शामिल करके सक्रिय भूमिका निभाई। जंगल में झूले के सतत् विदोहन के लिए वन विभाग वनों को कुछ श्रेणियों में ही दोहन की अनुमति प्रदान करता है। गांववासी दैनिक आधार पर वन उत्पाद को एकत्र करते है और जब अच्छी मात्रा में एकत्रित हो जाय तो उसे सुखाने के बाद स्थानीय बाजारों को बेच दिया जाता है जो कि स्थानीय नागरिकों को आर्थिकी प्रदान करता है। वैज्ञानिकों ने लाइकेन की विशेषताओं एवं गुणों को देखते हुए इस पर अधिक वैज्ञानिक शोध कार्य किये जाने की आवश्यकता महसूस की है।
पत्थरफुल से जुड़ी कोई जानकारी हो तो अवश्य साझा करें...।
साभार
Z B N F
Comments