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कृषि तकनीक:-मूंग की वैज्ञानिक विधि से खेती

 
कृषि तकनीक:- मूंग की वैज्ञानिक विधि से खेती



भारत में मूंग की खेती लगभग 4.5-4.6 मिलियन हेक्टर क्षेत्रफल में की जाती है और सालाना लगभग 2.5 मिलियन टन उत्पादन होता है। मूंग के दानों में लगभग 23-24 प्रतिशत प्रोटीन तथा कैल्शियम, आयरन, कार्बोहाइड्रेट और विटामिन की मात्रा होती है। इसका उपयोग दाल के अलावा नमकीन, पापड़ एवं मिठाइयां बनाने में भी होता है।

मूंग की फसल वायुमंडलीय नाइट्रोजन का मृदा में स्थिरीकरण करती है। इसके फसल अवशेषों को मिट्टी में मिलाने से पोषक तत्वों एवं कार्बन, नमी संरक्षण, मृदा की जैविक क्रियाशीलता एवं वायु संचार में वृद्धि और जल प्रवाह व मृदाक्षरण में कमी होती है। देश में मूंग की ग्रीष्मकालीन खेती के प्रति किसानों का रुझान बढ़ा है। किसान इसकी खेती में उचित कृषि तकनीकों जैसे कम अवधि वाली किस्मों का चयन, सिंचाई जल का उत्तम प्रबंधन, खरपतवार, रोग और कीट प्रबंधन इत्यादि के बारे में अच्छी जानकारी द्वारा उत्पादकता बढ़ा सकते हैं। इस लेख में मूंग फसल की महत्वपूर्ण कृषि क्रियाओं का वर्णन किया गया है।

जलवायु एवं उन्नत किस्में
फसल वृद्धि के लिए इष्टतम तापमान 25-35 डिग्री सेल्सियस होता है। गर्मी की फसल के लिए 60-70 दिनों में पकने वाली किस्में उपयुक्त होती हैं।
भूमि की तैयारी एवं फसल बुआई मूंग के लिए उचित जल निकास वाली दोमट या बलुई-दोमट मृदा उपयुक्त होती है। बीज को 20-25 सें.मी. पंक्ति से पंक्ति तथा 4-5 सें.मी. गहरा बोना चाहिए। लगभग 20-30 कि.ग्रा. बीज एक हैक्टर के लिए पर्याप्त होता है एवं बुआई का सही समय मार्च-अप्रैल है। मृदाजनित रोगों की रोकथाम के लिए बीज को 5-10 ग्राम ट्राइकोडर्मा या 2.5 ग्राम थीरम या 2.0 ग्राम कार्बेन्डाजिम/ कि.ग्रा. बीज से उपचारित करना चाहिए। राइजोबियम कल्चर (250 ग्राम प्रति 10 कि.ग्रा. बीज) से बीजोपचार करने से जड़ नोडल अधिक बनती हैं और उपज में 10-15 प्रतिशत वृद्धि होती है।

पोषक तत्व प्रबंधन
मूंग की फसल में नाइट्रोजन उर्वरक की कम आवश्यकता होती है। यह फसल वायुमंडलीय नाइट्रोजन का प्रयोग करती है। मूंग की फसल के लिये गोबर की सड़ी खाद 5-6 टन प्रति हैक्टर या केंचुआ खाद 2.0 टन प्रति हैक्टर मृदा में बुआई से लगभग 1.0 महीने पहले मिला देनी चाहिए। इस फसल को 15-20 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 40-50 कि.ग्रा. फॉस्फोरस, 20-30 कि.ग्रा. पोटेशियम, 20-25 कि.ग्रा सल्फर और लगभग 20 कि.ग्रा जिंक की प्रति हैक्टर आवश्यकता होती है।

सिंचाई
छोटे जीवनचक्र के कारण, इस फसल को कम पानी की आवश्यकता होती है। सिंचाई के लिए महत्वपूर्ण अवस्थाएं फूल आने और फली भरने का समय है। पहली सिंचाई बुआई के 20-25 दिनों के बाद करनी चाहिए और आवश्यकतानुसार 10-15 दिनों के अंतर पर दोहराई जानी चाहिए। मूंग की उच्च उपज और समान परिपक्वता के लिए अंतिम सिचाई बुआई के लगभग 50-55 दिनों तक समाप्त कर देनी चाहिए। सिंचाई जल बचत और अच्छी उपज के लिए सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली का प्रयोग अत्यंत लाभदायक है।

खरपतवार प्रबंधन
खरपतवारों से मूंग की उपज में लगभग 30-35 प्रतिशत की हानि होती है। फसल की। प्रारंभिक वृद्धि धीमी होने के कारण खरपतवारों को बढ़वार के लिए पर्याप्त अवसर मिल जाता है। इस फसल में मुख्य रूप से मोथा, चौलाई, सांवा घास, मकरा, मकोय इत्यादि खरपतवार उगते हैं। खरपतवार से अधिकतम नुकसान बुआई के 20-25 दिनों बाद की अवस्था पर होता है।
खरपतवारों के उचित नियंत्रण के लिए हाथ से एक या दो बार निराई-गुड़ाई और खरपतवारनाशकों का उचित मात्रा में उपयोग करना आवश्यक है।

प्रमुख कीट और उनका नियंत्रण
थ्रिप्स कीट - थ्रिप्स फूल के अंदर पाये जाने वाले बहुत छोटे और गहरे भूरे रंग के कीट होते हैं। ये फूल को खा जाते हैं।
नियंत्रण - थायोमेथोक्सम 70 डब्ल्यूएस 0.2 प्रतिशत से बीज उपचार और थायोमेथोक्सम 25 डब्ल्यूजी 0.02 प्रतिशत का पर्णीय छिड़काव करें। ट्राइजोफॉस 40 ई.सी. 2.0 मि.ली./लीटर या डाइमेथोएट 30 ई.सी. 2 मि.ली./लीटर का छिड़काव करें।

फली छेदक - इसके लार्वा पत्तियों, फूलों, फलियों और बीजों को खाते हैं।
नियंत्रण - स्पिनोसैड 45 एससी 1150 मि.ली./ हैक्टर का छिड़काव करें। एमेमेक्टिन बेंजोएट 5 एसजी 0.2 ग्राम/लीटर या प्रोफेनोपोहोस 50 ई.सी. 2 मि.ली./लीटर का छिड़काव करें।

सफेद मक्खी - इनके प्रकोप से फसल उपज पर काफी हानिकारक प्रभाव पड़ता है।
नियंत्रण - इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल 3 मि.ली./कि.ग्रा. से बीज उपचार और इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल 0.2 मि.ली./लीटर का 15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें। एसफेट 75 एसपी 1.0 ग्राम प्रति लीटर का छिड़काव करें।

प्रमुख रोग और उनका प्रबंधन
पीला मोजेक रोग यह मूंग की फसल का प्रमुख रोग है। यह रोग सफेद मक्खी द्वारा फैलता है। इसमें सर्वप्रथम पत्तियों पर दानों के आकार के पीले रंग के धब्बे बनते हैं, जो धीरे-धीरे बढ़कर पीले चकत्तों के रूप में बदल जाते हैं। इस प्रकार पूरी पत्ती पीली पड़कर सूख जाती है। अत्यधिक संक्रमण से सम्पूर्ण पौधा मर जाता है। इससे 50-80 प्रतिशत तक उपज में नुकसान होता है।
नियंत्रण - रोग प्रतिरोधी किस्में उगाएं एवं रोगग्रस्त पौधों को खेत से बाहर निकाल कर नष्ट कर दें। ट्राइजोफॉस 40 ई.सी. या ऑक्सीडेमेटोन-मिथाइल 25 ई.सी. 2.0 मि.ली./लीटर का 10-15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें।

कटाई, मड़ाई और भंडारण
ग्रीष्मकालीन मूंग को पकने में 60 से 65 दिनों का समय लगता है। फली की परिपक्वता आमतौर पर एक समान नहीं होती है। कटाई 14-15 प्रतिशत बीज नमी पर करनी चाहिए। कटाई उपरान्त फसल को 3-4 दिनों के लिए धूप में सुखाना चाहिए।
स्पाइक टूथ टाइप पॉवर थ्रेसर से मूंग की मड़ाई की जा सकती है। मड़ाई के उपरांत बीजों को 12 प्रतिशत से कम नमी पर भंडारित करना चाहिए। ग्रीष्मकालीन मूंग की अच्छी फसल से लगभग 10-12 क्विंटल प्रति हैक्टर उपज प्राप्त की जा सकती है।

स्त्रोत : ICAR "खेती"
एम.के. तरवरिया', देवीदीन यादव, सुभाष बाबू, शुभेदु सिंह और रवीश सिंह

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