इन 5 टिप्स का ख्याल रखकर किसान एकड़ की नींबू की खेती से 5 लाख की आमदनी ले सकते हैं।
नींबू में कई तरह के औषधीय गुण से हम आप परिचित हैं लेकिन नींबू का फसल किसानों के लिए बेहद फायदेमंद है. इसे कैश क्रॉप के रुप में किसान करते हैं आजकल तो दिल्ली आस पास के इलाके में किसान अपने पारंपरिक खेती को छोड़ नींबू की खेती करने लगे है. अब देश के महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश आंध्रप्रदेश, तेलांगाना, बिहार,पंजाब, हरियाणा, पूर्वी उत्तर प्रदेस और राजस्थान के साथ साथ अब तो दिल्ली के आसपास के इलाकों में भी खूब उत्पादन हो रहा हैं।
नींबू की फसल एक एकड़ में तकरीबन 300 पौधे लगाते हैं. यह पौधे हमें तीसरे साल से नींबू देने लगते हैं. इन पौधों में एक साल में तीन बार खाद डाला जाता है. आमतौर पर फरवरी, जून और सितंबर के महीनों में ही खाद डालते हैं. पेड़ जब पूरी तरह तैयार हो जाते हैं तो एक पेड़ में 20 से 30 किलों तक नींबू मिल जाते है।
जबकि मोटे छिलके वाले नींबू की उपज 30 से 40 किलों तक हो सकती है.लेकिन उसकी कीमत कम होती है आढती अचार बनाने के लिए ले जाते हैं महिंदर बताते हैं कि उनके खेत से तो व्यापारी 30 से 40 रुपये किलो के हिसाब से ले जाते हैं. लेकिन बाजार में दोगुने कीमत पर बेचते हैं साल में दो बार फलते हैं एक बार नवंबर दिसंबर में दूसरी बार मई जून के महीने में फलते हैं . अच्छी फसल हो तो एक एकड़ में 5 से 7 लाख रूपये तक की कीमत मिल जाती है।
(1) नींबू की खेती करते वक्त कई और सावधानियां बरतनी है. क्योंकि पेड़ों को नुकसान पहुंचाने वाले भी है. एक रोग सिट्रस डिक्लाइन(Citrus Decline) है. इसको प्रबंधित करने के लिए नींबू के पेड़ो की समय से कटाई छटाई करना अनिवार्य है.
(2) सूखी एवं रोग ग्रसित डालियों को काट कर हटा दें. मुख्य तने पर लगे बोरर के छिद्रों(borer holes) को साफ़ कर उसमें पेट्रोल या किरोसिन तेल से भींगी रुई ठूंस कर बंद करे दें. मकड़ी के जालों तथा कैंकर(Cancer) से ग्रसित पत्तियों को साफ़ कर दें. डालियों के कटे भागों पर बोर्डो पेंट बनाकर लगायें. रोगग्रसित पत्तियों, डालियों को इक्ट्ठा करके जला दें तथा बागीचे की जमीन की गुड़ाई करें.
(3)रोगग्रसित पौधों में 25 किग्रा खूब सड़ी गोबर की खाद या कंपोस्ट के साथ 4.5 किलो नीम की खली एवं 200 ग्रा. ट्राइकोडर्मा पाउडर(Trichoderma Powder) मिला कर प्रति वयस्क पेड़ में रिंग बना कर दे।
(4) रासायनिक खादों में 1 किग्रा यूरिया + 800 ग्रा. सि.सु.फा. + 500 ग्रा. म्यूरेट ऑफ़ पोटाश को प्रति वृक्ष के हिसाब से दो भागों में बांटकर जून-जुलाई और अक्टूबर में दें. इन खादों का प्रयोग हमेंशा मुख्य तने से 1मीटर की दूरी पर रिंग बना कर देना चाहिए. इसके लिए नई पत्तियों के निकलते समय एमिडाक्लोरप्रिड (amidaclorpid) (1 मिली/ 2 ली.) या क्वीनालफास(queenalphas)(2 मि.ली./ ली.) तथा डाइमेथोएट(dimethoate)(1 मि.ली./1ली.) या कार्बोरिल(carboryl) (2 ग्रा./ ली.) का घोल बनाकर दो छिड़काव करें,उपरोक्त दवा का प्रयोग अदल बदल कर करें. मृदाजनित एवं पत्तियों पर लगने वाले रोगों के नियंत्रण का प्रबंध करें.
फाइटोफ्थोरा(phytophthora) के नियंत्रण के लिए मेटालैक्सिल एवं मैनकोजेब(Metalaxyl and Mancozeb) मिश्रित फफुंदनाशक को 2 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोल बना कर मिट्टी को खूब अच्छी तरह से भींगा दे.एक वयस्क पेड़ की मिट्टी को भीगने में 6 से 10 लीटर दवा के घोल की आवश्यकता पड़ेगी.
(5) सिट्रस कैंकर रोगों के प्रबंधन के लिए ब्लाइटॉक्स 50 की 2ग्राम /लीटर पानी एवं स्ट्रेप्टोसाइक्लिन या पाउसामाइसिन (streptocycline or pausamycin)की 1ग्राम मात्रा प्रति 2 लीटर पानी में घोलकर नई पत्तियों के निकलते समय 2-3 छिड़काव करें
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