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रामदाना : दुनिया का सबसे पुराना अनाज जो चावल- गेहूं और मक्के से कई गुना अधिक फायदेमंद है।

 

 रामदाना : दुनिया का सबसे पुराना अनाज जो चावल- गेहूं और मक्के से कई गुना अधिक फायदेमंद है।



#आवाज_एक_पहल

दुनिया का सबसे पुराना अनाज रामदाना अब तो भूले-बिसरे ही याद आता हैं । उपवास के लिए लोग इसके लड्डू और पट्टी खोजते हैं. पहले इसकी खेती का भी खूब प्रचलन था. मंडुवे यानी कोदों के खेतों के बीच-बीच में चटख लाल, सिंदूरी और भूरे रंग के चपटे, मोटे गुच्छे जैसे दिखने वाली फसल चुआ (चौलाई) होती थी जिसके पके हुए बीज रामदाना कहलाते हैं. जब पौधे छोटे होते थे तो वे चौलाई के रूप में हरी सब्जी के काम आते थे. तब पहाड़ों में मंडुवे की फसल के साथ चौलाई उगाने का आम रिवाज था. यह तो शहर आकर पता लगा कि रामदाना के लड्डू और मीठी पट्टी बनती है. पहाड़ में रामदाना के बीजों को भून कर उनकी खीर या दलिया बनाया जाता था. एक बार, नाश्ते में रामदाने की मुलायम और स्वादिष्ट रोटी खाई थी. रोटी का वह स्वाद अब भी याद है. अब तो पहाड़ में भी खेतों में दूर-दूर तक चौलाई के रंगीन गुच्छे नहीं दिखाई देते हैं.


गेहूं, धान और मक्का से भी श्रेष्ठ रामदाना



पौष्टिकता की लिहाज से रामदाने के दानों में गेहूं के आटे से दस गुना अधिक कैल्शियम, तीन गुना अधिक वसा और दोगुने से अधिक लोहा पाया जाता है। धान और मक्का से भी रामदाना श्रेष्ठ है। शाकाहारी लोगों को रामदाना खाने से मछली के बराबर प्रोटीन मिलता है। रामदाने का हरा साग भी स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत लाभकारी है। 



इतिहास टटोला तो पता लगा, चौलाई के गुच्छे तो हजारों वर्ष पहले दक्षिणी अमेरिका के एज़टेक और मय सभ्यताओं के खेतों में लहराते थे. रामदाना उनके मुख्य भोजन का हिस्सा था और इसकी खेती वहां बहुत लोकप्रिय थी. जब सोलहवीं सदी में स्पेनी सेनाओं ने वहां आक्रमण किया, तब चौलाई की फसल चारों ओर लहलहा रही थी. वहां के निवासी चौलाई को पवित्र फसल मानते थे और उनके अनेक धार्मिक अनुष्ठानों में रामदाना काम आता था. विभिन्न उत्सवों, संस्कारों और पूजा में रामदाने का प्रयोग किया जाता था. स्पेनी सेनापति हरनांडो कार्टेज को चौलाई की फसल के लिए उन लोगों का यह प्यार रास नहीं आया और उसने इसकी खड़ी फसल के लहलहाते खेतों में आग लगवा दी. चौलाई की फसल को बुरी तरह रौंद दिया गया और उसकी खेती पर पाबंदी लगा दी गई. इतना ही नहीं, हुक्म दे दिया गया कि जो चौलाई की खेती करेगा उसे मृत्युदंड दिया जाएगा. इस कारण चौलाई की खेती खत्म हो गई.



 

चौलाई का जन्मस्थान पेरू माना जाता है. स्पेनी सेनाओं ने एज़टेक और मय सभ्यताओं के खेतों में चौलाई की फसल भले ही उजाड़ दी, लेकिन दुनिया के दूसरे देशों में इसकी खेती की जाती रही. दुनिया भर में इसकी 60 से अघिक प्रजातियां उगाई जाती हैं.


पहाड़ों में चौलाई सब्जी और बीज दोनों के काम आती है लेकिन मैदानों में इसका प्रयोग हरी सब्जी के लिए किया जाता है. इसकी ‘अमेरेंथस गैंगेटिकस’ प्रजाति की पत्तियां लाल होती हैं और लाल साग या लाल चौलाई के रूप में काम आती हैं. ‘अमेरेंथस पेनिकुलेटस’ हरी चौलाई कहलाती है. ‘अमेरेंथस काडेटस’ प्रजाति की चौलाई को रामदाने के लिए उगाया जाता है. हालांकि, मैदानों में यह हरी सब्जी के रूप में काम आती है. चौलाई के एक ही पौधे से कम से कम एक किलोग्राम तक बीज मिल जाते हैं. इस फसल की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इसे कम वर्षा वाले और रूखे-सूखे इलाकों में भी बखूबी उगाया जा सकता है. इस भूली-बिसरी फसल के बारे में हम यह भूल गए हैं कि यह एक पौष्टिक आहार है. कई विद्वान तो इसे गाय के दूध और अंडे के बराबर पौष्टिक बताते हैं. 


राजगिरा (चौलाई) के फायदे – Benefits of Rajgira (Amaranth) in Hindi



राजगिरा के स्वास्थ्य संबंधी कई फायदे हैं, जिसकी जानकारी हम यहां विस्तार दे रहे हैं।


1. ग्लूटन फ्री (Gluten-Free)

राजगिरा को ग्लूटेन फ्री डाइट के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। ग्लूटेन प्राकृतिक रूप से गेहूं, राई और जौ में पाया जाता है (2)। कुछ मामलों में इसका सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। वैज्ञानिक रिपोर्ट की मानें, तो ग्लूटेन का सेवन सीलिएक रोग (Celiac disease) के जोखिम को बढ़ा सकता है (3)। यह छोटी आंत की बीमारी होती है। वहीं, राजगिरा ग्लूटेन से मुक्त होता है, जो आपको इस बीमारी से बचाए रखने का काम कर सकता है (4)।


2. प्रोटीन का उच्च स्रोत

प्रोटीन के लिए लोग न जाने कितने खाद्य पदार्थों का सहारा लेते हैं। इस मामले में राजगिरा अहम भूमिका निभा सकता है, क्योंकि यह प्रोटीन का अच्छा स्रोत है। दरअसल, शरीर की कोशिकाओं की मरम्मत करने और नई कोशिकाओं को बनाने के लिए प्रोटीन की आवश्यकता होती है (5)। विशेषज्ञों के द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, राजगिरा को प्रोटीन के बेहतरीन विकल्प के रूप में शामिल किया जा सकता है (6)।


3. सूजन रोकने में मददगार


शरीर में सूजन की समस्या से लड़ने में भी राजगिरा के फायदे देखे जा सकते हैं। एक वैज्ञानिक अध्ययन में इसके एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण के बारे में पता चला है, जो सूजन की समस्या को दूर करने का काम कर सकता है (7)।


4. हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए


हड्डियों को मजबूत बनाने के लिए आप राजगिरा को प्रयोग में ला सकते हैं। दरअसल, राजगिरा में कैल्शियम की भरपूर मात्रा पाई जाती है और यह तो आप जानते ही होंगे कि हड्डियों के निर्माण से लेकर उनके विकास के लिए कैल्शियम कितना जरूरी है (8), (9)।


5. हृदय स्वास्थ्य के लिए


राजगिरा में हृदय स्वास्थ्य को बरकरार रखने के भी गुण पाए जाते हैं। दरअसल, हृदय जोखिम का एक कारण रक्त में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ना भी है। रक्त में बढ़ा हुआ कोलेस्ट्रॉल हार्ट अटैक सहित कई हृदय रोग का कारण बन सकता है (10)। यहां राजगिरा अहम भूमिका अदा कर सकता है, क्योंकि यह ब्लड कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित कर सकता है (11)।


एक वैज्ञानिक शोध के अनुसार, राजगिरा का तेल कुल कोलेस्ट्रॉल, ट्राइग्लिसराइड्स (रक्त में फैट), एलडीएल (खराब कोलेस्ट्रॉल) की मात्रा को कम कर सकता है (12)।


6. डायबिटीज के जोखिम को कम करने के लिए

राजगिरा का सेवन डायबिटीज से बचे रहने के लिए भी किया जा सकता है। एक वैज्ञानिक अध्ययन में पता चला है कि राजगिरा और राजगिरा के तेल का सप्लीमेंट एंटीऑक्सीडेंट थेरेपी के रूप में काम कर सकता है, जो हाइपरग्लाइसीमिया (हाई ब्लड शुगर) को ठीक करने और मधुमेह के जोखिम को रोकने में फायदेमंद साबित हो सकता है (13)।


एक अन्य वैज्ञानिक अध्ययन में यह देखा गया है कि पर्याप्त इंसुलिन की मात्रा के बिना खून में मौजूद अतिरिक्त ग्लूकोज टाइप 2 डायबिटीज का कारण बन सकता है (14)। वहीं, राजगिरा और राजगिरा के तेल का मिश्रण सीरम इंसुलिन की पर्याप्त मात्रा बढ़ा सकता है (13)।


7. कैंसर के जोखिम को कम करने में

कैंसर के जोखिम से बचने के लिए भी राजगिरा का इस्तेमाल फायदेमंद साबित हो सकता है। राजगिरा में उपयोगी एंटीऑक्सीडेंट होता है, जो आपके इम्यून सिस्टम को मजबूत करता है और कैंसर से होने वाले खतरे को भी कम कर सकता है (15)।


इसके अलावा, राजगिरा में विटामिन-ई पाया जाता है (8)। विटामिन-ई एक एंटीऑक्सीडेंट की तरह काम करता है। यह फ्री-रेडिकल्स से कोशिकाओं को बचाता है और साथ ही कई प्रकार के कैंसर के खतरे को भी रोकने में सक्रिय भूमिका निभा सकता है (16)।


8. लाइसिन (एमिनो एसिड) का उच्च स्रोत

लाइसिन एक प्रकार का एमिनो एसिड है और शरीर में प्रोटीन की पूर्ति के लिए एमिनो एसिड एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यहां राजगिरा के फायदे देखे जा सकते हैं, क्योंकि इसमें लाइसिन की भरपूर मात्रा पाई जाती है (17) (18)।


9. प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए

प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए भी चौलाई के फायदे देखे जा सकते हैं। राजगिरा में जिंक की मात्रा पाई जाती है, जो इम्यून सिस्टम को बढ़ाने का काम कर सकता है (19)। इसके अलावा, राजगिरा में विटामिन-ए की मात्रा भी पाई जाती है और विटामिन-ए इम्यूनिटी को बूस्ट कर सकता है (8), (20)।


10. पाचन शक्ति को बढ़ाने में

स्वस्थ जीवन के लिए पाचन क्रिया का स्वस्थ रहना बहुत जरूरी है। यहां चौलाई के फायदे देखे जा सकते हैं, क्योंकि यह फाइबर से समृद्ध होता है (8)। फाइबर एक जरूरी पोषक तत्व है, जो पाचन क्रिया में सुधार के साथ-साथ कब्ज जैसी समस्या से छुटकारा दिलाने में मदद करता है (21)।


11. वजन को नियंत्रित करने में

चौलाई के फायदे वजन नियंत्रित करने के लिए भी देखे जा सकते हैं। यहां पर एक बार फिर चौलाई में मौजूद फाइबर का जिक्र होगा (8)। फाइबर पाचन क्रिया को मजबूत करने के साथ-साथ वजन को नियंत्रित करने का काम कर सकता है। दरअसल, फाइबर युक्त भोजन का सेवन देर तक पेट को भरा रखता है, जिससे अतिरिक्त खाने की आदत को नियंत्रित किया जा सकता है (21)।


12. अच्छी दृष्टि के लिए

आंखों की दृष्टि को ठीक रखने के लिए चौलाई का सेवन फायदेमंद साबित हो सकता है। राजगिरा में विटामिन-ए पाया जाता है (8)। विटामिन-ए आंखों के स्वास्थ्य के लिए उपयोगी होता है (22)। इसकी पूर्ति के जरिए बढ़ती उम्र के साथ होने वाली दृष्टि संबंधित समस्याओं को भी कम किया जा सकता है (23)।


13. गर्भावस्था के लिए लाभदायक

गर्भावस्था में मां को पोषण युक्त आहार की जरूरत होती है और चौलाई को गर्भावस्था में बेहतरीन पोषण के रूप में शामिल किया जा सकता है। यह गर्भावस्था में कब्ज की समस्या से बचने के लिए फाइबर, एनीमिया के खतरे को दूर रखने के लिए आयरन और हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए कैल्शियम की पूर्ति का काम कर सकता है (24) (8)।


इसके अलावा, गर्भावस्था में जो महिलाएं धूम्रपान करती हैं, उनके लिए विटामिन-सी की पर्याप्त मात्रा जरूरी होती है, जो राजगिरा के जरिए पूरी की जा सकती है (8), (25)। हालांकि, इसका अधिक मात्रा में सेवन करने से पहले एक बार डॉक्टर से सलाह जरूर लें। साथ ही स्टाइलक्रेज आपको धूम्रपान न करने की सलाह देता है।


14. बालों और त्वचा के लिए लाभदायक

बालों और त्वचा के अच्छे स्वास्थ्य के लिए भी राजगिरा का सेवन किया जा सकता है। बालों को स्वस्थ बनाने के लिए हम राजगिरा का सेवन कर सकते हैं, क्योंकि इसमें मौजूद जिंक बालों के लिए फायदेमंद हो सकता है। दरअसल, जिंक का सेवन करने से सिर में होने वाली खुजली कम हो सकती है और बालों का झड़ना रुक सकता है (8) (26)।


त्वचा के बेहतर स्वास्थ्य के लिए भी राजगिरा लाभकारी परिणाम दे सकता है, क्योंकि इसमें मौजूद विटामिन-सी त्वचा के लिए उपयोगी माना जाता है। विटामिन-सी एक एंटीऑक्सीडेंट है, जो त्वचा को यूवी विकिरण से होने वाले नुकसान से बचा सकता है। इसके अतिरिक्त विटामिन-सी मुंहासों को दूर करने और त्वचा में कोलेजन को बढ़ाने में मदद कर सकता है (8), (27)।


15. एनीमिया से लड़ने में

 Fight anemia Save

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राजगिरा के फायदों में एनीमिया से बचाव करना भी शामिल है। एनीमिया एक ऐसी चिकित्सकीय स्थिति है, जो शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं की कमी के कारण उत्पन्न होती है। यहां राजगिरा के लाभ देखे जा सकते हैं, क्योंकि यह आयरन से समद्ध होता है। आयरन एक जरूरी पोषक तत्व है, जो लाल रक्त कोशिकाओं के उत्पादन को बढ़ाने का काम करता है (8), (28)।


राजगिरा के फायदे जानने के बाद आइए अब लेख के अगले भाग में जानते हैं कि राजगिरा में कौन-कौन से पौष्टिक तत्व होते हैं।


रामदाना में प्रोटीन

12-15 प्रतिशत, वशा (6-7 प्रतिशत) 

फीनाल्स 0.045-0.068 प्रतिशत एवं एन्टीआक्सीडेन्ट डी०पी०पी० एच 22.0-27.0 प्रतिशत पाया जाता है।

ऐसे करे रामदाना की खेती



बुवाई का समय

इसकी खेती खरीफ एवं रबी दोनों सीजन में की जाती है। भारत में जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, तमिलनाडु, बिहार, गुजरात, पूर्वी उत्तर प्रदेश, बंगाल एवं हिमाचल प्रदेश इत्यादि में माइनर फसल के रूप में उगाते है।


जलवायु

अच्छी उपज के लिए गर्म एवं नम जलवायु की आवश्यकता होती है, उन सभी स्थानों पर जहाँ वर्षा कम होती है वहाँ पर इसकी खेती की जा सकती है।


उन्नतिशील प्रजातियाँ

जी०ए०-1 यह किस्म 110-115 दिन में पक कर तैयार होती है। इसके पौधे की ऊँचाई 200-210 सेमी०, बाली का रंग हल्का हरा एवं पीला, 1000 दाने का वजन 0.8 ग्राम, उपज 20-23 कुन्तल प्रति हे० है।


जी०ए०-2

यह किस्म 98-102 दिन में पक कर तैयार होती है। पौधों की ऊँचाई 180-190 सेमी०, बाली का रंग लाल, 1000 दाने का वजन 0.8 ग्राम, उपज 23-25 कुन्तल प्रति हे० है।


अन्नपूर्णा

यह किस्म 105-110 दिन में पक कर तैयार होती है। इसके पौधों की ऊँचाई 200-205 सेमी बाली का रंग हरा एवं पीला होता है। उपज 20-22 कुन्तल प्रति हे० है।


भूमि की तैयारी

खेत की एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा 2-3 जुताई देशी हल से या हैरो से करनी चाहिए। जुताई के बाद पाटा लगाकर खेत को भुरभुरा कर लेना चाहिए।


बीज की दर एवं उपचार

एक किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करते है। थीरम 2-2.5 ग्राम से 1 किलोग्राम बीज का उपचार करना चाहिए।


बोने का समय

खरीफ में जून के अन्तिम सप्ताह से जुलाई के मध्य तक बुवाई कर देनी चाहिए।


बोन की विधि 

रामदाना की बुवाई छिटकवा विधि ( बीज को खेत में छिड़ककर जुताई करके पता चला देते हैं।)


लाइन में बोआई

लाइन से लाइन की दूरी 45 सेमी एवं पौधे की दूरी 15 सेमी रखते है। कूड़ की गहराई 2 इंच की दूरी पर रखते है।


खाद एवं उर्वरक

60 किग्रा नत्रजन, 40 किग्रा० फास्फोरस एवं 20 किग्रा० पोटाश प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता पड़ती है। बुआई के समय नत्रजन की आधी मात्रा फास्फोरस एवं पोटाश की सम्पूर्ण मात्रा देनी चाहिए, नत्रजन की आधी मात्रा का दो बार में छिड़काव करना चाहिए।


सिंचाई

खरीफ ऋतु में सिंचाई वर्षा के आधार पर ही की जाती है।


निराई-गुड़ाई

बीज बोने के 20-25 दिन बाद खेत की निराई-गुड़ाई की जाती है। फसल की दो बार निराई गुड़ाई अवश्य करनी चाहिए।


कटाई

फसल पीले पड़ने के बाद कटाई कर लेनी चाहिए।


उपज

20-25 कुन्तल प्रति हेक्टेयर पैदावार होती है।


कीट

बिहार हेयरी कैटर पिलर

इसकी सूंडी पत्तियों का हानि पहुँचाती है। कभी-2 तने पर भी आक्रमण करती है। फालीडाल 15-20 किग्रा० प्रति हे० की दर से प्रयोग करने पर नियन्त्रण हो जाता है।


बीमारियां एवं रोकथाम

ब्लास्ट (झोंका) ब्लास्ट व सड़न आदि बीमारियों का आक्रमण होता है। खड़की फसल में डाइथेन जेड 78 पर 0.05 प्रतिशत बेविस्टीन के घोल का छिड़काव से भी रोग का प्रभाव कम हो जाता है।

रामदाने की खेती लिए एक एकड़ खेती में लगभग आठ हजार से दस हजार की लागत आती है। अच्छी फसल होने पर प्रति एकड़ 15 से 18 कुंतल तक पैदावार होने की सम्भावना रहती है। तैयार फसल मंडी में 3500 से लेकर 7200 रुपए प्रति कुंतल तक बिक जाती है। जिससे प्रति एकड़ लगभग 50 हजार तक शुद्ध मूनाफा होने की उम्मीद रहती है।

©लवकुश

आवाज एक पहल

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समसामयिक सलाह:- भारी बारिश के बाद हुई (बैटीरियल लीफ ब्लाइट ) से धान की पत्तियां पीली हो गई । ऐसे करे उपचार नही तो फसल हो जाएगी चौपट छत्त्तीसगढ़ राज्य में विगत दिनों में लगातार तेज हवाओं के साथ काफी वर्षा हुई।जिसके कारण धान के खेतों में धान की पत्तियां फट गई और पत्ती के ऊपरी सिरे पीले हो गए। जो कि बैटीरियल लीफ ब्लाइट नामक रोग के लक्षण है। आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर बताएंगे कि ऐसे लक्षण दिखने पर किस प्रकार इस रोग का प्रबंधन करे। जीवाणु जनित झुलसा रोग (बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट): रोग के लक्षण ■ इस रोग के प्रारम्भिक लक्षण पत्तियों पर रोपाई या बुवाई के 20 से 25 दिन बाद दिखाई देते हैं। सबसे पहले पत्ती का किनारे वाला ऊपरी भाग हल्का पीला सा हो जाता है तथा फिर मटमैला हरापन लिये हुए पीला सा होने लगता है। ■ इसका प्रसार पत्ती की मुख्य नस की ओर तथा निचले हिस्से की ओर तेजी से होने लगता है व पूरी पत्ती मटमैले पीले रंग की होकर पत्रक (शीथ) तक सूख जाती है। ■ रोगग्रसित पौधे कमजोर हो जाते हैं और उनमें कंसे कम निकलते हैं। दाने पूरी तरह नहीं भरते व पैदावार कम हो जाती है। रोग का कारण यह रोग जेन्थोमोनास

वैज्ञानिक सलाह- धान की खेती में खरपतवारों का रसायनिक नियंत्रण

धान की खेती में खरपतवार का रसायनिक नियंत्रण धान की फसल में खरपतवारों की रोकथाम की यांत्रिक विधियां तथा हाथ से निराई-गुड़ाईयद्यपि काफी प्रभावी पाई गई है लेकिन विभिन्न कारणों से इनका व्यापक प्रचलन नहीं हो पाया है। इनमें से मुख्य हैं, धान के पौधों एवं मुख्य खरपतवार जैसे जंगली धान एवं संवा के पौधों में पुष्पावस्था के पहले काफी समानता पाई जाती है, इसलिए साधारण किसान निराई-गुड़ाई के समय आसानी से इनको पहचान नहीं पाता है। बढ़ती हुई मजदूरी के कारण ये विधियां आर्थिक दृष्टि से लाभदायक नहीं है। फसल खरपतवार प्रतिस्पर्धा के क्रांतिक समय में मजदूरों की उपलब्धता में कमी। खरीफ का असामान्य मौसम जिसके कारण कभी-कभी खेत में अधिक नमी के कारण यांत्रिक विधि से निराई-गुड़ाई नहीं हो पाता है। अत: उपरोक्त परिस्थितियों में खरपतवारों का खरपतवार नाशियों द्वारा नियंत्रण करने से प्रति हेक्टेयर लागत कम आती है तथा समय की भारी बचत होती है, लेकिन शाकनाशी रसायनों का प्रयोग करते समय उचित मात्रा, उचित ढंग तथा उपयुक्त समय पर प्रयोग का सदैव ध्यान रखना चाहिए अन्यथा लाभ के बजाय हानि की संभावना भी रहती है। डॉ गजेंद्र चन्

समसामयिक सलाह-" गर्मी व बढ़ती उमस" के साथ बढ़ रहा है धान की फसल में भूरा माहो का प्रकोप,जल्द अपनाए प्रबंधन के ये उपाय

  धान फसल को भूरा माहो से बचाने सलाह सामान्यतः कुछ किसानों के खेतों में भूरा माहों खासकर मध्यम से लम्बी अवधि की धान में दिख रहे है। जो कि वर्तमान समय में वातारण में उमस 75-80 प्रतिशत होने के कारण भूरा माहो कीट के लिए अनुकूल हो सकती है। धान फसल को भूरा माहो से बचाने के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ गजेंद्र चंद्राकर ने किसानों को सलाह दी और अपील की है कि वे सलाह पर अमल करें। भूरा माहो लगने के लक्षण ■ गोल काढ़ी होने पर होता है भूरा माहो का प्रकोप ■ खेत में भूरा माहो कीट प्रारम्भ हो रहा है, इसके प्रारम्भिक लक्षण में जहां की धान घनी है, खाद ज्यादा है वहां अधिकतर दिखना शुरू होता है। ■ अचानक पत्तियां गोल घेरे में पीली भगवा व भूरे रंग की दिखने लगती है व सूख जाती है व पौधा लुड़क जाता है, जिसे होपर बर्न कहते हैं, ■ घेरा बहुत तेजी से बढ़ता है व पूरे खेत को ही भूरा माहो कीट अपनी चपेट में ले लेता है। भूरा माहो कीट का प्रकोप धान के पौधे में मीठापन जिसे जिले में गोल काढ़ी आना कहते हैं । ■तब से लेकर धान कटते तक देखा जाता है। यह कीट पौधे के तने से पानी की सतह के ऊपर तने से चिपककर रस चूसता है। क्या है भू

सावधान -धान में (फूल बालियां) आते समय किसान भाई यह गलतियां ना करें।

  धान में फूल बालियां आते समय किसान भाई यह गलतियां ना करें। प्रायः देखा गया है कि किसान भाई अपनी फसल को स्वस्थ व सुरक्षित रखने के लिए कई प्रकार के कीटनाशक व कई प्रकार के फंगीसाइड का उपयोग करते रहते है। उल्लेखनीय यह है कि हर रसायनिक दवा के छिड़काव का एक निर्धारित समय होता है इसे हमेशा किसान भइयों को ध्यान में रखना चाहिए। आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय बताएंगे कि धान के पुष्पन अवस्था अर्थात फूल और बाली आने के समय किन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है, ताकि फसल का अच्छा उत्पादन प्राप्त हो। सुबह के समय किसी भी तरह का स्प्रे धान की फसलों पर नहीं करें कारण क्योंकि सुबह धान में फूल बनते हैं (Fertilization Activity) फूल बनाने की प्रक्रिया धान में 5 से 7 दिनों तक चलता है। स्प्रे करने से क्या नुकसान है। ■Fertilization और फूल बनते समय दाना का मुंह खुला रहता है जिससे स्प्रे के वजह से प्रेशर दानों पर पड़ता है वह दाना काला हो सकता है या बीज परिपक्व नहीं हो पाता इसीलिए फूल आने के 1 सप्ताह तक किसी भी तरह का स्प्रे धान की फसल पर ना करें ■ फसल पर अग