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Showing posts from August, 2020

जैविक खेती-यूरिया का जैविक विकल्प ग्लीरिसिडिया पेड़

जैविक खेती- यूरिया का जैविक विकल्प ग्लीरिसिडिया पेड़ ■ कृषि कार्य मे उपयोग होने वाले रसायनिक उर्वरको में सबसे अधिक उपयोग होने वाला उर्वरक है "यूरिया" पिछले कुछ दशकों से यूरिया की अंधाधुंध किसान भाई छिड़काव कर रहे है जिससे कि भू- संरचना काफी बिगड़ती चली जा रही है। वही कई राज्य यूरिया की कमी से जूझ रहे है। ऐसे में जरूरत है कि यूरिया का कुछ न कुछ जैविक विकल्प निकाला जाए।  ■ यूरिया पौधों को नाइट्रोजन प्रदान करता है आज के समय मे ऐसे  जैविक विकल्पों की आवश्यकता है जिससे नाइट्रोजन की पूर्ति की जा सके।   ■ पिछले कुछ लेखों में हमने बताया है कि गौ अंश आधारित अमृत पानी,गौ मूत्र, जीवामृत,घन जीवामृत का प्रयोग कर फसल को बचाया जा सकता है और बहुत हद तक यूरिया का विकल्प भी बन सकता है।  आज की कड़ी में हम एक ऐसे पेड़ के बारे में बताएंगे  जिसमे भरपूर मात्रा में नाइट्रोजन उपलब्ध होता है और बन सकता है "यूरिया का जैविक विकल्प" ■ नाइट्रोजन की पूर्ति के लिए किसान रासायनिक यूरिया खाद का इस्तेमाल करते है और इस पौधे में 46% नाइट्रोजन विद्यमान रहता है। ■ जैविक खेती में नाइट्रोजन खाद का यह एक अच्छा

कृषि सलाह- धान की बाली बदरंग या बदरा होने के कारण व निवारण (पेनिकल माइट)

कृषि सलाह - धान की बाली बदरंग या बदरा होने के कारण व निवारण (पेनिकल माइट) पेनिकल माइट से जुड़ी दैनिक भास्कर की खबर प्रायः देखा जाता है कि सितम्बर -अक्टूबर माह में जब धान की बालियां निकलती है तब धान की बालियां बदरंग हो जाती है। जिसे छत्तीसगढ़ में 'बदरा' हो जाना कहते है इसकी समस्या आती है। यह एक सूक्ष्म अष्टपादी जीव पेनिकल माइट के कारण होता है। आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक बताएंगे कि पेनिकल माइट के लक्षण दिखे तो उनका प्रबंधन कैसे किया जाए। पेनिकल माइट धान की बाली बदरंग एवं बदरा- धान की बाली में बदरा या बदरंग बालियों के लिए पेनिकल माईट प्रमुख रूप से जिम्मेदार है। पेनिकल माईट अत्यंत सूक्ष्म अष्टपादी जीव है जिसे 20 एक्स आर्वधन क्षमता वाले लैंस से देखा जा सकता है। यह जीव पारदर्शी होता है तथा पत्तियों के शीथ के नीचे काफी संख्या में रहकर पौधे की बालियों का रस चूसते रहते हैं जिससे इनमें दाना नहीं भरता। इस जीव से प्रभावित हिस्सों पर फफूंद विकसित होकर गलन जैसा भूरा धब्बा दिखता है। माईट उमस भरे वातावरण में इसकी संख्या बहुत तेजी से बढ़ती है। ग्रीष्मकालीन धान की ख

(असली-नकली)-स्वयं घर पर करे अपने खाध पदार्थ में मिलावट की जांच।

  खाद्य पदार्थों में मिलावट की जाँच हेतु घरेलू उपाय शरीर के पोषण के लिये एक व्यक्ति को विभिन्न भोज्य/खाद्य पदार्थों की रोज आवश्यकता है जिसके लिए सामान्य तौर पर एक परिवार अपनी आय का लगभग 50 फीसदी भाग खाद्य पदार्थों पर खर्च करता है। अधिकाशत: परिवार अपने खाद्य पदार्थों में पोषण तत्वों के प्रति सजग रहते हैं। प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट विटामिन तथा खनिज लवण आदि को आहार में शामिल करना आवश्यक है तथा ये सभी पोषक तत्व खाद्य सामग्री द्वारा ही प्राप्त किये जा सकते हैं। यह तभी संभव है जब बाजार में मिलने वाला खाद्य पदार्थ (दालें, अनाज, दूध, मिठाई, मसाले, तेल आदि) मिलावट रहित हों। अपमिश्रित खाद्य पदार्थ की गुणवत्ता काफी कम हो जाती है क्योंकि इसमें सस्ते पदार्थ जैसे रंग इत्यादि मिला दिये जाते हैं। इन्हें मिलाने से उत्पाद तो आकर्षक दिखने लगता है जिससे बिक्री ज्यादा होती है परन्तु उनकी पोषकता प्रभावित होती है व स्वास्थ्य के लिये हानिकारक सिध्द होते हैं। सभी प्रकार के खाद्य पदार्थ जैसे गेहूँ, आटा, दूध, शहद, दालें, मसाले, चाय पत्ती, मेवे, इत्यादि में इस तरह मिलावट की जाती है कि मूल खाद्य पदार्थ तथा मिला

चेतावनी-धान में सितम्बर माह में गंधी कीट (खखड़ी) कीट लगे तो ऐसे करे उपाय।

चेतावनी-धान में  सितम्बर माह में  गंधी बग (खखड़ी) कीट लगे तो ऐसे करे उपाय। धान की खेती असिंचित व सिंचित दोनों परिस्थितियों में की जाती है। धान की विभिन्न उन्नतशील प्रजातियाँ जो कि अधिक उपज देती हैं उनका प्रचलन  धीरे-धीरे बढ़ रहा है।परन्तु मुख्य समस्या कीट ब्याधियों की है, यदि समय रहते इनकी रोकथाम कर ली जाये तो अधिकतम उत्पादन के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। धान की फसल को विभिन्न कीटों जैसे तना छेदक, पत्ती लपेटक, धान का फूदका व गंधीबग द्वारा नुकसान पहुँचाया जाता है तथा बिमारियों में जैसे धान का झोंका, भूरा धब्बा, शीथ ब्लाइट, आभासी कंड व जिंक कि कमी आदि की समस्या प्रमुख है। आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक बताएंगे कि अगर धान की फसल में गंधी बग का प्रकोप हो तो इनका प्रबंधन किस प्रकार करना चाहिए। कीट की पहचान: धान की कम अवधि के किस्म में बाली निकलने के समय गंधी कीट का प्रकोप ज्यादा होता है । यह भूरे रंग का लम्बी टांगों वाला दुर्गन्ध युक्त कीट हैं। क्षति की प्रकृति ■यह कीट पौधों के कल्लों के बीच में जमीन की उपरी सतह पर पाये जाते हैं। इनका आक्रमण फसल की दूधिया

भा.कृ.अनु.प.-भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान ने जारी की सोयाबीन की खेती करने वाले कृषको के लिए समसामयिक सलाह (24 से 30 अगस्त 2020 तक)

समसामयिक सलाह - भा.कृ.अनु.प.-भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान ने जारी की सोयाबीन की खेती करने वाले कृषको के लिए समसामयिक सलाह (24 से 30 अगस्त 2020 तक) कोरोना वायरस की स्थिति कृषि कार्य बाबत सावधानियाँ: ■ कृषि कार्य करते समय 4 से अधिक व्यक्तियों को इकट्ठा ना होने दें तथा उनके बीच 2 मीटर की पर्याप्त दूरी रखें। बुखार / सर्दी खांसी की स्थिति में अपने खेतों पर काम कर रहें श्रमिक / व्यक्तियों को चिकित्सकीय परामर्श की सलाह दें। ■ कोरोना वायरस से सुरक्षा हेतु अपने चेहरे पर मास्क/गमछा/रूमाल/कपड़ा लगाएं तथा हाथों में मौजे/ ग्लब्स लगाना अनिवार्य करें। कृषि कार्य करते समय मादक पदार्थ / तम्बाकू का सेवन ना करें। समय-समय पर 20 सेकंड तक अपने हाथ साबुन से अच्छी तरह धोंये। सोयाबीन कृषकों के लिए साप्ताहिक सलाह: ■ कृषकों को सलाह है कि अधिक वर्षा के कारण जल भराव की स्थिति से होने वाले नुकसान को कमकरने हेतु शीघ्रातिशीघ्र जल निकासी की व्यवस्था करें। ■अधिक वर्षा के कारण कुछ क्षेत्रों में सोयाबीन की फसल में फफूंदजनित एन्थ्रेकनोज, राइजोक्टोनिया एरियल ब्लाईट तथा राइजोक्टोनिया रूट रॉट नामक बीमारियों का प्रकोप हो

रोग नियंत्रण:-केले के एंथ्रेक्नोज रोग का पहचान व प्रबंधन

  रोग नियंत्रण:- केले के एंथ्रेक्नोज रोग का पहचान व प्रबंधन  केले को गरीबों का फल कहा जाता है. केले की बढ़ती मांग की वजह से इस की खेती का महत्त्व भी बढ़ता जा रहा है. केले की खेती में यह देखा गया है, कि किसान अकसर जानकारी न होने की वजह से थोड़ीथोड़ी कमियों के कारण केले की खेती का पूरा फायदा नहीं ले पा रहे हैं। आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक बताएंगे कि केले में लगने वाले एंथ्रेक्नोज रोग का पहचान व प्रबंधन कैसे करे। लक्षण एवं नुकसान: यह बीमारी कोलेट्रॉट्राइटकम मूसे नामक फफुंफ के कारण फैलती है |यह बीमारी केले के पौधे में बढ़वार के समय लगती है| इस बीमारी के लक्षण पौधों की पत्तियों, फूलो एवं फल के छिलके पर छोटे काले गोल धब्बा के रूप मे दिखाई देते हैं। इस बीमारी का प्रकोप जून से सितंबर तक अधिक होता है क्योंकि इस समय तापक्रम ज्यादा रहता है। प्रबंधन ऐसे करे : 1. प्रोक्लोराक्स 0.15 प्रतिशत या कार्बेंडाझिम 2 ग्राम प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर छिड़काव करें। 2. केले को 3/4 परिपक्वता पर काटना चाहिये। 3. इस रोग से फलो के गुच्छे एवं डंठल काले हो जाते हैं और बाद में सड़ने लगते

रोग नियंत्रण-धान की बाली निकलने के बाद की अवस्था में होने वाले फाल्स स्मट रोग का प्रबंधन कैसे करें

धान की बाली निकलने के बाद की अवस्था में होने वाले फाल्स स्मट रोग का प्रबंधन कैसे करें धान की खेती असिंचित व सिंचित दोनों परिस्थितियों में की जाती है। धान की विभिन्न उन्नतशील प्रजातियाँ जो कि अधिक उपज देती हैं उनका प्रचलन धीरे-धीरे बढ़ रहा है।परन्तु मुख्य समस्या कीट ब्याधि एवं रोग व्यधि की है, यदि समय रहते इनकी रोकथाम कर ली जाये तो अधिकतम उत्पादन के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। धान की फसल को विभिन्न कीटों जैसे तना छेदक, पत्ती लपेटक, धान का फूदका व गंधीबग द्वारा नुकसान पहुँचाया जाता है तथा बिमारियों में जैसे धान का झोंका, भूरा धब्बा, शीथ ब्लाइट, आभासी कंड व जिंक कि कमी आदि की समस्या प्रमुख है। आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक बताएंगे कि अगर धान की फसल में फाल्स स्मट (कंडुआ रोग) का प्रकोप हो तो इनका प्रबंधन किस प्रकार करना चाहिए। कैसे फैलता है? फाल्स स्मट (कंडुआ रोग) ■धान की फसल में रोगों का प्रकोप पैदावार को पूरी तरह से प्रभावित कर देता है. कंडुआ एक प्रमुख फफूद जनित रोग है, जो कि अस्टीलेजनाइडिया विरेन्स से उत्पन्न होता है। ■इसका प्राथमिक संक्रमण बीज से हो

पञ्चगव्य में 5 चीजे और मिलाकर बनाये समृद्ध पंचगव्य या (दशगव्य) जो भूमि और फसल के लिए संजीवनी का काम करेगी।

समृद्ध पंचगव्य या (दशगव्य) किसान भाई जो कि जैविक खेती करते है वे पंचगव्य से भलीभांति परिचित है,जैविक खेती में पञ्चगव्य का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। प्राचीन काल से ही भारत जैविक आधारित कृषि प्रधान देश रहा है। हमारे ग्रन्थों में भी इसका उल्लेख किया गया है। पंचगव्य का अर्थ है पंच+गव्य (गाय से प्राप्त पाँच पदार्थों का घोल) अर्थात गौमूत्र, गोबर, दूध, दही, और घी के मिश्रण से बनाये जाने वाले पदार्थ को पंचगव्य कहते हैं। प्राचीन समय में इसका उपयोग खेती की उर्वरक शक्ति को बढ़ाने के साथ पौधों में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए किया जाता था। इसे समय के साथ साथ थोड़ा और समृद्ध बनाने हेतु कुछ अन्य चीजों को मिला कर एक समृद्ध पंचगव्य या (दशगव्य) बनाया जा सकता है। जिसकी विधि आज की कड़ी में हम आपको बताएंगे जो कि कृषको के लिए अत्यंत उपयोगी और लाभकारी है। विशेषतायें i. भूमि में जीवांशों (सूक्ष्म जीवाणुओं) की संख्या में वृद्धि ii. भूमि की उर्वरा शक्ति में वृद्धि iii. फसल उत्पादन एवं उसकी गुणवत्ता में वृद्धि iv. भूमि में हवा व नमी को बनाये रखना v. फसल में रोग व कीट का प्रभाव कम करना vi. स्थानीय संसाधनों

जैविक खेती:- जानिए क्या है "साकेत जैव संजीवक" और किसान भाई कैसे इसे घर पर बना सकते है।

  जैविक खेती:- जानिए क्या है "साकेत जैव संजीवक" और किसान भाई कैसे इसे घर पर बना सकते है। प्रायः किसान भाई अपनी फसल की अच्छी उपज के लिए एवं पौधों की बढ़वार के लिए कई तरह के रसायनिक दवाओं एवं उर्वरको का प्रयोग करते है किसान भाई अपनी फसल तो बचा लेते है परंतु रसायनिक दवाओं के लगातार अंधाधुंध प्रयोग से काफी विपरीत प्रभाव पड़ रहे है  हमारी मिट्टी व मानव स्वास्थ्य के लिए ये काफी घातक  है व हम जाने -अनजाने में कई घातक बीमारियों को भी आमंत्रित कर रहे है।इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए हमने पिछले कई लेखों में पूर्ण जैविक तरीको  से बनने वाले खाद, टॉनिक, कीटनाशक बनाने की विधियों के बारे में बताया है।आज की कड़ी में हम बताएंगे कि किस प्रकार "साकेत जैव संजीवक" बना सकते है जो कि फसलों के लिए संजीवनी का काम करेगी।  यह विधि साकेत कृषि  मार्गदर्शिका से ली गयी है जो कि किसान भाइयों के लिए निश्चित ही लाभकारी होगी। आवश्यक सामग्री • 10 किग्रा ताजा गोबर (जो देशी गाय जो बहुत ही कम दूध देती हो उसका गोबर ज्यादा प्रभावी) • 10 लीटर पुराने से पुराना गौमूत्र • 2 किग्रा जैविक गुड का एक लीटर पान