उप संचालक कृषि जिला गरियाबंद श्री एफ आर कश्यप के निर्देशानुसार विकासखण्ड फिंगेश्वर के ग्राम तरजुंगा व गुण्डरदेही किसानों को हरित कांति विस्तार योजना अंतर्गत 25.00 हेक्टेयर के लिए चना व 25.00 हेक्टेयर के लिए गेहूं बीज का वितरण किया गया।
गौरतलब है कि छ.ग. शासन कृषि विभाग द्वारा किसानों को फसल चक्र अपनाने हेतु प्रेरित किया जा रहा है जिससे अंचल में रबी फसल में दलहन व गेहूं फसल के रकबे का विस्तार होगा। जिससे किसानों की आय में भी वृद्धि होगी।
उक्त कार्यक्रम में जिला पंचायत सभापति श्रीमती मधुबाला रात्रे ने अपने संक्षिप्त उद्बोधन में किसानों को रबी वर्ष 2020-21 में ज्यादा से ज्यादा फसल चक्र परिर्वतन करने हेतु कृषकों से अपील किया एवं फसल चक्र से होने वाले फायदे एवं मिट्टी की उर्वरा क्षमता को बढाने हेतु दलहनी फसल की भूमिका पर प्रकाश डाला।
कृषि विभाग के वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी बी.आर.साहू ने किसानों को रबी फसल में बीज उपचार समवित उर्वरक एवं जल प्रबंधन के बारे में जानकारी दी।
उप संचालक कृषि जिला गरियाबंद श्री एफ.आर. कश्यप ने रबी फसलों पर बीजोपचार की जैविक तथा रसायनिक विधि के बारे में कृषको को विस्तार से बताया कि फसल उत्पादन में बीज उपचार का बहुत ही बड़ा महत्व है, फसल उत्पादन में क्योंकि अगर अच्छा एवं स्वस्थ बीज की बुबाई करेंगे तभी अच्छा उत्पादन मिल सकेगा ।
किसान भाइयों बीजोपचार करके बीज में टीका करण किया जाता है, टीकाकरण का यह अर्थ हुआ कि हम अपने फसल में खड़ी फसल की अवस्था में लगने वाले रोगों एवं कीट को लगने से बचा सके ।जिससे उत्पादन पर होने वाले लागत को कम किया जा सके और अधिक आय प्राप्त किया जा सके ।
बीजोपचार का महत्व
मिट्टी और बीज के रोगजनकों एवं कीटों के विरुद्ध अंकुरित होने वाले बीजों तथा अंकुरों की सुरक्षा करता है।
रबी फसलों में बीज उपचार की विधि
गेहूँ :-
बुआई के पूर्व बीज की अंकुरण क्षमता की जांच अवश्य करें । बीज यदि उपचारित नही हो तो बुआई के पूर्व बीज को फफूंदनाशी दवा वैविस्टीन या कार्बेंडाजिम से 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से अवश्य करें ।
चना:-
■ बुआई के 24 घंटे पूर्व 2.5 ग्राम फफूंदनाशी दवा जैसे थायरम,कैप्टान अथवा कार्बेंडाजिम से प्रति किलोग्राम बीज को उपचारित करें ।
■इल्ली से बचाव हेतु क्लोरपाइरीफॉस 20 E.C. कीटनाशी दवा का 8 ml प्रति किलोग्राम बीज की दर से करें ।
■फफूंदनाशी एवं कीटनाशी दवा से उपचारित बीज को बुआई के ठीक पहले अनुशंसित राइजोबियम कल्चर एवं पी. एस. बी. से उपचारित कर बुआई करें।
■उकठा प्रभावित क्षेत्रों में बीज को 5 ग्राम ट्राईकोडर्मा प्रति किलोग्राम बीज की दर से करें।
जैविक विधि से बीजोपचार
जैविक विधि से कैसे बीजोपचार कर सकते है।
इसके लिए बीज अमृत बहुत ही उत्तम तरीका है। जीव अमृत की तरह इसमें भी वही चीजें डालती है जो बिना कीमत के मिलती है। ये प्राकृतिक खेती का एक हिस्सा है हमारे पूर्वज इस विधि को अच्छी तरह से जानते थे।
बीजामृत बनाने की विधि
आवश्यक सामग्री
1 देसी गाय का ताजा गोबर 1 किलोग्राम
2 देसी गौ मुत्र 1 litter
3 चूना 50 ग्राम।
4 खेत के मेड़ की मिट्टी-200 ग्राम
निर्माण विधि
इन सभी चीजों को घोल कर 5 लीटर पानी मे घोलकर मिट्टी के मटके में 2 दिनों तक रखें। दिन मैं दो बार लकड़ी से हिलाएँ।
प्रयोग विधि
इसके बाद बीज की बुवाई के दिन इसको बीज के ऊपर डालकर अच्छी तरह भिगोकर निकाल दें। इसके बाद बीज को छायादार जगह पर सुखा लें।
बीजामृत से लाभ
बीज अमृत से उपचारित हुए बीज जल्दी और ज्यादा मात्र में उगते हैं। उनमे अंकुरण की क्षमता अच्छी होती है।बीज जनित रोग कम होती हैं। पौधे अच्छी तरह से फलते फूलते हैं।
निश्चित ही इसका लाभ किसान भाइयों को देखने को मिलेगा।
उक्त कार्यक्रम में ग्राम सरपंच श्री कृृष लाल निषाद वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी श्री बी.आर.साहू, कृ.वि.अधिकारी श्री खिलेश्वर साहू कृषि विकास अधिकारी श्री सेवक राम साहू एवं ग्रा.कृ.वि. अधिकारी श्री तरुण साहू एवं किसान उपस्थित थे।
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