Skip to main content

Posts

Showing posts from October, 2020

औषधि ज्ञान:-आइए जाने "काली मूसली" से बारे में।

  काली मूसली का परिचय (Introduction of Kali Musli) आयुर्वेद में मूसली का यौन शक्ति और शारीरिक कमजोरी को दूर करने के लिए कई वर्षो से औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता रहा है। आयुर्वेद के शास्त्रों में मूसली दो प्रकार की बतायी गयी है एक सफेद मूसली और दूसरी काली मूसली। दोनों तरह की मूसली औषधि के रूप में बहुत से रोगों में प्रयोग की जाती है। काली मूसली का प्रयोग मूल रुप से यौन शक्ति बढ़ाने और शरीर की मांसपेशियों की दुर्बलता को दूर करने में किया जाता है साथ ही यह मूत्र या यूरिन सम्बन्धी रोगो के उपचार में भी बहुत ही फायदेमंद साबित होती है।  काली मूसली क्या है?   (What is Kali Musli in Hindi?) काली मूसली एक बहुवर्षायु कोमल क्षुप होती है जिसकी जड़ फाइबर युक्त मांसल (ठोस) होती है। काली मूसली स्वाद में हल्का मीठापन और कड़वापन लिए हुए होती है लेकिन इसकी तासीर गर्म होती है इसलिए आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह से ही इसको लेनी चाहिए। काली मूसली के पत्ते ताड़ (ताल) के पत्तों की तरह होते हैं। पीले रंग के फूलों के कारण इसको स्वर्ण पुष्पी या हिरण्या पुष्पी भी कहते हैं। इसकी जड़ें  बाहर से मोटी एवं काले-भूरे रंग

जैविक खेती- फफूंदजनित रोगों के निवारण की जैविक दवा "फफूंद रोधी रसायन"

  जैविक खेती- फफूंदजनित रोगों के निवारण की जैविक दवा "फफूंद रोधी रसायन" अधिकांश मानवीय बीमारियों का कारण जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ कृषि में उपयोग हो रहे रसायन भी हैं। इनमें मुख्य रूपसे मानव द्वारा उपयोग की जाने वाली विषाक्त सब्जियां, अनाज एवं फल हैं जिनकी सुरक्षा हेतु अंधाधुंध रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है। इन कीटनाशकों के प्रयोग से अत्यधिक प्रयोग से इनके प्रति कीटों में प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है और कुछ प्रजातियों में तो प्रतिरोधक क्षमता विकसित भी हो चुकी है। इसके अलावा रासायनिक कीटनाशक अत्यधिक महगे होने के कारण किसानों को इन पर अत्यधिक खर्च करना पड़ता है। कीटनाशकों के अत्यधिक प्रयोग से फसलों, सब्जियों व फलों की गुणवत्ता पर भी विपरीत असर पड़ता है। इन वस्तुस्थिति के फलस्वरूप वैज्ञानिकों का ध्यान प्राकतिक एवं जैविक कीटनाशकों एवं रोगनाशकों की ओर गया है जोन केवल सस्ते हैं बल्कि जिनके उपयोग से तैयार होने वाली फसल के किसी प्रकार के रासायनिक दुष्प्रभाव भी नहीं रहते हैं फफूंदरोधी रसायन आवश्यक सामग्री ■अदरक 1 किलोग्राम ■गुड़ 1 किलोग्राम ■प्लास्टिक/कांच के पात्र जो

नगदी फसल-उन्नत तकनीक से मटर की खेती कर किसान बन सकते है आत्मनिर्भर

मटर की उन्नत खेती ■यह फसल लैग्यूमिनसियाइ फैमिली से संबंध रखती है। ■यह ठंडे इलाकों वाली फसल है। ■इसकी हरी फलियां सब्जी बनाने और सूखी फलियां दालें बनाने के लिए प्रयोग की जाती हैं। ■यह प्रोटीन और अमीनो एसिड का अच्छा स्त्रोत है। ■यह फसल पशुओं के लिए चारे के तौर पर भी प्रयोग की जाती है। ■मटर की खेती हरी फल्ली (सब्जी), साबुत मटर, एवं दाल के लिये की जाती है। ■स्वाद एवं पौष्टिकता की दृष्टि से दलहनी फसलों में से मुख्य फसल है। ■देश भर में इसकी खेती व्यावसायिक रूप से की जाती है। आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक मटर की अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिये उन्नत तकनीकी के महत्वपूर्ण पहलुओं पर प्रकाश डाल रहे है। मटर, महत्वपूर्ण तथा अधिक आय देने वाली भारत की ही नहीं बल्कि विश्व की महत्वपूर्ण फसल है। इसकी खेती भारत के मैदानी क्षेत्रों में अक्टूबर-नवम्बर तथा पहाड़ी क्षेत्रों में अप्रेल-मई में की जाती है। वैसे तो मटर ताजी सब्जी के रूप में प्रयोग किया जाता है। परन्तु उसको सुखाकर वर्षभर उपयोग में लिया जाता है। जलवायु व भूमि मटर की अच्छी वृद्धि एवं अधिक पैदावार के लिए ठण्डी और नम जल

कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित विभिन्न फसलों की आठ नवीन किस्मों को भारत सरकार की मंजूरी

  कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित विभिन्न फसलों की आठ नवीन किस्मों को भारत सरकार की मंजूरी    भारत सरकार द्वारा अधिसूचना जारी रायपुर, 29 अक्टूबर, 2020। भारत सरकार की केन्द्रीय बीज उपसमिति ने इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर द्वारा विकसित विभिन्न फसलों की नवीनतम किस्मों को व्यावसायिक खेती एवं गुणवत्ता बीज उत्पादन हेतु अधिसूचित किया है।  भारत सरकार द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर द्वारा विकसित  चावल की तीन नवीन किस्म  छत्तीसगढ़ राइस हाइब्रिड-2 बस्तर धान-1,   प्रोटेजीन धान दलहन की तीन नवीन किस्म   छत्तीसगढ़ मसूर-1   छत्तीसगढ़ चना-2 छत्तीसगढ़ अरहर-1   तिलहन की दो नवीन किस्म     छत्तीसगढ़ कुसुम-1   अलसी आर.एल.सी.-161  किस्मों को छत्तीसगढ़ राज्य में व्यावसायिक खेती एवं गुणवत्ता बीज उत्पादन हेतु अधिसूचित किया गया है। अलसी की नवीन किस्म आर.एल.सी. 161 छत्तीसगढ़ के अलावा पंजाब, हिमाचल और जम्मू कश्मीर राज्यों के लिए अनुशंसित की गई है।  आगामी वर्षों में विश्वविद्यालय द्वारा विकसित इन सभी नवीन किस्मों को व्यावसायिक खेती हेतु गुणवत्ता बीजोत्पादन कार्यक्रम में

कैमिकल युक्त फल-सब्जियों को साफ करने के खास उपाय

  कैमिकल युक्त फल-सब्जियों को साफ करने के खास उपाय उत्तम क्वालिटी के फल और सब्जियों की चाहत में आज के किसान सस्ते और हानिकारक कैमिकल का प्रयोग करते हैं। जिन्हें पेस्टीसाइड कहा जाता है। फलों और सब्जियों के माध्यम से हमारे शरीर में पहुंचकर ये हानिकारक पेस्टीसाइड कैंसर , बच्चों में जन्मजात अपंगता जैसी बीमारी पैदा कर सकते हैं। हमारे शरीर को ये पेस्टीसाइड नुकसान न पहुंचा सके इसके लिये जरूरी हैं कि इन फलों और सब्जियों को खाने से पहले ठीक से साफ किया जाये, आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक बताएंगे कि किस प्रकार फल और सब्जियों से घातक पेस्टिसाइड के प्रभाव को कम किया जा सकता है। नमक वाला पानी सेंधा नमक मिले हुए पानी से फलों और सब्जियों को धोने से कीटनाशक का सफाया हो जाता है। इसके लिये एक बड़े बर्तन में पानी भरें, उसमें सेंधा नमक डालकर 10 मिनट के लिये फल और सब्जियों को भिगो दें, फिर साफ पानी से धोकर खाने के लिये प्रयोग करें। हल्दी युक्त पानी हल्दी में एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं जो कीटाणुओं का नाश करती है। एक भिगोने में पानी भरकर गर्म करें। जब पानी उबलने लगे तो उसमें 3 ब

औषधि ज्ञान:- केवांच सिर्फ खुजली वाला पौधा नही है, इसमे है कई "औषधीय गुण"

  औषधि ज्ञान:- केवांच सिर्फ खुजली वाला पौधा नही है, इसमे है कई "औषधीय गुण" केंवाच की मुख्यतः दो प्रजातियां होती हैं। एक प्रजाति जो जंगलों में होती है। इस पर बहुत अधिक रोएं होते हैं, जबकि दूसरी प्रजाति की खेती की जाती है। दूसरी प्रजाति में कम रोएं होती हैं। जंगली केंवाच पर घने और भूरे रंग के बहुत अधिक रोएं होते हैं। अगर यह शरीर पर लग जाए तो बहुत तेज खुजली, जलन होने लगती है। इससे सूजन होने लगती है। केंवाच की फलियों के ऊपर बन्दर के रोम जैसे रोम होते हैं। इससे बन्दरों को भी खुजली उत्पन्न होती है। इसलिए इसे मर्कटी तथा कपिकच्छू भी कहा जाता है। केवांच की दोनों प्रजातियां ये हैंः- 1.केंवाँच (Mucuna pruriens (Linn.) DC. जंगली केवाँच या काकाण्डोला (Mucunamonosperma Wight.) यहां कौंच से होने वाले सभी फायदे के बारे को बहुत ही आसान शब्दों (Kaunch in hindi) में लिखा गया है ताकि आप कौंच से पूरा-पूरा लाभ ले पाएं। अन्य भाषाओं में केवांच के नाम (Name of Kevanch (Kaunch) in Different Languages) केवांच का वानस्पतिक नाम Mucuna pruriens (Linn.) DC. (म्युक्युना प्रुरिएन्स) Syn-Mucuna prurita (Lin
काली मूसली का परिचय (Introduction of Kali Musli) आयुर्वेद में मूसली का यौन शक्ति और शारीरिक कमजोरी को दूर करने के लिए कई वर्षो से औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता रहा है। आयुर्वेद के शास्त्रों में मूसली दो प्रकार की बतायी गयी है एक सफेद मूसली और दूसरी काली मूसली। दोनों तरह की मूसली औषधि के रूप में बहुत से रोगों में प्रयोग की जाती है। काली मूसली का प्रयोग मूल रुप से यौन शक्ति बढ़ाने और शरीर की मांसपेशियों की दुर्बलता को दूर करने में किया जाता है साथ ही यह मूत्र या यूरिन सम्बन्धी रोगो के उपचार में भी बहुत ही फायदेमंद साबित होती है।  काली मूसली क्या है? (What is Kali Musli in Hindi?) काली मूसली एक बहुवर्षायु कोमल क्षुप होती है जिसकी जड़ फाइबर युक्त मांसल (ठोस) होती है। काली मूसली स्वाद में हल्का मीठापन और कड़वापन लिए हुए होती है लेकिन इसकी तासीर गर्म होती है इसलिए आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह से ही इसको लेनी चाहिए। काली मूसली के पत्ते ताड़ (ताल) के पत्तों की तरह होते हैं। पीले रंग के फूलों के कारण इसको स्वर्ण पुष्पी या हिरण्या पुष्पी भी कहते हैं। इसकी जड़ें  बाहर से मोटी एवं काले-भूरे रंग की