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Showing posts from May, 2020

धान की फसल पर टीके का काम करता है बीजोपचार

बीज उपचार बीज उपचार एक प्रक्रिया या विधि है, जिसमें पौधों को बीमारियों और कीटों से मुक्त रखने के लिए रसायन, जैव रसायन या ताप से उपचारित किया जाता हैं| पोषक तत्व स्थिरीकरण हेतु जीवाणु कलचर से भी बीज उपचार किया जाता है| शत प्रतिशत अंकुरण ,स्वस्थ पौध , जड़ो की मजबूती एवं बढ़वार तथा बीमारी एवं कीड़ो से सुरक्षा हेतु बीजोपचार आवश्यक है। डॉ. गजेंद्र चन्द्राकर (कृषि वैज्ञानिक) इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के अनुसार धान के बीजो को बुवाई से पहले 17%नमक के घोल में उपचारित कर लेवे।धान की बीज उपचार हेतु नमक की 17% घोल से उपचार करे।  बीज उपचार हेतु घोल बनाने का तरीका ■किसी बडे बरतन पर पानी और आलू डाल दे उसमें नमक डालते रहे। ■ जब आलू तैरने लग जाए तो समझो घोल तैयार हो गया। ■उसमें धान के बीज  डूबा दे। ■ बदरा उपर तैयार रहता है पुष्ट निचे बैठते जाता है  ■बदरा को अलग कर बीज निकाल कर अच्छे से धुलाई कर छाया मे सूखा कर प्रयोग करे। ROOT RISE  5 ग्राम + Trichoderma 5ग्राम + Pseudomonas 5 ग्राम प्रति किलो बीज या ROOT RISE  5 ग्राम +2 ग्राम carbendazim प्र...

दशपर्णी अर्क-रस चूसक कीट और सभी प्रकार इल्लियों को दूर करने का उपाय तशपर्णी अर्क

दशपर्णी अर्क (सभी तरह के रस चूसक कीट और सभी इल्लियों के नियंत्रण के लिए) वर्तमान की कृषि पूरी तरह से रसायनिक खाद और रसायनिक कीटनाशकों पर आधारित हो चुकी है। जिसके कई दुष्प्रभाव सामने आ रहे है ऐसे में जरूरत है कि किसान भाई जैविक खेती की ओर अपने कदम बढ़ाए। जिन कीटनाशकों को किसान भाई बाहर पैसे देकर खरीदते है उन कीटनाशकों को जैविक विधि के द्वारा अपने घर पर ही बनाकर अपनी फसल के कीटो को भगा सकते है। आज हम बात करेंगें की तशपर्णी अर्क के विषय मे और सीखेंगे की इसका निर्माण कैसे किया जा सकता है। सामग्री :- 1. 200 लीटर पानी 2. 2 किलोग्राम करंज के पत्ती 3. 2 किलोग्राम सीताफल पत्ते 4. 2 किलोग्राम धतूरा के पत्ते 5. 2 किलोग्राम तुलसी के पत्ते 6. 2 किलोग्राम पपीता के पत्ती 7. 2 किलोग्राम गेंदा के पत्ते 8. 2 किलोग्राम गाय का गोबर 9. 500 ग्राम तीखी हरी मिर्च 10. 200 ग्राम अदरक या सोंठ 11. 5 किलोग्राम नीम के पत्ती 12. 2 किलोग्राम बेल के पत्ते 13. 2 किलोग्राम कनेर के पत्ती 14. 10 लीटर गोमूत्र 15. 500 ग्राम तम्बाकू पीस के या काटकर...

जैविक खेती- निम्बोली काढ़ा बनाकर आसानी से दूर भगा सकते है अपने खेत के कीटो को

निम्बोली काढ़ा कीटो के प्रबंधन के लिए केवल रसायनिक कीटनाशक ही काम नही आते कुछ कीट नाशक किसान भाई बिना किसी खर्च के अपने घरों पर ही बना सकते है,उनमें से एक है निम्बोली काढ़ा। निम्बोली काढ़ा से लगभग सभी कीटो का प्रबंधन किया जा सकता है, और यह पूर्णतः जैविक विधि से तैयार होता है। आइए जानते है कि कैसे बनाया जाता है निम्बोली काढ़ा सामग्री 5 किलोग्राम पकी हुई निम्बोली से निर्मित पाउडर 10 लीटर गौ मूत्र 20 लीटर पानी मटके या प्लास्टिक के ड्रम में इन सभी सामग्रियों को मिलाकर अच्छी तरह से मुँह किसी कपड़े की सहायता से बंद कर 20 दिन के लिए किसी गर्म स्थान पर रख देंवे। घोल कैसे बनाये। 300 -500 मिलीलीटर 15 लीटर के स्प्रेयर में घोलकर छिड़काव कर सकते है। कब तक इसे सुरक्षित रखा जा सकता है। इस घोल को 3 वर्ष तक मिट्टी के बर्तन पर रखकर सुरक्षित रख सकते है एवम उपयोग में ला सकते है

Locust : weather event for swarm.

  Locust: weather event for swarm International pest for india. Locust are able to travel long distances and colonize new habitats. Therefore, their distribution is  variable in time and space and can occur within a large area . The pest is feared for both its destructive capacity and its constant threat to region . It is capable of sudden appearances and severe devastation to standing crops. The most affected part of the world is continent of Africa, where in some years the the infested area may cover several million hectares. Distribution and sequence of rainfall is the principal determinant of locust population increase over several generations and of the concentration of widespread populations into highly mobile and destructive swarms. Survival and populations are greatest with an increased frequency of sufficient rainfall where rainwater is enhanced by runoff and flooding, and where vegetation and soils provide suitable habitats. However excessive rainfall ...

जानिए कैसे वैज्ञानिक विधि से होता है मधुमक्खी का पालन और कैसे बन सकता है कृषको के आय का अतिरिक्त स्त्रोत

जानिए कैसे वैज्ञानिक विधि से होता है मधुमक्खी का पालन और कैसे बन सकता है कृषको के आय का अतिरिक्त स्त्रोत वैज्ञानिक तरीके से विधिवत मधुमक्खी पालन का काम अठारहवीं सदी के अंत में ही शुरू हुआ। इसके पूर्व जंगलों से पारंपरिक ढंग से ही शहद एकत्र किया जाता था। पूरी दुनिया में तरीका लगभग एक जैसा ही था जिसमें धुआं करके, मधुमक्खियां भगा कर लोग मौन छत्तों को उसके स्थान से तोड़ कर फिर उसे निचोड़ कर शहद निकालते थे। जंगलों में हमारे देश में अभी भी ऐसे ही शहद निकाली जाती है। वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ. रंजीत सिंह राजपूत बताते है कि मधुमक्खी पालन का आधुनिक वैज्ञानिक तरीका पष्चिम की देन है। यह निम्न चरणों में विकसित हुआ : सन् 1789 में स्विटजरलैंड के फ्रांसिस ह्यूबर नामक व्यक्ति ने पहले-पहल लकड़ी की पेटी (मौनगृह) में मधुमक्खी पालने का प्रयास किया। इसके अंदर उसने लकड़ी के फ्रेम बनाए जो किताब के पन्नों की तरह एक-दूसरे से जुड़े थे। सन् 1851 में अमेरिका निवासी पादरी लैंगस्ट्राथ ने पता लगाया कि मधुमक्खियां अपने छत्तों के बीच 8 मिलिमीटर की जगह छोड़ती हैं। इसी आधार पर उन्होंने ए...

इस खरीफ के मौसम में किसान भाई ऐसे करे अपने बीजो का जैविक विधि से उपचार

इस खरीफ के मौसम में किसान भाई ऐसे करे अपने बीज एवं पौधों की जड़ों का जैविक विधि से उपचार बीजामृत बीज बोने  पहले बीज  तो अच्छे ढंग से बीजोपचार करना बहुत  जरूरी है।   जिससे पौधे की सेहत ठीक रहती है और  बीज जनित रोगों से छुटकारा भी मिल जाता है। आइए जानते है कि किस तरह से जैविक विधि  से कैसे बीजोपचार कर सकते है।  इसके लिए बीज अमृत बहुत ही उत्तम तरीका है। जीव अमृत की तरह इसमें भी  वही चीजें डालती है जो बिना कीमत के मिलती है। ये प्राकृतिक खेती का एक हिस्सा है हमारे पूर्वज इस विधि को अच्छी तरह से जानते थे। बीजामृत बनाने की विधि 1 देसी गाय  का   ताजा गोबर 1 किलोग्राम 2 देसी गौ मुत्र 1 litter  3 चूना  50  ग्राम। 4 खेत के मेड़ की मिट्टी-200 ग्राम इन सभी चीजों  को  घोल कर 5 लीटर पानी मे घोलकर  मिट्टी के मटके में 2 दिनों तक  रखें।  दिन मैं दो बार लकड़ी से हिलाएँ। इसके बाद  बीज की बुवाई के दिन इसको बीज  के  ऊपर  ड...

सावधान:- 100-200 नही करोड़ो की संख्या में फसलों को नुकसान पहुँचाने वाले टिड्डी दल (Locust Swarm) के प्रकोप से बचाव के लिए अलर्ट जारी

टिड्डी दल को रोकने जिले में पर्याप्त दवाई उपलब्ध फसलों को नुकसान पहुचाने वाले टिड्डी दल (Locust Swarm) का प्रकोप राजस्थान होते हुए महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश राज्य तक पहुंच गया है। सीमावर्ती क्षेत्र होने के कारण यह हमारे राज्य और जिले में भी प्रवेश कर सकते है। केन्द्रीय एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन केन्द्र के सहायक निदेशक ने सीमावर्ती जिले के कृषि अधिकारियों, कर्मचारियों एवं किसानों को सचेत रहने कहा है। किसान डेजर्ट एरिया के लिए कीटनाशक मालाथियोन, फेनवालरेट, क्विनालफोस तथा फसलों एवं अन्य वृक्षों के लिए क्लोरोपायरीफोस, डेल्टामेथ्रिन, डिफ्लूबेनजुरान, फिप्रोनिल, लामडासाइहलोथ्रिन कीटनाशक का प्रयोग कर सकते हैं। टिड्डियां क्या हैं? 👈 कृषि विज्ञानिक के अनुसार, टि़ड्डियों को उनके चमकीले पीले रंग और पिछले लंबे पैरों से उन्हें पहचाना जा सकता है। टिड्डी जब अकेली होती है तो उतनी खतरनाक नहीं होती है। लेकिन, झुंड में रहने पर इनका रवैया बेहद आक्रामक हो जाता है। फ़सलों को एकबारगी सफ़ाया कर देती हैं। आपको दूर से ऐसा लगेगा, मानो आपकी फ़सलों के ऊपर किसी ने एक बड़ी-सी चादर बिछ...

11 जून 2020 को बलिदान दिवस के रूप में छत्तीसगढ़ अंशदायी पेंशन कर्मचारी कल्याण संघ / NMOPS मनाएगा

छत्तीसगढ़ के समस्त जिलो, ब्लॉक, नगरनिगम,  नगरपंचायत, ग्राम पंचायत के साथ समस्त 90 विधायक और 11 सांसद महोदय को एक साथ ज्ञापन दिया जावेगा। जिसमे छत्तीसगढ़ अंशदायी पेंशन कर्मचारी कल्याण संघ / NMOPS के प्रांत अध्यक्ष राकेश कुमार सिंह ने  सभी साथियो से अपील की है कि इस मुहिम में बढ़ चढ़ कर सहयोग करे, एवम श्री इन्द्र कुमार ध्रुव जी पुरानी पेंशन बहाली के छत्तीसगढ़ राज्य में जन्मदाता की स्मृति में एवंछत्तीसगढ़ राज्य के जितने भी समस्त विभाग के पेंशन विहीन साथी जो आज हमसब के बीच नही रहे उनके सम्मान में  11 जून को बलिदान दिवस  को सफल बनाने में एक दूसरे का सहयोग करने एवम एक दीपक  उनकी याद में शाम को अवश्य जलाये। छत्तीसगढ़ अंशदायी पेंशन कर्मचारी कल्याण संघ / NMOPS के प्रांत अध्यक्ष श्री राकेश कुमार सिंह बताते है कि सोसल डिस्टेंस का पालन करते हुए मास्क लगाकर संघ 11जून को बलिदान दिवस को जरूर सफल कर सकते है इस बलिदान दिवस को अगर हमसब मिलकर सफल कर दिए तो हमसब जरूर जन आंदोलन को सफल बनाने में अग्रसर होंगे। जन आंदोलन का एक रूप ही बलिदान दिवस होगा। और हमसब पुरानी पेंशन बहाल करने के करीब होगे। उनकी अपील  से आज से...

यदि आप करना चाहते हैं सब्जियों की खेती तो जानें इस आधुनिक तकनीक के बारे में

प्रो-ट्रे तकनीक प्रो-ट्रे तकनीक- सब्जी की फसल की पूरी वृद्धि के लिए सबसे पहले नर्सरी तैयार की जाती है। उत्पादित नर्सरी की सफलता इस तथ्य पर निर्भर करती है कि यह बीमारी मुक्त होनी चाहिए और सही समय पर तैयार की जानी चाहिए। प्रो-ट्रे का उपयोग अच्छी किस्म के नर्सरी  के उत्पादन और जगह बचाने के लिए किया जाता है। प्लास्टिक ट्रे के ब्लॉक शंकु आकार के होते हैं जो जड़ों के उचित विकास में मदद करता है। विभिन्न फसलों के लिए प्रो ट्रे का चयन: बीमारी और कीट मुक्त संकर बीज की तैयारी के लिए, पॉलीहाउस या नेट हाउस में नर्सरी तैयार होनी चाहिए। टमाटर, बैंगन, और सभी प्रकार की बेल सब्जियां के लिए प्रो-ट्रे जिसका 1.5-2.0 m 2 आयामों के ब्लॉक और शिमला-मिर्च, मिर्च, फूलगोभी जैसी सब्जियों के लिए प्रो-ट्रे जिसका 1.0-1.5 m 2 आयामों के ब्लॉक हों का इस्तेमाल करना चाहिए। बिना मिट्टी के मीडिया की तैयारी: इस विधि से बिना मिट्टी के मीडिया में नर्सरी उगाई जाती है। माध्यम कोकोपेट, वर्मीक्युलाइट और परलाइट @3: 1: 1 मिलाकर बनाया जाता है। भूमि में मिश्रण करके ट्रे में मिट्टी-हीन मीडिया भरें, उसके बाद उंगलियों की मदद से, मिश्रण क...

नवाचार:-पैरा मशरूम बन सकता है किसान भाइयों के अतिरिक्त आय का स्त्रोत

पैरा मशरूम बन सकता है अतरिक्त आय का स्रोत किसान भाई कई जगहों पर धान के फसल को काटने के बाद बचे हुए पैरा को आग लगा देते हैं, जिससे हमारे जीव, जंतु, भूमि एवं प्राकृतिक को भी नुकसान होती है | किसान भाई इस बचे पैरा को ना जलाकर पैरा मशरूम की खेती या पैरा कुट्टी से आयस्टर मशरूम की खेती कर अतरिक्त आमदनी ले सकते हैं | कोरिया जिला के कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक श्री विजय अंनत बताते है कि, ये मशरूम बाजारों मे 150-250 रुपये प्रति किलोग्राम बिकता है |पैरा मशरूम खाली पड़े जगहों मे, बाग, बगीचों एवं खलहीयानो मे कृत्रिम रूप से उगाया जा सकता है, इसको अधिक तापमान की जरूरत होती है | पैरा मशरूम प्राकृतिक रूप से माह जुलाई से सितंबर तक सड़े हुए पैरा मे भी पाया जाता है| पैरा मशरूम सबसे स्वादिष्ट मशरूम होता है इसमें प्रोटीन भी सबसे ज्यादा पाया जाता है, मशरूम कई बीमारियों एवं कुपोषण को भी दूर करने मे बहुत बड़ा है अहम भूमिका निभा रहा है ये हर प्रकार के पोषक तत्वों से परिपूर्ण होता है | इसे किसान भाई आसानी से अपने घरों पर बना सकते है और अतिरिक्त आमदनी प्राप्त कर सकते है। पैरा मशरूम को धान पुवाल मशरूम एवं गर...

मशरूम की खेती कर बन सकते है किसान आत्मनिर्भर

 मशरूम की खेती कर बन सकते है किसान आत्मनिर्भर मशरूम उत्पादन सभी वर्ग के किसान जैसे कि भूमिहीन से लेकर बड़े किसान, महिला स्व सहायता समूह मशरूम की खेती को रोजगार की साधन बना सकते हैं कृषि, पशुपालन, के अतिरिक्त आमदानी ले सकते हैं.. कम जगह, कम लागत मे अधिक उत्पादन से घर की दैनिक जीवन मे होने वाले लागत की भरपाई कर सकते है मशरूम कई प्रकार के बीमारी को दूर करता है ये शरीर के रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है... मशरूम उत्पादन मौसम के आधार पर चयन कर खेती सकते हैं अभी पैरा मशरूम, मिल्की मशरूम, आॅस्टर प्रजाति मशरूम का उत्पादन कर सकते हैं... Covid 19 महामारी बीमारी से देश की आम नागरिक और सभी सेक्टर बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं सभी कृषक कम समय कम मेहनत मे कृषि मजदूरी के अतिरिक्त मशरूम को आजीविका के साधन बना सकते है। मशरूम उत्पादन की पूरी जानकारी, पढ़िए कब और कैसे कर सकते हैं खेती मशरूम एक उत्पाद है, जिसे एक कमरे में उगाया जाता है, इसको उगाकर किसान अपनी आय दोगुनी ही नहीं चार गुनी कर सकते हैं... पिछले कुछ वर्षों में भारतीय बाजार में मशरूम की मांग तेजी से बढ़ी है, जिस हिसाब से बाजार में इसकी मांग...