उद्यानिकी- ताइवान रेड लेडी 786 पपीता उत्पादन /खेती कैसे करें ।
एक एकड़ में 4 लाख की कमाई करा सकता है पपीता, ऐसे करें खेती
पपीते की खेती के लिहाज से भारत एक उपयुक्त देश है। इसे अधिकतम 38 से 44 डिग्री सेल्सियस तक तापमान होने पर उगाया जा सकता है।
ऐसा तापामान कमोबेश पूरे भारत में पाया जाता है।
पपीता फार्मिंग के लिए जलवायु या उचित वातावरण
पतीते की खेती के लिए न्यूनतम तापमान 5 डिग्री होना चाहिए। मतलब आप इसे पहाड़ों से सटे इलाकों में भी उगा सकते हैं।
इस लिहाज से आप भारत के किसी भी कोने में रहते हैं तो पपीते की खेती कर सकते हैं। पिछले कुछ वर्षों में पपीता की खेती की तरफ किसानों का रुझान बढ़ रहा है।
पैदावार की दृष्टि से यह हमारे देश का पांचवा लोकप्रिय फल है।
यह बारहों महीने होता है, लेकिन यह फ़रवरी-मार्च से मई से अक्टूबर के मध्य विशेष रूप से पैदा होता है, क्योंकि इसकी सफल खेती के लिए 10 डिग्री से. से 40 डिग्री से. तापमान उपयुक्त है।
इसके फल विटामिन A और C के अच्छे स्त्रोत है।
विटामिन के साथ पपीता में पपेन नामक एंजाइम पाया जाता है जो शरीर की अतिरिक्त चर्बी को हटाने में सहायक होता है।
स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होने के साथ ही पपीता सबसे कम दिनों में तैयार होने वाले फलों में से एक है जो कच्चे और पके दोनों ही रूपों में उपयोगी है।
इसका आर्थिक महत्व ताजे फलों के अतिरिक्त पपेन के कारण भी है, जिसका प्रयोग बहुत से औद्योगिक कामों (जैसे कि food processing, कपड़ा उद्योग आदि) में होता है।
बलुई दोमट मिट्टी में मिलेगी अच्छी उपज पपीते की खेती के लिए बलुई दोमट प्रकार की मिट्टी सर्वोतम है। पपीते के खेतों में यह ध्यान रखना होगा कि जल का भराव ना हो। पपीते के लिहाज से मिट्टी का पीएच (PH) मान 6 से 7 तक होना चाहिए।
बीज लगाने से पहले भूमि की ठीक प्रकार से गहरी जुताई के साथ खर-पतवार का निकालना आवश्यक है।
■रेड लेडी 786 -
■लाल परी - यूनाइटेड जेनेटिक्स united genetics
■विनायक - वी एन आर सीड्स VNR SEEDS
■सपना - ईस्ट वेस्ट इंटरनेशनल EAST WEST INTERNATIONAL
उपरोक्त सभी वेराइटी पार्थेनोकार्पिक हैं इसलिए नर पौधों की कोई संभावना नहीं होगी। सभी पौधे मादा होते हैं और पपीता लगभग 1 क्विंटल प्रति पौधा होता है।
अपनी जलवायु के हिसाब से करें किस्मों का चयन पपीते के किस्मों का चुनाव खेती के उद्देश्य के अनुसार करना जैसे कि अगर औद्योगिक प्रयोग के लिए वे किस्में जिनसे पपेन निकाला जाता है, पपेन किस्में कहलाती हैं। इस वर्ग की महत्वपूर्ण किस्में 0-2 एसी. 0-5 एवं सी.ओ-7 है।
इसके साथ दूसरा मत्वपूर्ण वर्ग है food verity जिन्हे हम अपने घरों में सब्जी के रूप में या काटकर खाते हैं। इसके अंतर्गत परंपरागत पपीता की किस्में
(जैसे बड़वानी लाल, पीला वाशिंगटन, मधुबिंदु, कुर्ग हानिड्यू, को-1 एंड 3) और नयी संकर किस्में जो उभयलिंगी होती हैं
(उदाहरण के लिए पूसा नन्हा, पूसा डिलीशियस, CO-7, पूसा मैजेस्टी आदि) आती हैं।
नर्सरी क्यारियों में लगाएं
एक एकड़ के लिए 30 ग्राम बीज काफी हैं। एक एकड़ में तक़रीबन 1200 पौधे ठीक रहते हैं।
उन्नत किस्म के चयन के बाद बीजों को क्यारियों में नर्सरी बनाने के लिए बोना चाहिए, जो जमीन सतह से 15 सेंटीमीटर ऊंची व 1 मीटर चौड़ी तथा जिनमें गोबर की खाद, कंपोस्ट या वर्मी कंपोस्ट को अच्छी मात्रा में मिलाया गया हो।
पौधे को जड़ गलन रोग से बचाने के लिए क्यारियों को फार्मलीन के 1:40 के घोल से उपचारित कर लेना चाहिए और बीजों को 0.1 % कॉपर आक्सीक्लोराइड के घोल से उपचारित करके बोना चाहिए। 1/2' गहराई पर 3'x6' के फासले पर पंक्ति बनाकर उपचारित बीज बोयें |
और फिर 1/2' गोबर की खाद के मिश्रण से ढ़क कर लकड़ी से दबा दें ताकि बीज ऊपर न रह जाये।
नमी बनाए रखने के लिएmulching
नमी बनाए रखने के लिए क्यारियों को सूखी घास या पुआल से ढकना एक सही तरीका है।
सुबह शाम होज द्वारा पानी देते रहने से, लगभग 15-20 दिन भीतर बीज जम (germination) जाते हैं। पौधों की ऊंचाई जब 15 से. मी. हो तो साथ ही 0.3% फफूंदीनाशक घोल का छिड़काव कर देना चाहिए।
जब इन पौधों में 4-5 पत्तियाँ और ऊँचाई 25 से.मी. हो जाये तो दो महीने बाद खेत में प्रतिरोपण करना चाहिए, प्रतिरोपण से पहले गमलों को धूप में रखना चाहिए।
पौधों के रोपण के लिए खेत को अच्छी तरह से तैयार करके 2 x 2 मीटर की दूरी पर 50 x 50 x 50 सेंटीमीटर आकार के गड्ढे मई के महीने में खोद कर 15 दिनों के लिए खुले छोड़ देने चाहिएं.
अधिक तापमान और धूप, मिट्टी में उपस्थित हानिकारक कीड़े-मकोड़े, रोगाणु इत्यादि नष्ट कर देती है।
पौधे लगाने के बाद गड्ढे को मिट्टी और गोबर की खाद 50 ग्राम एल्ड्रिन (कीटनाशक) मिलाकर इस प्रकार भरना चाहिए कि वह जमीन से 10-15 सेंटीमीटर ऊंचा रहे। इससे दीमक का प्रकोप नहीं रहता |
रोजाना दोपहर बाद हल्की सिंचाई करनी चाहिए। खाद व उर्वरक का रखे खास खयाल खाद और उर्वरक के प्रभाव में पपीते के पौधे अच्छी वृद्धि करते हैं।
पौधा लगाने से पहले गोबर की खाद मिलाना एक अच्छा उपाय है, साथ ही 200 ग्रा. यूरिया , 200 ग्रा. DAP और 400 ग्रा पोटाश प्रति पौधा डालने से पौधों की उपज अच्छी होती है। इस पूरे उर्वरक की मात्रा को 50 से 60 दिनों के अंतराल में विभाजित कर लेना चाहिए और कम तापमान के समय इसे डालें।
पौधों के रोपण के 4 महीने बाद ही उर्वरक का प्रयोग करना उत्तम परिणाम देगा। पपीते के पौधे 90 से 100 दिन के अन्दर फूलने लगते हैं और नर फूल छोटे-छोटे गुच्छों में लम्बे डंढल युक्त होते हैं।
नर पौधों पर पुष्प 1 से 1.3 मी. के लम्बे तने पर झूलते हुए और छोटे होते है। प्रति 100 मादा पौधों के लिए 5 से 10 नर पौधे छोड़ कर शेष नर पौधों को उखाड देना चाहिए।
मादा पुष्प पीले रंग के 2.5 से.मी. लम्बे और तने के नजदीक होते हैं। गर्मियों में 6 से 7 दिन के अन्तराल पर तथा सर्दियों में 10-12 दिनों के अंतराल पर सिंचाई के साथ खरपतवार प्रबंधन,
कीट और रोग प्रबंधन करना चाहिए।
पपीते के पौधों में रोग नियंत्रण
मोजैक लीफ कर्ल, डिस्टोसर्न, रिंगस्पॉट, जड़ व तना सड़न, एन्थ्रेक्नोज और कली व पुष्प वृंत का सड़ना आदि रोग लगते हैं।
इनके नियंत्रण में बोर्डो मिक्सचर(बोर्डोे मिश्रण बनाने के लिए एक किलोग्राम अनबुझा चुना, 1 किलो नीलाथोथा एवं 100 लीटर पानी 1-1-100 रखा जाता है। बोर्डो मिश्रण बनाने के लिए सर्वप्रथम नीलाथोथा व चूना को अलग-अलग प्लास्टिक के बर्तनों में घोला जाता है जब मिश्रण घुल जाए तब दोनों को एक बर्तन में डाल दिया जाता है।
मिश्रण के परीक्षण के लिए छोटे से लोहे के टुकड़े को मिश्रण में डुबाकर 5 मिनट तक रखकर परीक्षण किया जाता है जब लोहे में लाल रंग आ जाए तब मिश्रण सही नहीं बना है इसको सही करने के लिए पुनः थोड़ा चूना मिला लिया जाता है।)
5:5:20 के अनुपात का पेड़ों पर सडन गलन को खरोचकर लेप करना चाहिए। अन्य रोग के लिए बलाइटोक्स 3 ग्राम या डाईथेन एम्-45, 2 ग्राम प्रति लीटर
अथवा मैन्कोजेब या जिनेव 0.2% से 0.25 % का पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए अथवा कॉपर आक्सीक्लोराइट 3 ग्राम या व्रासीकाल 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करना चाहिए।
पपीते के पौधों को कीटों से कम नुकसान पहुचता है फिर भी कुछ कीड़े लगते हैं जैसे माहू, रेड स्पाईडर माईट, निमेटोड आदि हैं। नियंत्रण के लिए डाईमेथोएट 30 ई. सी.1.5 मिली लीटर या फास्फोमिडान 0.5 मिली लीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करने से माहू आदि का नियंत्रण होता है।
निमेटोड पपीते को बहुत नुकसान पहुंचता है और पौधे की वृद्धि को प्रभावित
करता है।इथिलियम डाइब्रोमाइड 3 किग्रा प्रति हे. का प्रयोग करने से इस बीमारी को नियंत्रित किया जा सकता है. साथ ही अंतरशस्य गेंदा का पौधा लगाने से निमाटोड की वृद्धि को रोका जा सकता है।
9 से 10 महीने में तैयार हो जाती है
फसल 9 से 10 महीने के बाद पपीते के फल तोड़ने लायक हो जाते हैं। जब फलों का रंग हरे से बदलकर पीला होने लगे एवं फलों पर नाखुन लगने से दूध की जगह पानी तथा तरल निकलने लगे, तो फलों को तोड़ लेना चाहिए।
फलों के पकने पर चिडियों से बचाना अति आवश्यक है अत: फल पकने से पहले ही तोड़ना चाहिए।
फलों को तोड़ते समय किसी प्रकार के खरोच या दाग-धब्बे से बचाना चाहिए वरना उसके भण्डारण में ही सड़ने की सभावना होती है।
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