संभावना:- कृषकों के अतिरिक्त आय का साधन बन सकती है "मोती की खेती"
खेती तो सभी किसान करते हैं, कोई अनाज उगाता है तो कोई दलहन-तिलहन तो कोई साग-सब्जी तो कोई मक्का, कोदो -कुटकी, बाजरा।
लेकिन पिछले कुछ दशक से कई युवा अच्छी खासी नौकरी छोड़कर कृषि की ओर बढ़ चले है जो अपने तकनीकी ज्ञान के कारण अन्य किसानों के लिये प्रेरणा के स्त्रोत तो बन ही रहे है एवम ये युवा परम्परागत तरीको के अलावा कम लागत लगाकर अधिक आमदनी पाने के अवसर तलाश रहे है।
अगर आप भी किसान है और परम्परागत तरीकों के अलावा कृषि के अन्य स्वरूपों के बारे में ज्ञानवर्धन की जिज्ञासा रखते है तो आज का लेख आपके लिए है।
आज की कड़ी में हम जानेंगे मोती की खेती के बारे में जो किसान भाइयों के अतिरिक्त आय का साधन बन सकती है।
आजकल मोती की खेती चलन तेजी से बढ़ रहा है। कम मेहनत और लागत में अधिक मुनाफे का सौदा साबित हो रहा है।
अभी तक उड़ीसा के सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेश वॉटर एक्वाकल्चर, भुवनेश्वर (ओडीसा) में मोती की खेती का प्रशिक्षण दिया जाता था, लेकिन अब कई जगह पर इसका प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
ऐसे होती है मोती की खेती
मोती की खेती शुरू करने के लिए करीब 500 वर्गफीट के एक तालाब की जरूरत होती है। इस तालाब में 100 सीप डालकर मोती की खेती शुरू की जा सकती है।
यह सीप की बाजार में कीमत करीब 15 रुपये से लेकर 25 रुपये तक होती है। वहीं ताबाल में स्ट्रक्चर सेट अप पर करीब 10000 रुपये से 12000 रुपये तक का खर्च आता है। इसके अलावा वाटर ट्रीटमेंट पर भी करीब 1000 रुपये और 1000 रुपये के उपकरण भी लेने होते हैं।
मोती की खेती के लिए सबसे अनुकूल मौसम शरद ऋतु यानी अक्टूबर से दिसंबर तक का समय माना जाता है। कम से कम 10 गुणा 10 फीट या बड़े आकार के तालाब में मोतियों की खेती की जा सकती है। मोती संवर्धन के लिए 0.4 हेक्टेयर जैसे छोटे तालाब में अधिकतम 25000 सीप से मोती उत्पादन किया जा सकता है।
खेती शुरू करने के लिए किसान को पहले तालाब, नदी आदि से सीपों को इकट्ठा करना होता है या फिर इन्हे खरीदा भी जा सकता है। इसके बाद प्रत्येक सीप में छोटी-सी शल्य क्रिया के बाद इसके भीतर चार से छह मिमी व्यास वाले साधारण या डिजायनदार बीड जैसे गणेश, बुद्ध, पुष्प आकृति आदि डाले जाते हैं। फिर सीप को बंद किया जाता है। इन सीपों को नायलॉन बैग में 10 दिनों तक एंटी-बायोटिक और प्राकृतिक चारे पर रखा जाता है। रोजाना इनका निरीक्षण किया जाता है और मृत सीपों को हटा लिया जाता है।
तालाब में डाल दिये जाते हैं सीप
अब इन सीपों को तालाबों में डाल दिया जाता है। इसके लिए इन्हें नायलॉन बैगों में रखकर (दो सीप प्रति बैग) बांस या बोतल के सहारे लटका दिया जाता है और तालाब में एक मीटर की गहराई पर छोड़ दिया जाता है। प्रति हेक्टेयर 20 हजार से 30 हजार सीप की दर से इनका पालन किया जा सकता है। अन्दर से निकलने वाला पदार्थ बीड के चारों ओर जमने लगता है जो अन्त में मोती का रूप लेता है। लगभग 8-10 माह बाद सीप को चीर कर मोती निकाल लिया जाता है।
आजकल डिजायनर मोतियों को खासा पसन्द किया जा रहा है जिनकी बाजार में अच्छी कीमत मिलती है। भारतीय बाजार की अपेक्षा विदेशी बाजार में मोतियों का निर्यात कर काफी अच्छा पैसा कमाया जा सकता है। सीप से मोती निकाल लेने के बाद सीप को भी बाजार में बेंचा जा सकता है। सीप द्वारा कई सजावटी सामान तैयार किये जाते है।
तीन प्रकार के होते हैं मोती
केवीटी
सीप के अंदर ऑपरेशन के जरिए फारेन बॉडी डालकर मोती तैयार किया जाता है। इसका इस्तेमाल अंगूठी और लॉकेट बनाने में होता है। चमकदार होने के कारण एक मोती की कीमत हजारों रुपए में होती है।
गोनट
इसमें प्राकृतिक रूप से गोल आकार का मोती तैयार होता है। मोती चमकदार व सुंदर होता है। एक मोती की कीमत आकार व चमक के अनुसार 1 हजार से 50 हजार तक होती है।
मेंटलटीसू
इसमें सीप के अंदर सीप की बॉडी का हिस्सा ही डाला जाता है। इस मोती का उपयोग खाने के पदार्थों जैसे मोती भस्म, च्यवनप्राश व टॉनिक बनाने में होता है। बाजार में इसकी सबसे ज्यादा मांग है।
सीपों से कन्नौज में इत्र का तेल निकालने का काम भी बड़े पैमाने पर किया जाता है। जिससे सीप को भी स्थानीय बाजार में तत्काल बेचा जा सकता है। सीपों से नदीं और तालाबों के जल का शुद्धिकरण भी होता रहता है जिससे जल प्रदूषण की समस्या से काफी हद तक निपटा जा सकता है।
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