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Showing posts from March, 2021

TRUE BIO:-पूर्णतः जैविक खेती का एक विकल्प , लाभकारी जीवाणुओं का मिश्रण "AGN"

  TRUE BIO :- पूर्णतः जैविक खेती का एक विकल्प,लाभकारी जीवाणुओं का मिश्रण "AGN" “AGN” उपयोग से लाभ ■पोधे के भोजन ग्रहण करने वाली जड़ो का विकास करता है, तथा पौधे की बढवार में सहायक। ■भूमि की उर्वरा शक्ति को बढाता है तथा खाद एवं अन्य क्षरण को कम करता है और जल धारण क्षमता को बढाता है । ■फसल अंकुरण क्षमता को बढाता है । ■जमीन में फायदेमंद जीवाणुओं को पुनर्स्थापित करता है । ■लंबे समय तक हरियाली प्रदान कर फ़सल स्वास्थ्य नियंत्रण में मदत करता है । ■ठोस मिट्टी को मुलायम करने में मदत करता है । ■कार्बनिक पदार्थ को विघटीत करने में मदत करता है । घटक 1.सूक्ष्मजीव: 45 % पीएसबी (फॉस्फेट सॉल्युबिलायझिंग बैक्टीरिया) मिट्टी कि सरंचना बनाने में मदद करने के लिये एंजाइम, मेटाबोलाइट्स और लाभकारी मायक्रोबिअल बायोमास प्रदान करता है। बेसिलस अमाइलोलिक्वीफ़ैसिएन्स, बैसिलस मेगाटेरियम 2.ह्यमिक एसिड: 50% सक्रीय और स्वस्थ पौधो की वृद्धी का समर्थन करने के लिय आवश्यक अमीनो एसिड और प्रोटीन प्रदान करता है। 3. नत्र : 5% 4. pH: 5.0- 8.0 जानिए कैसे उपयोग में लाया जा सकता है। गेंहू/धान : आमतौर पर ५०० मि लि

जैविक खेती:-,एमिनो एसिड सोयाबीन से बनावे

Amino acid..........Plant growth promoter.......1 किलो सोयाबीन 1 किलो गुड़ और पानी सोयाबीन को भिगोना है रात भर फिर उसको मिक्सी में चला कर के गुड़ के पानी में उसको मिलाना है 20 से 25 दिन रखना है उसके बाद उसको 1 एकड़ खेत पर स्प्रे करना है या ड्रिनचिंग करनी है

जैविक खेती:-नींबू से सल्फ्यूरिक एसिड

सल्फ्यूरिक एसिड के लिये आप 2 किलो नीबू को काटकर मिक्सी में चलाकर 20 दिन के लिये बोतल में रखे रोज हिलाते रहे व गैस निकालते रहे फिर छानकर एक एकड़ में स्प्रे कर सकते है

धान बीज:-छत्तीसगढ़िया कृषि स्नातक की कम्पनी अब उपलब्ध करा रही है किसानों को इन किस्मो के "धान के बीज"

धान बीज:-छत्तीसगढ़िया कृषि स्नातक की कम्पनी अब उपलब्ध करा रही है किसानों को इन किस्मो के "धान के बीज" तहसील धमधा जिला दुर्ग छत्तीसगढ़ के कृषि स्नातक योगेश सोनकर के स्टार्टअप ने एसोचैम स्टार्टअप लॉन्च पैडकॉम्पिटीशन के फाइनल राउंड में जगह बनाने में कामयाबी हासिल की है।  इनकी कम्पनी पहले से ही किसानों को प्रमाणित जैविक खाद उपलब्ध करा रही है,खाद के बाद अब इनकी कम्पनी नेचर वाल किसानों को उपलब्ध करा रही है धान के बीज 1. नेचर मंजू गोल्ड- 1010 ■सेगमेंट- MTU 1010 ■अवधी- 100-105 दिन ■पतला लम्बा दाना ■सर्वाधिक उत्पादन देने वाली किस्म ■रोगों के प्रति सहनशील ■जल भराव में खड़ी रहने वाली किस्म 2. नेचर सुधा गोल्ड-777 ■सेगमेंट- IR 64 ■अवधी- 115-120 दिन ■माध्यम दाना ■सर्वाधिक उत्पादन देने वाली किस्म ■रोगों के प्रति सहनशील 3. नेचर बाहुबली- 64 ■सेगमेंट- IR 64 ■अवधी- 120-125 दिन ■माध्यम पतला दाना ■सर्वाधिक उत्पादन देने वाली किस्म ■रोगों के प्रति सहनशील ■जल भराव में खड़ी रहने वाली किस्म 4. नेचर बरबरीक - 007 ■सेगमेंट- HMT ■अवधी- 115-120 दिन ■पतला दाना (HMT) ■खाने के लिए सर्वोत्तम ■सर्वाधिक उत्पादन देने

सावधान:-फरवरी से अप्रैल तक खीरे की फसल में होता है "लीफ माइनर'" कीट का आतंक।

  सावधान:-फरवरी से अप्रैल तक खीरे की फसल में होता है "लीफ माइनर'" कीट का आतंक। डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर(वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक) इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर कई बार सर्पिलाकार चांदी के रंग जैसा लक्षण पौधों की पत्तियों में दिखाई पड़ते है यह लीफ माइनर कीट की मौजूदगी को सिद्ध करता है।लीफ माइनर का अधिक प्रभाव फरवरी के तीसरे सप्ताह से अप्रैल के चौथे सप्ताह तक देखा जा इससे उत्पादन में 40% तक कमी आ सकती है| आज की कड़ी में हम जानेंगे की इस कीट के लक्षण क्या है एवं इसका प्रबंधन किस प्रकार किया जा सकता है।  लक्षण लीफ माइनर पत्तियॉं के क्लोरोफिल को खाता है जिससे पत्तियो के ऊपर चाँदी के रंग की सांप जैसी टेडी मेढ़ी सुरंगे दिखाई देती हैं | संक्रमित पौधे की पत्तियॉं पीली होकर सूखने लगती हैं |    प्रबंधन के उपाय :-  ग्रसित पत्तियों को इकठ्ठा करके नष्ट कर दें| कीट के प्यूपा जमीन में होते इसके लिए कारटाप हाईड्रो क्लोराईड 4 % GR 10 किलो प्रति एकड़ जमीन में मिलाये| या खेत की तैयारी के समय नीम की खली का 200 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करें।  या मेट्रिहिज़ियम ऐनिसोपला की 2-4 किलो

उद्यानिकी:-टमाटर में जीवाणु जनित उकठा रोग का नियंत्रण

* 🍅 टमाटर के पौधे सुख रहे है तो क्या करें❓ * 🍅 यह रोग अधिक तापमान और अधिक आद्रता की स्थिति में आता है और अगर जल्दी नियंत्रित नहीं किया गया तो फसल को 10 - 90% तक नुकसान हो सकता हैं| 🌱 रोगग्रस्त पौधों की पत्तियां पीले रंग की होकर सूखने लगती हैं एवं कुछ समय बाद पौधा सूख जाता हैं। 👉 नीचे की पत्तियां पौधे के सूखने से पहले गिर जाती हैं। 🤝 पौधे के तने के नीचे के भाग को काटने पर उसमें से जीवाणु द्रव दिखाई देता हैं। ✅ पौधों के तने के बाहरी भाग पर पतली एवं छोटी जड़े निकलने लगती हैं। 🌟 कद्दू वर्गीय सब्जिया, मक्का , लोबिया, भिन्डी, गेंदा या धान की फसल को उगाकर फसल चक्र अपनायें। 🟢 खेत में पौधे लगाने से पहले ब्लीचिंग पाउडर का छिड़काव 6 कि.ग्राम प्रति एकड़ की दर से करें। 🛡️ बीमारी आने से पूर्व बचाव हेतु:- स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस 4 ग्राम प्रति किलो बीज उपचारित करें। 🌱 जैविक नियंत्रण :- स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस 200 ग्राम + बेसिलस सबटिलिस 200 मिली प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में लेकर छिड़काव करे और ड्रेंचिंग करें। 👉 बीमारी के लक्षण दिखने पर तुरंत ही स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट I.P. 90% w/w + टे

जैविक खेती:- प्लाश के फूलों से पोटाश का निर्माण।

  जैविक खेती:- प्लाश के फूलों से पोटाश का निर्माण। ■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■ छत्तीसगढ़ में प्लाश आसानी से देखने को मिल जाता है। अभी प्लाश के फूलने का समय है। प्लाश के फूलों में प्रचुर मात्रा में पोटाश होता है। हां वही पोटाश जो किसान भाई पैसे देकर बाजार से खरीदते है। बस इन प्लाश के फूलों को जरूरत है अच्छी तरह डी कम्पोज करने की।पोटाश कितना महत्त्वपूर्ण उर्वरक है किसान भाई इसे अच्छी तरह समझते है। आज की कड़ी में हम जानेंगे कि किस तरह पोटाश का निर्माण कर सकते है हम प्लाश के फूलों से। 🔵 आवश्यक सामग्री 🔵 ■प्लाश के फूल 2 किलो ग्राम ■दीमक की बाम्बी की मिट्टी या बरगद के पेड़ के नीचे की मिट्टी 1 किलोग्राम ■वेस्ट डी कम्पोजर/गौ कृपा अमृतम 50 लीटर 🔵 निर्माण विधि 🔵 वेस्ट डी कम्पोजर या गौ कृपा अमृतम में 20-30 दिनों तक प्लाश के फूलों को डी कम्पोज करे।  🔷 प्रयोग विधि 🔷 घोल को छानकर 500 मि.ली./1 लीटर प्रति पम्प डालकर पौधों पर  उपयोग करे। 🔷 उपयोग का समय 🔷 जब आपकी फसल में 10% बालियां/फल लग चुके हो तब इसका उपयोग करे। प्लाश के अलावा और किन किन चीजों में पाया जाता है पोटाश ■कनेर के फूल ■बेल के गुदे ■केले

भिन्डी का पीला शिरा रोग

* 🤯 भिन्डी का पीला शिरा रोग 🟡 * 🍂 भिन्डी का पीला शिरा रोग (यलो वेन मोजैक रोग ):- इस रोग के कारण 50-90% तक उपज कम हो जाती हैं| 📉 ➡️ पत्तियों की शिराएँ पीली दिखाई देने लगती हैं| पीली पड़ने के बाद पत्तियाँ मुड़ने लग जाती हैं| ➡️ इससे प्रभावित फल हल्के पीले, विकृत और सख्त हो जाते है| ➡️ यह रोग सफ़ेद मक्खी के द्वारा फैलता है| ➡️ यह रोग भिंडी की सभी अवस्था में दिखाई देता है| ✅ प्रबंधन:- 1️⃣ ट्रेप फसल के रूप में भिन्डी के बीच में गेंदे के पौधे लगायें| 2️⃣वायरस से ग्रसित पौधों और पौधों के भागों को उखाड़ के नष्ट कर देना चाहिए| 3️⃣ वायरस के प्रति सहनशील किस्मों का चयन करें| 4️⃣ पौधों की वानस्पतिक वृद्धि की अवस्था में नाईट्रोजन उर्वरकों का अधिक उपयोग ना करें| 5️⃣ जहाँ तक हो सके भिंडी की बुवाई समय से पहले कर दें| 6️⃣ फसल में प्रयोग होने वाले सभी उपकरणों को साफ रखें ताकि इन उपकरणों के माध्यम से यह रोग अन्य फसलों में ना पहुँच पाए| 7️⃣ जो फसलें इस बीमारीं से प्रभावित होती है उन फसलों के साथ भिंडी की बुवाई ना करें| 8️⃣ सफ़ेद मक्खी के नियंत्रण के लिए प्रति एकड़ 10 नीले एवं पीले चिपचिपे प

उद्यानिकी- बैंगन में अधिक फल- फूल कैसे प्राप्त करें

  उद्यानिकी-  बैंगन में अधिक फल- फूल कैसे प्राप्त करें? बैंगन (सोलेनम मैलोंजेना) सोलेनैसी जाति की फसल है, जो कि मूल रूप में भारत की फसल मानी जाती है और यह फसल एशियाई देशों में सब्जी के तौर पर उगाई जाती है। इसके बिना यह फसल मिस्र, फरांस, इटली और अमेरिका में भी उगाई जाती है। बैंगन की फसल बाकी फसलों से ज्यादा सख्त होती है। इसके सख्त होने के कारण इसे शुष्क और कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी उगाया जा सकता हैं यह विटामिन और खनिजों का अच्छा स्त्रोत है। चीन के बाद भारत दूसरा सबसे अधिक बैंगन उगाने वाला देश है। भारत में बैंगन उगाने वाले मुख्य राज्य पश्चिमी बंगाल, उड़ीसा, कर्नाटक, बिहार, महांराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश हैं।   बैंगन में फूल वाली अवस्था बहुत ही महत्वपूर्ण होती हैं| कब आते है बैगन में फूल?  रोपाई के 41 -45 दिनों बाद बैंगन की फसल में फूल वाली अवस्था प्रारम्भ होती हैं| ■ खेत में उचित नमी बनाये रखे |  गार्ड फसल अवश्य लगाए। ■बैंगन की रोपाई के समय गार्ड फसल के रूप में खेत के चारों और ज्वार या मक्का की 3-4 कतार लगाए |    बैंगन की फसल में फूलों की संख्या को बढ़ाने के लिए :-   ■ 5-1

लौकी में रेड बीटल के नियंत्रण के उपाय

* 🌱 लौकी में लाल कीट का नियंत्रण👍 * 🌟 लाल बीटल लौकी के पत्तियों को खाकर फसलों को नुकसान पहुंचाता हैं इसके अधिक प्रकोप में काफी नुकसान होता हैं| ✡️ लौकी के खेत के पास ककड़ी, तोरी, टिंडा आदि की बुवाई न करे क्योकि ये पौधे इस कीट के जीवन चक्र में सहायक होते हैं। 🌟 पुरानी फसल के अवशेष को नष्ट कर दें | ✡️ यदि फसल की प्रारंभिक अवस्था में, कीट दिखाई दे तो उसे हाथ से पकड़कर नष्ट कर दें। आने से पूर्व बचाव हेतु :- नीम का तेल 1000 पीपीएम @ 600 मिली प्रति 200 लीटर पानी प्रति एकड़ का छिड़काव दो बार करे । 🌟 जैविक नियंत्रण :-बेवेरिया बासियाना @ 1 किलो + मेट्रिहिज़ियम ऐनिसोपला 400 ग्राम प्रति 200 लीटर पानी प्रति एकड़ में मिलाकर छिड़काव करें। ✡️ साईपरमेथ्रिन 25% ईसी 150 मि.ली.प्रति एकड़ + डायमिथोएट 30% ईसी 300 मि.ली. प्रति 200 लीटर पानी प्रति एकड़ की दर से घोल बना कर छिडकाव करें। या कार्बारिल 50% डब्लू पी 450 ग्राम प्रति 200 लीटर पानी प्रति एकड़ की दर से घोल बना कर छिड़काव करें। पहला छिडकाव रोपण के 15 दिन व दूसरा इसके 7 दिन बाद करें| 🌟 डाइक्लोरवास (डीडीवीपी) 76% ईसी का 250-350 मिली 200 लीटर पा

मूंग में इल्ली नियंत्रण

* 🔰 मूंग की फसल ले रहे हैं❓ * 👉 शुरुआती अवस्था में इल्ली पत्तियाँ खाती हैं जब इल्लिया बड़ी हो जाती है तब वह फल्लियों के अंदर दानो को खाकर अधिक नुकसान पहुंचाती हैं। इल्ली के द्वारा संक्रमण के कारण फल्ली समय के पहले सूख कर पौधे से गिर जाती हैं | 👉 बुवाई से पहले खेत की गहरी जुताई कर मिट्टी में उपस्थित कीट के अंडो एवं कोकून को नष्ट कर दे | 👉 बुवाई के लिए मूंग की कम अवधि वाली किस्मों का चयन करें। 👉 मूंग के पौधों के बीच निश्चित दूरी रखे | 🚨 आने से पूर्व बचाव हेतु :- नीम का तेल 1000 पीपीएम @ 600 मिली प्रति 200 लीटर पानी प्रति एकड़ का छिड़काव दो बार फूल आने पर करें । 🌱 जैविक नियंत्रण :- बेवेरिया बासियाना @ 1 किलो प्रति 200 लीटर पानी प्रति एकड़ में मिलाकर छिड़काव करें। 🛡️ रासायनिक नियंत्रण :-इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एस.जी. @ 100 ग्राम/एकड़ 200 लीटर पानी प्रति एकड़ में मिलाकर छिड़काव करें।

मूंग में पाउडरी मिल्ड्यू भभूतिया रोग

* 👨‍🌾 मूंग की फसल ले रहे हो❓ * 🔴 इस रोग के शुरुआत में पत्तियों के ऊपरी भाग पर सफेद चूर्ण दिखाई देता है जो बाद में भूरे धूसर रंग का हो जाता है। रोग के बढ़ने पर पत्तियों के निचे और अन्य हरे भागों पर सफेद चूर्ण दिखाई देता है| पौधे की वृद्धि रुक जाती हैं | 🔴 बीमारी आने से पूर्व बचाव हेतु:- नीम का तेल 1000 पीपीएम @ 600 मिली प्रति 200 लीटर पानी प्रति एकड़ का छिड़काव दो बार करे । 🔴 जैविक नियंत्रण :- स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस 200 ग्राम + बेसिलस सबटिलिस 200 मिली प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में लेकर छिड़काव करे। 🔴 बीमारी के लक्षण दिखने पर तुरंत ही घुलनशील सल्फर 80% WP 400 ग्राम प्रति एकड़ या टेबुकोनाज़ोल 25.9% EC @ 200 मिली प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में लेकर छिड़काव दो से तीन बार 10 दिन के अंतराल में करे |

जैविक खेती : स्वाद के साथ सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है लैलूंगा का जवाफूल चावल

  जैविक खेती : स्वाद के साथ सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है लैलूंगा का जवाफूल चावल ■चावल की प्रदर्शनी में लोग दिखा रहे विशेष रुचि ■किसानों ने 6 घंटे में बेचा लगभग ढाई लाख का चावल ■17 मार्च को भी बूढ़ा तालाब रायपुर के पास जारी रहेगी प्रदर्शनी नगर निगम परिसर रायपुर में रायगढ़ जिले के अंतर्गत लैलूंगा क्षेत्र के प्रसिद्ध जैविक जवाफूल चावल की प्रदर्शनी को जबरदस्त रिस्पांस मिला है। शहरवासियों ने बढ़-चढ़कर खरीददारी की है। किसानों ने 6 घंटे में लगभग ढाई लाख रुपये का 1 हजार 6 सौ 50 किलो चावल बेच लिया। लोगों के इस उत्साह को देखते हुये यह प्रदर्शनी आज 17 मार्च को भी सुबह 11 से शाम 5 बजे तक बूढ़ा तालाब के पास, रायपुर में जारी रहेगी। लैलूंगा क्षेत्र में उगाए जाने वाले जवाफूल चावल की महक और स्वाद प्रदेश के साथ पूरे देश में मशहूर है। दिल्ली स्थित छत्तीसगढ़ भवन में कई बार इनकी प्रदर्शनी लगायी जा चुकी हैं। जिसमें जवाफूल चावल की काफी डिमांड रही है। आर्गेनिक और एरोमेटिक यह चावल स्वाद के साथ सेहत के लिहाज से भी फायदेमंद है। जैविक विधि से उत्पादन के कारण यह केमिकल फ्री है। इसमें पोषक तत्व भी प्रचुर मात्रा में ह

कृषि सलाह:-भिंडी में विल्ट (उकठा रोग ) से है परेशान तो इन उपायों से मिलेगा निदान।

  भिंडी में विल्ट (उकठा रोग ) का प्रबंधन Dr. Gajendra Chandrakar  Sr.Scientist (IGKV) Raipur  भिंडी की खेती करने वाले किसान भाई सबसे ज्यादा तो यलो वाइन मोजेक नामक बीमारी से परेशान होते है इसके बारे में हमने पिछले लेखों में जानकारी दे दी है। उसके बाद नम्बर आता है "विल्ट" जिसे सामान्य भाषा मे हम उकठा कहते है। यह भी भिंडी के मुख्य रोगों में से एक है और इसकी समस्या दिनों दिन आम होती जा रही है।  अगर आप भी भिंडी की खेती कर रहे है तो आज का लेख आपके लिए ही है। लक्षण यह रोग एक फफुद जनित रोग है जो लम्बे समय तक मिटटी मे बने रहते है। शुरूआत मे पौघे अस्थाई रूप से सूखने लगते है तथा बाद मे सक्रमण बढने पर पौधे की लताऐ एवं पतियाँ पीली पडने लगती है तथा कवक पौधे के जड प्रणाली पर आक्रमण करते जिससे पौधे मे जल सवंहन अवरूध्द हो जाता है जिससे पौधे पुर्णत; मर जाते है। प्रारंभिक अवस्था में पौधा दोपहर के समय अस्थाई रुप से मुरझा जाता है किंतु बीमारी का प्रभाव बढ़ जाने पर पौधा स्थाई रुप से मुरझाकर सूख जाता है। ग्रसित पौधों की पत्तियाँ पीली हो जाती है। पहचान ग्रसित पौधों के तने को काटने पर आधार गहरे भूरे

उद्यानिकी:-टमाटर में आ रही है "अर्ली ब्लाइट " तो अपनाए ये उपाय

  उद्यानिकी:-टमाटर में आ रही है"अर्ली ब्लाइट" तो अपनाए ये उपाय Dr. Gajendra Chandrakar  Sr.Scientist (IGKV) Raipur  टमाटर की फसल दक्षिण अमेरिका के पेरू इलाके में पहली बार पैदा की गई। यह भारत की महत्तवपूर्ण व्यापारिक फसल है। यह फसल दुनिया भर में आलू के बाद दूसरे नंबर की सब से महत्तवपूर्ण फसल है। इसे फल की तरह कच्चा और पकाकर भी खाया जा सकता है। यह विटामिन ए, सी, पोटाश्यिम और अन्य खनिजों का भरपूर स्त्रोत है। इसका प्रयोग जूस, सूप, और कैचअप बनाने के लिए भी किया जाता है। इस फसल की प्रमुख पैदावार बिहार, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, उड़ीसा, महांराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और पश्चिमी बंगाल में की जाती है। टमाटर की खेती करने वाले किसान भाइयों को टमाटर में लगने वाले रोगों से काफी परेशानी होई है जिसका उचित प्रबंधन ना करने पर उत्पादन में काफी क्षति की सम्भावना होती है अभी कुछ समय से कई किसान टमाटर में आ रही इस समस्या से जूझ रहे है टमाटर में यदि इस प्रकार के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हो तो आज का लेख आपके लिए काफी उपयोगी होगा। कुछ समय से कई किसान टमाटर में आ रही इस समस्या से जूझ रहे है टमाटर म

समसमायिक सलाह:- मार्च के महीने में होने वाले कृषि कार्य

  समसमायिक सलाह:- मार्च के महीने में होने वाले कृषि कार्य मार्च माह जिसे आप फाल्गुन-चैत्र भी कहते हैं, महाशिव रात्री तथा होली के त्यौहार लेकर आता है तथा मौसम में रंग भर देता है । लेख में नाप-तोल प्रति एकड़ के हिसाब से हैं । मार्च माह के प्रमुख कृषि कार्य इस प्रकार से हैं - ■चने और अलसी की फसल काटकर खेत को अगली फसल के लिए तैयार करते हैं। ■चारे के लिए ज्वार व लोबिया की मिश्रित बोनी करते हैं। ■गन्ने में पानी दिया जाता हैं। मक्का, बरबटी, लहसून फसल कटाई करके जानवरों को खिलाते हैं। ■अरहर, सरसों, चने और दूसरे दलहनी फसलों की कटाई की जाती है। ■खेत की जुताई करते हैं। इससे कीड़े मकोड़ों से पौधों की रक्षा होती है। ■कटी हुई फसलों को सुखाया जाता है। उसके बाद उड़ावनी करने के बाद ऐसी जगह मे रखा जाता है जहाँ नमी नहीं है। ■पहले गन्ने के खेत की सफाई होती है। और सिंचाई करते हैं। उर्वरक की जो मात्रा निर्धारित है, वह देकर सिंचाई करते हैं। ■जो गेहूँ असिंचित है, उसमें 2-3 प्रतिशत यूरिया का घोल छिड़कते हैं। ■प्याज और लहसुन की गुड़ाई की जाती है और उसके बाद मिट्टी चढ़ाते हैं। ■आलू की खुदाई करते हैं। जो सब्जियाँ तैयार

PM Kisan Yojana 8th installment: किसानों को इस महीने मिल सकती है 8वीं किस्त, घर बैठे चेक कर लें लिस्ट में अपना नाम

  PM Kisan Yojana 8th installment:किसानों को इस महीने मिल सकती है 8वीं किस्त, घर बैठे चेक कर लें लिस्ट में अपना नाम केंद्र सरकार द्वारा जरूरतमंद किसानों को प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना (PM Kisan Samman Yojana) के तहत आर्थिक मदद प्रदान की जाती है. इस योजना के तहत हर लाभार्थी को 6 हजार रुपए की धनराशि दी जाती है. बता दें कि अभी तक केंद्र सरकार द्वारा किसानों के खाते में कुल 7 किस्तें सीधे खाते में ट्रांसफर की जा चुकी हैं. अब किसानों को पीएम किसान योजना की आठवीं किस्त (PM Kisan Yojana 8th installment) का इंतजार है.   आइए आपको बताते हैं कि पीएम किसान योजना की आठवीं किस्त (PM Kisan Yojana 8th installment ) कब तक भेजी जाएगी.   कब मिलेगी आठवीं किस्त? मीडिया रिपोर्ट्स की मानें, तो केंद्र सरकार द्वारा पीएम किसान योजना की आठवीं किस्त (PM Kisan Yojana 8th installment ) मार्च के अंत तक जारी की जा सकती है. 3 किस्तों में मिलता है पैसा पीएम किसान योजना (PM Kisan Yojana) की राशि किसानों को 3 किस्तों में भेजी जाती है. हर किस्त में 2-2 हजार रुपए दिए जाते हैं. इस योजना के तहत अप्रैल-जुलाई के बीच प

औषधि:-जाने सर्पगंधा के बारे में।

#सर्पगंधा【Rauvolfia serpentina】 ■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■ पहले इसे पागलों की दवा भी कहा जाता था क्योंकि सर्पगंधा के प्रयोग से पागलपन भी ठीक होता है। यह कफ और वात को शान्त करता है, पित्त को बढ़ाता है और भोजन में रुचि पैदा करता है। यह दर्द को खत्म करता है, नींद लाता है और कामभावना को शान्त करता है। सर्पगंधा घाव को भरता है और पेट के कीड़े को नष्ट करता है। सामान्यतः सर्पगंधा एक झाड़ीनुमा पौधा है और पूरे भारत में पाया जाता है। यह बीज और रूट कटिंग के माध्यम से लगाया जाता है। इसके पौधे एल्कोलाइड रेसेरपाइन, अजमलिन और सर्पेन्टाइन से भरपूर है। इसकी जड़ें एंटी-हाइपरटेंसिव और ट्रैंक्विलाइज़र के रूप में इस्तेमाल की जाती हैं।इसके रेसेरपाइन का उपयोग मध्यम उच्च रक्तचाप के लिए किया जाता है। सर्पगंधा के फायदे और नुकसान दुनिया भर में सर्पगंधा की कई प्रजातियां पाई जाती हैं. लेकिन यदि बात इसके औषधीय पौधों की करें तो इसमें सभी लगभग एक समान ही हैं. हलांकि अलग-अलग क्षेत्रों के हिसाब से इनमें कई गुण अलग-अलग भी हैं लेकिन कुछ गुणों में समानता भी है. सर्पगंधा का वैज्ञानिक नाम रावोल्फिया सर्पेंटीना है. जैसा कि नाम

नई किस्म-आलू की नई किस्म करेगी मालामाल किसानों को मिलेगा 100 दिन में अच्छा उत्पादन

नई किस्म-आलू की नई किस्म करेगी मालामाल किसानों को मिलेगा 100 दिन में अच्छा उत्पादन कुफरी संगम किस्म धान की कटाई के साथ ही अधिकतर क्षेत्रों में आलू की बुवाई शुरू हो जाती है. मगर कई बार किसान मंहगा खाद बीज का उपयोग करते हैं, साथ ही मेहनत भी करते हैं, लेकिन फिर भी फसल से अच्छा उत्पादन प्राप्त नहीं कर पाते हैं. बता दें कि आलू की खेती की शुरूआत खेत की तैयारी से लेकर बीज के चयन से होती है, इसलिए किसानों को शुरू से ही इस पर ध्यान देना चाहिए. इसी कड़ी में केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान (Central Potato Research Institute/CPRI) के वैज्ञानिकों द्वारा आलू की एक नई किस्म विकसित की गई है. इस नई किस्म का नाम कुफरी संगम है, जो कि खाने में स्वादिष्ट है, साथ ही उत्पादन भी मिलता है. आलू की खेती करने जा रहे हैं तो ये जानकारी आपके लिए लाभकारी हो सकती है.... आलू की नई कुफरी संगम किस्म इस किस्म पर मेरठ के मोदीपुरम में लगभग 12 साल तक शोध का कार्य किया गया है. अखिल भारतीय स्तर पर इसका परीक्षण 14 केंद्रों पर मानकों पर खरा उतरा है. इसके बाद किसानों के लिए तैयार किया गया है. कृषि वैज्ञानिक की मानें, तो यह किस्म

लौकी में लगने वाले फल मक्खी का प्रबंधन कैसे करे।

  लौकी में लगने वाले  फल मक्खी का प्रबंधन कैसे करे? लौकी की खेती के लिए गर्म एवं आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है। इसकी बुआई गर्मी एवं वर्षा के समय में की जाती है। यह पाले को सहन करने में बिलकुल असमर्थ होती है। इसकी खेती विभिन्न प्रकार की भुमि में की जा सकती हैं ।किन्तु उचित जल धारण क्षमता वाली जीवांश्म युक्त हल्की दोमट भुमि इसकी सफल खेती के लिए सर्वोत्तम मानी गयी हैं। लौकी की जूस की मांग पिछले कुछ सालों से काफी बढ़ी हुई है। आयुर्वेद में भी लौकी के जूस का काफी महत्त्व बताया गया है।जिसके कारण लौकी की खेती करने वाले किसानों की संख्या में काफी बढोत्तरी आई है। आज की कड़ी में हम एक ऐसे कीट के बारे में बात करेंगे जो लौकी के प्रमुख कीटो में से एक है। जिसे किसान भाई फल मख्खी के नाम से जानते है। लौकी की फल मख्खी फल मक्खी अपने अंडे देने वाले भाग से फलों में छेंद करके अपने अंडे छोटे फलों में दे देती हैं जिससे निकला लार्वा फल को अंदर ही अंदर खाता हैं परिपक्व लार्वा फल छेद करके बाहर निकल जाता है इनसे ग्रसित फल खराब होकर गिर जाते हैंं। प्रबंधन के उपाय ■गर्मी के दिनों में गहरी जुताई करके भूमि के अ