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Showing posts from September, 2020

जीवामृत-घर पर आसानी से बनाये अपनी फसल के लिए जैविक कीट/रोग नियंत्रक दवा।

जीवामृत- घर पर आसानी से बनाये अपनी फसल के लिए जैविक कीट/रोग नियंत्रक दवा अधिकांश मानवीय बीमारियों का कारण जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ कृषि में उपयोग हो रहे रसायन भी हैं। इनमें मुख्य रूपसे मानव द्वारा उपयोग की जाने वाली विषाक्त सब्जियां,अनाज एवं फल हैं जिनकी सुरक्षा हेतु अंधाधुंध रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है। इन कीटनाशकों के प्रयोग से अत्यधिक प्रयोग से इनके प्रति कीटों में प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है और कुछ प्रजातियों में तो प्रतिरोधक क्षमता विकसित भी हो चुकी है। इसके अलावा रासायनिक कीटनाशक अत्यधिक महगे होने के कारण किसानों को इन पर अत्यधिक खर्च करना पड़ता है। कीटनाशकों के अत्यधिक प्रयोग से फसलों, सब्जियों व फलों की गुणवत्ता पर भी विपरीत असर पड़ता है। इन वस्तुस्थिति के फलस्वरूप वैज्ञानिकों का ध्यान प्राकतिक एवं जैविक कीटनाशकों एवं रोगनाशकों की ओर गया है जोन केवल सस्ते हैं बल्कि जिनके उपयोग से तैयार होने वाली फसल के किसी प्रकार के रासायनिक दुष्प्रभाव भी नहीं रहते हैं। आज की कड़ी में हम एक ऐसे जैविक दवा बनाने की विधि के बारे में बात करेंगे जो कि रोग नाशक भी है अपितु कीटना

गरियाबंद : जैविक खेती को बढ़ावा देने जैविक दवाईयों का निर्माण कर रही है महिला समूह : अतिरिक्त आय का साधन भी बना

  गरियाबंद: जैविक खेती को बढ़ावा देने जैविक दवाईयों का निर्माण कर रही है महिला समूह  अतिरिक्त आय का साधन भी बना छत्तीसगढ़ शासन द्वारा ग्रामीण अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए ग्राम सुराजी योजना तथा गोधन न्याय जैसे महत्वपूर्ण योजना संचालित किया जा रहा है। इन योजनाओं का एक प्रमुख उद्देश्य यह भी है कि स्थानीय संसाधन से जैविक खेती और जैविक खाद के निर्माण को बढ़ावा दिया जाए। रासायनिक खाद के बेतरतीब उपयोग से धरती की उर्वरा शक्ति नष्ट हो रही है। ऐसे में जैविक खाद और जैविक दवाईयों का प्रचलन को बढ़ावा दिया जा रहा है। इस मिशन में ग्रामीण महिलाए भी पीछे नहीं है।  जनपद पंचायत छुरा की मुख्य कार्यपालन अधिकारी रूचि शर्मा ने बताया कि राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (बिहान) के विकासखण्ड छुरा अंतर्गत ग्राम रानी परतेवा के तिग्गा क्लस्टर के ग्राम संगठन जय गंगा मैया के जय मां सरस्वती समूह की सक्रिय सदस्य श्रीमती गायत्री साहू द्वारा इस कार्य को बखूबी अंजाम दिया जा रहा है। बिहान के सीएसएमएस परियोजना के तहत जैविक खेती को बढ़ावा देते हुए एनपीएम शाॅप के माध्यम से ग्राम स्तर पर विभिन्न जैविक दवाईयों तथा खाद का निर्माण औ

कृषि तकनीक- जानिये गंगा माँ मंडल क्या है ?

  कृषि तकनीक- जानिये गंगा माँ मंडल क्या है ?  Jayeshbhai M Sanghavi: एक छोटे परिवार (पति, पत्नी और दो बच्चे) की जरूरत वाले सभी पोषक तत्व, सब्जियों और फलों द्वारा प्राप्त करने के लिए, यह ढाँचा तैयार किया जाता है। इसमें 1000 वर्गफुट से ज्यादा जगह की जरूरत नही पड़ती। इसका उद्देष्य जैविक सब्जियों के लिए परिवार की बाजार पर निर्भरता कम करना और परिवार के सदस्यों की पोषण की जरुरत को पूरा करना है। यह 'अपनी सहायता अपने आप करो'' के महत्वपूर्ण सूत्र को पूरा करने में मदद करता है। एक गोल घेरे में इसे बनाया जाता है और इसमें जाने के लिए 7रास्ते होते है, ये जब बन के तैयार हो जाता है तो हम रोज सुबह 1 नंबर के रास्ते से गंगा मां मंडल के केंद्र की ओर अन्दर जाते है और वहा बने गोल घेरे में पानी देते है वो पानी सभी पौधो तक पहुँच जाता है और वापस लौटते समय उस रास्ते पे लगी सब्जीयों को तोड़ कर ले आते है.. और अगले दिन हम 2 नंबर के रास्ते से अन्दर जाते है और उस रास्ते की सब्जियों को लाते है इसी तरह हम रोज एक-एक कर के 7 रास्तो से सब्जिय्या तोड़ते हे और तब तक 1 नंबर के रास्ते पर 7 दिनों में फिर से उतनी ह

सावधान-भिंडी में लग रहे है फ्रूट एंड शूट बोरर कहीं पूरी फसल न हो जाये चौपट

सावधान-भिंडी में लग रहे है "FRUIT & SHOOT BORER" कहीं पूरी फसल न हो जाये चौपट भिंडी फसल से अधिकतम उत्पादन प्राप्त करने के लिए हानिकारक कीट व रोग पर नियंत्रण आवश्यक है। वैसे तो भिंडी फसल पर अनेक कीटों और रोगों का प्रकोप होता है। लेकिन आर्थिक दृष्टी से कुछ प्रमुख कीट व रोग है, जो फसल को हानी पहुंचाते है, जैसे, कीट में परोह और फली छेदक, फल भेदक, रस चूसने वाले कीट, मूल ग्रन्थि सूत्रकृमी और लाल मकड़ी आदि, वही प्रमुख रोगों में पितशिरा मौजेक वाइरस, आर्द्रगलन और जड़ गलन शामिल है। आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक भिंडी फसल के प्रमुख कीट प्ररोह एवं फल छेदक के बारे में बताएंगे कि किस प्रकार ये भिंडी की फसल को क्षति पहुंचाता है एवं इसका नियंत्रण किस प्रकार से किया जा सकता है। प्ररोह एवं फल छेदक इस कीट की लटे भिंडी फसल में काफी क्षति पहुंचाती है, जो कि फलों में छेद कर अन्दर घुस जाती है और फल खाकर नुकसान पहुचांती है| इसके प्रकोप से शुरूआत में अन्तिम प्ररोह (टर्मिनल शूट) मुरझा जाती है एवं गिर जाती है| फल-फूल, कलिकाएं (कोपले) भी गिर जाते है| साथ ही फल अनियमित आक

जैविक खेती :-नैचुरल कीटनाशक एवं औषधियाँ बनाने के कारगर नुस्खे

  जैविक खेती:-नैचुरल कीटनाशक एवं औषधियाँ बनाने के नुस्खे कृषि में कीट व रोग हमेशा ही किसानों के लिए बड़ी चुनौती रहे हैं। दुनिया भर में कीट व रोग नियंत्रण के रासायनिक तरीके बुरी तरह नाकामयाब साबित हो चुके हैं। महंगे कीटनाशकों का खर्च उठाना किसानों के बस की बात नहीं रही। आज साबित हो चुका है कि रसायनों का प्रयोग खेती में जमीन, भूमिगत जल, मानव स्वास्थ्य, फसल की गुणवत्ता व पर्यावरण हेतु बहुत नुकसानदायक है। कीटों व रोगों के नियन्त्रण का एक मात्र स्थायी समाधान है कि किसान भिन्न-भिन्न फसल चक्रों को अपनायें ताकि प्रकृति पर आधारित कीट व फसलों का आपसी प्राकृतिक सामंजस्य बना रहे और प्रकृति का संतुलन न गड़बड़ाए।खेती में लगातार रसायनों के प्रयागों से जमीन जहरीली हो चुकी है। पर्यावरण के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य पर इनका बुरा प्रभाव पड़ रहा है। किसानों को जरुरी है कि वे खेती में जैविक विकल्पों के अपनाएँ| जैविक कीटनाशक रोग एवं कीट को कम या खत्म करने के साथ-साथ जमीं की उर्वरता भी बढाते हैं। यह हमारे अपने आसपास के प्राकृतिक संसाधनों द्वारा अपने हाथों से तैयार होते हैं। इनसे किसानों की बाजार पर निर्भरता भी खत्म

कृषि सलाह:-चने की खेती कर रहे है तो इन किस्मो के बारे में भी जान लेंवे।

कृषि सलाह:-चने की खेती कर रहे है तो इन किस्मो के बारे में भी जान लेंवे। चना रबी फसल की प्रमुख फसलों में से एक है। चने को दलहनी फसलों का राजा भी कहा जाता है।  किसान भाई  रबी में चने की खेती करना चाहते है परन्तु बीज के किस्मो के बारे में जानकारी नही होने के कारण बाजार से किसी भी किस्म का बीज लाकर बुवाई कर लेते है जिससे कि अपेक्षित उपज की प्राप्ति नही हो पाती। इस समस्या को देखते हुए आज की कड़ी में चने की किस्मो के बारे में किसान भाइयों को बताएंगे जो कि उन्नत किस्म के है,और साथ ही किस्म कितने दिन में तैयार होगी व इन किस्मो में क्या क्या गुण है। चने की उन्नत किस्में किस्म का नाम- जे.जी. 16 ■अवधि - 110-120 दिन ■उपज 18-20 क्विं/हे. विशेष गुण- • उकठा रोधी • मध्य भारत के लिए उपयुक्त किस्म का नाम -जाकी 9218 ■अवधि 110-112 दिन ■उपज18-20 क्वि./हे. विशेष गुण सिंचित एवं असिंचित बुवाई हेतु उपयुक्त  • बीज गहरे भूरे रंग, • मध्यम आकार (20-27 ग्राम/100 दानों का वजन) • उकठा प्रतिरोधी क्षमता • इस प्रजाति मे सूरवा सहन करने की क्षमता है । किस्म का नाम :-जे.जी.63 ■अवधि- 110-120 दिन ■उपज-20-25 क्वि हे ■का

रोग प्रबंधन- COVID-19 से बचाने वाला ये पौधा,खुद ही संक्रमित हो गया इस रोग से【Ginger Rhizome rot】

  अदरक मृदु विगलन या     प्रकंद सड़न   कोरोना महामारी के संक्रमण के दौरान अदरक की मांग पूरे देश मे काफी बड़ी हुई है।किसानों को अदरक से अच्छी आय प्राप्त होती है। परंतु विगत कुछ वर्षों से इस फसल में रोगों के प्रकोप के कारण उपज में भारी कमी आई है। प्रायः मुख्य रूप से अदरक की खेती में प्रकन्द सड़न, जीवाणुजी म्लानि, पीत रोग, पर्ण चित्ती, भण्डारण सड़न आदि मुख्य रोग तथा कूरमुला कीट एवं अदरक की मक्खी से आर्थिक क्षति पहुंचती है जो कि अदरक के उत्पादन को कम कर देती है। वर्तमान में देखा जा रहा है कि अदरक में प्रकंद सड़न जिसे अंग्रेजी में (Rhizome rot) कहा जाता है। इसकी समस्या आ रही है। समस्या को ध्यान में रखते हुए आज की कड़ी में डॉ. गजेंन्द्र चन्द्राकर वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक प्रकंद सड़न के बारे में बताएंगे। रोग के लक्षण ■इस रोग के लक्षण सर्वप्रथम पत्तियों पर दिखाई पड़ते हैं जिससे पत्तियों का रंग हल्का फीका हो जाता है। ■ पत्तियों का यह पीलापन पत्तियों की नोंक से शुरू होकर नीचे की ओर बढ़ता है। धीरे – धीरे पूरी पत्ती पड़ जाती है और सूख जाती है। ■पौधा जमीन की सतह के पास भूरे रंग का हो जाता है, तथा छूने पर पिलप