उद्यानिकी- अमरूद में उच्च गुणवत्ता युक्त ज्यादा फलन लेने समय पर करें बहार नियंत्रण।
अमरूद/बिही/जाम/Guava में साल में तीन बार फूल एवं फल आते है जिनको बहार कहते हैं। इस तरह अमरूद में तीन बहार आती है मृग बहार, अम्बे बहार एवं हस्त बहार।
■अम्बे बहार – इसमें फरवरी-मार्च माह में फूल आते हैं एवं बारिश के मौसम में फल लगते हैं। बारिश के कारण इस मौसम की फसल के फल कम मीठे होते है एवं इनकी गुणवत्ता भी अच्छी नहीं होती है, कीड़े बीमारियों का प्रकोप ज्यादा होने से किसानों को आर्थिक रूप से कम लाभ होता है।
■हस्त बहार – इस बहार में अक्टूबर – नवम्बर माह में में फूल आते है एवं फरवरी-अप्रैल में फल आते है, इस मौसम के फलो की गुणवत्ता अच्छी होती है लेकिन उपज कम आती है।
■मृग बहार – इस बहार में जून – जुलाई माह में फूल आते है एवं नवम्बर-जनवरी में फल आते हैं। मृग बहार के फलों की गुणवत्ता, स्वाद एवं उपज अच्छी होती है।
यदि अमरूद के पेड़ पर तीनों बार फल लिए जाए तो उत्पादन कम होता है एवं फलों की गुणवत्ता भी कम होती है। अतः अमरुद के फलों में ज्यादा उत्पादन एवं अच्छी गुणवत्ता के फलों के उत्पादन के लिए साल में सिर्फ एक बार उत्पादन लिया जाता है।
अमरूद में फल नई शाखाओं में ही लगते हैं, पुरानी पर नहीं अतः अमरूद में गुणवत्ता युक्त एवं ज्यादा उत्पादन प्राप्त करने के लिए नई शाखाओं का बड़ी संख्या में निकलना आवश्यक है।
मृग बहार या ठंड की फसल में फूल अधिक लगते है, बड़े आकार के फलों का उत्पादन होता है, फल स्वाद में अधिक मीठे होते है एवं फलों का उत्पादन ज्यादा आता है इसलिए भारत में मृग बहार की उपज ली जाती है।
मृग बहार ठंड की फसल में अच्छी गुणवत्ता एवं फलों का अधिक उत्पादन लेने के लिए, वर्षा ऋतु वाली फसल यानि अम्बे बहार के फूलों को लगने से रोका जाता है जिसे बहार नियंत्रण कहते है।
सामान्यतया अप्रैल के अंत व मई माह के शुरूआत में आने वाले सभी फूलों एवं छोटे फलों को तोड़ दिया जाता है, इससे पौधे की ताकत बची रहने से मृग बहार में अच्छा फलन आता है।
बहार नियंत्रण के लिए निम्नलिखित क्रियाओं में से सुविधानुसार क्रियाएँ की जाती हैं-
1. फूलों को हाथ से झाड़कर – जहाँ पौधों की संख्या कम हो वहाँ फूलों को हाथ से झड़ाया जाता है पर बड़े बगीचे में यह सम्भव नहीं होता।
2. सिंचाई रोककर – मृग बहार या ठंड की फलन लेने के लिए फरवरी से 15 मई तक पानी देना बंद कर देते हैं जिससे पत्तियाँ गिर जाती है एवं पेड़ सुसुप्तावस्था में चले जाते है। इसके बाद मध्य मई में पेडों की गुडाई करके उर्वरक डालकर सिंचाई करते हैं जिससे मृग बहार में फूल ज्यादा आते हैं व फल भी ज्यादा लगते हैं।
3. जड़ों की खुदाई– इस विधि में सिंचाई बंद कर जड़ों के आसपास की मिट्टी को अप्रैल-मई में 20-30 सेमी गहराई में खोदकर बाहर निकाल दिया जाता है, जिससे जड़ों को प्रकाश/धूप लगती है, परिणामस्वरुप मृदा में नमी की कमी होने से पत्तियाँ गिरने लगती है और पेड़ सुसुप्तावस्था में चले जाते है। फिर 20-25 दिन के बाद जड़ों को मिट्टी से दुबारा ढक दिया जाता है एवं खाद-उर्वरक डालकर, सिंचाई की जाती है। परन्तु यदि सावधानी पूर्वक कार्य न किया जाए तो कई बार जड़ों को क्षति पहुँचने से पेड़ सूख भी जाते हैं।
4. वृद्धि नियंत्रकों का प्रयोग (ग्रोथ रेगुलेटर )- बड़े-बड़े बगीचों में बहार नियंत्रण हेतु यह व्यवहारिक विधि है। इसमें 50% पुष्पन की अवस्था में नेफ्थलीन एसिटिक एसिड NAA (व्यवसायिक रूप से प्लानोफिक्स के नाम से मिलता है) 80-100 ppm (प्लानोफिक्स 2-3 मिली/लीटर) या यूरिया 100-150 ग्राम/लीटर का छिड़काव किया जाता है जिससे बहार नियंत्रण में सहायता मिलती है।
5. शाखाओं को झुकाकर- जिस पेड़ की शाखायें सीधी रहती है उनमें नई शाखाएँ कम निकलने से फलों का उत्पादन कम होता है। सामान्य दूरी पर लगे बगीचों में बहार नियंत्रण हेतु यह परम्परागत एवं कम खर्चीली तकनीक है, पर इस विधि का प्रयोग उच्च घनत्व के बगीचों में नहीं किया जा सकता है। इसमें पेड़ की ऐसी सीधी शाखाओ को अप्रैल-जून माह में झुकाकर जमीन में खूंटा आदि गाड़कर रस्सी से बांध दिया जाता है एवं शाखाओं की शीर्ष की उपरी 10-12 जोड़ी पत्तियों को छोड़कर अन्य छोटी छोटी शाखाओं, पत्तियों, फूलों व फलों को तोड़कर हटा दिया जाता है. इससे नई शाखाएँ ज्यादा निकलने से इन शाखाओं में फल ज्यादा लगते हैं।
इस तरह बहार नियन्त्रण करने से अमरूद में फल ज्यादा लगते है एवं फलन गुणवत्ता युक्त होते हैं।
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