मेंथा की खेती कर देगी किसानों को मालामाल
स्वाद भरे इस देश में भला पिपरमेंट को कैसे भुला जा सकता है वो बचपन की ठंडी ठंडी टोफियाँ जिसका स्वाद आज भी जुबान पर है। पर क्या जानते हैं ये टेस्ट आता कहा से था? पिपरमेंट की खेती कैसे करें और क्यों करें व कितना लाभ कमाया जा सकता है। जैसा की हमें पता है भारत एक कृषि प्रधान देश है आज भी 70 से ज़्यादा प्रतिशत लोग किसी ना किसी रूप में कृषि से जुड़े हैं।
आज हम बात कर रहे हैं पिपरमेंट की खेती की जिसने न सिर्फ खेती के मायनों को बदला बल्कि जिसने किसानो का क़र्ज़ ख़त्म करके उन्हें इस काबिल बना दिया है कि वो आज अपनी हर पसंदीदा चीजों को करने में बिलकुल नहीं कतराते।
पिपरमेंट से बनने वाली वस्तुए
इसका इस्तेमाल दवाएं, सौंदर्य उत्पाद, टूथपेस्ट के साथ ही कंफ्केशनरी उत्पादों में होता है।
टेस्ट के लिए: टेस्टी टाफी, पान, साबुन, ठंडा तेल, टूथ पेस्ट आदि से लेकर विभिन्न औषधीय निर्माण में इसका उपयोग किया जाता है।
#संक्रमण को दूर करने में सहायक: त्वचा पर हो रही लगातार खुजली से छुटकारा पाने के लिए आप पेट्रोलियम जैली के बजाए पिपरमेंट के तेल का उपयोग करें, क्योंकि इससे होने वाला असर पेट्रोलियम जैली की तुलना में काफी अच्छा होता है। पिपरमेंट का तेल त्वचा में ठंडक देने के साथ जलन, खुजली जैसी समस्या से छुटकारा दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
#एंटी बैक्टीरियल गुणकारी: यदि हाथ धोने के लिए आपके पास सैनिटाइजर या हैंडवॉश का कोई साधन उपलब्ध नहीं है तो इस आपात स्थिति में आप पिपरमेंट के तेल का उपयोग कर सकते हैं। शोध के अनुसार पता चला है इसके अंदर कई खतरनाक बैक्टीरिया को खत्म करने की क्षमता होती है।
#मुंहासे पर असरदार: दुनिया भर के सभी विशेषज्ञों ने मुंहासों के उपचार के लिए पिपरमेंट के तेल को सबसे अच्छा उपचार बताया जाता है। इसका उपयोग करने से यह सूजन को कम करने के साथ ही त्वचा के मुंहासे को कम करने का भी काम करता है।
#एडुफ़ीवर हिंदी एक्स्ट्रा: भारत दुनिया का सबसे बड़ा मेंथा उत्पादक और निर्यातक है. इंडस्ट्री के आकंड़ों के मुताबिक, पूरी दुनिया में 45000-48000 टन के बीच उत्पादन रहा था, जिसमें से अकेले भारत ने ही 30,000 टन मेंथा तेल का उत्पादन किया था।
पिपरमेंट की किस्में (Types of Peppermint)
#एम.ए.एस.1: यह शीघ्र तैयार होने वाली तथा मेन्थाल की अधिक मात्रा युक्त किस्म है जिससे 200 क्विण्टल/हेक्टेयर शाक उपज तथा 125 किग्रा. प्रति हेक्टेयर एसेन्सियल आयल प्राप्त होता है। इसके तेल में 82% मेंथाल पाया जाता है।
#कालका: इस किस्म के तेल में 81% मेंथाल पाया जाता है। औसतन 250 क्विण्टल/हेक्टेयर शाक उपज जिससे 150 किग्रा. एसेन्सियल आयल प्राप्त होता है। यह किस्म लीफ स्पाट व रस्ट रोग प्रतिरोधी है।
#शिवालिक: यह चीन का पौधा है। देर से तैयार होने वाली इस किस्म से 300 क्विण्टल/हेक्टेयर शाक उपज और 180 किग्रा. एसेन्सियल आयल प्राप्त होता है। तेल में 75% मेंथाल पाया जाता है।
#गोमती: यह भी देर से तैयार होने वाली किस्म है जिससे 400 क्विण्टल/हेक्टेयर उपज और 140 किग्रा. एसेन्सियल आयल प्राप्त होता है।
#हिमालय: यह मेंथाल पोदीने की नवीन किस्म है। इसके पौधे लम्बे, तने हरे तथा पत्तियाँ हल्की हरे रंग की मोटी और मुलायम होती हैं। इसकी फसल की दो कटाइयों में प्रति हेक्टेयर 350-450 क्विण्टल/हेक्टेयर शाक (हर्ब) प्राप्त होता है जिससे 200-250 किग्रा. तेल प्राप्त होता है। अन्य किस्मों की अपेक्षा इसमें 28-35 % अधिक तेल उत्पादन की क्षमता होती है। इसके तेल में 78% मेंथाल पाया जाता है ।
#कोसी: शीघ्र तैयार होने वाली इस किस्म से औसतन 450-500 क्विण्टल/हेक्टेयर हर्ब तथा 260-300 किग्रा. तेल प्राप्त होता है। इसके तेल में 80-85% मेंथाल होता है ।
#हाईब्रिड: यह तेज बढ़ने वाला पौधा है। इससे 262 क्विण्टल/हेक्टेयर पत्तों की उपज तथा 468 किग्रा. प्रति हेक्टेयर तेल प्राप्त होता है जिसमें 81.5% मेंथाल होता है।
#खेती करने के लिए उपयुक्त जलवायु
मेंथा की खेती उष्ण तथा समशीतोष्ण जलवायु जहाँ पर अपेक्षाकृत हल्के जाड़े एवं ग्रीष्म ऋतु गर्म हो, आसानी से की जा सकती है।
अत्यधिक ठंडे स्थान मेंथा की खेती के लिए उपयुक्त नहीं रहते हैं क्योंकि कम तापमान पर मेंथा के पौधों की पत्तियों में तेल एवं मेन्थाल का संश्लेषण तथा पौध वृद्धि कम होती है।
मेंथा की खेती औसत तापमन 20 से 40 डिग्री. से. तापमान तथा 95-105 से.मी. वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में सरलता से की जा सकती है।
सही भूमि का चुनाव कैसे करें
उचित जल निकास एवं पर्याप्त कार्बनिक पदार्थ वाली बलुई दोमट से चिकनी दोमट मिट्टी जिनका पी.एच. 6.5 से 7.5 तक हो, मेंथा की खेती के लिए उपयुक्त रहती है।
हल्की ढीली मिट्टी जो जल्दी सूख जाती है तथा भारी मिट्टी (जड़ों का समुचित विकास नहीं हो पाता है) इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं मानी जाती।
खेत की तैयारी
सर्वप्रथम मिट्टी पलटने वो हल से गहरी जुताई करनी चाहिए जिससे मिट्टी ढीली हो जाए। इसके बाद देशी हल या कल्टीवेटर से आडी-तिरक्षी (क्रास) जुताई करें जिससे मिट्टी भुरभुरी हो जाए।
किस समय करें इसकी बुवाई
मेंथा की बुआई का सवोत्तम समय जनवरी-फरवरी का होता है। रबी फसल की कटाई के बाद भी मेंथा का रोपण किया जा सकता है।
जल्दी बुआई करने पर तापमान कम होने से भूस्तारियों का अंकुरण नहीं हो पाता है और अधिक देर में बोई गई फसल की वृद्धि रूक जाती है, क्योंकि इसके पौधे दीर्घ-प्रकाशपेक्षी होने के कारण बुआई तथा फूल आने के बीच का समय कम हो जाता है।
किसी कारणवश देरी से बुआई मार्च-अप्रैल करने हेतु मेंथा की रोपणी तैयार कर बुआई करना श्रेयस्कर होता है।
बीज खरीदने से जुडी कुछ जानकारियां
पिपरमिंट का अच्छी किस्म का बीज बाजार में मात्र 1300 रुपये क्विंटल है।
एक बीघे में 20 किलो बीज का प्रयोग होता है। यानि की एक क्विंटल बीज में पांच बीघे खेत के लिए पिपरमिंट की नर्सरी डाली जाएगी ।
*1 बीघे= 20 कट्ठा।
बीज की तयारी और रोपाई करने की सही विधि
मेंथा में कायिक प्रवर्धन भूस्तारियों द्वारा होता है। भूस्तारी सर्दी के दिनों में उपलब्ध रहते हैं। सही किस्म के चुनाव के बाद अच्छी गुणवत्ता वाली पौध सामग्री का ही प्रयोग प्रसारण हेतु करना चाहिए।
भूमिगत भूस्तारी स्वस्थ पौधों से चुनना चाहिए जो गेरूई रोग से पूर्णतः मुक्त हो। स्वस्थ एवं रोग रहित भूस्तारी प्रायः सफेद रंग के और अधिक रसीले होते है। भूस्तरी को छोटे-छोटे टुकड़ों में 8-10 सेमी. नाप के काट लेना चाहिए।
#नोट: बुआई से पूर्व भूस्तरी को 0.1% कवकनाशी घोल में 5-10 मनिट तक डुबो लेना चाहिए जिससे फफूँदी रोग से फसल की रक्षा हो सकें। मेंथा फसल का रोपण सीधे सकर्स एवं पौध द्वारा की जाती |
#पहली बार खेती करने वाले कैसे करें
#सीधे सकर्स से बोआई
जहाँ मेंथा की खेती पहली बार की जा रही है, वहाँ यह विधि उपयोगी रहती है। इसके लिए मेंथा के सर्कस (एक प्रकार का तना) उन स्थानों से प्राप्त करें जहाँ पहले से इसकी खेती होती हो।
इसके बाद इस सकर्स को सीधे खेत में 60-75 सेमी की दूरी पर लगा दें। जनवरी-फरवरी में लगाईं जाने वाली फसल में पौधों के मध्य की दूरी 75 सेमी. रखें।
देर से बुआई करने पर पौधों के मध्य का फासला कम रखना चाहिए।
सकर्स भूमि में 5-8 सेमी. की गहराई पर बोनी चाहिए। इस विधि में प्रति हेक्टेयर लगभग 3-4 क्विंटल सकर्स की आवश्यकता पड़ती है।
जनवरी-फरवरी में लगाये गये सकर्स का जमाव 2-3 सप्ताह में होना शुरू हो जाता है। पहले साल 0.5 हेक्टेयर क्षेत्र में लगाई गई फसल से अगले वर्ष 10 हेक्टेयर क्षेत्र में पौधे रोपे जा सकते है।
#पौध रोपण विधि
रबी फसल के बाद मेंथा की खेती रोपण विधि से करना चाहिए। इसमें सबसे पहले पौधों की नर्सरी तैयार की जाती है।
एक हेक्टेयर क्षेत्र के लिए 1250 वर्गफीट क्षेत्र की नर्सरी पर्याप्त होती है। इसके लिए 250 किग्रा. मेन्था सकर्स को छोटे – छोटे टुकड़ों (प्रत्येक टुकड़े में कम से कम एक आँख हो) में काटाकर पानी से भरी नर्सरी में बिखेर दिया जाता है।
इसके बाद नर्सरी में झाडु चलाकर पानी को मटमैला कर दिया जाता है। पानी सूखने पर इसके ऊपर गोबर की सड़ी हुई खाद अथवा पलवार बिछा दी जाती है।
लगभग 30-40 दिन में पौध तैयार हो जाती है। मार्च-अपैल में नर्सरी के इन पौधें का मुख्य खेत में रोपण किया जा सकता है।
फसल की कटाई कैसे करें व क्या है सही समय
मेंथा की सही समय पर कटाई नहीं करने से इसकी उपज व गुणवत्ता पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
जल्दी कटाई कर ली जाए तो मेंथाल की मात्रा घट जाती हैं और देर से कटाई की जाए तो भी पत्तियों के सूखने पर तेल की मात्रा घट जाती है।
पौधों की आयु के साथ मेंथा में तेल एवं मेंथाल की मात्रा बढ़ती रहती है तथ फूल आते समय यह सर्वाधिक होती है।
फूल आने के बाद इनकी मात्रा घटने लगती है। अतः फूल आने की अवस्था कटाई के लिए उपयुक्त रहती है।
देर से काटने पर पत्तियां झड़ने लगती हैं जिससे उत्पादन भी कम हो जाता है। सामान्यतौर पर मेंथा की पहली कटाई बुआई के 100-120 दिन बाद तथा दूसरी कटाई पहली कटाई के 60-70 दिन बाद करना चाहिए।
कटाई के समय आसमान खुला हो तथा चमकती धूप हो। कटाई हँसिया द्वारा भूमि की सतह से 8-10 सेमी. की ऊँचाई से करना चाहिए।
कटाई के बाद फसल को 2-4 घंटे के लिए खेत मे छोड़ देते है। तत्पश्चात् पौधें के छोटे-छोटे गट्ठर बनाकर उन्हे छाया में सुखाया जाता है।
#नोट: सुखाते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि पत्तियाँ गिरने न पाएँ। जब गट्ठर का वजन तिहाई – चैथाई रह जाए, तो सुखाना बन्द कर देना चाहिए। धूप में सुखाने पर तेल की मात्रा घट जाती है।
तेल निकालने की सही विधि क्या है
प्लांट के टैंक में एक ट्राली मेंथा और 50 लीटर पानी को पकाया जाता है।
इस दौरान टैंक से भाप के सहारे निकले तेल को एक बर्तन में इकट्ठा करते हैं।
चार घंटे के अंदर एक ट्राली मेंथा से 25 से 30 लीटर तेल तैयार हो जाता है।
मुनाफा कैसे मिलेगा
इससे निकले तेल तो अगर आप सीधे तोर पे बाज़ार में बेचें तो बहुत अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है आप इसे 4000 से 5000 प्रति लीटर की दर भी बेच सकते हैं।
खुद का प्रोडक्ट बना कर भी आप इसे कई तरह से बेच सकते हैं अगर आप चाहें तो इसे ऑनलाइन भी बेच सकते हैं फ्लिप्कार्ट, अमेज़न, बिग बास्केट इत्यादि इसके कुछ उदहारण हैं।
कृषक हित मे प्रचारक
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