कटहल के फल काले होकर सड़ रहे है क्या करे?
कटहल को विश्व का सबसे बड़ा फल भी कहते हैं। इसका पूर्ण विकसित पौधा कई वर्षो तक पैदावार देता है। इसके पके हुए फल को ऐसे भी खाया जा सकता है। किन्तु विशेषकर इसे सब्जी के रूप में खाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसलिए इसे फल और सब्जी दोनों ही कह सकते हैं। कटहल की ऊपरी परत पर छोटे-छोटे काटे लगे होते हैं। कटहल में कई तरह के पोषक तत्व जैसे:- आयरन, कैल्शियम, विटामिन ए, सी, और पौटेशियम बड़ी मात्रा में भी पाए जाते हैं, जो कि मानव शरीर के लिए लाभदायक भी हैं। एक वर्ष में कटहल के पेड़ से दो बार फलों को प्राप्त किया जा सकता है। इस लिहाज से कटहल की खेती किसानों के लिए आय की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसकी खेती से किसानों को बहुत अच्छा मुनाफा होता है। कटहल कच्चा हो या पका हुआ, इसको दोनों प्रकार से उपयोगी माना जाता है, इसलिए बाजार में इसकी मांग ज्यादा होती है।
जिन किसानों के घर पर कटहल का पेड़ है वह इस रोग से भलीभांति परिचित है कटहल पर लगने वाली इस बीमारी से अधिकांश किसान परेशान होते है इस रोग का रोगकारक एक कवक है जिसे राइजोपस स्टोलोनिफर कहते हैं।
लक्षण
राइजोपस सड़न रोग कटहल के फूलों और युवा फलों की एक आम बीमारी है। यह फल पर एक नरम, पानीदार, भूरे रंग के धब्बे का कारण बनता है जो जल्द ही गहरे भूरे रंग, बाद में काले मोल्ड कवक से ढक जाता है। फलों पर लक्षण पेड़ पर और भंडारण दोनों में देखा जा सकता हैं।
रोग कैसे फैलता है।
इस रोग का फैलाव हवा में बड़ी संख्या में बीजाणुओं द्वारा होता है। यदि ठीक से प्रबंधन किया जाय तो यह रोग होगा ही नही। यदि पर्यावरण ने साथ दे दिया और रोग उत्पन्न हो ही गया तो इसे बहुत आसानी से प्रबंधित किया जा सकता है।
प्रबंधन
यदि आप चाहते है की यह रोग आप के बाग में हो ही नही तो आप को पेड़ों की सुखी एवं रोगग्रस्त टहनियों की कटाई छटाई करे । गर्म, खराब हवादार, उच्च आर्द्रता वाले भवनों में फल रखने से बचना चाहिए।यदि संभव हो तो, फल को 10डिग्री सेल्सियस से कम तापक्रम भंडारण करना चाहिए । सभी उम्र के संक्रमित फलों को पेड़ों से काट कर हटा दें और जो भी जमीन पर गिरे हों उनको इकट्ठा करके गाड़ दे या जला दे।फलों को किसी भी घावों से बचाना चाहिए।
जैविक नियंत्रण
2 ली ताजा गौमूत्र, 1-2 लीटर ताम्रयुक्त छाँछ एवम 2 से 4 ली गौ कृपा अमृतम या OWDC का कल्चर शेष पानी मिक्स कर प्रति पंप स्प्रे & जड़ के पास ड्रेंचिंग करें।
ये तीनों जैविक तरल खाद उपलब्ध ना हो तो किसी एक का प्रयोग मात्रा बढ़ाकर (3-4 ली) कर सकते हैं.
रसायनिक नियंत्रण
रोग की उग्रता की अवस्था में कवकनाशी की आवश्यकता होती है, तो मेन्कोज़ेब, या थायोफेनेट-मिथाइल या ट्राईज़ोल, जैसे, प्रोपिकोनाज़ोल में से किसी भी फफूंदनाशक @2ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव किया जा सकता है।
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