सावधान:-4-5 सालों से हो रही है धान की बाली बदरंग (बदरा) जाने कारण व निवारण
प्रायः देखा जाता है कि सितम्बर -अक्टूबर माह में जब धान की बालियां निकलती है तब धान की बालियां बदरंग हो जाती है। जिसे छत्तीसगढ़ में 'बदरा' हो जाना कहते है इसकी समस्या आती है।
धान की फसल पर संकट के बादल मंडरा सकते हैं, खुली आंखों से नजर नहीं आने वाले दुश्मन पिछले 4-5 सालों से घातक साबित हो रहे हैं और किसानों के मेहनत पर पानी फेर रहे हैं। मकड़ी और बैक्टीरिया धान की फसल को बर्बाद कर नुकसान पहुंचा रहा है। इससे धान की जो फसल नष्ट हो जाती है, उसे तो बचाया नहीं जा सकता, किन्तु समय रहते इसकी पहचान हो जाती है तो फसलों को उपचारित कर बचाया जा सकता है। वहीं सभी किसानों को भी अलर्ट रहना होगा, क्योंकि छत्तीसगढ़ की पहचान धान है और ये कीट व्याधि छिपकर इसी पहचान पर हमला कर रहे है।
अनुविभागीय कृषि अधिकारी जिला गरियाबन्द श्री रमेश निषाद ने बताया कि यह दो कारणो से होता है।
1.पेनिकल माइट एक सूक्ष्म अष्टपादी जीव पेनिकल माइट के कारण होता है।
2. बैक्टीरिया (बैक्टीरियल पेनिकल ब्लाइट) धान की लीकशीय और बालियों पर मकड़ी के खरोच से निर्मित घाव के माध्यम से बैक्टीरिया पौधे के अंदर आसानी से प्रवेश करते हैं। शुष्क वातावरण में 30.35 डिग्री सेल्सियस तापमान एवं 80.85 प्रतिशत सापेक्ष आद्रता पर मकड़ी और बैक्टीरिया दोनों ही तेजी से गुणन करते है और पेनिकल (बालियों) को संक्रमित कर बदरंग और बदरा कर देते है। स्थानीय किसान इसे पोची व बदरा कहते है।
धान की बाली बदरंग एवं बदरा- धान की बाली में बदरा या बदरंग बालियों के लिए पेनिकल माईट प्रमुख रूप से जिम्मेदार है। पेनिकल माईट अत्यंत सूक्ष्म अष्टपादी जीव है जिसे 20 एक्स आर्वधन क्षमता वाले लैंस से देखा जा सकता है।
यह जीव पारदर्शी होता है तथा पत्तियों के शीथ के नीचे काफी संख्या में रहकर पौधे की बालियों का रस चूसते रहते हैं जिससे इनमें दाना नहीं भरता।
इस जीव से प्रभावित हिस्सों पर फफूंद विकसित होकर गलन जैसा भूरा धब्बा दिखता है। माईट उमस भरे वातावरण में इसकी संख्या बहुत तेजी से बढ़ती है। ग्रीष्मकालीन धान की खेती या पुराने फसल अवशेष के द्वारा यह एक मौसम से दूसरे मौसम की फसल पर अपनी उपस्थिति बनाए रखता है, बीजों में भी यह सुशुप्तावस्था में रहता है। जलवायु में आ रहे परिवर्तन की वजह से इस नए प्रकार की समस्या का प्रादुर्भाव धान की खेती में देखने में आ रहा है जिसके लिए सजग रहने की आवश्यकता है।
इससे बचने के लिए प्रकोप के शुरूआती अवस्था में ही "माईट" के नियंत्रण हेतु इनमें से किसी एक दवा का छिड़काव कर सकते है।
■Abamectin 1.8 %EC 100 ml
■ Propergite 57% EC 500 ml
■ Dicofol 18.5%EC 1liter
■ Ethion 50% EC 500 ml
■ Spiromesifen 22.9% SC 150 ml
■Haxythiazox हेकसीथियाजोक्स 5.45 % w/w Ec 250 ml प्रति एकड़ की दर से छिड़काव कर सकते है। यह शुरुआती दौर पर नियंत्रित कर फसल को बचाया जा सकता है
Comments